सुदीप: नहीं था. सिर्फ ड्रग्स का विषय था. लेकिन मैं पंजाब के बारे में पढ़ चुका था. 'तहलका' में एक लंबा आर्टिकल आया था. बहुत ही उम्दा था. साई मनीष नाम के जर्नलिस्ट ने लिखा था. लेख ने मुझे काफी प्रभावित किया. साल डेढ़ साल पहले पढ़ा था लेकिन वो मेरे ज़ेहन में बैठ गया था. मैंने अभिषेक से इसके और पंजाब में जो हो रहा है उसके बारे में बात की जो उनको जंची. हम दोनों ने उसे थोड़ा अौर एक्सप्लोर किया. शुरुआती रिसर्च तो आजकल इंटरनेट पे ही होती है. फिर किरदारों अौर कहानी के ऊपर एक बहुत ही बेसिक सा डिसकशन शुरू किया. फिर हम पंजाब गए. मेरे एक दोस्त हैं गुंजित चोपड़ा,जो दो-तीन साल से पंजाब में काफ़ी काम कर रहे हैं. वो हमारे पंजाब एक्सपर्ट बने. वो चमकीला पर एक डॉक्युमेंट्री बना रहे हैं..
मिहिर: चमकीला कौन?
सुदीप: वो (अमर सिंह चमकीला) एक पंजाबी सिंगर थे. 80 के दशक में he was probably the biggest name in Punjab. उनकी कहानी बहुत इंट्रेस्टिंग है. उसमें जाति का तत्व भी है. (चमकीला और उनकी पत्नी अमरजोत की 8 मार्च 1988 को मेहसामपुर, पंजाब में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. ये केस कभी सुलझाया नहीं जा सका. वैसे इसमें खालिस्तानी मूवमेंट में शामिल लोगों का हाथ भी बताया जाता है.)
मिहिर: ये मुझे बहुत दिलचस्प लगता है कि पंजाब में सिख कम्युनिटी का इतना असर है, अौर सिख धर्म में बराबरी का इतना महत्व है. लेकिन जाति को लेकर पंजाब के बारे में बहुत ज्यादा बात नहीं होती है. जबकि कास्ट पंजाब में एक बहुत बड़ा फैक्टर है.
सुदीप: बहुत बड़ा फैक्टर है. अगर मैं गलत नहीं हूं तो कुल जनसंख्या में दलितों के प्रतिशत के लिहाज से पंजाब शीर्ष-3 राज्यों में आता है. इस बारे में बहुत बात नहीं होती. इसके पीछे बहुत से कारण हैं. जैसे देखिए, इतने डेरे हैं पंजाब में. एक जाति वाला तत्व भी इसमें बहुत मजबूती से मौजूद है. जबकि आप यूं देखो तो सिख धर्म में कास्ट का कोई कॉन्सेप्ट नहीं है. लेकिन हिन्दू सोसाइटी का असर ऐसा है कि मुसलमानों में भी कास्ट आ गई है. पंजाब में भी यही हाल है.
बहलहाल, गुंजित के साथ मैं रिसर्च करने पंजाब गया. जमीनी स्तर पर लोगों से मिले, विचार समझे, देखा क्या हो रहा है, तब समझ आया कि बहुत बुरे हाल हैं. बहुत ही चकाचौंध कर देने वाली समस्या है. अौर मज़े की बात ये थी कि उस समय तक कोई चर्चा नहीं हो रही थी नेशनल लेवल पर.
मिहिर: ये कितनी पुरानी बात है?
