
'कबूतर जा जा जा' गाना ऐसा लोकप्रिय हुआ था कि लोगों की ज़बान पर बरसों तक चढ़ा रहा.
इतिहास
सफ़ेद कबूतर को प्रेम और नए जीवन का प्रतीक माने जाने की बात ग्रीक माइथोलॉजी में बताई जाती है. यही नहीं, ग्रीक लोग ये भी मानते थे कि जैतून की पत्ती शुभ होती है. प्राचीन मेसोपोटामिया (आज का इराक) में सफ़ेद कबूतर देवी इनाना का प्रतीक माने जाते थे. देवी इनाना प्रेम, सेक्शुअलिटी और राजनीतिक ताकत की देवी मानी जाती थीं.
मुंह में जैतून के पत्ते दबाये सफ़ेद कबूतर की ऐसी कई तस्वीरें देखने को मिलती हैं आज भी.ईसाइयों के धर्मग्रन्थ 'बाइबिल' में इसका ज़िक्र मिलता है. कहते हैं कि एक समय ऐसा था, जब दुनिया पूरी जलमग्न हो गई थी. इसे 'बिब्लिकल फ्लड' कहा गया. दुनिया के जलमग्न होने की इस स्थिति को सनातन धर्म की कहानियों में 'महाप्रलय' कहा जाता है. जब सब कुछ डूबने ही वाला था, उसके पहले नोआह नाम का व्यक्ति एक नाव पर दुनिया के सभी जानवरों का एक-एक जोड़ा लेकर चढ़ गया था. इस नाव को 'नोआस आर्क' कहा गया. जब बाढ़ का पानी कम होना शुरू हुआ, तब नोआह ने एक कबूतर उड़ाया. जब वो कबूतर वापस आया, तो उसके मुंह में जैतून का एक पत्ता था. इससे ये माना गया कि बाढ़ अब बाकी जगहों से भी खत्म हो चुकी है और धरती पर जीवन वापस फूट रहा है, नए पौधों के रूप में.
नोआह की नाव के कई प्रतीकात्मक चित्रणों में से एक.इसी तरह जैतून की पत्ती और टहनी को शांति का प्रतीक कई दूसरे देशों में माना जाता है.
पॉपुलर इमेज
(तस्वीर साभार : pablopicasso.org)ये इमेज पाब्लो पिकासो ने बनाई थी. साल 1949 में. पिकासो वही, जिनकी बनाई हुई पेंटिंग्स आज करोड़ों-अरबों कीमत की हैं. इनकी ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, उनके बेहतरीन दोस्त और फ्रेंच आर्टिस्ट हेनरी मटीस ने उनको एक कबूतर की तस्वीर बनाकर दी थी. इसे पाब्लो ने फिर एक बेहद सिंपल रेखांकन में तब्दील कर दिया. इसका नाम रखा गया 'डव ऑफ पीस'. इसे 1949 में पेरिस में हुए पहले अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मलेन के प्रतीक चिह्न के रूप में इस्तेमाल किया गया था.
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