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शाहरुख़ ख़ान की नई फिल्म पिट जाने से मैं बहुत खुश हूं

इससे पहले सलमान की 'ट्यूबलाइट' ऑफ हुई थी, तब भी खुश हुआ था.

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फोटो - thelallantop
शाहरुख़ ख़ान की नई फिल्म ‘जब हैरी मेट सेजल’ फ्लॉप होने की कगार पर है. पहले 2-3 दिनों में उम्मीद से बहुत कम कमाई की है इस फिल्म ने. अगर यही हाल रहा, तो लागत के पैसे भी मुश्किल ही वसूल हो पाएंगे. वैसे भी अब कम ही दिन बचे हैं इस फिल्म के पास रिकवर करने के लिए. अगले शुक्रवार अक्षय कुमार की ‘टॉयलेट-एक प्रेम कथा’ रिलीज़ होगी. उसके बाद लोगों की दिलचस्पी शिफ्ट हो जाएगी. ऐसे में ये लगभग तय सा लग रहा है कि इस फिल्म ने तगड़ा घाटा उठाना है.
'जब हैरी मेट सेजल' फिल्म का एक सीन.
'जब हैरी मेट सेजल' फिल्म का एक सीन.

शाहरुख़ ख़ान, अनुष्का शर्मा जैसे बड़े एक्टर, इम्तियाज़ अली जैसा कद्दावर डायरेक्टर, फॉरेन की दिलकश लोकेशंस, क्या नहीं था इस फिल्म में. सब कुछ था. सिवाय अच्छी स्क्रिप्ट के. फिल्म औंधे मुंह गिर रही है और मुझे इस बात से सच में ख़ुशी हो रही है. ऐसी ही ख़ुशी तब हुई थी जब सलमान ख़ान की ‘ट्यूबलाइट’ पिट गई थी. सुना है सलमान ने तो अपने डिस्ट्रीब्यूटर्स को मुआवज़ा भी दिया था. इन बड़ी फिल्मों को नकारे जाना हिंदी सिनेमा के हित में ही है.
लकीर के फ़कीर बॉलीवुड को झिंझोड़ कर जगाने के लिए ऐसे झटकों की बहुत ज़रूरत है. कोई फ़ॉर्म्युला चल जाए बस. बरसों-बरस उसे ही घिस के चलाते रहते हैं. एक स्टार लो और उसके करिश्मे को भुना लो. एक लाइन का सिंपल फंडा रहा है ये. इस चक्कर में हिंदी के दर्शकों को न जाने कितना कूड़ा-कचरा झेलना पड़ा है.
शाहरुख़ ख़ान, सलमान ख़ान, अक्षय कुमार जैसे बड़े सितारों ने पिछले 4-5 सालों में न जाने कितनी वाहियात फ़िल्में की है. लेकिन लगभग हर एक चली. सबने बंपर बिजनेस किया. हैप्पी न्यू ईयर, दिलवाले, किक, जय हो, राऊडी राठौड़ कितने नाम लें! सब एक से बढ़कर एक घटिया फ़िल्में. लेकिन कमाई करोड़ों में. ऐसी स्थिति में बॉलीवुड कुछ और ट्राय करे भी तो क्यों? इसी चक्कर में संजय लीला भंसाली जैसा संजीदा फिल्मकार भी राऊडी राठौड़ बना बैठता है.
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ऐसे में जब ऐसी फिल्मों को लोग नकारने लगे हैं, तो ये बहुत सुखद बदलाव है. पब्लिक को ग्रांटेड लेने वाले इन फिल्मकारों को ऐसी वेक अप कॉल का मिलना अच्छी बात है. इन्हें ये बताना ज़रूरी है कि अगर आपके पास दिखाने के लिए कुछ नया, कुछ ढंग का नहीं है, तो हम नहीं देखेंगे. नो मीन्स नो. चाहे सामने कितना ही बड़ा कलाकार क्यों न हो! ऐसी फ़िल्में पिटेंगी, तभी ये लोग अपने कम्फर्ट ज़ोन से निकलेंगे. कुछ नया, कुछ बेहतर करने की कोशिश करेंगे. इससे हिंदी सिनेमा के शैदाईयों की झोली में कुछ अच्छा आ टपकने की उम्मीद तो बनती है.
शाहरुख़ जैसे कलाकारों को समझना होगा कि वो हमेशा सेलेबल बने नहीं रह पाएंगे. कूड़ा परोसेगे तो चाहे ‘रईस’ हो या ‘हैरी..’, नकारे जाओगे. ऐसी करारी चोट शाहरुख़ को कुछ नया करने के लिए भी उकसाएगी. स्टार बेचने की जगह स्टोरी दिखाने पर ध्यान देने लग जाएं ये लोग, तो वर्ल्ड सिनेमा में हमारी नाममात्र शिरकत में थोड़ी बढ़ोतरी कर पाएंगे हम. इस नए दौर में तो अब पहले जैसा ख़तरा भी नहीं रहा है. हर तरह के दर्शक अवेलेबल हैं. आप कथ्य अच्छा लाइए, आपको दर्शक मिल जाएंगे. तारीफ़ भी होगी और पैसा भी आएगा ही आएगा. क्योंकि स्टार तो आप हैं ही.
मैं शाहरुख़ ख़ान का फैन हूं. पहले दिन देख ली थी उनकी फिल्म. लेकिन मैं सच में इस फिल्म के फ्लॉप हो जाने से खुश हूं. सबको होना चाहिए. किसी बड़े प्रोजेक्ट का धाराशाई होना, कईयों को नींद से जगाने का सबब बन सकता है. इम्तियाज़ अली के लिए भी ये सबक है. वो हर बार एक जैसी फिलॉसफी परोस कर नहीं बच सकते. उन्हें भी कंटेंट लाना ही होगा.
यही सबक सलमान, अक्षय और हर उस बड़े स्टार के लिए है, जो पब्लिक को अंगने में बंधी दुधारू गाय समझते हैं. जैसे चाहा दुह लिया. इस गाय का दुलत्ती मारना ज़रूरी था. जिसे-जिसे पड़ेगी वो कम से कम आगे तो सावधानी बरतेगा.


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