सुदीप: तीन साल पहले की. बहुत लोगों को ज्यादा इस बारे में पता नहीं था. लौटकर जब हमने बताया कि ये स्क्रिप्ट लिख रहे है तो भी लोगों की प्रतिक्रिया आश्चर्य भरी थी. कि, अच्छा! पंजाब में ऐसा भी हो रहा है? क्योंकि पंजाब की छवि अभी तो बॉलीवुड से प्रेरित है. लहलहाते खेत अौर यश चोपड़ा जी की जो फिल्मी विरासत है, वो इमेज थी. अभी आप पंजाब जाअो तो वो लहलहाते खेत.. हरापन ही नहीं दिखेगा. बहुत भूरा हो गया है पंजाब. डस्टी सा. एक वक्त में जो समृद्धि दिखती थी, वो अब नहीं दिखती है. ग्रीन रेवोल्यूशन का असर भी धुल चुका है.
पंजाब में ड्रग्स की समस्या के बहुत सारे कारण हैं. जितना मैं अपने सीमित अनुभव में समझ पाया, ये ग्रीन रेवोल्यूशन से भी जुड़ा हुआ है. खेती से जुड़ा हुआ है. पंजाब में अब बड़े जमींदार हैं. उनके खेत पड़े हुए हैं. मज़दूर अा गए हैं, माइग्रेंट्स आ गए हैं. बिहार से अौर झारखंड से. इन खेतों के मालिकों के पास करने के लिए कुछ है नहीं. पैसा बहुत है. तो इससे ये रास्ता बनता है.
दूसरा, रिसर्च यह कहती है कि पंजाब एंट्री लेवल ड्रग्स को लेकर थोड़ा सा एक्सपेरिमेंटल रहा है. एल्कोहॉल ही देखें तो पंजाब में उसकी स्वीकार्यता मुल्क के बाक़ी राज्यों के मुकाबले ज्यादा ही दिखेगी. अफ़ीम की स्वीकार्यता काफ़ी ज्यादा हमेशा से रही है. कहीं न कहीं बढ़कर वो बात हेरोइन पर चली गई है.
एनआरआई पैसा भी वापस आया है. उसका भी असर है. एनआरआई लौटते हैं बहुत सारे पैसे कमा कर. अौर अब उनके पास करने को कुछ नहीं है. ये बहुत सारे सामाजिक, आर्थिक अौर राजनैतिक कारण हैं. एक अौर कारण बताते हैं कि एक समय तक पंजाब में हथियारों की खरीद-फरोख्त बहुत होती थी.जब पंजाब में उग्रवाद का दौर चल रहा था तो बॉर्डर से हथियारों की खरीद-फरोख्त होती थी. उसके पहले सोने की बहुत तस्करी होती थी. उसके पहले मसालों की होती थी. हमेशा से वो एक स्मगलिंग रूट रहा है पंजाब का बॉर्डर एरिया. दूसरा ऐसा राजस्थान का बॉर्डर है. हथियारों की तस्करी जब बंद हो गई, तो इन स्मगलर्स ने ड्रग्स का धंधा शुरू कर दिया. अफ़गानिस्तान में युद्ध की वजह से ड्रग्स का एक नया गेटवे बन गया था, अफ़गानिस्तान से पाकिस्तान होते हुए. अौर पंजाब बदकिस्मती से उस 'ड्रग्स हाइवे' पर पड़ता है. तो ये बहुत सारे कारण हैं कि पंजाब में ड्रग्स का प्रचलन दूसरे राज्यों से इतना अधिक क्यों है. दूसरा शायद नागालैंड में है अौर वहां भी सीमापार म्यांमार से ड्रग्स की तस्करी की समस्या है.
रिसर्च के दौरान हमें इन सबके बारे में पता चला. स्थिति की गंभीरता पता चली. आंकड़े तो हमारे पास नहीं हैं कि वो 10 परसेंट है कि 40 कि 70 परसेंट है.. अौर इन आंकड़ों का कोई दस्तावेज़ीकरण भी नहीं है. ये इतनी बड़ी समस्या है तो इस बारे में एक सीरियस गणना होनी चाहिए. ये सब महसूस हुआ पंजाब ट्रिप के दौरान. हम बहुत सारे डॉक्टर्स से मिले, रीहैबिलिटेशन वर्कर्स से मिले, पुलिसवालों से मिले, ड्रग एडिक्ट्स से मिले, कुछ स्मगलर्स से मिले.
