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इम्तियाज अली के कॉलेज इश्क और दीवानगी का किस्सा

कैसेट के कान 2: हिंदू कॉलेज के हॉस्टल में देर रात गाता था इम्तियाज महबूब के लिए , मगर होना कुछ और तय था.

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द बर्थ ऑफ वीनस. इतालवी पेंटर सैंड्रो बॉट्टीसेल्ली की कृति, 1480 फिलहाल इटली के शहर फ्लोरेंस के एक म्यूजियम में. वीनस, धरती की देवी. देह के स्तर पर प्यार को प्रेरित करती. वीनस, स्वर्ग की देवी. दिमाग के स्तर पर प्रेम का दर्शन रचने को प्रेरित करती. इसी का द्वंद्व है इसमें. और शायद इम्तियाज के सिनेमा में भी. जिस्म और रूह के बीच की रौशनी से प्यास को पाता औ निभाता. हर बार एक अलग छोर से.
कैसेट के कान की दूसरी किस्त में हम आपको पढ़वा रहे हैं मशहूर डायरेक्टर इम्तियाज अली के इश्क का किस्सा. हिंदू कॉलेज के दिनों का. जब इम्तियाज बारिश में बरसता था. शेफाली के लिए. कहते हैं कि रॉकस्टार की हीर ने इसी वक्त की हरकतों से जिस्म और रूह पाई थी.
प्रभात रंजन
प्रभात रंजन

दास्तान सुना रहे हैं प्रभात रंजन. इम्तियाज और शेफाली के दोस्त. मेरे भी. और अब तो आपके भी. लिखा पढ़ी का नाता जो बन गया है.
ये कैसेट के कान क्या है. प्रभात रंजन कौन हैं. इसकी पहली किस्त में किसका किस्सा था. कौन सा गाना था. जानने के लिए क्लिक करें.



‘छुपा लो यूँ दिल में प्यार मेरा कि जैसे मंदिर में लौ दिए की...’ दो दिन पहले फिल्म ‘ममता’ का यह गीत अचानक यूट्यूब पर दिख गया. संयोग से यह इस फिल्म और इस गीत का 50 वां साल भी है. बहरहाल, मैंने लिंक को क्लिक कर दिया और गाना बजते ही मैं 1993 के साल में पहुँच गया. हिन्दू कॉलेज हॉस्टल में हमारा आखिरी साल था. उसी साल इम्तियाज़ मुम्बई चला गया था. इम्तियाज़ याद आता है तो ‘इब्तिदा’ याद आता है- महाशय (राकेश रंजन कुमार), तुषार, ठाकुर, मोनो, नीलरतन... सबसे ज्यादा याद आती है शेफाली. शेफाली ‘इब्तेदा’ नाटक ग्रुप के पहले नाटक ‘जाति ही पूछो साधु की’ की नायिका थी, इम्तियाज़ उस नाटक का निर्देशक और नायक था. इब्तेदा ग्रुप के लिए तीन साल में दोनों ने कई नाटक किये. बल्कि कहना चाहिए सबने. तब मैंने दोनों को लेकर एक कहानी लिखी थी ‘पर्दा गिरता है’, जो दोनों को लेकर थी. मेरे लिए जो सबसे यादगार प्रेम कहानियों में एक है. मुझे यह सब वसंत के दिनों में याद आ रहा है तो इसका कुछ सम्बन्ध इस मौसम से नहीं है लेकिन हाँ वह जब गया था तब बरसात का मौसम था और बरसते बरसात के मौसम की कैफियत वही होती है जो इससे बीतते सर्दी के मौसम की होती है. उस दिनों इम्तियाज़ ने यही गीत गाता था. काफी रात हो चुकी थी. बरसात थमने के बाद की ठंडी हवा चल रही थी. हॉस्टल से बाहर हम ग्राउंड की तरफ बढ़ गए थे. महाशय भी था.
ये सच है जीना था पाप तुम बिन ये पाप मैं किया है अब तक मगर है मन में छवि तुम्हारी कि जैसे मंदिर में लौ दिए की...
तब यूट्यूब का ज़माना नहीं था. बाद में मैंने कमला नगर से टी सीरिज का कैसेट खरीदा था, जिसमें ममता के साथ भाभी फिल्म के गाने भी थे.
इम्तियाज अली इश्क करते हुए या कि कहानी को शकल देते. फोटो- फेसबुक
इम्तियाज अली इश्क करते हुए या कि कहानी को शकल देते. फोटो- फेसबुक

