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इशरत जहां एनकाउंटर: पहले और बाद

ये वो पॉलिटिकल भूत है जो बहुत लोगों को सालता है. जानिए एनकाउंटर से पहले और बाद की पूरी कहानी.

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एनकाउंटर के बाद की तस्वीर.
हेडली के कोर्ट में बयान से इशरत जहां का पॉलिटिकल भूत फिर जाग गया है. हेडली ने कहा कि इशरत लश्कर की सुसाइड बॉम्बर थी. उसेके एनकाउंटर से ठीक पहले क्या हुआ था और एनकाउंटर के बाद क्या हुआ, यहां पढ़िए.

एनकाउंटर के पहले क्या हुआ

11 जून 2004 को इशरत अपने घर से निकली. उसकी अम्मी शमीमा को बेटी का यूं टूर पर जावेद के साथ जाना पसंद नहीं था. इसलिए इस बार वो बिना बताए जावेद के साथ नासिक चली गई. 11 जून को नासिक से उसने अम्मी को फोन किया. उनसे कहा कि मैं नासिक के बस स्टॉप पर हूं. एक पब्लिक बूथ से बात कर रही हूं और जावेद शेख अंकल अभी तक नहीं आए हैं. इसके कुछ ही मिनट बाद एक और कॉल आया. इशरत घबराई हुई थी. उसने कहा कि जावेद आ गए हैं, मगर उनके साथ कुछ अजीब लोग हैं. फोन अचानक कट गया. इसके बाद एक और कॉल आया. या कि नहीं आया और बस दावा हुआ. इसमें कहा गया कि जावेद मिल गए हैं. और 15 जून को गुजरात पुलिस की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई. एनकाउंटर की जगह पर मीडिया भी पहुंचा. लाशें बिछी थीं. उनमें से एक इशरत की थी और दूसरी जावेद की. दो और लोग भी थे. डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच (डीसीबी) टीम ने एनकाउंटर किया था. ये अहमदाबाद सिटी पुलिस की एक शाखा थी. पुलिस के मुताबिक ये चारों आतंकवादी नीले रंग की टाटा इंडिका कार में सवार थे.

एनकाउंटर के बाद

इशरत का परिवार सामने आया. उन्होंने कहा कि हमारी बच्ची बेगुनाह है. मुंबई पुलिस भी बोली कि इस लड़की का कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं था. जांच में भी कुछ सामने नहीं आया. इसके बाद राजनीति शुरू हो गई. मुंब्रा में जब इशरत की शवयात्रा निकली तो इसमें 10 हजार लोग शरीक हुए. इनमें मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के नेता और एक्ट्रेस आयशा टाकिया के ससुर अबू आजमी अगुवाई कर रहे थे. उन्होंने कहा कि इस हत्या की सीबीआई जांच होनी चाहिए. मगर उन्हीं दिनों लाहौर से छपने वाले गजवा टाइम्स ने इन दावों की पहली पोल खोली कि इशरत बेगुनाह थी. गजवा टाइम्स लश्कर का मुखपत्र माना जाता है. इसमें कहा गया कि इशरत लश्कर के लिए काम कर रही थी. और जब उसे जन्नत नसीब हुई उस वक्त वो अपने पति के साथ मिशन पर थी. परिवार ने इस एंगल पर बात नहीं की थी. गजवा ने अपनी वेबसाइट पर लिखा कि गुजरात पुलिस ने इशरत का बुर्का हटा दिया और उसे दूसरे मुजाहिदीनों की लाश के पास लिटा दिया गया. 2002 के गुजरात दंगों के बाद तमाम मानवाधिकार संगठन मोदी सरकार की नीयत को लेकर संदेह से भरे थे. इस केस में भी उन्हें लूपहोल नजर आए. कहा गया कि पुलिस वर्दी वाला गुंडा बन गई है. केस बनता ही. फर्जी किस्म के. बेगुनाह मुसलमानों को उठाती है. और एनकाउंटर दिखा मार देती है. इसमें एक पैटर्न बताया गया. एनकाउंटर हमेशा सुबह के पहले पहर में होते हैं. घटना का कोई स्वतंत्र चश्मदीद गवाह नहीं होता भारी फायरिंग की जाती है. पुलिस का एक सिपाही भी घायल नहीं होता. मौके से एक डायरीनुमा चीज बरामद होती है, जिसमें तमाम लोगों के नाम पता और दूसरे ब्यौरे होते हैं.