मुद्दे की गंभीरता और इस विषय पर फिल्म बनाने के विचार के अलावा ये भी समझ आया कि एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी हम अपने ऊपर ले रहे हैं. मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसा पसंद नहीं करता हूं. मेरे हिसाब से सिनेमा का, या कहानीकार का पहला उद्देश्य कहानी कहना है. एक दिलचस्प कहानी कहना. चूंकि ये मुद्दा सच्चाई के बहुत करीब है अौर बहुत ज्वलंत है, इसलिए वो अनचाही ज़िम्मेदारी हमारे कंधों पर आ गई है. अब उसको हम कितनी बखूबी निभा पाए हैं वो मुझे नहीं पता.
मिहिर: लेकिन आज आपकी फिल्म का गुरुत्व ही एकदम बदल गया है. तीन साल पहले लोग आपसे पूछ रहे थे कि 'अच्छा, ऐसा भी होता है' अौर आज परिस्थितियां ऐसी हैं कि आपकी फिल्म आने वाले पंजाब चुनाव में भूमिका निभा सकती है. एक नई राजनैतिक पार्टी चुनाव में उतर रही है. कुमार विश्वास का गाना भी आया है ड्रग्स की समस्या पर ही. ड्रग्स का मुद्दा पूरी तरह चुनाव के राजनैतिक अखाड़े में आ चुका है. अौर हिन्दी सिनेमा भी बहुत रिस्की बिज़नेस हो गया है आजकल..
सुदीप: हां, बहुत बहुत! ये एक बड़ा सवाल है. वैसे जो आप खुद से पूछते हो कि क्या उद्देश्य है एक कहानीकार का, फिल्ममेकर का या सिनेमा का. प्राथमिक उद्देश्य मैं अभी भी कहूंगा यही है - एक अच्छी कहानी कहना, एक दिलचस्प कहानी कहना. अगर आप उसमें फेल हो गए तो फिर आपने जो मर्जी किया हो, वो एक प्रोपोगैंडा ही रहेगा. वो एक महत्वपूर्ण प्रोपोगैंडा हो सकता है, लेकिन रहेगा वो प्रोपोगैंडा ही. आप बस सूचना दे रहे हो जो शायद एक डॉक्यूमेंट्री के जरिए बेहतर दी जा सकती थी.
कोशिश हमने यही की है कि हम एक कहानी को अच्छे से कहें अौर उसमें हम किसी भी तरह का समझौता न करें. अगर फिल्ममेकर्स, जैसे अभिषेक या मैं अपने आप को इस तरह देखने लगें कि हम कोई बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं दुनिया में, या पंजाब में.. तो ये अपने आप को बहुत ज्यादा सीरियसली लेना होगा. वो उद्देश्य भी अपने ऊपर लेना दरअसल एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेना है. आप चीज़ों को गलत न दिखाएं. आप चीज़ों को सही रौशनी में दिखाएं. वो ज़िम्मेदारी होती है अौर उतनी ज़िम्मेदारी हमने ली है. निभाने की कोशिश की है. उससे आगे की ज़िम्मेदारी मैं नहीं लेना चाहूंगा.
मिहिर: इसका कभी डर लगता है कि आपकी फिल्म इस्तेमाल हो सकती है, अौर ऐसे इस्तेमाल हो सकती है जैसा शायद आप न चाहें?
