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बाबरी पर कुदाल चलाने वाला बलबीर, जो इस्लाम अपनाकर मस्जिदें बनवाने लगा

बाबरी मस्जिद विध्वंस का हिस्सा रहे तीन लोगों की कहानी, जो कांड के बाद पागल हो गए थे.

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6 दिसंबर की तारीख अयोध्या और देश के लिए एक बुरी याद है. इस दिन एक तांडव की नींव डाली गई जिसकी वजह से देश भर में दंगे हुए और बेगुनाह हिंदू मुसलमान मारे गए. कोई इसे काला दिन के रूप में देखता है तो कुछ लोग इसे गर्व से सेलिब्रेट करते हैं. तीन और लोग थे इस कथित गौरवयात्रा में शामिल. जिनकी वजह से शांति के दुश्मनों को गर्व करने का मौका मिलता है. कुदाल लेकर बाबरी मस्जिद पर चढ़ने वाले. लेकिन इन तीनों के नाम बदल गए हैं. बलबीर सिंह और उसका दोस्त योगेंद्र पाल बाबरी गिराने एक साथ गए थे. बलबीर का नाम अब मोहम्मद आमिर हो गया है और योगेंद्र बन गया है मोहम्मद उमर. इस्लाम अपनाने वाले तीसरे शख्स का नाम मोहम्मद मुस्तफा है. ये पहले शिव प्रसाद हुआ करते थे और अयोध्या में बजरंग दल के नेता थे. करीब 4 हजार कारसेवकों को खुद ट्रेनिंग दी थी. दंगा वगैरह देखकर दिमाग विक्षिप्त हो गया. डिप्रेशन में चले गए. साइकैट्रिस्ट्स को दिखाया तांत्रिकों से झाड़फूक कराई, सब बेकार. 1999 में शारजाह गए नौकरी करने और वहां इस्लाम अपना लिया.
मुस्तफा के अलावा सबसे दिलचस्प कहानी मोहम्मद आमिर की है. जो पहले बलबीर थे. बलबीर सिंह उर्फ मोहम्मद आमिर ने 2017 में मुंबई मिरर को बताया था कि उसकी पैदाइश पानीपत के पास के गांव की है. राजपूत परिवार में. पिता दौलतराम स्कूल टीचर थे. परम गांधीवादी. पार्टीशन का दर्द देखे हुए. वो मुसलमानों को सुरक्षित महसूस कराने के लिए अपने एरिया में काम करते थे और बलबीर और उसके तीन भाइयों से भी यही चाहते थे.
 

आमिर, जो कारसेवक था
आमिर, जो कारसेवक था




राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ संपर्क कैसे हुआ. इसके बारे में आमिर कहते हैं कि वो दस साल के थे तो फुल फैमिली गांव छोड़कर पानीपत शहर आ गई. गांव वालों के लिए पानीपत में अलग ही माहौल था. एकदम दुश्मनी वाला. बच्चे साथ खेलते नहीं थे और मारपीट रोज होती थी. इसी हौच पौच में एक दिन RSS की एक शाखा में जाना हुआ. वहां बलबीर को 'आप' कहकर पुकारा गया. इतना सम्मान इस शहर में बलबीर को कभी मिला नहीं था. वहीं से अटैचमेंट हो गया. तकरीबन दस साल बाद बलबीर ने शिवसेना जॉइन की और साथ में भाइयों के साथ घर का बिजनेस संभालने लगे. पढ़ाई लिखाई चालू रही, रोहतक महर्षि यूनिवर्सिटी से ट्रिपल एमए किया. लाइफ नॉर्मल चल रही थी.

नफरत का पैर पसारना

मुसलमानों से नफरत कैसे बढ़ी. इसके जवाब में तब के बलबीर अब के आमिर बताते हैं उनका ब्रेनवॉश करना मुश्किल काम नहीं था. हमारे आस पास का माहौल ऐसा था कि हर बुरे काम को मुसलमानों से जोड़ा जाता था. बाएं हाथ से खाना खाओ तो भी ये बोला जाता था मुसलमान है क्या? ये बात दिमाग में बिठाई गई कि हमारे इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुई. बाबर, औरंगजेब जैसे लोग हमारे देश आए, हमारे मंदिर तोड़े और हमारी जमीनों पर कब्जा किया. तो ये सब मन में पल रहा था और वो सिर्फ अपनी मर्दानगी दिखाने का एक मौका खोज रहे थे. अयोध्या के लिए कूच किया तो उसके दोस्तों ने कहा था- कुछ किए बिना वापस मत आना.

