भारत में जब भी थियेटर का नाम लिया जाएगा, उसमें इब्राहिम अलकाज़ी साहब का नाम अगली पंक्ति में शुमार होगा. थियेटर की कला को एक नया चोला पहनाने वाले इब्राहिम अलकाज़ी अपने जीते-जी एक लीजेंड बन गए थे. दिल्ली ही नहीं, भारत में कहीं भी थियेटर सीख रहा व्यक्ति एक बार अलकाज़ी साहब के साथ काम ज़रूर करना चाहता था.
जब छुप-छुपकर टीवी शूट्स के लिए जाया करते थे NSD वाले!
हिमानी शिवपुरी का आज जन्मदिन है.


इन्हीं लोगों में से एक थीं हिमानी शिवपुरी. इनको आपने ‘हम आपके हैं कौन’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ जैसी फिल्मों में देखा होगा. साल 1982 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से ग्रेजुएट हुईं हिमानी जब तक NSD में आईं, तब तक अलकाज़ी साहब इस्तीफ़ा दे चुके थे. साल 1977 में ही. लेकिन ग्रेजुएशन के बाद भी हिमानी ने NSD की रिपर्टरी में एक साल काम किया. इब्राहिम अलकाज़ी के साथ उनकी यादें उन्होंने ‘दी लल्लनटॉप’ के साथ साझा कीं. अपने थियेटर के दिन याद किए. सुनाये कुछ ऐसे किस्से जो इब्राहिम अलकाज़ी साहब और थियेटर से जुड़े थे. आप यहां पढ़ सकते हैं:
जब मैंने NSD जॉइन किया था, तब तक इब्राहिम अलकाज़ी साहब लीजेंड बन चुके थे. हम लोग उनके स्टूडेंट्स को देखते थे. जैसे मनोहर सिंह, सुरेखा सीकरी इत्यादि इनके स्टूडेंट्स थे. ये लोग हमारे लिए भगवान होते थे. जब मैं NSD का इंटरव्यू देने के लिए दिल्ली आई थी, तब अलकाज़ी साहब का डायरेक्ट किया हुआ प्ले चल रहा था. मुझे याद है टिकट भी नहीं मिला था. मैं सिर्फ दरवाज़े पर खड़ी होकर हॉल के अंदर झांक रही थी. अलकाज़ी साहब का प्रभाव इतना था कि उनके स्टूडेंट्स भी उनके जैसे हो गए थे. जैसे आप नसीर साहब को देखेंगे, तो आपको अलकाज़ी साहब जैसी ही झलक नज़र आएगी.
अलकाज़ी साहब बड़े पाबंद व्यक्ति थे. डिसिप्लिन बहुत तगड़ा. जहां रिपर्टरी थी, रबिन्द्र भवन के तीसरे माले पर. वहां हम सब लिफ्ट में जाते थे. लेकिन अलकाज़ी साहब सीढ़ियों से जाते थे. उनको देख हमें इतनी शर्म आई कि हमने भी लिफ्ट से जाना शुरू कर दिया. हम तो नए-नए चूजे थे. मनोहर सिंह तुग़लक नाटक कर रहे थे. सुरेखा सीकरी उसमें सौतेली मां का रोल निभा रही थीं. मैं और नूतन सूर्या उनकी अटेंडेंट बने थे. हम बस उनके पीछे-पीछे स्टेज पर जाते थे. और जब वो इशारा करतीं तो हम सिर झुका कर वापस आ जाते थे. अलकाज़ी साहब इतने ब्रिलियंट टीचर थे, हमारे लिए भी बेहद स्वीट थे वो. सबको ऐसा फील कराते थे कि इतनी ज़रूरत है सबकी. मुझे तो एक नोटबुक देकर उन्होंने कहा कि स्टेज पर जो लोग नाटक कर रहे हैं, उनकी ग़लतियां निकालो. देखो ये लोग कहां गड़बड़ कर रहे हैं. मुझे तो लगा, कि हम इनकी ग़लतियां निकालेंगे? वो हमें बेहद महत्वपूर्ण फील कराते थे वो. एक सीन हुआ तुग़लक की रिहर्सल के दौरान. एक अमीर का इंतकाल हो जाता है. सब उस सीन में स्टेज पर थे. हम भी सुरेखा जी के पीछे खड़े थे. अचानक से अलकाज़ी साहब चिल्लाये, "रियेक्ट" मैं और नूतन एक दूसरे की तरफ मुड़े, एक दूसरे को देखा, और हमारी हंसी छूट गई. हम इतने नर्वस थे कि हमारी हंसी ही कंट्रोल नहीं हो रही थी. मनोहर सिंह और सुरेखा सीकरी हमें इशारा कर रहे थे चुप हो जाने का. लेकिन हम रुक ही नहीं पा रहे थे. हमसे किसी ने कहा कि तुममें अकल नहीं, रिहर्सल में हंस रहे हो. अब तुम्हारी क्लास लगेगी. रिहर्सल के बाद अलकाज़ी साहब नोट्स लेने के लिए बैठे. लेकिन हमारे बारे में एक शब्द नहीं कहा. सब कुछ हो जाने के बाद उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बेहद प्यार से पूछा, ‘व्हाट हैपेंड स्वीटहार्ट’ मैं एक्सप्लेन करने की कोशिश कर रही थी, और उन्होंने कहा कोई बात नहीं, आगे से ध्यान रखना. मुझे कई बार अलग से बुलाकर कहते भी थे कि एक ऐक्टर को हमेशा प्रिपेयर करते रहना चाहिए. जब हम मंडी हाउस में थे, वहां कई आर्ट गैलरीज़ भी हैं. वहां के ऑडिटोरियम्स में बड़े-बड़े आर्टिस्ट आते रहते थे. अलकाज़ी साहब कहते थे कि हमें जाकर सब कुछ देखना चाहिए. कहते थे सुबह में रियाज़ करने की बात कहते थे. एक बार और अलकाज़ी साहब वापस आए थे रिपर्टरी में. इस समय तक मैं लीड रोल्स करने लग गई थी. उन्होंने एक प्ले में मुझे लीड रोल में कास्ट किया था. लेकिन तब तक मुझे एक सीरियल ‘हमराही’ में रोल मिल गया था. मैंने कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया था. तो मैंने जाकर उनको ये बात बताई. तो उन्होंने मुझे एनकरेज किया. कि मुझे ज़रूर ये ट्राई करना चाहिए. वरना हमें इतना गिल्टी फील कराया जाता था सीरियल्स/फिल्मों को लेकर. मुझे एक फिल्म भी मिली थी, ‘अब आएगा मज़ा’ जो आलोकनाथ ने डायरेक्ट की थी. रात को NSD की बाउंड्री टाप कर मैं शूटिंग करने जाती थी उसकी. जब रिचर्ड एटनबरो 'गांधी' डायरेक्ट करने आए थे, तब हम भी भाग नहीं ले पाते थे. वहां तब ये सब बड़ा बुरा माना जाता था. वहां मंडी हाउस में ही ग्रामीण भाइयों के लिए कुछ कार्यक्रम शूट होते रहते थे टीवी के लिए. तो हम वहां चले जाते थे क्योंकि हमें 250 रुपए का चेक मिलता था. हमारी एप्रेंटिसशिप के लिए रिपर्टरी वाले हमें 600 रुपए देते थे महीने के. और हमारे लिए ये 250 रुपए बहुत होते थे. फिर हम इसकी पार्टी किया करते थे. अलकाज़ी साहब कहते थे, मौका मिला है तो जाकर करो हिमानी. तो मैंने जाकर वो सीरियल किया.
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