सुदीप: इसका डर लगता है अौर मैं तो चाहूंगा कि किसी भी तरह से इस्तेमाल न हो. राजनेता हैं, वो एक महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं. अब वो ठीक से कर रहे हैं या नहीं वो दूसरी बात है. लेकिन वो एक बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र में हैं. हम मनोरंजन के क्षेत्र में हैं. हमें उन चीज़ों की उतनी समझ भी नहीं है. हमने ज़मीन पर असल परिस्थितियां उतनी अौर वैसे नहीं देखी हैं जो उन्होंने देखी हैं. जो राजनेता कर रहे हैं, अपनी जानकारी में सही कर रहे हैं. अौर गलत कर रहे हैं तो लोकतंत्र में उसको ठीक करने के अपने तरीके हैं, चैक्स एंड बैलेंस है. उससे ही वो ठीक होंगे. मैं नहीं चाहूंगा कि हम किसी भी तरह से उस रौशनी में देखे जाएं या हम अपने ऊपर वो जिम्मेदारी लें. हां, वो हो सकता है उसका एक डर है.
मिहिर: टॉमी, प्रीत, पिंकी, सरताज के किरदार कहां से मिले? रिसर्च के दौरान ऐसे असल लोग मिले थे?
सुदीप: कुछ देखा हुआ है, कुछ इमैजिनेशन है. जैसे आलिया का किरदार. वो हमारी रिसर्च से आया है. एक बिहारी माइग्रेंट लड़की का. जब हम पंजाब गए तो हमने वैसे लोग देखे अौर उनकी ज़िन्दगियां देखीं जो पंजाब की सम्पन्नता वाली छवि से बहुत विरोधाभासी हैं. ज़ेहन में एक ये सवाल आया कि ऐसा किरदार ड्रग्स के गोरखधंधे में फंस जाए तो क्या उससे कभी निकल पाएगा? जवाब यही था कि हां, मज़ा आएगा ये देखने में कि इसने कैसे इस पूरी सिचुएशन से डील किया.

Alia Bhatt in Udta Punjab
जो करीना का किरदार है, डॉक्टर प्रीत का वो भी रिसर्च से ही आया है. बल्कि ऐसी एक डॉक्टर से तो मैं मिला था तरणतारण में, जो बहुत अच्छा काम कर रही हैं वहां अौर जिनसे मैं प्रभावित हुआ. उनकी बहुत सारी चारित्रिक विशेषताएं करीना के किरदार में आ गई हैं. उनकी पूरी टीम बहुत अच्छा काम कर रही है. उनसे दो-तीन बार हम मिले अपनी रिसर्च के दौरान अौर हमने देखा कि कैसे मरीज़ों को देख रही हैं, कैसे पुनर्वास मरीज़ों को सुधार रहा है. प्रीत का किरदार वहां से आया कि देखो ऐसे अच्छे लोग भी होते हैं. ऐसे लोग जो शायद अब खोते जा रहे हैं, कम होते जा रहे हैं.. लेकिन होते हैं ये जानकर बहुत खुशी मिली. हम स्मगलर्स दिखा रहे हैं, हम बाकी सब दिखा रहे हैं. लेकिन ये भी हो रहा है पंजाब में. अच्छे लोग हैं जो लगे हुए हैं चीज़ें ठीक करने के लिए, बिना कोई शिकायत किए अौर तमाम परेशानियां होने के बाद भी.
टॉमी सिंह (शाहिद कपूर) का किरदार किसी एक पर नहीं गढ़ा गया है. पर पंजाब इकलौता राज्य है भारत का जहां का अपना स्वतंत्र संगीत का परिदृश्य है जो बॉलीवुड के होते हुए भी बचा हुआ है. बहुत सारे सिंगर्स दिए हैं पंजाब ने, बहुत सारे पॉपस्टार्स दिए हैं जिनकी अपनी एक पहचान है अौर जो अपने नाम से अौर काम से जाने जाते हैं. अौर एक रॉकस्टार डीलिंग विद ड्रग्स, एक ऐसा किरदार है जो आप पहले कई फिल्मों में देख चुके हो, अंग्रेज़ी फिल्मों में. रॉक संगीत अौर ड्रग्स का कनेक्शन जुड़ता है…
मिहिर: फिल्मों में तो जुड़ता है…
सुदीप: हां. अौर जितने किस्से मैंने सुने हैं अौर पढ़े हैं लेड ज़ेप्लिन के बारे में या रोलिंग स्टोंस के बारे में.. तो एक हिस्ट्री है पूरी. अब एक पंजाबी संगीत वाले किरदार को इसमें डालें तो वो कैसा रहेगा, वहां से 'टॉमी सिंह' के किरदार का जन्म हुआ. दिलजीत (दोसांझ) का किरदार.. जब हम पंजाब में गए तो कई पुलिसवालों से मिले.. दिलजीत का किरदार शायद इतना सीधा प्रभावित नहीं है लेकिन फिल्म में एक अौर किरदार हैं जो दिलजीत के बॉस बने हैं. इंस्पेक्टर जुझार सिंह नाम है उनका.
