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भारतीयों के लिए H1B Visa के क्या मायने हैं? अमेरिका में इसे लेकर कब और क्यों घमासान मचा?

H1B Visa Issue Explained: साल 2015 से हर साल जितने H-1B स्वीकृत किए जाते हैं, उनमें से 70% से ज़्यादा भारतीयों के होते हैं. यही विवाद की जड़ बताई जाती है. MAGA यानी Make America Great Again कैंपेन के समर्थक ऐसे आंकड़ों को लेकर सवाल खड़े करते हैं.

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H1B Visa को लेकर डॉनल्ड ट्रंप ने एलन मस्क का सपोर्ट किया है. (फ़ाइल फ़ोटो - इंडिया टुडे)

H1B Visa प्रोग्राम. बीते कुछ दिनों में ये शब्द अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के समर्थकों के आपसी कलह की वजह बन गया है. एक तरफ़ दिग्गज उद्योगपति एलन मस्क और टेक उद्यमी विवेक रामास्वामी और डेविड सैक्स हैं. ये लोग H1B Visa सिस्टम के समर्थन में बोल चुके हैं और अमेरिका में ‘दुनिया की बेहतरीन प्रतिभाओं’ को लाने के समर्थन में हैं. वहीं, दूसरी तरफ़ ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (MAGA) कैंपेन के समर्थक हैं, जो H1B Visa के जरिये अमेरिका आने वाले ‘बाहरी लोगों’ के विरोध में हैं.

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मामला इतना बढ़ गया है कि ख़ुद डॉनल्ड ट्रंप की इस मामले में प्रतिक्रिया आई. अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप H1B Visa प्रोग्राम के ख़िलाफ़ थे. लेकिन फिर से राष्ट्रपति बनने से पहले इस मुद्दे पर वो एलन मस्क के समर्थन में दिखे. उन्होंने कहा, “मैं H1B वीजा प्रोग्राम में विश्वास करता रहा हूं.”

ऐसे में जानेंगे कि H1B वीजा प्रोग्राम है क्या? इस पर हालिया बहस की शुरुआत कहां से हुई? H1B वीजा प्रोग्राम को लेकर MAGA के ‘कट्टर समर्थक’ इतने हमलावर क्यों हैं? इससे भारतीयों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

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हालिया विवाद

हालिया विवाद की शुरुआत हुई वॉइट हाउस में श्रीराम कृष्णन की AI के लिए सीनियर पॉलिसी एडवाइज़र के रूप में नियुक्ति से. जैसे ही ये नियुक्ति हुई, अमेरिका के कई दक्षिणपंथ समर्थकों ने 'उनके अमेरिका में भारत की प्रतिभा’ वाले स्टैंड को लेकर ख़ूब हंगामा मचाया. इस क्रम में कृष्णन के एक पुराने पोस्ट को लेकर सवाल उठाया गया, जिसमें उन्होंने कहा था,

“मेरा मानना ​​है कि भारत की शीर्ष प्रतिभाओं को वो जगह चुनने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए, जहां वे रहना चाहते हैं. जिस चीज़ को लेकर उनमें जुनून है, उस पर उन्हें काम करने देना चाहिए.”

श्रीराम कृष्णन की नियुक्ति और H1B वीजा को लेकर विवाद खड़ा करने वालों में ट्रंप की समर्थक लॉरा लूमर भी शामिल हैं. उन्होंने कृष्णन की नियुक्ति को ‘बेहद परेशान करने वाला’ बताया. लॉरा ने श्रीराम कृष्णन की बात को डॉनल्ड ट्रंप के एजेंडे का ‘सीधा विरोध’ बताया, जो अपने पहले कार्यकाल में इस प्रोग्राम के विरोध में रहे थे.

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लेकिन लॉरा लूमर को बड़ी चुनौती मिली, वो भी सीधे एलन मस्क की तरफ से. उन्होंने लॉरा की बातों का विरोध करते हुए लिखा,

“आप क्या चाहते हैं, अमेरिका जीते या हारे? अगर आप दुनिया की सबसे बेहतरीन प्रतिभाओं को दूसरी तरफ जाने के लिए मजबूर करेंगे, तो अमेरिका हार जाएगा.”

हालांकि, एलन मस्क ने बाद में ये भी कहा कि H1B वीजा की व्यवस्था 'चरमराई हुई' है और इसमें 'बड़े सुधार' की ज़रूरत है. उनकी बातों से H1B प्रोग्राम को लेकर एक बहस ज़रूर शुरू हो गई. मस्क ने H1B वीजा के समर्थन में जो पोस्ट किया था, उसका विवेक रामास्वामी ने भी समर्थन किया.

H1B वीज़ा प्रोग्राम है क्या?

अमेरिका उन लोगों को H1B वीज़ा देता है जो अपना देश छोड़कर वहां काम करने के लिए जाते हैं. अमेरिकी लेबर डिपार्टमेंट के मुताबिक़, ये अमेरिकी संस्थाओं को ऐसे बिज़नेस में विदेशी कामगारों को नियुक्त करने की मंजूरी देता है, जिनके लिए ‘हाई स्किल’ और ‘कम से कम ग्रेजुएशन की डिग्री’ की ज़रूरत होती है. ये वीजा तय समय के लिए मिलता है. इसकी शुरुआत 1990 में हुई थी.

