इस नवंबर को नानक देव की 550वीं जयंती मनेगी. इसी गुरुपर्व के बैकग्राउंड में पंजाब पॉलिटिक्स के अंदर तलवारें निकल गई हैं. फोकस में है करतारपुर कॉरिडोर. कुछ दिन पहले पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान की ताजपोशी हुई. वो क्रिकेटर थे. दोस्ती-दोस्ती में उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू को न्योता भेजा. वहां से लौटने के बाद 7 सितंबर को सिद्धू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई. वहां इमरान खान को थैंक्यु बोलते हुए कहा कि गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के मौके पर पाकिस्तान करतारपुर से लगी सीमा खोलने वाला है. जब सिद्धू से पूछा गया कि उन्हें कैसे पता चला, तो उन्होंने भारत के एक पत्रकार का नाम लिया. कहा, फलां ने इस खबर की पुष्टि की है.

सिद्धू का चेहरा दिख रहा है. जिसके साथ वो गले मिल रहे हैं, वो हैं पाकिस्तान के आर्मी चीफ क़मर जावेद बाजवा. बाजवा के साथ गले मिलने पर भारत में कई लोगों ने सिद्धू की बहुत थू-थू की. मानो गले मिलना अपराध हो (फोटो: ANI)
पाकिस्तान न राजी हुआ है, न उसने वादा किया है ये कहते वक्त सिद्धू जता रहे थे कि पाकिस्तान में उनकी की गई कोशिशों का फल है ये फैसला. सिद्धू ने तो ऐलान कर दिया था, मगर दिक्कत ये थी कि पाकिस्तान की तरफ से ऐसी कोई खबर नहीं आई थी. न कोई ऐलान हुआ, न कोई वादा आया. लोगों ने कहा कि सिद्धू इमोशन पर राजनीति कर रहे हैं. किसी ने कहा, वो बिना किसी पुख्ता जानकारी के इस बात का ऐलान कर सिखों को आहत कर रहे हैं. सिद्धू की खूब छीछालेदर हुई. वो फिर भी गोल-मोल बातें करते रहे. अब भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की लिखी एक चिट्ठी आई है. इसके मुताबिक, भारत सरकार करतारपुर कॉरिडोर का ये मुद्दा तो लंबे समय से उठा रही है. मगर अब तक पाकिस्तान इसके लिए रजामंद नहीं हुआ है. न ही कॉरिडोर खोले जाने के बारे में पाकिस्तान ने भारत को कुछ बताया है. विदेश राज्यमंत्री वी के सिंह ने भी यही बात कही. कहा कि दोनों देशों के बीच बहुत पहले से ये बातचीत हो रही है. अगर कुछ भी ठोस निकलकर आएगा, तो जानकारी दी जाएगी. यानी, सिद्धू का वो ऐलान कि पाकिस्तान ये कॉरिडोर खोलने जा रहा है, गलत है.

हरसिमत कौर ने ट्वीट किया कि सुषमा स्वराज ने सिद्धू को खरी-खोटी सुनाई है. सिद्धू को डांट पड़ी कि नहीं, मालूम नहीं. हां, वो सुषमा से मिले तो थे. ये हरसिमत को भेजी गई सुषमा की चिट्ठी पढ़िए (फोटो: The Lallantop)
पंजाब में कोई पार्टी नहीं चाहती कि कोई दूसरा ये क्रेडिट ले सिद्धू के बयान के बाद पंजाब में ये बात काफी उछल गई है. उनके ऊपर सिखों की भावनाओं से खेलने के आरोप लग रहे हैं. असल में करतारपुर गुरुद्वारे का पंजाब और खासतौर पर सिखों के लिए बहुत भावुक मुद्दा है. अभी वहां कांग्रेस की सरकार है. अकाली दल और बीजेपी विपक्ष में हैं. अकाली दल किसी भी कीमत पर नहीं चाहेगी कि कॉरिडोर खुलवाने की वाहवाही कांग्रेस को मिले. उधर खुद कैप्टन अमरिंदर सिंह ये नहीं चाहेंगे कि सिद्धू किसी भी सूरत में कॉरिडोर खुलवाने का श्रेय ले सकें. और सवाल रहा सिद्धू का, तो वो पाकिस्तान दौरे के समय से ही यूं जता रहे हैं कि वहां जाने का उनका असली मकसद पाकिस्तान सरकार को ये कॉरिडोर शुरू करने को राजी करना था. पाकिस्तान दौरे के लिए उनके विरोधियों ने उन्हें खूब आड़े हाथों लिया था. फिर पाकिस्तान के आर्मी चीफ क़मर जावेद बाजवा से गले मिलने पर भी उनके खूब कान उमेठे गए. सिद्धू करतारपुर कॉरिडोर शुरू करवाने का क्रेडिट लेकर सारा हिसाब चुकता कर लेने की कोशिश में हैं. सुषमा स्वराज से मुलाकात के बाद भी उन्होंने ऐसा ही कुछ कहा. बोले- भारत को चाहिए कि वो कॉरिडोर खोलने के लिए पाकिस्तान को निवेदन भेजे. वो बड़ी होशियारी से ये भी जता रहे हैं मानो पाकिस्तान तो कॉरिडोर खोलने को तैयार बैठा है, लेकिन भारत सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी है.

