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तारिक रहमान अगर प्रधानमंत्री बने, तो क्या भारत-बांग्लादेश के रिश्ते सुधरेंगे?

Tarique Rahman Bangladesh के अगले Prime Minister बनने के प्रबल दावेदार हैं. उनकी पार्टी Sheikh Hasina की मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंदी रही है. ऐसे में सवाल है कि अगर वह प्रधानमंत्री बनते हैं तो India Bangladesh Relations कैसे होंगे?

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तारिक रहमान. (Photo: India Today)

बांग्लादेश एक बार फिर से राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है. अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में शरण लेकर रह रही हैं. उनकी पार्टी आवामी लीग की राजनीतिक गतिविधियों पर बैन लगा दिया गया है. एक साल से भी अधिक समय से अंतरिम सरकार काम-काज देख रही है, लेकिन इस बीच देश में चरमपंथियों की सक्रियता बढ़ी है. हाल ही में कट्टरपंथी नेता उस्मान हादी की मौत के बाद से हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुई हैं. अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों खासकर हिंदुओं को निशाना बनाया गया.

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इन सबके बीच अंतरिम सरकार ने फरवरी 2026 में देश में आम चुनाव कराने की घोषणा की है. अब चूंकि शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकती, इसलिए मुख्य मुकाबला बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और जमात-ए-इस्लामी के बीच माना जा रहा है. जानकारों के मुताबिक बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की स्थिति काफी मजबूत नजर आ रही है और चुनाव में जीतने की वही प्रबल दावेदार है. उसके कार्यवाहक अध्यक्ष और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान यूके में 17 साल निर्वासन बिताने के बाद 25 दिसंबर को वापस देश लौट चुके हैं. अगर BNP आम चुनाव में जीतती है तो वही देश के नए प्रधानमंत्री बन सकते हैं.

भारत के साथ कैसा होगा रिश्ता?

ऐसे में सवाल है कि BNP चुनाव जीतती है और तारिक रहमान प्रधानमंत्री बनते हैं तो बांग्लादेश के साथ भारत के रिश्ते कैसे रहेंगे. मालूम हो कि बांग्लादेश में मौजूदा मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्तों में काफी तनाव आया है. इसकी एक वजह ये भी है कि यूनुस सरकार में कट्टरपंथी इस्लामी समूहों को काफी ताकत मिली है. यह समूह पाकिस्तान के करीब और भारत विरोधी माने जाते हैं. लेकिन अगर आम चुनाव में BNP जीतती है तो क्या हालात में बदलाव होंगे.

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बांग्लादेश की राजनीति को अगर समझने की कोशिश करें तो शेख हसीना और उनकी पार्टी आवामी लीग भारत की सबसे ज्यादा करीबी मानी जाती है. उनके कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं. वहीं तीसरी पार्टी जमात-ए-इस्लामी भारत के खिलाफ और पाकिस्तान की करीबी मानी जाती है. BNP इन दोनों पार्टियों के बीच में कहीं दिखती है, जहां उसका भारत के साथ आवामी लीग जैसा मजबूत रिश्ता नहीं है तो जमात-ए-इस्लामी जैसा तीखा विरोध भी नहीं है.

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शेख हसीना (बाएं), तारिक रहमान (दाएं) (Photo: File/ITG)

हालांकि, तारिक रहमान पर आरोप लगते रहे हैं कि उनका कट्टरपंथी इस्लामी समूहों के साथ जुड़ाव है. BNP ने 2001-2006 के अपने कार्यकाल के दौरान जमात-ए-इस्लामी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. कहा जाता है कि इस गठबंधन के मुख्य सूत्रधार तारिक अहमद ही थे. द वीक की रिपोर्ट के मुताबिक ऐतिहासिक रूप से, रहमान की पार्टी BNP के साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं. लेकिन कट्टरपंथी इस्लामी समूह जमात-ए-इस्लामी, जो 2001-2006 के दौरान सत्ता में रहते हुए BNP का सहयोगी था, अब आने वाले आम चुनावों में उसका मुख्य प्रतिद्वंद्वी है. भारत समर्थक अवामी लीग पर चुनाव लड़ने पर रोक है. ऐसे में नई दिल्ली रहमान के नेतृत्व वाली BNP को एक ज्यादा उदार, भरोसेमंद और लोकतांत्रिक पार्टनर के रूप में देख सकती है.

