बताएंगे अक्टूबर की एक दोपहर का क़िस्सा. जब एक हाई-सिक्यॉरिटी कॉन्स्यूलेट की दूसरी मंजिल पर शिकारियों का एक झुंड दम साधे अपने शिकार का इंतज़ार कर रहा था. हत्या की प्लानिंग हो चुकी थी. अब प्लानिंग पर अमल करने के ठीक पहले साज़िश का रिवीज़न किया जा रहा था. बात हो रही थी कि हत्या के बाद लाश को कितने टुकड़ों में काटा जाएगा. कैसे उन टुकड़ों को अलग-अलग पैक किया जाएगा. कौन था इस टीम का लीडर? किसके कहने पर हो रही थी ये हत्या? क्यों वो शिकार ख़ुद चलकर अपनी मौत के पास आया?

इस्तांबुल शहर का बेसिकटास क्षेत्र. (गूगल मैप्स)
इस हत्या से सऊदी के राजकुमार मुहम्मद बिन सलमान का क्या लिंक है?
तुर्की के इस्तांबुल शहर में बेसिकटास नाम का इलाका है. यहां पीले रंग की एक इमारत है. इसी इमारत में है सऊदी अरब का वाणिज्यिक दूतावास. उस दिन यानी 2 अक्टूबर, 2018 को इसी इमारत की दूसरी मंजिल पर कुछ लोगों की मंत्रणा चल रही थी. दोपहर के 1 बजकर 14 मिनट हुए थे. इस मीटिंग में शामिल सऊदी खुफ़िया विभाग के अधिकारी महेर मुतरेब ने वॉकी-टॉकी पर किसी से पूछा- जिस जानवर की बलि देनी है, वो आ गया क्या? उधर से हां में जवाब आया.

इस्तांबुल में सऊदी अरब का वाणिज्यिक दूतावास. (एएफपी)
इस बातचीत को दो मिनट बीते होंगे कि कॉन्स्यूलेट की मुख्य इमारत के भीतर एक आदमी की एंट्री हुई. इस आदमी का नाम था, जमाल ख़शोगी. ख़शोगी सऊदी के नागरिक थे. पत्रकार थे. ऐसा नहीं कि बड़े क्रांतिकारी हों. सत्ता को चुनौती दिए बिना हौले-हौले अपना काम करने में यकीन रखते थे. मगर 2015 में MBS, यानी मुहम्मद बिन सलमान के पावर में आने के बाद मुश्किल में पड़ गए थे. ख़शोगी सत्ता में रिफॉर्म की बात करते. जबकि MBS का स्वभाव ये था कि जिस किसी पर आलोचना की शंका हो, उसे किनारे कर दो. सऊदी रिजीम ने ख़शोगी के अख़बार में लिखने पर पाबंदी लगा दी. उनके ट्विटर अकाउंट पर भी बैन लग गया.

सऊदी खुफ़िया विभाग के अधिकारी महेर मुतरेब. (एपी)
ख़शोगी को सऊदी में अपना भविष्य डांवाडोल लगने लगा
इसीलिए सितंबर 2017 में वो अमेरिका चले आए. यहां वो 'वॉशिंगटन पोस्ट' अख़बार के लिए कॉलम लिखने लगे. अपने पहले ही लेख में ख़शोगी ने लिखा कि MBS ने सऊदी में कैसा आतंक मचाया हुआ है. ख़शोगी ने लिखा कि किसी भी दिन गिरफ़्तार होने के डर से वो सऊदी छोड़कर आ गए हैं. आगे भी ख़शोगी अपने लेखों में MBS के तौर-तरीकों की आलोचना करते. उनका कहना था कि वो सऊदी राजशाही के विरोधी नहीं हैं, बस सिस्टम में रिफॉर्म चाहते हैं. ख़शोगी ख़ुद को भले ही सत्ता का हितैषी कहते हों, मगर सऊदी की सत्ता उन्हें अपना दुश्मन मानती थी.
ये तो था ख़शोगी का परिचय. मगर हम तो 2 अक्टूबर, 2018 को ख़शोगी के इस्तांबुल स्थित सऊदी कॉन्स्यूलेट में आने की कहानी सुना रहे थे. ख़शोगी क्यों आए थे वहां? इस आने की वजह जुड़ी है एक लव स्टोरी से. ख़शोगी का तीन बार तलाक़ हो चुका था. अब तुर्की में ही हेटिस सेनज़िग नाम की एक रिसर्चर से उनकी मुलाकात हुई. दोनों को प्यार हुआ. उन्होंने शादी का फ़ैसला किया. अब यहां एक अड़चन थी. ख़शोगी सऊदी के थे और हेटिस तुर्की की. शादी रजिस्टर करने के लिए ख़शोगी को सऊदी द्वारा दिए गए कुछ कागज़ातों की ज़रूरत थी. इसी पेपरवर्क के लिए ख़शोगी उस रोज़ अपॉइंटमेंट लेकर सऊदी कॉन्स्यूलेट पहुंचे थे. कॉन्स्यूलेट के बाहर कार में अपनी मंगेतर को छोड़कर ख़शोगी इमारत में दाखिल हुए. ये आख़िरी बार था, जब किसी ने ख़शोगी को ज़िंदा देखा था.