मिहिर: किसने किया है यह किरदार?
सुदीप: मानव नाम है उनका. बहुत अच्छा काम किया है उन्होंने, जब फिल्म आएगी तो आप देखेंगे. जुझार सिंह के किरदार से हम मिले थे रिसर्च के दौरान. मैंने वो पकड़कर बस लिख दिया.
मिहिर: अौर ये कास्टिंग भी कितनी मज़ेदार है कि आपने दिलजीत को पुलिसवाले की भूमिका में लिया है, सिंगर की नहीं. अौर आलिया को बिहारी माइग्रेंट के किरदार में लिया है. इसका एक आकर्षण भी है, पर ये बैकफायर भी कर सकता है.
सुदीप: इसका सारा श्रेय हमारे निर्माताअों को जाता है. मैं अौर अभिषेक जब ये फिल्म लिख रहे थे तो हमें लगा था कि ये थोड़ी out there type की है. कोई नामचीन स्टार क्यों करना चाहेगा ये? रिस्की रोल है, सिरे पर है. हमने तो ये सोचकर लिखा कि एक छोटी सी इंडी फिल्म बनाते हैं कम बजट में, नए लोगों को लेकर. हम यही सोचकर गए थे फैंटम फिल्म्स के पास. फैंटम ने स्क्रिप्ट पढ़ी अौर उन्हें बहुत अच्छी लगी. उन्होंने हमसे पूछा कि तुम्हारे दिमाग में क्या है? हमने बताया कि बस एक छोटी सी, प्यारी सी फिल्म बना लें नए लोगों के साथ जो हमारे कंट्रोल में हो.
लेकिन उनको स्क्रिप्ट में बहुत विश्वास था. उनको शायद 'मार्केट' की समझ हमसे ज्यादा थी. अौर उनको फिल्मस्टार्स के बारे में हमसे ज्यादा पता था. उनको लगा कि स्टार्स हमारी स्क्रिप्ट में इंट्रेस्टेड होंगे अौर उन्होंने शाहिद को अप्रोच किया. अौर शाहिद एक ही दिन में अॉनबोर्ड आ गए थे. फिर आलिया भी. लेकिन हर बार जब एक बड़ा नाम जुड़ता था तो मैं अौर चौबे एक-दूसरे को पूछते थे कि यार ये कहीं गड़बड़ तो नहीं हो रहा! हमारे मन में भी डर था क्योंकि जिस स्केल पर फिल्म चली गई थी, हमने शायद उसे वैसे नहीं देखा था. लेकिन एक बात रही, अभिषेक ने कहीं भी फिल्म को चेंज नहीं किया.उन्होंने ये नहीं किया कि अब ये फिल्म 'बड़ी' हो गई है तो अब हम ये नहीं कर पाएंगे जो हम एक 'छोटी फिल्म' में करना चाहते थे. तो फिल्म हमने बाकायदा वही बनाई है जो हम पहले बनाना चाहते थे.

रजत: पंजाब में फिल्म के लिए कहां-कहां घूमे? कैसा अनुभव रहा रिसर्च अौर शूटिंग का?