BNP से रिश्ते सुधारने की कोशिश

हाल के घटनाक्रमों को देखकर लगता है कि भारत ने बीएनपी के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश की है. इसके संकेत तब भी मिले थे, जब हाल में पीएम मोदी ने तारिक रहमान की मां और पूर्व पीएम खालिदा जिया की तबीयत बिगड़ने पर चिंता जताई थी. उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए खालिदा जिया के जल्द स्वस्थ होने की कामना की थी. बीएनपी ने भी पीएम मोदी के संदेश पर आभार जताया था. इंडिया टुडे के मुताबिक ऐसे समय में जब चुनावी पलड़ा बीएनपी के पक्ष में झुका हुआ है, उसके साथ जुड़ाव बढ़ाना भारत के हित में है. इसके अलावा, BNP का जमात के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला, न कि उसके साथ, दिल्ली के लिए अच्छा संकेत है. खालिदा जिया की गंभीर हालत से BNP को काफी सहानुभूति मिलने की भी संभावना है.

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पीएम मोदी ने खालिदा जिया के स्वास्थ्य पर जताई थी चिंता. (Photo: X)

ऑक्सफोर्ड और फ्रैंकफर्ट विश्वविद्यालय में पूर्व फेलो और प्रमुख बांग्लादेशी मीडिया के संपादक रह चुके सुबीर भौमिक इंडिया टुडे के लिए लिखे आर्टिकल में बताते हैं कि 

ऐसा नहीं है कि भारत ने BNP या फिर तारिक अहमद से संपर्क साधने की कोशिश नहीं की. BNP सरकार (2001-2006) के शुरुआती दिनों में, तारिक रहमान ने भारत का दौरा किया था. उस दौरान उन्होंने कई टॉप राजनीतिक नेताओं और यहां तक ​​कि इंटेलिजेंस अधिकारियों से भी मुलाकात की थी. कहा जाता है कि 2009 के बाद लंदन में रहने के दौरान भी उन्होंने एक सीनियर भारतीय इंटेलिजेंस अधिकारी के साथ रेगुलर संपर्क बनाए रखा, जो पहले बांग्लादेश में तैनात थे. 2014 में BJP के सत्ता में आने के बाद BNP नेताओं के भारत के कुछ दौरे इसी संपर्क के जरिए हुए थे.

भारत की चिंताएं

तारिक अहमद को लेकर भारत की कुछ चिंताएं भी हैं. सुबीर लिखते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने BNP से संपर्क करने की कोशिश की थी, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने अपना पूरा भरोसा हसीना सरकार पर रखने का फैसला किया था. इसलिए तारिक की भारत के साथ दोस्ती करने की कोशिशें असल में काम नहीं आईं. माना जाता है कि भारत से जुड़ने की ये कोशिशें नाकाम होने के बाद ही उन्होंने भारतीय सामानों के बहिष्कार के लिए 'इंडिया आउट' कैंपेन शुरू किया था. इसके अलावा तारिक अहमद के हाल के भाषणों और इंटरव्यू पर गौर करें तो पता चलता है कि वह भारत से ज्यादा खुश नहीं हैं.

तारिक रहमान और 'हवा भवन' का काला अतीत... भारत विरोधी छवि से बाहर निकल  पाएंगे Dark Prince? - Tarique Rahman Dark Prince return Bangladesh dhaka  Hawa Bhaban past BNP ntc - AajTak
तारिक रहमान 25 दिसंबर को बांग्लादेश वापस लौट चुके हैं. (Photo: PTI)

तारिक के मुताबिक वह न तो भारत के करीब जाना चाहते हैं और न ही पाकिस्तान के. उन्होंने बांग्लादेश फर्स्ट की नीति अपनाने का संकेत दिया है. इसके अलावा वह भारत-बांग्लादेश के बीच हुए तीस्ता जल समझौते को लेकर भी चिंता जता चुके हैं. उन्हें लगता है कि यह समझौता न्यायपूर्ण नहीं है और बांग्लादेश को उसका उचित हिस्सा नहीं मिल रहा है. तारिक ने मई 2025 में बीएनपी की एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था,

न दिल्ली, न पिंडी (पाकिस्तान), न कोई और देश, पहले बांग्लादेश.

