लोकसभा में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के भाषण का कुछ हिस्सा कार्यवाही से हटा दिया गया है. मतलब ये कि आज से 100 साल बाद अगर कोई इंसान संसद (Parliament) की कार्यवाही को पढ़ेगा, तो उसे राहुल गांधी को वो पूरा भाषण नहीं मिलेगा जो हमने और आपने 7 फरवरी, 2023 को टीवी और अपने मोबाइल पर देखा था. मीडिया भी संसद की कार्यवाही से हटाए गए भाषण के हिस्से को रिपोर्ट नहीं कर सकती है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी भाषण के किसी हिस्से को संसद की कार्यवाही से हटाया गया हो. ये एक नियमित प्रक्रिया है. आइए जानते हैं कि कब, क्यों और कैसे किसी भाषण के हिस्से को संसद की कार्यवाही से हटाया जाता है और इंटरनेट के इस युग में संसद की कार्यवाही से किसी भाषण को हटाने का क्या सच में कोई फायदा है?
संसद में कैसे काटे जाते हैं सांसदों के भाषण, कौन लेता है आखिरी फैसला?
राहुल गांधी के भाषण के कुछ हिस्से को लोकसभा की कार्यवाही से हटा दिया गया.
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भारत में चुने हुए प्रतिनिधि संसद पहुंचते हैं. संविधान ने इन सांसदों को एक ताकत दी है. एक सांसद संसद में किसी के खिलाफ कोई भी टिप्पणी कर सकता है, चाहे वो देश का प्रधानमंत्री ही क्यों न हो. संविधान के ARTICLE 105 (2) के मुताबिक संसद में दिए किसी भी बयान के लिए सांसद पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है.
सोचिए एक सांसद के पास अपनी बात रखने के लिए कितनी ज्यादा आजादी होती है. लेकिन इस आजादी में एक अनुशासन भी है. सांसदों को इस बात का ध्यान रखना होता है कि वो उन शब्दों या भाषा का इस्तेमाल न करें जो असंसदीय यानी Unparliamentary हो.
लोक सभा की प्रक्रिया और कार्य-संचालन के नियमों की एक लिस्ट है. नियम नंबर 380 के मुताबिक अगर लोकसभा स्पीकर की ये राय है कि वाद-विवाद में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जो मानहानिकारक या अशोभनीय या असंसदीय या फिर अभद्र हैं, तो स्पीकर अपने विवेक का इस्तेमाल कर यह आदेश दे सकते हैं कि ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही से निकाल दिया जाए.
सालों से ऐसे कई असंसदीय शब्द, चाहे वो हिंदी के हो, अंग्रेजी के हो या फिर किसी अन्य भारतीय भाषा के हो. इन शब्दों की एक लिस्ट बनाई जा रही है. हाल ही में असंसदीय शब्दों की लिस्ट को अपडेट किया गया था.
पिछले साल मॉनसून सत्र में लोकसभा सचिवालय ने ऐसे शब्दों और वाक्यों की सूची जारी की थी.
इनमें से कुछ हिंदी शब्द थे-

-तानाशाह
-तानाशाही
-जुमलाजीवी
-तड़ीपार
-बहरी सरकार
-दंगा
-विनाश पुरुष
-काला दिन
-अहंकार
-ख़ालिस्तानी
-अंट-शंट
-नौटंकी
-निकम्मा
-उचक्के
-गुलछर्रा
-गुंडागर्दी
-दादागिरी
-जयचंद
-शकुनि

जबकि कुछ हिंदी मुहावरों को भी असंसदीय श्रेणी में रखा गया था.

-ख़ून से खेती
-ढिंढोरा पीटना
-उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
-कांव-कांव करना
-गुल खिलाना
-गुंडों की सरकार और
-चोर-चोर मौसेरे भाई

अंग्रेजी के भी कुछ शब्द असंसदीय शब्दों की सूची में शामिल किए गए थे
-करप्ट
-अब्यूज़्ड
-ब्रिट्रेड
-ड्रामा
-हिपोक्रेसी
-इनकॉम्पिटेंट
-कोविड स्प्रेडर
-स्नूपगेट
मतलब ये कि अगर इन शब्दों या इन मुहावरों का इस्तेमाल संसद में किया गया तो उसे सदन के रिकॉर्ड से हटा दिया जाएगा.
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य के मुताबिक सदन में मौजूद कोई भी सांसद स्पीकर को ये ध्यान दिला सकता है कि अमुक सांसद ने असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल किया है. ऐसी प्रथा चली आ रही है कि स्पीकर भाषण के हिस्से को हटाने से पहले संबंधित सांसद को इस बात की जानकारी भी देते हैं. ये पूरी प्रक्रिया इसलिए की जाती है ताकि संसद की मर्यादा बनाई रखी जा सके.
नियम लागू करने में दिक्कतएक बार अगर स्पीकर ने भाषण के किसी हिस्से का अमर्यादित मान लिया तो उस बयान के सारे रिकॉर्ड सदन की कार्यवाही से हटा दिए जाते हैं. भाषण के उस हिस्से को मीडिया न रिपोर्ट कर सकती है और न ही कोई उस बयान को QUOTE कर सकता है. अगर किसी ने ऐसा किया तो उसके खिलाफ कार्रवाई का भी प्रावधान है.
लेकिन आज इंटरनेट के इस युग में भाषण के असंसदीय हिस्से तेजी से शेयर हो रहे हैं. यूट्यूब से लेकर ट्विटर तक आपको वो सारे बयान आसानी से मिल जाएंगे, जिन्हें संसद के रिकॉर्ड में रखने लायक नहीं माना गया है.
और इसलिए इस नियम को ठीक से लागू कर पाने में इंटरनेट और सोशल मीडिया एक चुनौती के रूप में उभरा है.
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य बताते हैं कि इतनी सख्ती से इस नियम को लागू नहीं किया जा सकता. कितने लोगों के खिलाफ कार्रवाई होगी? हर किसी के पास ये जानकारी भी नहीं होती कि स्पीकर ने भाषण के किस हिस्से को अससंसदीय माना है. ऐसे में किसी को दोषी बताना भी कितना सही है?
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