धरती कहे पुकारके, बीज बिछा ले प्यार के मौसम बीता जाए, मौसम बीता जाए
अपनी कहानी छोड़ जा, कुछ तो निशानी छोड़ जा कौन कहे इस ओर, तू फिर आए न आए
कानों में ये गीत है. और आंखों के सामने लगभग लाश हो चुकी लड़की घिसट रही है. उसको पता है उसकी मौत आ चुकी है मगर वो अपने पूरे जीवन खुद से इतना लड़ चुकी है कि एक बार और लड़ना उसे सहज ही आ जाता है. इसलिए पूरी ताकत से खुद को घसीट रही है.

मौत के सबसे करीब और सबसे खुश, जोजो.
उसके ठीक ऊपर उसकी मौत खड़ी है. गणेश गायतोंडे.
ये वो दुर्लभ क्षण है जब मारने वाला, मरने वाले से ज्यादा डरा हुआ है. गायतोंडे को अपना अंत दिखाई दे रहा है. उसकी मर्दानगी, उसका ईगो वैसा हो गया है, जैसे गुब्बारे से हवा निकल गई हो. अपने जिस स्वरुप को वो भगवान मानकर बैठा था, वो बस एक पज़ल का हिस्सा था. उसका पूरा जीवन ही कोई और चला रहा था. दोस्त तो क्या, उसके तो दुश्मन भी नहीं बचे थे. गायतोंडे कितना असहाय था. कितना मुफ़लिस. और उसके आखिरी दिनों में उसे जिससे कुछ प्रेम का सा हो गया था, वो अब उसकी आंखों में निर्लज्जता से आंखें डाल बता रही थी कि वो कभी उसकी हितैषी थी ही नहीं.
ऐसी ही निर्ममता से ओलेना टायरेल ने जेमी लैनिस्टर से कहा था, 'टेल सरसी, आइ वॉन्ट हर टु नो इट वॉज़ मी.'

एक और दुर्लभ हत्या जिसमें हत्यारा डरा हुआ था.
मरने वालों के पास कुछ खोने को नहीं होता. एक अपनी जान के सिवा.
जोजो जैसी लड़कियों के पास तो वैसे भी कुछ खोने को नहीं होता क्योंकि उनकी इज्ज़त नहीं होती है. जोजो इतनी प्रोफेशनल थी कि उसके पीछे कोई रोने वाला नहीं था.
कोई नहीं जानता कि क्या जोजो ने सचमुच गायतोंडे के साथ धोखा किया. या उसकी सबसे ज्यादा दुखती हुई नस को दबाकर उससे वो निकलवाने के लिए ऐसा कहा, जिसकी तलाश वो जाने कितने साल से कर रही थी. मौत.
गायतोंडे भी तो प्रेम में पड़ गया था, वो जोजो को मार डालता तो फोन पर गोल घूमते होंठों की कल्पना कैसे करता जो उसे '*डू' पुकारते थे. वो जोजो को कैसे मार पाता जो जोजो धोखा न देती.
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एक बार टूटकर जुड़ चुकी औरत से मजबूत कोई नहीं होता. गिल्ट जैसा कोई गोंद नहीं होता. अपराधबोध तुम्हें मरने नहीं देता. तुम चित्रकार होगे तो उसे कैनवस पर उतार लोगे. तुम नर्तक होगे तो नाच लोगे. और जो तुम बहुत बहादुर होगे तो रो लोगे. मगर जो लड़कियां बहुत बुरी होती हैं उन्हें चित्रकारी नहीं आती, नृत्य भी नहीं, कविता कहना भी नहीं. इसलिए उन्हें रोना नसीब नहीं होता. रोने के लिए जरूरी है तुम अपने अंदर देर तक देखो और अपने साथ हुए अन्याय का शोक मनाओ. मगर जिसके अंदर वैक्यूम होगा वो कैसे रोएगी?

जोजो की बहन मेरी और अपराधबोध का जन्म.
काम करती आंखें भी रोशनी के बिना नहीं देख सकतीं.
जोजो का अपराधबोध उसके होने के बोझ से कहीं ज्यादा था इसलिए जब भी मरने गई, मर न सकी.
अपराधबोध उस काली शक्ति की तरह था जो हर सुसाइड अटेम्प्ट के साथ बढ़ता गया.
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एक अनाम लड़की थी जिनको एक सीरियल की कास्ट में 'फ्लीबैग' कहा गया. शाब्दिक अर्थ मक्खी. वेश्या का रूपक.
वो अपनी सहेली से बहुत प्यार करती थी. दोनों बहनों से भी ज्यादा सगी थीं. फिर एक दिन जाने फ्लीबैग की अक्ल में पत्थर कैसे पड़ गए, वो अपनी दोस्त के बॉयफ्रेंड के साथ सेक्स कर बैठी. दोस्त को पता नहीं चला कि लड़की कौन थी, पर इतनी पता चल गया कि बॉयफ्रेंड ने चीट किया है. दोस्त ने कहा कि जानबूझकर किसी गाड़ी से टकरा जाऊंगी, एकाध हड्डी टूटेगी तो बॉयफ्रेंड के मन में दया जागेगी, खोया हुआ प्यार जागेगा. मगर हड्डियों के साथ सांसें भी टूट गईं और फ्लीबैग हत्यारन बन गई.

'आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हंसी, अब किसी बात पर नहीं आती'/ फ्लीबैग
हालांकि फ्लीबैग ने खुद को मारने की कोशिश नहीं की मगर इस तरह टूट गई कि हर वक़्त हंसती रहती. वो भी उन बदनसीब लड़कियों में से थी जिन्हें आसानी से रोना नहीं आता था.
जोजो भी एक फ्लीबैग थी जिसने ईर्ष्या जैसी बेहद मानवीय चीज़ के चलते एक अमानवीय काम कर दिया था. जोजो की बहन मेरी अपनी जान न देती अगर जोजो ने सेक्स न किया होता. फ्लीबैग हो या जोजो, यूं तो धोखा सेक्स में भाग ले रहे लड़कों की ओर से भी किया गया था मगर अपराधबोध ने लड़कियों में अपना घर पाया था. असल में मज़बूत लड़कियों के भीतर पर्याप्त नमी और अंधेरा होता है जिसमें अपराधबोध के बीज आसानी से पनप सकते हैं.
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'ऑरेंज इज़ द न्यू ब्लैक' में आर्टीज़न मेक्कलो नाम की गार्ड हुआ करती थी. जेल के हालात के तंग आकर एक बार कैदियों ने विद्रोह कर दिया था. उस वक़्त मेक्कलो डर गई थी. विद्रोह को दबा दिया गया मगर मेक्कलो को दिल के एक कोने में मालूम था कि कैदियों की हालत वाकई बहुत बुरी है. जेल का गार्ड न सिर्फ मौका पाकर उनका यौन शोषण करते थे बल्कि जेल के अंदर ड्रग्स की सप्लाई करने के लिए उनका इस्तेमाल करते थे. जेल एक पॉकेटमार को भी हत्यारा बना सकता था.

लड़कियों के भीतर पर्याप्त नमी और अंधेरा होता है जिसमें अपराधबोध के बीज आसानी से पनप सकते हैं/ मेक्क्लो
ये अपराधबोध मेक्कलो को खाता रहता था मगर वो हार नहीं सकती थी क्योंकि उसे जेल के पुरुष गार्ड्स के गंधाते पुरुषवाद से भी लड़ना था. वो पेशाब के बहाने वॉशरूम में जाती और हर बार एक सिगरेट पीती. फिर जलती हुई सिगरेट अपनी जांघ पर बुझा लेती.
जांघ पर तारों वाली बेल्ट यानी 'सिलिस' तो 'डा विंची कोड' का सिलास भी बांधता था मगर उसका अपराधबोध धार्मिक था. वो स्वर्ग और नर्क के फेर में पड़ गया था. मगर इधर मेक्कलो और जोजो जैसी लड़कियां स्वर्ग-नर्क, पाप-पुण्य और टाइम पास के लिए बनाए गए इन सभी धार्मिक मसलों से आगे बढ़ चुकी थीं. इन्हें ईश्वर का डर नहीं था, डर था अपनी नज़रों में गिर जाने का. अपने एथिक्स पर खरा न उतरने का.

जांघ पर बेल्ट कसता सिलास/ द डा विंची कोड
जरूरी नहीं कि बार-बार भागकर मंदिर-मस्जिद-चर्च जाने वाला व्यक्ति धार्मिक ही हो. कभी-कभी वो सिर्फ तनहा हो सकता है.
जोजो जब चर्च में कन्फेस करने जाती तो पादरी नहीं, अपनी बहन से माफ़ी की उम्मीद में जाती. और चूंकि बहन अब नहीं थी, माफ़ी की सभी संभावनाएं ख़त्म हो चुकी थीं. गलतियों और कन्फेशन्स का ये दुश्चक्र ही जोजो का पूरा जीवन होने वाला था.
कुछ ईसाई समुदायों में लोग जानवरों की खुरदुरी खाल से बनी, कांटों से जड़ी बंडी पहना करते थे. क्योंकि शरीर ही पाप करता है और शरीर को ही उसका फल भोगना होता है जिससे क़यामत के दिन वो ईश्वर को मुंह दिखा सके. जोजो का शरीर हर दिन थोड़ा नष्ट होता मगर मौत के करीब आता न दिखता.

प्रेम: कंटीली बेल्ट यानी 'सिलिस' से जोजो की जांघ पर बने घावों पर हाथ फेरता गायतोंडे
शरीर के एक गुनाह के फेर में अपनी बहन को खो बैठी जोजो लड़कियों की देह की दलाली करती थी. ऐसी लड़कियों को ईश्वर भला कौन होता है? अगर होता भी है तो वो पाप-पुण्य के ऊपर होता होगा.
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जोजो अगर ईर्ष्या न करती तो मेरी सुसाइड न करती. मेरी अगर सुसाइड न करती तो जोजो वो न होती जो वो थी. जोजो जैसी लड़कियां अपनी कुल जमा गलतियों का योग होती हैं.
उनका स्थाई अवसाद ही उनकी शक्ति होता है.
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अपनी कहानी छोड़ जा, कुछ तो निशानी छोड़ जा कौन कहे इस ओर तू फिर आए न आए
जोजो खुद को थोड़ा छोड़ गई कुक्कू और सुभद्रा की तरह. अपनी मौत के ठीक बाद. गायतोंडे की मौत के ठीक पहले.