सुदीप: पूरे पंजाब. खासकर अमृतसर, तरण तारण, लुधियाना अौर जलंधर वाले बैल्ट में. वहां ड्रग्स का असर ज़्यादा है. गोविंदवाल साहब, वल्टोहा अौर बहुत सारे छोटे-छोटे पिंड. हम ड्रग्स की समस्या से किसी न किसी रूप में जुड़े लोगों से मिलना था. चाहे पुलिस अफ़सर, पुनर्वास कार्यकर्ता, डॉक्टर या ड्रग एडिक्ट. हमारे लिए नशे की लत वाला पक्ष समझना ज़रूरी था, क्योंकि हमारी फिल्म में एक किरदार है ड्रग एडिक्ट है. उसका दर्द अौर निकलने की मुश्किलात समझना ज़रूरी था. कई एडिक्ट्स से मिले, रिहैब सेंटर्स गए. हां, हल्का प्रतिरोध आता था जब आप कहते कि ड्रग्स के बारे में पता कर रहे हो.अच्छी चीज ये हुई कि बहुत से एनजीअो वर्कर्स अौर लोग सामने आए अौर उन्होंने खुलकर बात की. एडिक्ट्स ने कहा कि वे कैसे इसमें फंसे, अौर अब निकलना चाहते हैं लेकिन नहीं निकल पा रहे हैं. वो इस बारे में बात करना चाहते थे. एक उम्मीद है जो जाती नहीं है. अौर जब आप एक फिल्मकार,कहानीकार से मिलते हो तो चाहते हो कि मेरी कहानी बाहर आए.
कुछ दिक्कतें भी आईं. कुछ जगह पे भगा दिए गए क्योंकि लोगों को इस बारे में बात नहीं करनी थी. हरियाणा में भी हुआ था जब हम 'एनएच-10' के लिए रिसर्च कर रहे थे. उसकी अब हमें आदत पड़ गई है. अौर स्मग्लर्स का तो ऐसा था कि कुछ लोगों को डींगें हांकने का बड़ा शौक होता है. कुछ को अपने जलवे बताने में बड़ा मज़ा आता है. उनमें एक ट्रिक है जो मैं इस्तेमाल करता हूं, मैं भोंदू बन जाता हूं. आप वहां जाकर के उनके सामने नतमस्तक हो जाएं अौर ये बताएं कि देखो यार, मुझे कुछ नहीं पता है. आपको सब पता है. अौर मैं यहां कुछ एक्सपोज़ करने नहीं आया हूं, मुझे तो कुछ पता ही नहीं है. मैं तो आप से सीखने आया हूं कि आप कैसे करते हैं ये. कैसे होता है ये सब. उसमें लोगों को बड़ा मज़ा आता है. किस्से अपने आप निकलकर सामने आ जाते हैं.
रजत: अच्छी यादें कौन सी रहीं 'उड़ता पंजाब' की शूटिंग के दौरान?
सुदीप: मुझे पंजाबी ज़बान बहुत पसंद थी हमेशा से, पर आती नहीं थी. आती तो अब भी नहीं है, लेकिन अब मैंने उसका साउंड पकड़ लिया है. 'उड़ता पंजाब' के संवाद मैंने पंजाबी में लिखे, मेरी टूटी-फूटी पंजाबी में अौर मेरे दोस्त गुंजित चोपड़ा ने उन्हें ठीक किया. लेकिन गुंजित को सिर्फ़ एक या दो दिन लगे उनका ट्रांसलेशन करने में, याने मैंने खुद ही ठीक-ठाक पंजाबी लिख ली थी. वो बड़ी बात है, कि एक नई भाषा आप सीख पाते हो एक फिल्म के दौरान. It’s like a new skill you have acquired.
इस लंबे इंटरव्यू की दूसरी किस्त आप जल्द पढ़ेंगे दी लल्लनटॉप पर. दूसरी किस्त में बात होगी 'एनएच 10' और स्क्रिप्ट राइटिंग पर.
इसे भी पढ़ें-
पंजाब में तो परांठों में भी नशा मिलाया जाने लगा है