जमाल ख़शोगी की मंगेतर हेटिस सेनज़िग. (एएफपी)
कॉन्स्यूलेट गए लेकिन लौटे नहीं
काफी देर बाद भी जब ख़शोगी कॉन्स्यूलेट से बाहर नहीं निकले, तो उनकी मंगेतर ने इस प्रकरण की जानकारी तुर्की अधिकारियों को दी. तुर्की अधिकारियों को लगा, ख़शोगी अभी भी सऊदी कॉन्स्यूलेट के भीतर हैं. मगर सऊदी का कहना था कि ख़शोगी वहां से जा चुके हैं. ख़शोगी कहां थे, किसी को नहीं पता था.
फिर 9 अक्टूबर को तुर्की ने कहा कि ख़शोगी की हत्या हो चुकी है. तुर्की के मुताबिक, सऊदी राजघराने के किसी ऊपरी आदमी ने ख़शोगी को मारने का ऑर्डर दिया. ख़शोगी की हत्या के लिए रियाद से एक टीम तुर्की भेजी गई. तुर्की के मुताबिक, कॉन्स्यूलेट के भीतर ख़शोगी की हत्या के बाद आरी से उनकी लाश के टुकड़े किए गए. फिर एक काले रंग की मर्सिडीज़ में उन हिस्सों को कॉन्स्यूलेट से बाहर ले जाया गया.

जमाल ख़शोगी. (एएफपी)
क्या तुर्की के पास इन आरोपों से जुड़ा कोई सबूत था?
जवाब है, हां. तुर्की के पास दो बड़ी चीजें थीं. पहला सबूत था एक सर्विलांस फुटेज. ये 2 अक्टूबर का फुटेज था. इसमें सऊदी से आए 15 लोग कॉन्स्यूलेट के भीतर घुसते दिख रहे थे. इनमें सऊदी का एक फॉरेंसिक डॉक्टर और टॉप सुरक्षा अधिकारी शामिल थे. तुर्की के मुताबिक, इसी किलिंग स्क्वैड ने ख़शोगी को मारा था.
तुर्की के पास दूसरा बड़ा सबूत था, ऑडियो रिकॉर्डिंग्स. तुर्की के मुताबिक, उनके आवाज़ पकड़ने वाले उपकरणों ने 2 अक्टूबर को सऊदी कॉन्स्यूलेट के भीतर हुई बातचीत को रेकॉर्ड कर लिया. तुर्की ने ये रिकॉर्डिंग CIA और UN को दिया. इन रिकॉर्डिंग्स को क्रेडिबल ऐविडेंस माना गया. इन्हीं के आधार पर जून 2019 में UN ने 101 पन्नों की एक स्पेशल रिपोर्ट जारी की. इससे पता चला कि 2 अक्टूबर, 2018 की उस दोपहर को ख़शोगी के साथ क्या हुआ था.