सिख लोग अक्सर सीमा के इस पार आकर गुरुद्वारा करतारपुर साहिब की तरफ मुंह करके खड़े होते हैं. इसी पार से वो गुरुद्वारे के दर्शन कर लेते हैं (फोटो: सिखफाउंडेशन.ओआरजी)
करतारपुर की कहानी आस्था और इतिहास, दोनों के लिहाज से करतारपुर बहुत अहमियत रखता है. जब भारत का बंटवारा हुआ, तो पाकिस्तान की तरफ रहने वाले लाखों सिख हिंदुस्तान भाग आए. कई हजार मारे भी गए. उस समय ये गुरुद्वारा वीराना हो गया. कहते हैं यहां स्मगलर्स ने अपना अड्डा जमा लिया. वो स्मगलिंग का सामान रखने के लिए गुरुद्वारा इस्तेमाल करते. बंटवारे के बाद कई सालों तक ये जगह उजाड़ रही. मगर उस दौर में भी गुरु नानक के कुछ मुसलमान भक्त वक्त-वक्त पर यहां दर्शन के लिए आते रहे. कहते हैं कि जब नानक गुजरे, तो उनकी लाश गायब हो गई. वहां लाश की जगह कुछ फूल पड़े मिले. आधे फूल सिख ले गए. उन्होंने हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक फूल को जलाकर नानक का अंतिम संस्कार कर दिया और उस जगह के ऊपर समाधि बना दी. मुसलमानों ने अपने हिस्से में आए आधे फूलों को दफनाकर इस्लामिक दस्तूरें निभा लीं. करतापुर गुरुद्वारा में वो समाधि और वो कब्र अब भी मौजूद हैं. कब्र बाहर आंगन में. समाधि इमारत के अंदर. इतने सालों बाद भी मुसलमान नानक की दर पर आते हैं. जहां सिखों के लिए नानक उनके गुरु हैं, वहीं मुसलमानों के लिए नानक उनके पीर हैं.
एक अलग पाकिस्तान अभी जो गुरुद्वारे की इमारत है, वो नई है. 2001 में बनाई गई थी. बंटवारे के बाद पहली बार तभी यहां लंगर बंटा था. पुरानी इमारत, जिसे गुरु नानक देव ने बनवाया था वो एक बार बाढ़ में बर्बाद हो गई थी. अगर दुनिया में मजहब के ऊपर हो रहा खून-खराबा देखकर आपका दिल नाउम्मीद हो गया हो, उस सूरत में भी ये जगह बड़ी मिसाल है. आस-पास के गांवों के मुसलमान गुरुद्वारे के लंगर के वास्ते चंदा देते हैं. जिन चूल्हों पर लंगर पकता है, उसके लिए लगने वाली लकड़ियां पाकिस्तानी सेना देती है. नानक जब जीते थे, तब इंसानों के मिलकर रहने की बात करते थे. जहां एक बंदा दूसरे को बंदा समझे. लोग अपना जाति-धर्म भूलकर साथ मिलें, साथ खाएं. जिस पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ बदसलूकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हो. जहां सरकार अडवाइजरी काउंसिल में एक अहमदिया (मियां आतिफ) को लेती है और मुल्क में बवाल मच जाता है. इतना हंगामा होता है कि सरकार आतिफ मियां को काउंसिल से निकाल फेंकती है. बस इसलिए कि वो अहमदिया हैं. जिस पाकिस्तान में ये सब होता हो, वहां ऐसा एका हैरत की ही बात है. मगर जो है, सो है.

सिद्धू करतारपुर के दर्शन करते हुए
लोग दूरबीन पर आंख लगाकर दर्शन कर लेते हैं गुरुद्वारे के बाहर एक बम पड़ा है. कहते हैं कि 1965 की लड़ाई में आसमान के रास्ते ये यहां गिरा. मगर फूटा नहीं. इस बम को अब चबूतरे में मढ़कर रख दिया गया है. पास में एक तख्ती लगी है. इसके ऊपर लिखा है- वाहे गुरु जी का चमत्कार. भारत की तरफ के सिख सरहद के इस पार जमा होकर गुरुद्वारे की तरफ देखते हैं. यहीं से गुरु का नाम लेकर सिर टेक लेते हैं. इनकी सहूलियत के लिए BSF ने सीमा पर एक दर्शन स्थल बना दिया है. वहां एक दूरबीन लगा हुआ है. ताकि लोग दूर से ही गुरुद्वारा साहिब के दर्शन कर सकें. यहां पहुंचकर सिख गुरुद्वारे की तरफ मुंह करते हैं. दूरबीन से गुरुद्वारा साहिब देखते हैं. प्रार्थना करते हैं. बीच की सरहद न तो उनकी आस्था रोक पाती है, न उनकी आंखें. बाकी सबका तो वीज़ा लगता है.
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