इसके अलावा उन्होंने साल की शुरुआत में बीबीसी बांग्ला को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि 

बांग्लादेश सबसे पहले आता है. मैं सबसे पहले अपने देश के लोगों के हितों और अपने राष्ट्र के हितों को प्राथमिकता दूंगा. जब उनसे पूछा गया कि बांग्लादेश के भारत के साथ संबंध कैसे होने चाहिए, तो उन्होंने कहा, "बेशक, मुझे पानी में मेरा हिस्सा चाहिए. बेशक, मैं एक और फेलानी को लटका हुआ नहीं देखना चाहता. बेशक, हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे." 

यहां वह 15 वर्षीय बांग्लादेशी लड़की फेलानी खातून का जिक्र कर रहे थे, जिसे 2011 में भारत-बांग्लादेश सीमा पार करते समय मार दिया गया था. रहमान ने इंटरव्यू में कहा था,

हमें पानी में हमारा हिस्सा चाहिए. इसका मतलब है कि मुझे अपने देश का हिस्सा, अपने लोगों का हिस्सा चाहिए, मुझे जवाबदेही चाहिए. जो मेरा हक है, मुझे वह चाहिए. बेशक, फेलानी हत्याकांड की घटना से मेरा मतलब यह कहना था कि अगर मेरे लोगों पर हमला होता है, तो मैं निश्चित रूप से ऐसे हमले को स्वीकार नहीं करूंगा.

रहमान से पूछा गया कि क्या BNP सरकार भारत के साथ संबंधों को सुधारने की कोशिश करेगी. इस पर वह कहते हैं,

अगर वे अब किसी तानाशाह को पनाह देना चुनते हैं और इस तरह बांग्लादेश के लोगों की नाराज़गी मोल लेते हैं, तो हम इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते. बांग्लादेश के लोगों ने तय किया है कि संबंध ठंडे रहेंगे. इसलिए, मुझे अपने देश के लोगों के साथ खड़ा होना होगा.

यह भी पढ़ें- कौन हैं 17 साल 'देश निकाला' के बाद बांग्लादेश लौटे तारिक रहमान, जो PM पद के तगड़े दावेदार हैं?

इसके अलावा सुबीर भौमिक बताते हैं कि भारतीय खुफिया समुदाय तारिक अहमद के कथित ISI और पाकिस्तानी संबंधों को लेकर भी चिंतित है. एक रिटायर्ड खुफिया अधिकारी ने उन्हें बताया कि तारिक ने लंदन में ISI स्टेशन प्रमुखों के साथ नियमित मुलाकातें की थीं. खालिदा जिया भी कई मौकों पर लंदन में पाकिस्तान हाई कमीशन गईं. अधिकारी ने आतंकी दाऊद इब्राहिम के साथ तारिक की गुप्त मुलाकात का भी ज़िक्र किया. हालांकि सुबीर कहते हैं कि वह इन फैक्ट्स की स्वतंत्र रूप से वेरिफाई नहीं कर सके. लेकन वह यह भी कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि कई सीनियर इंटेलिजेंस अधिकारी तारिक को भारत के लिए दुश्मन मानते हैं. ऐसे में इसका कोई सीधा उत्तर नहीं मिलता कि अगर तारिक बांग्लादेश की सत्ता में आते हैं तो भारत के लिए यह कैसा होगा. लेकिन वर्तमान हालातों से बेहतर की उम्मीद की जा सकती है. तब भारत का रुख क्या होगा, काफी हद तक उस पर भी निर्भर करेगा.

वीडियो: दुनियादारी: बांग्लादेश में तारिक रहमान की हुई एंट्री, अपनी स्पीच में भारत पर क्या कह दिया?

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