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अच्छे जीवनसाथी के लिए सिर्फ औरतें व्रत करें, क्योंकि मर्द तो पहले से अच्छे होते हैं

आज हरतालिका तीज है. औरतें 30 घंटे भूखी रहने वाली हैं.

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'बहुतै नीक अदमी मिला है बिटिया का. सोने के गौर पूजिस होई.'

'अरे, थोड़ा पूजा-पाठ कर लिया करो, संकर जी का जल चढ़ा दिया करो, तभै तो सुंदर पति मिली.'

'तुम्हार पति तो संकर भगवान हैं, एकदम भोलेबाबा.'

कई त्योहारों की तरह आज भी कई लड़कियों के पास अच्छा पति पाने का मौका है. आज कजरी यानी हरतालिका तीज है. इस दिन कुंवारी लड़कियां अच्छे पति के लिए, सुहागन अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत करती हैं. और हां विधवा को भी ये व्रत करने की खास 'छूट' दी जाती है. इन शॉर्ट, सारी औरतें इस दिन व्रत कर सकती है. कोई भेदभाव नहीं.
आज भी सारी बातें इस बात पर टिकी होती हैं कि पति कैसा मिले. कितना ज़रूरी है एक लड़की की ज़िंदगी में अच्छे पति का होना. कोई ऐसी भी कथा होती कि किसी मर्द ने व्रत किया हो. लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है. हमारे यहां तो 'अच्छा' होना सिर्फ लड़कियों का काम है क्योंकि मर्द तो पहले से अच्छे ही होते हैं.

क्या है ये व्रत

हरतालिका व्रत हिंदी कैलेंडर के भादों महीने में पड़ता है. जो अमूमन अगस्त में आता है. महीने के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन पड़ता है. इसीलिए इसको 'तीज' कहते हैं. मनचाहा पति पाने और 'अखंड सौभाग्यवती' होने के लिए औरतें लगभग 30 घंटे तक बिना कुछ खाए-पिए रहती हैं. इस बीच पूजा-पाठ भी करना होता है. मेहंदी के साथ सोलह श्रृंगार करना होता है. हर पहर यानी हर तीन घंटे पर शिव जी की आरती-पूजा होती है. रात भर जागरण और कीर्तन होता है. सोना मना होता है. फिर से नहा-धोकर, पूजा करने के बाद आप कुछ खा-पी सकते हैं. मतलब इतने पाप काहे किए थे लड़कियों, जो एक अदद अच्छे पति के लिए इतनी मशक्कत करनी पड़ रही है.
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पार्वती जी ने शिव की आराधना की.

पार्वती जी से शुरू हुआ

हरतालिका माने, हरित और तालिका. हरित का मतलब है हरण करना और तालिका यानी दोस्त. मां पार्वती की दोस्त उन्हें पिता के घर से हरण कर जंगल में ले गई थी. अब कहानी सुनो.
पार्वती जी को चाहिए थे भगवान शिव. वो हिमालय पर तपस्या करने चली गईं. तपस्या में खाया-पिया तो जाता नहीं. उनके मम्मी-पापा इससे बहुत दुखी थे. तभी एक दिन नारद जी भगवान विष्णु का रिश्ता लेकर पार्वती के पापा के पास पहुंच गए. पापा ने जब बिटिया को ये बताया तो वो रोने लगीं. अपनी दोस्त को बताया. दोस्त पार्वती को घने जंगल में ले गई और वहां पार्वती ने एक गुफा में भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी.
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उन्होंने रेत से शिवलिंग बनाया. भोलेनाथ को याद करते हुए रात भर जगीं. ख़ुश होकर भगवान शिव आ गए. और पार्वती को अपनी बेटर हाफ बना लिया. इसी कहानी को याद कर-कर के अब महिलाएं कजरी तीज का व्रत करती हैं. कई जगह इस दिन मेहंदी लगाने और झूला झूलने का भी रिवाज़ है.

एक बार शुरू किया व्रत तो छोड़ नहीं सकते

अगर एक बार ये व्रत चालू कर दिया तो फिर ज़िन्दगी भर इसे करना पड़ेगा. अगर औरत बहुत ज़्यादा बीमार है तो उसके बदले उसका पति भी व्रत रख सकता है. हालांकि ऐसा कोई मामला तो दिखता नहीं. ये भी मानना है कि हरतालिका व्रत को पूरा करने से उसके सौभाग्य की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं. सोचो, शिव जी कैलाश पर रजिस्टर लेकर बैठे होंगे. अच्छा, फलानी लड़की ने व्रत किया. इसके पति को मैं देखूंगा. अच्छा, इसने तो गलती कर दी, इसके पति को कोई और देख ले.
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सुपर पावर नहीं हैं हम यार

पहली बात तो मेरी समझ नहीं आता कि ऐसे सारे व्रतों का ठीकरा औरतों पर क्यों फूटा है. मतलब करवा चौथ, कजरी तीज, सकट, हलछठ और न जाने कौन-कौन से. मर्दों की लाइफ-लाइन इत्ती छोटी क्यों होती है कि उसे बढ़ाने के लिए औरतों को भूखा रहना पड़े?
हमारे देश की औरतें वैसे भी बहुत 'तंदरुस्त' हैं. 45 की उम्र पार करते-करते आधी से ज़्यादा की कमर बोल जाती है. लगभग 60 फीसदी औरतें एनीमिया की शिकार हैं. न्यूट्रिशियन लेती नहीं हैं. सबके खाने के बाद जो बच जाता है उसी में डिनर निपट जाता है. अब अपने लिए दो रोटी कौन सेंकने जाए. उसपर भी महीने में 3-4 व्रत निकल आते हैं.
रही बात कजरी तीज की. तो शिव खुद अर्धनारीश्वर हैं. यानी स्त्री-पुरुष की बराबरी का सिम्बल. तो नारी ही अकेली हमेशा भूखी क्यों रहे. और वो भी पति पाने के लिए. क्या औरत का एकमात्र मकसद यही है? ऐसी कितनी ही परंपराओं को ढोया जा रहा है. परंपराओं को आगे ले जाना बुरा नहीं है लेकिन उनकी तार्किकता भी तो होनी चाहिए. मॉडर्न लड़कियां भी इसे लव यानी प्यार का स्टैम्प समझती हैं. सजने-संवरने को इतना ग्लैमराइज़ कर दिया गया है कि इसमें भी वो मजे ढूंढ लेती हैं. व्रत करना या न करना ये सबकी अपनी मर्जी है लेकिन सेहत से ऐसा खिलवाड़, हमको तो नहीं जमता.


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ये बिलैती कांवड़िये भला क्या समझें हमारे शिव जी को!