UN की रिपोर्ट्स.
क्या हुआ था ख़शोगी के साथ?
हमने आपको बताया कि वो 1 बजकर 14 मिनट पर कॉन्स्यूलेट में दाखिल हुए. यहां उन्हें तत्काल सऊदी जाने का निर्देश मिला. ख़शोगी ने इसका विरोध किया. ख़शोगी को काबू में करने के लिए सऊदी अफ़सरों ने उन्हें ऐनेस्थीसिया देने की कोशिश की. ख़शोगी ने बचने की कोशिश की, तो बाकी लोगों ने उन्हें जकड़ लिया. वो लोग ख़शोगी का गला दबाने लगे. ख़शोगी छटपटाने लगे. उन्हें तड़पता देखकर वहां मौजूद लोग ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे. इन्हीं ठहाकों के बीच थोड़ी देर बाद ख़शोगी का शरीर शांत पड़ गया. ख़शोगी के आख़िरी शब्द थे- आई कान्ट ब्रीद. मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं. ख़शोगी ज़िंदा होते, तो 11 दिन बाद 13 अक्टूबर को अपना 60वां जन्मदिन मनाते.
ख़शोगी की हत्या के बाद उनकी लाश का क्या हुआ?
ये सवाल आज भी पहेली है. इतना पता है कि मर्डर के बाद कॉन्स्यूलेट में ही एक आरी से ख़शोगी के टुकड़े किए गए. इन टुकड़ों को पैक करके अलग-अलग प्लास्टिक थैलियों में रखा गया. इसके बाद ख़शोगी के टुकड़ों का क्या हुआ, कोई नहीं जानता. बस इतना पता है कि उस रोज़ सऊदी कॉन्स्यूलेट से एक आदमी एक बड़ा सा सूटकेस लेकर बाहर निकला था. माना जाता है कि उसी सूटकेस में ख़शोगी के टुकड़े थे. अनुमान है कि या तो इस सूटकेस को कॉन्स्यूलेट अधिकारी के घर ले जाकर जला दिया गया. या फिर कॉन्स्यूलेट के भीतर ही उन हिस्सों को तेज़ाब में गलाकर वहां स्थित एक कुएं में फेंक दिया गया.
इस सूटकेस वाले रहस्यमय आदमी के कॉन्स्यूलेट से एक्ज़िट के थोड़ी देर बाद एक और अजीब बात हुई. बिल्कुल ख़शोगी की कदकाठी वाला एक आदमी ख़शोगी के ही कपड़ों में कॉन्स्यूलेट से बाहर निकला. उसने कई घंटों तक इंस्ताबुल में चहलकदमी की. मगर ख़शोगी होने की ऐक्टिंग कर रहा इस आदमी के जूतों ने उसकी चुगली कर दी. उसने कपड़े तो ख़शोगी वाले पहन लिए थे, मगर उनका जूता पहनना भूल गया था. इसी भूल से पता चला कि वो आदमी ख़शोगी का बॉडी डबल है. उसे ख़ास इसलिए लाया गया था कि अगर जांच हो, तो सबको लगे कि ख़शोगी सही-सलामत कॉन्स्यूलेट से बाहर निकले थे. पता है, ये बहुरूपिया कौन था? ये सऊदी के उन्हीं 15 लोगों की टीम में था, जो 2 अक्टूबर को रियाद से कॉन्स्यूलेट आए और हत्या करके वापस लौट गए.

जमाल की हत्या के पीछे सऊदी राजकुमार मुहम्मद बिन सलमान का नाम सामने आता रहा. (फोटो: एपी)
किन आठ लोगों को सजा मिली?
इन्हीं सबूतों के आधार पर तुर्की ने सऊदी के 18 लोगों पर एक केस दर्ज़ किया. इसके अलावा जनवरी 2019 में सऊदी ने भी 11 लोगों पर केस शुरू किया. ये केस अंतरराष्ट्रीय दबाव में शुरू किया गया था. दिसंबर 2019 में सऊदी के एक कोर्ट ने इनमें से पांच को ख़शोगी की हत्या के इल्ज़ाम में मौत की सज़ा सुनाई. इस सज़ा पर अपील की गई. इसी अपील पर 7 सितंबर, 2020 को आख़िरी फैसला आया है.
इस फ़ैसले में पांचों अपराधियों की मौत की सज़ा को पलटकर उन्हें 20 साल की क़ैद सुनाई गई है. तीन और दोषियों को सात से 10 साल जेल की सज़ा मिली है. ये आठों लोग कौन हैं, कोई नहीं जानता. सऊदी ने इनकी पहचान कभी नहीं बताई. एक बंद दरवाज़े के पीछे पूरा ट्रायल हुआ. क्या सबूत, क्या गवाह, क्या दलील कोई नहीं जानता. ह्युमन राइट्स वॉच ने कहा कि ये ट्रायल न तो निष्पक्ष है, न ही अंतरराष्ट्रीय न्याय प्रक्रिया के मुताबिक है. इंटरनैशनल मीडिया, मानवाधिकार संगठन सबने इस ट्रायल को ड्रामा बताया है. ख़शोगी की मंगेतर ने भी कहा है कि ये न्याय नहीं, न्याय के नाम पर हुआ तमाशा है.