अगले दिन इम्तियाज़ ने कहा था कि वह मुंबई जा रहा है. जामिया के एमसीआरसी की लिखित परीक्षा में नहीं आने के कारण वह बहुत दुखी था. मैंने उसे समझाया था कि इस संस्थान से शाहरुख़ खान भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया था. जो एमसीआरसी में नाकामयाब होते हैं वे शाहरुख़ खान बनते हैं. उस साल कॉलेज मैगजीन में मैंने इम्तियाज़ के ऊपर लिखते हुए उसकी तस्वीर लगाकर बस एक कैप्शन लिख दिया था- ‘बॉम्बे 405 माइल्स! वह उसी रात की ट्रेन पकड़कर मुम्बई चला गया था. कभी वापस नहीं आने के लिए. जाने से पहले उसने मुझसे कहा था- शेफाली का ध्यान रखियेगा! शेफाली और मैं उसके जाने के बाद हिन्दू कॉलेज हॉस्टल के कमरा नंबर 39 में अक्सर टू इन वन में वही कैसेट डालकर सुनते थे- तुम अपने चरणों में रख लो मुझको तुम्हारे चरणों का फूल हूँ मैं मैं सर झुकाए खड़ी हूँ प्रीतम कि जैसे मंदिर में लौ दिए की... उसने एक कैसेट और लाकर दिया था मुझे जिसमें एक गीत और था जिसे हम बार बार सुनते थे- ‘नथिंग गौना चेंज माई लव फॉर यू यू ऑट टू नो बाई नाऊ हाउ मच आई लव यू...’
https://www.youtube.com/watch?v=Tr97MQiqW38
अक्सर हम घंटों गाने सुनते रह जाते थे. बिना कुछ बोले. बीच-बीच में हम दोनों एक दूसरे की तरफ देखते थे. उन दिनों शेफाली की आँखों की उस उदासी पर मैंने एक कविता लिखी थी, जो संयोग से मेरी पहली प्रकाशित कविता थी. उन दिनों उसके सुनहरे बाल अक्सर उलझे रहने लगे थे. धूप सा चमकता चेहरा ऐसे बुझा रहने लगा था जैसे ग्रहण लग जाने के बाद सूरज का रंग हो जाता है. हम अक्सर साथ रहते थे और इम्तियाज को याद किया करते थे. उन्हीं दिनों अचानक मेरे जीवन में प्रिया आ गई थी. मैं शेफाली की दुनिया से निकल कर अपनी दुनिया में आ गया था. कुछ दिन बाद शेफाली चली गई थी. जब कई दिनों तक वह नहीं आई, जब फोन लगाने पर भी नहीं उठा तो हमने समझ लिया कि वह नॉर्वे चली गई होगी. उसकी नागरिकता नॉर्वे की थी. कई बार मैं सोचता कि अगर इम्तियाज़ पूछेगा तो मैं क्या जवाब दूंगा. बस सोचता था. ‘लव आजकल’ के बाद एक दिन इम्तियाज़ के साथ काफी समय बिताया था. उस दिन ताज मानसिंह होटल के कमरे में बैठकर हमने देश-विदेश में कई फोन किये थे. हम शेफाली को खोज रहे थे. इम्तियाज को किसी ने बताया था कि उसके साथ अच्छा नहीं हुआ था. उसकी शादी हुई थी, उसकी शादी टूट गई थी. इम्तियाज़ ने तो काफी पहले प्रीति से शादी कर ली थी. लेकिन उस रात भी हमें उसके बारे में किसी से कुछ पता नहीं चल पाया था. इम्तियाज़ ने ‘रॉकस्टार’’ फिल्म बनाई थी. मुझे याद है प्रिया एक दिन अचानक बरसों बाद मिली, बल्कि दशक भर बाद तो बातों बातों में उसने कहा था ‘रॉकस्टार’ देखी. इम्तियाज़ ने शेफाली पर फिल्म बनाई है. मैंने उस रात जाकर वह फिल्म देखी थी. नर्गिस फाखरी बहुत अलग सी दिखने वाली नायिका थी. एकदम शेफाली की तरह. धूप में जिसके बदन की रंगत सुनहरी हो जाती थी. वह भी खरे सोने जैसी चमकती सी. मैंने उस रात मन ही मन यह तय किया था कि मैं भी एक दिन प्रिया पर उपन्यास लिखूंगा! शुक्र है वह शेफाली की तरह खोई नहीं थी. वह बिछड़ गई थी. हम बिछड़ते रहे मिलते रहे. लेकिन शेफाली फिर कभी नहीं मिली. उस दिन जब यह गीत सुना तो इम्तियाज की नहीं, बस शेफाली की याद आई थी, जो हँसती थी तो ऐसा लगता था जैसे बर्फीली चोटी पर धूप चमक गई हो. उतने सुन्दर दांत मैंने किसी के नहीं देखे. मैं जब भी किसी के सुन्दर दांत देखता हूँ मुझे शेफाली की याद आती है. और इम्तियाज़? उस रात जब वह गा रहा था तो फिर हल्की-हल्की बारिश होने लगी थी-
फिर आग बिरहा की मत लगाना कि जल के मैं राख हो चुकी हूँ ये रख माथे पे मैंने रख ली कि जैसे मंदिर में लौ दिए की...
बोल हैं मजरूह सुल्तानपुरी के. संगीत से सजाया है रौशन ने. स्वर हैं हेमंत कुमार और लता मंगेशकर के. फिल्म का नाम है ममता https://www.youtube.com/watch?v=GXgKgZt9Jik

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