अयोध्या में क्या हुआ

बलबीर उर्फ आमिर बताते हैं कि वो 5 दिसंबर को अपने दोस्त योगेंद्र पाल के साथ अयोध्या गए थे. वहां विश्व हिंदू परिषद का जोर था. आडवाणी की सुनवाई ज्यादा नहीं थी क्योंकि वो सिंधी थे और उनको हिंदू माना ही नहीं जा रहा था, उमा भारती को ड्रामा क्वीन समझा जा रहा था. मंदिर यहीं बनाएंगे, कल्याण सिंह कल्याण करो, मंदिर का निर्माण करो, वाले नारे लग रहे थे गली गली में. आमिर के मुताबिक अगले दिन वो किसी जानवर की तरह हो गए थे. और फिर अपनी कुदाल लेकर बाबरी के गुंबद पर चढ़ गए.
 

बाबरी विध्वंस, इस तस्वीर के बाद देश भर में दंगे हुए
बाबरी विध्वंस, इस तस्वीर के बाद देश भर में दंगे हुए



 

6 दिसंबर के बाद

कांड तो हो गया. उसके आगे की कहानी आमिर बताते हैं कि उनका और योगेंद्र का पानीपत लौटने पर किसी हीरो की तरह स्वागत हुआ. लेकिन घर में माहौल अलग था. पिता ने अल्टीमेटम दे दिया कि उनके घर में या तो बलबीर रहेगा या वो खुद. बलबीर ने खुद घर छोड़ने का फैसला किया और अपनी वाइफ को साथ चलने को कहा. वाइफ ने इंकार कर दिया तो अकेले ही निकल गया. हर तरफ दंगे भड़क गए थे इसलिए बलबीर बचने के लिए खेतों में, खंडहरों में छिपता रहा. किसी भी दाढ़ी वाले आदमी को देखकर वो डर जाता था.
कुछ महीने फरारी काटने के बाद पता चला कि बाप की डेथ हो गई है तो घर वापस आया. लेकिन वहां बहुत बुरा रिस्पॉन्स मिला और घर वालों ने उसे ही बाप की मौत का कारण बता दिया. साथ में ये भी बताया कि मरने से पहले उनकी सख्त हिदायत थी कि बलबीर उनके क्रिया कर्म में शामिल न हो.

बलबीर कैसे बना आमिर

आमिर
आमिर




बलबीर कैसे बना आमिर ये कहानी उसके आगे है. दूसरा झटका तब लगा जब बलबीर को पता चला कि मस्जिद तोड़ने उसके साथ गया योगेंद्र अब मोहम्मद उमर बन गया है. धर्म बदलकर मुसलमान हो गया है. उस कांड और उसके बाद भड़के दंगों की वजह से योगेंद्र का दिमाग खराब हो गया था. उसको हमेशा लगता था कि उसने पाप किया है जिसकी वजह से वो पागल होता जा रहा है. फिर तकरीबन 6 महीने बाद जून 1993 को बलबीर सोनीपत गया, मौलाना कलीम सिद्दीकी के पास. जिसने योगेंद्र का धर्म बदला था. मौलाना से कहा कि मस्जिद गिराने में उसका भी हाथ था लेकिन वो और मस्जिदें बनवाएगा. मौलाना ने बलबीर को मदरसे में बिताने के लिए कहा. कुछ महीने बाद बलबीर का नाम बदल गया और नाम मिला मोहम्मद आमिर. कुछ महीने बाद आमिर की वाइफ भी मदरसे में आई और उसने भी इस्लाम अपना लिया. इसके बाद भी आमिर की जिंदगी में तमाम उतार चढ़ाव बड़े ड्रामेटिक तरीके से आते रहे. आमिर ने अब तक 50 के आस पास मस्जिदें बनवाने में अपना योगदान दिया है. उनसे जब कोई बात करता है तो वो एक ही बात करते हैं, अमन की. शांति की.
पार्टियों, नेताओं द्वारा अपने मतलब के लिए इस्तेमाल किए हुए ऐसे तमाम लोग किनारे फेंक दिए गए. जिनकी बाद में सुध नहीं ली गई. कोई मुसलमान बनकर शांति तलाशने में अपनी जिंदगी बिता रहा है तो कोई अब भी मानने को तैयार नहीं है कि उसका गलत इस्तेमाल हुआ. ऐसे ही एक और कारसेवक की कहानी यहां क्लिक
करके पढ़िए. बाबरी गिराने में गुंबद का एक हिस्सा इसकी पीठ पर गिर गया था. 26 साल से वो बिस्तर पर अपनी जिंदगी गुजार रहा है.
 

 

 

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