जमाल ख़शोगी की मंगेतर हेटिस सेनज़िग. (एएफपी)
क्या सऊदी ने ये फैसला सुनाकर ख़शोगी की हत्या का इंसाफ़ कर दिया है?
क्या ख़शोगी के हत्यारे सच में पकड़ लिए गए? इसका जवाब है, नहीं. सऊदी में हुआ ये ट्रायल किसी तमाशे से कम नहीं था. इसमें किसी बड़े अधिकारी को सज़ा नहीं हुई. मसलन, सऊद अल-क़ाहतनी. ये आदमी MBS का नज़दीकी है. वो सऊदी राजपरिवार का मीडिया सलाहकार भी था. क़ाहतनी को MBS का हेंचमैन माना जाता है. इल्ज़ाम है कि वो विदेश में बैठे MBS आलोचकों को ठिकाने लगाता था. पहले भी कई मामलों में उसका नाम आ चुका था. 2017 में ऐसे ही सवालों का जवाब देते हुए क़ाहतनी ने एक ट्वीट में लिखा था-
क्या आप लोगों को लगता है कि मैं बिना आदेश के ख़ुद अपनी मर्ज़ी से कुछ भी करता हूं? मैं एक कर्मचारी हूं. मेरा काम है सुल्तान और क्राउन प्रिंस के आदेश को पूरा करना.

क़ाहतनी का ख़शोगी मर्डर से क्या लिंक है?
असल में ख़शोगी ने अपनी हत्या के पहले अपने दोस्तों के आगे कई बार क़ाहतनी का नाम लिया था. ख़शोगी ने बताया था कि क़ाहतनी कई बार उन्हें फोन करता है. उनसे सऊदी लौट आने को कहता है. ख़शोगी मर्डर के बाद जब सऊदी पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बना, तो उसने कई टॉप अधिकारियों को बर्खास्त किया. इनमें से एक क़ाहतनी भी था. मगर उसपर कभी केस नहीं चला.

सऊद अल-क़ाहतनी
सबसे बड़ा सवाल तो ख़ुद MBS के नाम पर है. क्या ये मुमकिन है कि उन्हें इस हत्या की जानकारी न हो? ख़शोगी की हत्या के कुछ दिनों बाद CIA ने इस मामले में अपनी जांच की थी. इसमें कहा गया था कि मर्डर के पीछे MBS का हाथ होने के ठोस सबूत हैं. इन सबूतों में MBS के भाई ख़ालिद बिन सलमान द्वारा ख़शोगी को किया गया फ़ोन कॉल शामिल है. ख़ालिद उस समय अमेरिका में सऊदी के राजदूत थे. उन्होंने ही ख़शोगी से इस्तांबुल कॉन्स्यूलेट में जाने को कहा था. UNHRC द्वारा समर्थित एक जांच में भी इस हत्या के पीछे MBS पर ही उंगली उठाई गई थी.

ख़ालिद बिन सलमान (एएफपी)
मगर इन सबके बावजूद MBS का बाल बांका नहीं हुआ
वजह है उनकी ताकत. उनका ओहदा. यही ओहदा वो वजह है कि तमाम आलोचनाओं के बावजूद ट्रंप प्रशासन MBS के साथ खड़ा रहा. ट्रंप ने कहा कि जबतक अपराध साबित नहीं होता, आदमी बेग़ुनाह माना जाता है. इस मामले में सबसे बड़ी ट्रेजडी यही है. अपराध साबित कैसे होगा? जिसपर आरोप हैं, उसी की अदालत है. जो आरोपी है, वही जज भी है. ऐसे में न्याय कैसे मिलेगा?
तमाशा इतने पर ख़त्म नहीं हुआ है. सऊदी के क़ानून में पीड़ित का परिवार चाहे तो अपराधियों को मुआफ़ी दे सकता है. ख़शोगी का परिवार सऊदी में ही है. उन्होंने पहले ही बयान जारी कर दिया था कि वो हत्यारों को माफ़ कर रहे हैं. माना जा रहा है कि ये बयान सऊदी राजशाही के ही दबाव में आया. यानी इस फर्ज़ी ट्रायल से सज़ा पाए लोग भी शायद रिहा हो जाएंगे. सऊदी कह रहा है कि ये केस उनके अद्भुत जस्टिस की मिसाल है. सारे ब्योरे सुनने के बाद आप ख़ुद तय कीजिए कि इसे किस तरह की मिसाल माना जाए.
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