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काशी विश्वनाथ मंदिर: औरंगजेब के तुड़वाने और अहिल्याबाई के बनवाने की कहानी भी कम रोचक नहीं है

सोमनाथ मंदिर की तरह काशी के विश्वनाथ मंदिर ने भी कई बार विध्वंस झेला

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रानी अहिल्या बाई होल्कर शिवभक्त कही जाती हैं. जिन्होंने आज से करीब 250 वर्ष पहले काशी विश्वनाथ मंदिर का विधिवत पुनर्निमाण कराया था (फोटो सोर्स - आज तक)
‘एक बार औरंगज़ेब बनारस के करीब से गुज़र रहा था. सभी हिन्दू दरबारी अपने परिवार के साथ गंगा स्नान और विश्वनाथ दर्शन के लिए काशी आए. विश्वनाथ दर्शन कर जब लोग बाहर आए तो पता चला कि कच्छ के राजा की एक रानी ग़ायब हैं. खोज की गई तो मंदिर के नीचे तहखाने में वस्त्राभूषण विहीन, भय से त्रस्त रानी दिखाई पड़ीं. जब औरंगज़ेब को पंडों की यह काली करतूत पता चली तो वह बहुत क्रुद्ध हुआ और बोला कि जहां मंदिर के गर्भ गृह के नीचे इस प्रकार की डकैती और बलात्कार हो, वो निस्संदेह ईश्वर का घर नहीं हो सकता. उसने मंदिर को तुरंत ध्वस्त करने का आदेश जारी कर दिया.'
ये अंश है मशहूर इतिहासकार डॉक्टर विश्वंभर नाथ पांडेय की किताब का. नाम है-  'भारतीय संस्कृति, मुग़ल विरासत: औरंगज़ेब के फ़रमान'. जिसके पेज नंबर 119 और 120 में पट्टाभिसीतारमैया की किताब 'फ़ेदर्स एंड स्टोन्स' का रेफेरेंस देते हुए विश्वंभर नाथ पांडेय विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने के बारे में बताते हैं.
सोमवार, 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन किया. करीब 250 साल पहले इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण करवाया था. रानी अहिल्याबाई के योगदान का शिलापट और उनकी एक मूर्ति भी ‘श्री काशी विश्वनाथ धाम’ के प्रांगण में लगाई जाएगी. आइये जानते हैं कि इस मंदिर का इतिहास और रानी अहिल्याबाई होल्कर की भूमिका के बारे में.
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के भवन (फोटो साभार- आज तक)
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के भवन (फोटो साभार- आज तक)

#मंदिर का इतिहास बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर शिव और पार्वती का आदि स्थान माना जाता है. महाभारत और उपनिषदों में भी इसके कोटेशन मिलते हैं. लेकिन ये काशी वाला ही विश्वनाथ मंदिर है, ये बात कम इतिहासकार मानते हैं. लेकिन कहा जाता है कि 11वीं सदी के अंत में जिस विश्वनाथ मंदिर को मोहम्मद गोरी ने लूटा और तुड़वाया था, वो यही काशी विश्वनाथ मंदिर था.
इतिहासकारों के मुताबिक़ गोरी के कराए मंदिर विध्वंस के बाद इसे दोबारा बनवाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान ने तोड़ दिया. इसके बाद साल 1585 में अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया. राजा टोडरमल ने इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी पंडित नारायण भट्ट को. भव्य मंदिर बनाया गया. और इस बात पर ज्यादातर इतिहासकार सहमत भी हैं. कहा जाता है कि ये दौर अकबर के दीन-ए-इलाही धर्म का था. जिसके मुताबिक़ किसी भी धर्म की पूजा पद्धतियों पर कोई विशेष रोक नहीं थी और न ही धार्मिक स्थलों के निर्माण पर. अकबर ने खुद इस मंदिर के निर्माण के आदेश दिए थे. लेकिन कुछ इतिहासकार ये भी कहते हैं कि राजा टोडरमल की अकबर के दरबार में मज़बूत स्थिति थी, इतनी कि उन्हें मंदिर निर्माण के लिए अकबर की अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं थी.
अकबर और उनके दरबार में वित्त मंत्री राजा टोडरमल
अकबर और उनके दरबार में वित्त मंत्री राजा टोडरमल