एसपी तमांग रिपोर्ट

तमांग मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट थे. उन्होंने 7 सितंबर 2009 को अपनी जांच रिपोर्ट जमा की. इसमें लिखा गया कि चारों लोगों की मौत फर्जी एनकाउंटर में हुई. इसके लिए कई टॉप पुलिस अधिकारियों पर उंगली उठाई गई. तमांग ने अपनी 243 पेज की रिपोर्ट में गुजरात पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट डीजी वंजारा पर इल्जाम लगाया कि उन्होंने कोल्ड ब्लडेड मर्डर किया. तमांग के मुताबिक डीसीबी ने इशरत, जावेद और दूसरे दो लोगों को मुंबई से 12 जून को उठाया. वहां से उन्हें अहमदाबाद लाया गया. 14 जून की रात को उन्हें पुलिस ने अपनी कस्टडी में मार दिया. फिर अगली सुबह एनकाउंटर दिखा दिया. तमांग ने कहा था कि मारे गए लोगों के लश्कर से संबंध स्थापित करने के लिए कोई सुबूत नहीं हैं. मोदी को मारने की थ्योरी भी पुख्ता नहीं लगी तमांग को. रिपोर्ट में लिखा गया का मारे गए लोगों के साथ जो गोला बारूद बरामद हुआ है, वह उनका नहीं है. बल्कि पुलिस ने रख दिया. केस मजबूत करने के लिए. तमांग ने कहा कि पुलिस वालों ने प्रमोशन और सीएम मोदी से शाबाशी पाने के लिए ये सब किया. केस में वंजारा के अलावा आईपीएस अमीन का भी नाम लिया गया. उन्हें भी सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस में आरोपी बनाया गया था. मगर गुजरात हाई कोर्ट ने तमांग की रिपोर्ट पर स्टे लगा दिया. लेकिन इशरत की मां शमीमा को एक छूट दी गई. कि वह इस रिपोर्ट को हाई कोर्ट की उस तीन मेंबरान वाली कमेटी के सामने पेश कर सकती हैं, जो एनकाउंटर की जांच कर रही है. इस कमेटी के मेंबर जस्टिस कल्पेश जावेरी ने तमांग पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि ज्यूडिशयल मैजिस्ट्रेट ने अपने अधिकार क्षेत्र और जांच के दायरे से बाहर की चीजों पर भी गैरजरूरी और बेबुनियाद टिप्पणी की हैं. इसके बाद जजों की बेंच ने तमांग के खिलाफ एनक्वायरी बैठाने का आदेश दिया. तमांग पर मामला हाई कोर्ट में होने के बावजूद रिपोर्ट दाखिल करने का भी इल्जाम लगा. इसके बाद हाई कोर्ट के निर्देश पर एक नई पुलिस टीम बनी. इसके मुखिया बनाए गए एडीजीपी प्रमोद कुमार. हैडली वाले दो पैरा हटा दिए गए. अगस्त 2010 में हाई कोर्ट ने तमांग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया. इसके मुताबिक तमांग ने पुलिस एनकाउंटर का मकसद और समय संबंधी जो दावे किए हैं. वे गलत हैं. केस की आगे जांच के लिए एक एसआईटी बनाई गई. करनैल सिंह की सदारत में. इसकी चार टीमें श्रीनगर, दिल्ली, लखनऊ और नासिक गईं. बैलेस्टिक और फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स की भी मदद ली गई. इस टीम ने 21 नवंबर 2011 को गुजरात हाई कोर्ट में अपनी जांच रिपोर्ट दाखिल की. इसमें कहा गया कि इशरत जहां एनकाउंटर फर्जी था. इस रिपोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने एनकाउंटर में शामिल सभी पुलिस वालों के खिलाफ मर्डर के केस में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए. इसमें 20 लोग शामिल थे. कुछ आईपीएस रैंक के अधिकारी भी. इसके बाद मामले की जांच सीबीआई ने शुरू कर दी. सीबीआई के मुताबिक आईबी के अफसर राजेंद्र कुमार ने गुजरात काडर के आईपीएस अफसर पीपी पांडे के साथ मिलकर इशरत जहां एनकाउंटर की योजना बनाई थी.

