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जब महिला आरक्षण के विरोध में बिल की कॉपी फाड़ दी गई!

साल 2010 का वो क़िस्सा, जब समाजवादी पार्टी के सांसद नंद किशोर यादव और कमाल अख़्तर चेयरमैन हामिद अंसारी की टेबल पर चढ़ गए और माइक उखाड़ने की कोशिश की थी. और, RJD के राजनीति प्रसाद ने बिल की कॉपी फाड़कर चेयरमैन की तरफ़ उछाल दी.

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(तस्वीर - डीडी न्यूज़ आर्काइव)

महिला आरक्षण का विधायी इतिहास भरपूर ड्रामा से भरा हुआ है. 27 बरस पहले, 1996 के सितंबर में देवेगौड़ा सरकार के इसे संसद में पेश करने से लेकर आज नरेंद्र मोदी सरकार तक. इस दौरान लगभग हर सरकार ने इस क़ानून पर अपना हाथ आज़माया ही है. यूपीए सरकार ने तो 2010 में इसे राज्यसभा में पारित भी करा लिया था, लेकिन लोकसभा में बिल पेश नहीं हो पाया था.

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13 पार्टियों के गठबंधन यूनाइटेड फ़्रंट सरकार ने पहली दफ़े बिल पेश किया था. वाजपेई सरकार ने दो बार और फिर यूपीए ने भी दो बार. दूसरी बार का एक क़िस्सा जानिए.

इंडियन एक्सप्रेस के मनोज सी जी की रिपोर्ट के मुताबिक़, 14 साल लटकने के बाद बिल के क़ानून बनने का रास्ता साफ़ हुआ था. दरअसल, यूपीए गठबंधन का एक बड़ा सहयोगी था: राष्ट्रीय जनता दल. उनकी बिल से सहमति नहीं थी. इसीलिए यूपीए बहुत धक्का नहीं लगा पाती थी. अब राजद यूपीए सरकार 2.0 का हिस्सा नहीं थी. राजद और सपा ने यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दिया हुआ था. और, तब नीतीश कुमार अपनी पार्टी लाइन से पलट गए. विधेयक का समर्थन किया. इस वजह से शरद यादव जैसे पार्टी क़द्दावर खिसियाए भी.

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8 मार्च, 2010. राज्यसभा में नाटकीय अराजकता देखने को मिली. बहस चल रही थी. सपा के नंद किशोर यादव और कमाल अख़्तर तत्कालीन सभापति हामिद अंसारी की मेज पर चढ़ गए. नंद किशोर ने माइक्रोफ़ोन उखाड़ दिया. और उसी समय, राजद के राजनीति प्रसाद ने विधेयक की एक कॉपी फाड़ कर सभापति की कुर्सी की ओर नचा दी.

सपा के वीरपाल सिंह यादव, लोक जनशक्ति पार्टी के साबिर अली, राजद के सुभाष यादव और निर्दलीय एजाज अली ने भी चर्चा में ख़लल डालने की कोशिश की थी. इसीलिए इन सातों सांसदों को अनियंत्रित आचरण के लिए निलंबित कर दिया गया था. 

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इस अराजकता और भारी चर्चा के एक दिन बाद ही - 9 मार्च को - बिल राज्यसभा से पास हो गया. दो-तिहाई बहुमत के साथ. दोनों, भाजपा और वामपंथी पार्टियों ने बिल को समर्थन दिया. हालांकि, यूपीए सरकार ने भाजपा और वाम दलों के समर्थन के बावजूद विधेयक को लोकसभा में पारित कराने की राजनीतिक मंशा नहीं दिखाई.

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वैसे इस बिल के फाड़े जाने का इतिहास पुराना है. एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, पहली बार जुलाई 1998 में लोकसभा में ये बिल फाड़ा गया था. तब लोकसभा में ड्रामा दिखा था. जैसे ही तत्कालीन क़ानून मंत्री एम थंबी दुरई ने विधेयक पेश करने की कोशिश की, राजद और सपा सांसद विरोध करने लगे. हंगामे के बीच, एक राजद के ही सांसद - सुरेंद्र प्रसाद यादव - ने अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी से विधेयक की कॉपी छीनी और उन्हें फाड़ दिया. सुरेंद्र यादव अब बिहार सरकार में मंत्री है. उन्होंने हाल ही में बताया भी था कि आम्बेडकर उनके सपने में आए थे और उनसे ऐसा करने के लिए कहा था.

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