हुकुस-बुकुस कश्मीर का एक बहुत पुराना फ़ोक सॉन्ग है जिसे एक ज़माने से कश्मीर के लोग गाते आ रहे हैं. खासकर के ये गाना दादियां और नानियां घर में छोटे बच्चों को खुश करने के लिए गुनगुनाया करती हैं. पर आजकल ये गाना एक नए अवतार में इंटरनेट पर छा गया है. इस लोकगीत के नए अवतार के पीछे एक नाम है. और वो है आभा हंजूरा. जो कश्मीरी सिंगर हैं. आभा ने इस ट्रेडिशनल गाने को एक नई जनरेशन के हिसाब से ढाला है और इंटरनेट पर रिलीज़ किया है. सोशल मीडिया पर इसे खूब शेयर किया जा रहा है. दस दिनों के अंदर ही इस गाने के वीडियो को करीब एक लाख लोगों ने यू-टयूब पर इस वीडियो पर देख लिया है.
आभा 2005 में ‘इंडियन आइडल’ के फाइनल तक का सफर तय कर चुकी हैं. इस गाने को एक नया चेहरा देने के लिए, आभा ने इसमें कुछ कश्मीरी लोरियां और कविताओं की चंद पंक्तियां भी पिरोयीं हैं, जिसके बजते ही आपके पैर थिरकने लगेते हैं. इस म्यूज़िकल नंबर को लाने का सिर्फ एक ही मकसद है, और वो है कश्मीर की इस खूबसुरत भाषा और हिमालय में बसी कश्मीर घाटी के संगीत को प्रमोट करना. जिससे कि पूरी दुनिया जान पाए कि कश्मीरी भाषा कितनी समृद्ध है. श्रीनगर की रहने वाली आभा तब महज़ 4 साल की थीं जब उनके परिवार को कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद के चलते श्रीनगर छोड़ जम्मू आना पड़ा. उन्होंने अपनी पढ़ाई जम्मू से ही पूरी की.
यहीं नहीं आभा की ‘आभा हंजूरा सुफिस्टिकेशन’ नाम की वेबसाइट भी है जहां इनके सारे गाने मिल जायेंगे. उन्होंने अपना खुद का म्यूजिक बैंड ‘बैंड सुफिस्टिकेशन’ भी शुरू किया है. भारत और पाकिस्तान दोनों ही जगहों से कुछ क्लासिकल सूफी म्यूजिक को इस बैंड में खास जगह मिली है. ये बैंड दूसरे राज्यों के फ़ोक म्यूजिक को भी पेश करता है. आभा ने कुछ और बेहतरीन ‘रोशे अ वालो मशोक म्यायेने’ और ‘दमा-दम मस्त कलंदर’ जैसे गाने भी गाएं हैं. जिसे लोगों ने काफी पसंद भी किया है. फिलहाल बैंगलौर में रह रही आभा ने अपने एक इंटरव्यू में हुकुस-बुकुस गाने और कश्मीर के लिए उनके दिल में कभी न खत्म होने वाले प्यार के बारे में कुछ बातें कीं हैं...

आभा अपना म्यूजिक बैंड भी चलाती हैं.
- म्युज़िक इंडस्ट्री में अपनी जर्नी के बारे में बताइए.
2005 के इंडियन आइडल में जाना महज़ इत्तेफ़ाक था, जिसमें मेरे भाई ने मुझे जबरदस्ती ऑडिशन के लिए भेजा था. उस वक्त मैं सिर्फ 17 साल की थी. पर वक्त के साथ धीरे-धीरे चीज़ें बदल जाती हैं. इंडियन आइडल के बाद लोगों ने मुझसे कहा कि मेरी आवाज़ काफी अच्छी है और मैंने भी इस बारे में सोचना शुरू किया. मगर सच कहूं तो जब मुझे मेरी इस कला में एक मकसद नज़र आया. दरसअल तभी मैंने इस बारे में गंभीरता से सोचा. गाने तो मैं बचपन में भी गाया करती थी पर तब मैंने कभी नहीं सोचा था कि बड़ी होकर मैं एक सिंगर बनूंगी.
- हुकुस-बुकुस का आइडिया कैसे आया?
हुकुस-बुकुस वो गाना है जिसे मैं बचपन से ही बहुत पसंद किया करती थी. जब मैं काफी छोटी थी तब मेरी दादी ये गाना मेरे लिए गाया करती थीं. मेरी दादी एक और गाना गाया करती थीं और वो था ‘बिश्तु-बिश्तु बियारियो’. इन गानों को सुनते-सुनते मैं बड़ी हुई हूं. इसलिए इन गानों ने मुझे इनका एक ‘फन वर्जन’ बनाने के लिए इंस्पायर किया. मुझे लगा ये एक खुशनुमा गाना है जिसे सुन कर पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं, इसलिए मैंने सोचा इस गाने को ऐसे बनाया जाना चाहिए जिसे सुन कर आपका मूड अच्छा हो जाए.
अगर आप इसे सुबह सुनते हैं, तो आपको ऐसा महसूस करना चाहिए कि आपका दिन अच्छा जाएगा क्योंकि मेरी दादी की यादें कुछ ऐसी ही हैं. वो मेरे लिए ये गाना सुबह-सुबह गाया करती थीं. इस गाने के ज़रिये मैंने उन्हीं यादों को दोबारा जिंदा करने की कोशिश की है.
वीडियो देखें-
https://www.youtube.com/watch?v=pA9UPOSh3Ws
- क्या आपने इस गाने की लिरिक्स में कोई बदलाव किए हैं?