गिरफ्तारी

21 फरवरी 2013 को सीबीआई ने गुजरात काडर के आईपीएस अधिकारी जीएल सिंघल को गिरफ्तार किया. एनकाउंटर के वक्त सिंघल क्राइम ब्रांच के एसीपी थे. और भी कई पुलिस वाले गिरफ्तार किए गए. मगर सीबीआई 90 दिनों की तय समय सीमा के अंदर इनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई. नतीजतन, अमीन को छोड़कर बाकी आरोपियों को जमानत मिल गई. इसी साल 4 जून को सीबीआई ने वंजारा पर नए सिरे से शिंकजा कसा. वंजारा सोहराबुद्दीन एनकाउंटर में मुंबई जेल में बंद थे. उन्हें वहां से अहमदाबाद की साबरमती जेल ट्रांसफर किया गया था. यहीं सीबीआई ने उन्हें हिरासत में लिया. इस केस में बार बार आईबी के राजेंद्र कुमार का जिक्र आया. मगर सीबीआई उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी. जून 2013 में इंडिया टुडे मैगजीन की रपट में एक बड़ा खुलासा हुआ. इसके मुताबिक आईबी चीफ आसिफ इब्राहिम ने उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री के दफ्तर को बताया था कि उनके पास इशरत जहां के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं. ये साफ इशारा करते हैं कि इशरत लश्कर के उस मॉड्यूल का हिस्सा थी, जो नरेंद्र मोदी और आडवाणी को मारना चाहता था. इब्राहिम ने वही कहा, जो आज सुबह हेडली ने फिर कहा. आईबी चीफ के मुताबिक FBI जांच में डेविड कोलमैन हेडली ने ये कबूल किया कि इशरत लश्कर के आत्मघाती बम दस्ते की मेंबर थी. यही बात हेडली ने 2010 में भी कही थी. मगर उस वक्त कथित तौर पर एनआईए ने इस ब्यौरे वाले दो पैरा अपनी रिपोर्ट से हटा दिए थे. इसके कुछ दिनों बाद इंडिया टुडे ग्रुप के इंग्लिश न्यूज चैनल ने एक ऑडियो टेप चलाया. चैनल के मुताबिक यह बातचीत लश्कर ए तैयबा के एक कमांडर और इशरत जहां के साथ मारे गए जावेद शेख के बीच हुई. इसमें मोदी को मारने के प्लॉट पर बात हो रही थी. इन टेपों को हाईकोर्ट में पेश किया गया, मगर कोर्ट ने इनका संज्ञान नहीं लिया. जून 2013 में तहलका मैगजीन ने भी एक दावा किया. इसके मुताबिक सीबीआई के पास भी एक ऑडियो टेप है. इसमें कथित तौर पर गुजरात के पूर्व मंत्री और एक आईपीएस अफसर बात कर रहे हैं. वे जांच में फंसे अफसरों को बताने के तरीकों और जरूरतों पर बात कर रहे हैं. इसी साल 1 सितंबर 2013 को मामले के मुख्य अभियुक्त आईपीएस डीजी वंजारा ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार उनके बचाव के लिए पूरी कोशिश नहीं कर रही है. मई 2014 में सीबीआई ने अहमदाबाद कोर्ट में एक रिपोर्ट दाखिल की. इसमें कहा गया कि एनकाउंटर के वक्त गुजरात के गृह राज्य मंत्री रहे बीजेपी नेता अमित शाह के मामले में संलिप्तता को लेकर कोई सबूत नहीं हैं.