#औरंगजेब ने तुड़वाया विश्वनाथ मंदिर लेकिन इसके बाद आया साल 1669. औरंगजेब का शासन चल रहा था. औरंगजेब अकबर के चलाए दीन-ए-इलाही के खिलाफ़ था. उस दौर में कई मंदिर तोड़े गए. इतिहासकार एल.पी. शर्मा की किताब-‘मध्यकालीन भारत’ के मुताबिक़,
‘1669 में सभी सूबेदारों और मुसाहिबों को हिंदू मंदिर और पाठशालाओं को तोड़ देने की आज्ञा दी गई. इसके लिए एक अलग विभाग भी खोला गया. ये तो संभव नहीं था कि हिंदुओं की सभी पाठशालाएं और मंदिर तोड़ दिए जाते, लेकिन बनारस का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवदेव मंदिर, पटना का सोमनाथ मंदिर और प्रायः सभी बड़े मंदिर, ख़ास तौर पर उत्तर भारत के मंदिर इसी समय तोड़े गए.’
काशी में ज्ञानवापी मस्जिद, विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनी, या औरंगजेब ने जब मंदिर तुड़वाया, तब कुछ साल बाद उसके अवशेषों पर बनी या अकबर के वक़्त जब दीन-ए-इलाही मत के अनुसार टोडरमल ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, उसके साथ ही बनी, इस बारे में इतिहासकारों में बहुत मतभेद हैं.
बीबीसी के मुताबिक़, विश्वम्भर नाथ पाण्डेय अपनी किताब में लिखते हैं,
‘विश्वनाथ मंदिर तोड़े जाने के औरंगजेब के आदेश का तत्काल पालन हुआ, लेकिन जब यह बात कच्छ की रानी और आमेर के कछवाहा शासक की पत्नी ने सुनी तो उन्होंने उसके पास सन्देश पहुँचाया कि इसमें मंदिर का क्या दोष है, दोषी तो वहां के पंडे हैं.’
विश्वम्भर आगे लिखते हैं,
'रानी ने इच्छा प्रकट की, कि मंदिर को दोबारा बनवा दिया जाए. लेकिन औरंगजेब के लिए अपने धार्मिक विश्वास के कारण, फिर से नया मंदिर बनवाना संभव नहीं था. इसलिए उसने मंदिर की जगह मस्जिद खड़ी करके रानी की इच्छा पूरी की.’
औरंगजेब और उसके दरबारी (आज तक)
औरंगजेब और उसके दरबारी (आज तक)

#रानी अहिल्याबाई होल्कर और उनका मंदिर में योगदान इसके बाद साल 1777 आता है, और इंदौर के होल्कर राजघराने की रानी अहिल्या बाई होल्कर विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाने का प्रण लेती हैं. और अगले 3 साल में वे मंदिर बनवा देती हैं. यूं तो रानी अहिल्याबाई का शासन इंदौर जैसे एक छोटे से राज्य पर ही था, लेकिन उन्होंने देश के कई इलाकों में डेवलपमेंट के काम करवाए. उस दौर में उन्होंने इंदौर से लगाकर देश के दूसरे इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ा जितना काम करवाया, उसे डेवलपमेंट का मॉडल तक माना जाने लगा था. उन्होंने कई तालाब, सडकें, नदियों के किनारे घाट और मंदिरों के पुनर्निर्माण का करवाया था. अहिल्याबाई एक सफल शासक और कूटनीतिज्ञ थीं. लेकिन, इतिहासकारों की मानें तो उनकी धार्मिक प्रवृत्ति और मंदिरों के प्रति उनके श्रद्धा भाव के चलते उन्हें संत भी कहा जाने लगा था.
रानी अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा और चित्र (फोटो सोर्स -आज तक)
रानी अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा और चित्र (फोटो सोर्स -आज तक)

