जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद के लिए इन दिनों 8 चरणों में वोटिंग चल रही है.
चुनाव, चुनाव, चुनाव. आखिर हमारे देश में कितने तरह के चुनाव होते हैं? अक्सर कोई न कोई चुनाव कहीं न कहीं चलता ही रहता है. कभी संसद, कभी विधानसभा, कभी को-ऑपरेटिव तो कभी पंचायत और नगर निकाय के चुनाव. लेकिन यही तो लोकतंत्र की सबसे बड़ी ख़ूबी है, जो प्रशासनिक ढांचे के हर स्तर पर जनता को अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार देती है. इस वक्त जम्मू-कश्मीर के DDC यानी डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव के लिए वोटिंग चल रही है. क्या है ये DDC? और क्या इससे राज्य सरकार के अधिकार कम हो जाएंगे, आइए जानने की कोशिश करते हैं.
DDC यानी डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल
विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद केन्द्र शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर के प्रशासनिक ढांचे में जुड़ने वाली नई यूनिट है DDC. इसके लिए भारत सरकार ने 17 अक्टूबर 2020 को एक अधिसूचना (नोटिफ़िकेशन) जारी की थी. इसके जरिए जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम 1989 में संशोधन किया गया. जम्मू-कश्मीर जब पूर्ण राज्य था, तो इसी पंचायती राज अधिनियम के तहत यहां के प्रत्येक जिले में एक जिला योजना और विकास बोर्ड हुआ करता था. इस बोर्ड की अध्यक्षता की जिम्मेदारी राज्य के मंत्रियों को दी जाती थी. जिले से आने वाले सांसद, विधायक, विधान पार्षद आदि बोर्ड के सदस्य होते थे. एडिशनल डिप्टी कमिश्नर रैंक का एक अधिकारी इसका सदस्य-सचिव (Member Secretary) होता था. इस बोर्ड का काम राज्य की पंचायती राज संस्थाओं जैसे- हलका या ग्राम पंचायत, ब्लाॅक डेवलपमेंट काउंसिल और जिला पंचायत के कार्यों की मॉनिटरिंग करना और उन्हें विकास योजना बनाने में सहायता देना था. इसी बोर्ड को अब DDC से रिप्लेस कर दिया गया है.

केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के गठन की अधिसूचना अक्टूबर में जारी की थी.
DDC क्या-क्या काम करेगी?
नए नोटिफ़िकेशन के अनुसार, केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अब DDC हलका पंचायतों और ब्लॉक विकास परिषदों (BDC) के कामकाज की निगरानी करेगी. इसके कामों में जिले की योजनाएं तैयार करना, पूंजीगत व्यय का हिसाब लगाना और उन्हें मंजूरी देना भी होगा. मोटा माटी कहें तो DDC के जिम्मे वही सब काम हैं, जो पहले जिला योजना और विकास बोर्डों के पास थे. फर्क सिर्फ इतना है कि पहले इन बोर्डों में मनोनीत और पदेन सदस्य होते थे, जबकि नए बोर्ड में निर्वाचित सदस्य होंगे.
DDC का चुनाव कैसे होगा?
केंद्र के नोटिफ़िकेशन में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989 की धारा 45 के अंतर्गत 'जिला विकास परिषद यानी DDC की संकल्पना की गई है. राज्य के सभी 20 जिलों की प्रत्येक डीडीसी में 14 निर्वाचित सदस्य होंगे. इन 14 सदस्यों के बीच से ही एक सदस्य को वोटिंग के जरिए चेयरमैन चुना जाएगा. वित्त, विकास, सार्वजनिक कार्य, स्वास्थ्य व शिक्षा और कल्याण के लिए पांच स्थायी समितियां बनाई जाएंगी. चुने गए सदस्यों में से ही इन कमिटियों के मेंबर बनाए जाएंगे.
जम्मू कश्मीर में 20 डीडीसी हैं. इनमें से 10 जम्मू में और 10 कश्मीर में हैं. हर डीडीसी में 14 निर्वाचन क्षेत्र हैं. हर निर्वाचन क्षेत्र से एक-एक सदस्य चुना जाएगा. मतलब कुल मिलाकर 280 सदस्यों का चयन किया जाना है. ये चुनाव कराने की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन अधिकारी को दी गई है. DDC के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष होगा. प्रत्येक 5 वर्ष पर इसके चुनाव होंगे. यह चुनाव दलीय आधार पर होंगे, यानी राजनीतिक दल इस चुनाव में भाग ले सकेंगे. हालांकि राज्य में जो त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (हलका या ग्राम पंचायत, BDC और जिला पंचायत) चुनाव होते हैं, उसके लिए कोई दलीय आधार नहीं है.