ये कश्मीर का एक बहुत पुराना ट्रेडिशनल गीत है. सच कहूं, तो इतना पुराना कि किसी को नहीं पता कि इसके असली लिरिक्स क्या हैं. इस गाने में मैंने खुद से भी कुछ लिरिक्स डाले हैं. और कुछ शब्दों को भी बदला है.
- क्या कश्मीरी फ़ोक म्यूज़िक की तरफ आपका झुकाव ज्यादा है?
दरसअल मैं कश्मीरी फ़ोक म्यूज़िक के लिए काफी सालों से काम कर रहीं हूं. इंडियन आइडल में मेरी परफॉर्मेंस ने मुझे बहुत कामयाबी दिलाई थी. लेकिन उस तरह का फेम और कामयाबी बहुत जल्द गायब हो जाते हैं. मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मैं किसी भी वजह से प्रमोशनल म्यूज़िक में नहीं जाना चाहती हूं. इसलिए मैंने बिलकुल अलग रास्ता चुना. ये प्रफेशन काफी ग्लैमरस लगता है, लेकिन असल में ये एक अकेला सफ़र है.
मुझे लगता है कि कला का कोई न कोई मकसद होना चाहिए. अगर आपका कोई मकसद है तो आप मोटिवेटेड महसूस करते हैं. जैसे मैं कश्मीर से ज्यादा इंस्पायर्ड थी क्योंकि माइग्रेशन के बाद मैं छुट्टियों में कश्मीर ही जाया करती थी. दरसअल मेरे पापा कश्मीर में ही पोस्टल डिपार्टमेंट में थे. कश्मीर जाना मेरे लिए हमेशा ही अच्छा रहा है. और मैं हमेशा से ही कश्मीरी म्यूज़िक सुनती आई हूं.
मुझे कश्मीर की धरती से जुड़े कुछ म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट भी काफी पसंद हैं. मैंने इस गाने के लिए कुछ कश्मीरी म्यूजिशियंस की भी हेल्प ली है. जैसे कि रबाब और संतूर आर्टिस्ट्स जिन्हें आप वीडियो में भी देख सकते हैं. मैं हमेशा से ही एथनिक म्यूज़िक गाने की शौकीन रहीं हूं. रबाब और संतूर का हमारे कल्चर से जुड़ाव है जिसे जिंदा रखना जरूरी है.
- लेकिन आपने गिटार का भी इस्तेमाल किया है.
वही तो मेरा आइडिया है. कश्मीर फ़ोक म्यूज़िक को काफी आगे तक ले जाना है. इसके साथ मैं एक नए तरह का संगीत बनाना चाहती हूं. मुझे लगता है कि आज के म्यूज़िक को देखते हुए इसे एक मॉडर्न तरीके से पेश किया जाना चाहिए जिससे इसे ज्यादा से ज्यादा लोग सुनें. अगर हम हुकुस-बुकुस गाने की बात करें, तो जो लोग कश्मीर से नहीं हैं वो भी इस गाने को काफी पसंद कर रहे हैं. म्यूजिक सचमुच भाषा से परे है. सबसे ज़रूरी बात ये है कि ये मेरी पर्सनल सोच है फिर वो गलत हो या सही. और मैंने इसे कर दिखाया है.
- ज्यादातर कश्मीरी पंडित माइग्रेशन को लेकर आज भी दुखी होते हैं मगर आपने तो अपने इस म्यूजिक से कश्मीर के नए पहलू को छुआ है.
मुझे लगता है कि ये कुछ ऐसे ज़ज्बात हैं जिन्हें आप कभी भूल नहीं सकते. एक इंसान होने के नाते आप सब कुछ महसूस करते हैं. मुझे भी इस बात को लेकर काफी दुख है लेकिन मुझे अपने कल्चर से जुड़े रहने की खुशी भी है. और मैं अपने कल्चर को ऐसे ही नहीं जाने दे सकती. एक कश्मीरी पंडित या फिर एक मुस्लिम या फिर एक सरदार होने के नाते मुझे भी बुरा लगता है. लोग हमारे बारे में सिर्फ नेगेटिव चीज़ें ही सोचते हैं. वो हम पर हंसते हैं.
लोग कश्मीर को सिर्फ दो चीज़ों से जोड़ते हैं. एक टूरिज्म और दूसरा टेररिज्म. वो ऐसा समझते हैं कि कश्मीर में सिर्फ खूबसूरत पहाड़ हैं और डरावनी अशांति है. लेकिन उन्हें ये नहीं मालूम कि कश्मीरी भाषा की एक म्यूज़िकल हेरिटेज भी है जो इन सबके बीच दबी रह जाती है. हम काफी सारे राजस्थानी और पंजाबी फ़ोक गाने भी सुनते हैं, लेकिन लोगों को ये भी नहीं मालूम कि कश्मीरी एक भाषा है.
- कश्मीरी फ़ोक को लेकर आपका अगला कदम क्या होगा?
मेरी कोशिश यही रहेगी कि मैं आगे भी इस तरह के म्यूजिक पर काम करती रहूं. लेकिन ये गाने सुनने वालों पर भी डिपेंड करता है. अगर हम इसी एल्बम की बात करें तो, इसपर कोई लेबल और बड़े ब्रैंड का नाम नहीं है क्योंकि मैंने इसे एक इंडिपेंडेंट आर्टिस्ट की तरह बनाया है. इसलिए ऐसे गानों के लिए सुनने वालों का सपोर्ट ज़रूरी होता है.
ये आर्टिकल DailyO के लिए माजिद हैदरी ने किया है और दी लल्लनटॉप के साथ इंटर्नशिप कर रहीं सुरभि ने ट्रांसलेट किया है.