#विश्वनाथ मंदिर में योगदान अहिल्याबाई,  होल्कर राजघराने के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के बेटे खांडेराव होल्कर की पत्नी थीं. 1733 में अहिल्याबाई की शादी खांडेराव से हुई थी, लेकिन 1754, कुम्भेर के युद्ध में खांडेराव की मृत्यु हो गई. 12 साल बाद मल्हारराव होल्कर भी नहीं रहे. इतिहासकारों के मुताबिक़ मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होल्कर ने भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण को लेकर कई कोशिशें की थीं. इनकी कोशिशों को देखते हुए ही साल 1770 में दिल्ली में मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय यानी अली गौहर ने मंदिर विध्वंस की क्षतिपूर्ति वसूलने का आदेश भी जारी कर दिया, लेकिन तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया और मंदिर का काम रुक गया. ससुर मल्हारराव गुज़र ही चुके थे, दो साल बाद अहिल्याबाई के इकलौते बेटे मालेराव का भी 21 साल की उम्र में देहांत हो गया. अब इंदौर का शासन पूरी तरह अहिल्याबाई के हाथों में था.
साल 1777-80 के बीच रानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर निर्माण की कवायद दोबारा शुरू की, और सफल भी हुईं. अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह कों फिर से बनवाया और शास्त्रसम्मत तरीके से मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा भी करवाई. आजतक की एक खबर के मुताबिक़, काशी के बारे में जानकारी रखने वाले प्रोफेसर राना वीपी सिंह कहते हैं,
‘रानी का योगदान अतुलनीय है. रानी अहिल्याबाई ने शास्त्र सम्मत तरीके से शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई. एकादश रूद्र के प्रतीक स्वरुप 11 शास्त्रीय आचार्यों द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा के लिए पूजा की गई. रानी ने शिवरात्रि से इसका संकल्प किया और शिवरात्रि पर ही मंदिर खोला गया. इससे रानी के विज़न और सनातन संस्कृति के प्रति निष्ठा का पता चलता है. काशी से अगर विश्वनाथ को अलग करें तो कुछ नहीं बचेगा. मंदिर जब क्षतिग्रस्त किया गया तब रानी अहिल्याबाई मानो अन्नपूर्णा के आशीर्वाद स्वरुप वहां पहुंचीं और मंदिर का पुनर्निर्माण किया.’
काशी (Kashi) में विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के अलावा रानी अहिल्याबाई ने यहां कई घाट बनवाए. रानी अहिल्याबाई के नाम से यहां अभी भी घाट है. अहिल्याबाई के बाद पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने विश्वनाथ मंदिर के शिखर पर सोने का छत्र बनवाया. कहा जाता है ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने भी मुख्य मंदिर का मंडप बनवाया था.
वाराणसी का अहिल्याबाई घाट (फोटो साभार -AFP)
वाराणसी का अहिल्याबाई घाट (फोटो साभार -AFP)


हालांकि, काशी विश्वनाथ मंदिर और इससे सटी हुई ज्ञानवापी मस्जिद(जिसे आज आलमगीर मस्जिद भी कहते हैं), दोनों धार्मिक स्थलों के बीच विवाद भी रहा. स्थानीय लोग बताते हैं कि कभी कोई बड़ा झगडा नहीं हुआ, सिवाय बाहर होने वाली नमाज़ पर विवाद के. #कैसा है काशी विश्वनाथ कॉरिडोर

#काशी विश्वनाथ मंदिर का परिसर जो कि पहले 5000 वर्ग फीट से भी कम जगह में था, अब ये 5 लाख वर्ग फीट से भी ज्यादा जगह में बनाया गया है.

#पूरे परिसर में 27 मंदिरों की श्रृंखला है और आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 3 सुविधा केंद्र, एक टूरिस्ट फ़ैलीसिटेशन काउंटर, वाराणसी गैलरी, सिटी म्यूजियम, वैदिक सेंटर, मुमुक्षु भवन, गेस्ट हाउस और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाया गया है.


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