- डीडीसी चुनाव के लिए पहले चरण की वोटिंग 28 नवंबर को हुई.
कौन-कौन है चुनावी मैदान में?
DDC के चुनाव 8 चरणों में होने हैं. पहला चुनाव 28 नवंबर को हो चुका है. पहले चरण में 43 सीटों के लिए तकरीबन 52 प्रतिशत मतदान हुआ. दूसरे चरण के लिए आज यानी 1 दिसंबर को वोट डाले जा रहे हैं. आखिरी चरण की वोटिंग 22 दिसंबर को होगी. चुनाव की प्रक्रिया राज्य निर्वाचन अधिकारी के.के. शर्मा की देखरेख में पूरी हो रही है. चुनावों के लिए सुरक्षा के भारी बंदोबस्त किए गए हैं.
चुनाव में एक तरफ भाजपा है तो दूसरी तरफ क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का गठबंधन है. इस गठबंधन में गुपकर अलायंस के कई दल शामिल हैं, जैसे- पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), नेशनल कॉन्फ्रेंस, जम्मू कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस पार्टी. कई अन्य दल भी चुनावी मैदान में हैं. लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा बनाम गुपकर अलायंस के दलों के बीच ही माना जा रहा है.
गुपकर गठबंधन के बारे में भी जान लीजिए
गुपकर अलायंस? इसके बारे में भी जान लीजिए. 5 अगस्त 2019 को भारतीय संविधान की धारा 370 को निष्प्रभावी कर दिया गया था. इसी धारा के तहत जम्मू कश्मीर को देश में खास दर्जा प्राप्त था. देश में शामिल होते हुए भी उसका अलग संविधान और अलग झंडा था. आईपीसी वहां लागू नहीं होता था. लेकिन मोदी सरकार ने इस धारा को खत्म करके जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया है. जम्मू कश्मीर के कई क्षेत्रीय दल इसके विरोध में हैं. इन्होंने 5 अगस्त 2019 से पहले की स्थिति बहाल करने की मांग करते हुए एक गठबंधन बनाया है. उसका नाम है पीपुल्स अलायंस फाॅर गुपकर डिक्लेरेशन (PAGD).

पीपुल्स अलायंस फाॅर गुपकर डिक्लेरेशन (PAGD) में जम्मू कश्मीर के तमाम क्षेत्रीय दल शामिल हैं.
DDC के कारण राज्य सरकार के अधिकार कम हो जाएंगे?
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक हलकों में कुछ लोग DDC के गठन को राज्य सरकार के अधिकारों में कटौती की तरह देख रहे हैं. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि इस प्रकार की आशंकाओं में कितना दम है-पहली बात तो यह कि जम्मू-कश्मीर अब एक केन्द्र शासित प्रदेश है. यहां फिलहाल उपराज्यपाल के अधीन राज्य की प्रशासनिक मशीनरी काम कर रही है. अभी कोई चुनी हुई विधानसभा काम नहीं कर रही है. लेकिन यदि केन्द्र शासित प्रदेश के अधीन चुनी हुई विधानसभा और सरकार काम करती भी है, तब भी राज्य सरकार के अधिकार कम ही होंगे. बहुत कुछ दिल्ली सरकार की तरह. ऐसे में डीडीसी से राज्य सरकार के अधिकारों पर ज्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है. पिछले साल केन्द्र सरकार ने कहा था कि उचित समय आने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा. अगर ऐसा होता है, तो उसके बाद जो विधानसभा गठित होगी और जो निर्वाचित सरकार बनेगी, उसे वही अधिकार प्राप्त होंगे, जो देश के अन्य पूर्ण राज्यों की विधानसभाओं और सरकारों को प्राप्त हैं. तब वहां की सरकार चाहे तो इस DDC को ही खत्म कर सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था (संविधान के 73वें संशोधन, 1992) के अधीन नही आता है. यानी DDC कोई संवैधानिक संस्था नही है. इसलिए राज्य सरकार को ऐसे पूरे अधिकार प्राप्त होंगे कि वह चाहे तो DDC को खत्म कर दे.