कुछ चुनिंदा किस्म के पेशेवर लोगों को इस कैटेगरी में अप्लाई करने की इजाज़त होती है. मसलन, टेक्नोलॉजी, फ़ाइनेंस, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर आदि. अप्लाई करने के लिए तीन बुनियादी शर्तें हैं- 

1. विशेष कैटेगरी में नौकरी के लिए अमेरिकी कंपनी का ऑफ़र लेटर, 
2- बैचलर डिग्री या संबंधित फ़ील्ड में अनुभव,
3- और जॉब देने वाली कंपनी को ये भी साबित करना होता है कि उस रोल के लिए योग्य उम्मीदवारों की कमी है.

एच-1बी वीज़ा अधिकतम 6 सालों के लिए जारी किया जा सकता है. इसके बाद वीज़ा धारक को या तो वापस लौटने से पहले कम से कम 12 महीने की अवधि के लिए अमेरिका छोड़ना होगा, या स्थायी निवास यानी ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन कर और उसे हासिल करना होगा. वर्तमान में, इस प्रोग्राम के अंतर्गत हर वित्तीय वर्ष में 65,000 नए स्टेटस/वीज़ा की सीमा तय है. इसके अलावा, किसी अमेरिकी यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री या उच्चतर डिग्री हासिल कर चुके लोगों के लिए अतिरिक्त 20,000 वीज़ा उपलब्ध हैं.

H1-B दाखिल करने की अवधि 1 अप्रैल से शुरू होती है और कोटा पूरा होने तक जारी रहती है. होमलैंड सिक्योरिटी स्टैटिस्टिक ऑफ़िस की रिपोर्ट बताती है कि 2023 तक 7 लाख 55,020 लोगों को H1B के तहत अमेरिका में प्रवेश दिया गया था.

‘भारतीय, अमेरिका के लिए ज़रूरी’

भारत में पैदा हुए लोगों को सबसे ज़्यादा H1B वीज़ा मिलता है. इसे लेकर अमेरिकी लेबर डिपार्टमेंट का एक डेटा है. इस डेटा के मुताबिक़, साल 2015 से हर साल जितने H1B स्वीकृत किए जाते हैं, उनमें से 70 पर्सेंट से ज़्यादा भारतीयों के होते हैं. इसके बाद चीन के लोगों का नंबर है. साल 2018 से उनके औसतन 12-13 पर्सेंट तक H1B वीजा स्वीकृत होते हैं.

अमेरिकी पॉलिसी में भारतीयों के इस प्रभुत्व से ही MAGA ग्रुप नाराज़ रहते हैं. जब मस्क या रामास्वामी जैसा कोई व्यक्ति H1B वीजा के पक्ष में तर्क देते हैं, तो MAGA ग्रुप का कहना होता है कि समस्या अमेरिकी प्रतिभा की कमी नहीं है, बल्कि ये फ़ैक्ट है कि टेक कंपनियां अमेरिकियों को नौकरी पर रखना बहुत महंगा मानती हैं.

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका में जिन भारतीयों की वीज़ा याचिकाएं स्वीकार की जाती हैं, उनमें से लगभग 70 पर्सेंट की सालाना सैलरी एक लाख डॉलर यानी 85,45,500 रुपये से कम थी. वहीं, लगभग 25 पर्सेंट लोगों की सालाना सैलरी 1-1.5 लाख डॉलर के बीच थी. यानी लगभग 85 लाख रुपये से 1.30 करोड़ रुपये तक. सिर्फ़ 5 पर्सेंट ऐसे थे, जिनकी सैलरी 1.5 लाख डॉलर से ज़्यादा थीं.

अमेरिकी उद्योग जगत को समझने वाले कहते हैं कि H1B वीज़ा को मंजूरी देना, अमेरिका में ‘कौशल अंतर’ को पाटने के लिए ज़रूरी हो जाता है और सस्ती दरों में विदेशी लोगों को काम पर रखने से कंपनियों की अर्थव्यवस्था भी दुरुस्त रहती है.

इससे इतर, ऐसा माना जाता है कि STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्रों में चीनी और भारतीय हावी हैं. 2020 में सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (CSET) ने कुछ आंकड़े जारी किए. इनके मुताबिक़, चीन (35.7 लाख) और भारत (25.5 लाख) दुनिया में सबसे ज़्यादा STEM ग्रैज़ुएट्स का दावा करते हैं. ये अमेरिका के 8 लाख 20 हज़ार से बहुत ज़्यादा है.

अमेरिका में आप्रवासियों का विरोध?

अमेरिका में इमिग्रेशन सबसे बड़े पोलराइजिंग राजनीतिक मुद्दों में से एक बताया जाता है. इसी साल अक्टूबर में YouGov ने एक पोल किया था. इस पोल के मुताबिक़, 14.6 पर्सेंट रजिस्टर्ड वोटर्स ने इसे चुनाव (जो नवंबर में हुए) का सबसे बड़ा मुद्दा बताया था. ये आंकड़ा 2012 में सिर्फ़ 2.1 पर्सेंट था. हालिया चुनाव के समय भी रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने इमिग्रेंट्स पर ख़ूब बयानबाज़ी की थी. उनका कहना था कि 'बाहरी लोगों' को नौकरी पर रखे जाने से अमेरिकियों की नौकरियों पर प्रभाव पड़ता है.

ये नेता हार्ड लाइन पर कहते हैं कि इमिग्रेंट्स से नौकरियां छीन कर अमेरिकी वर्किंग क्लास को दी जाएं जो लंबे समय से बेरोजगारी, कम वेतन, महंगाई, समेत कई आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है.

चुनावी कैंपेन के दौरान ट्रंप ने भी ऐसी भावनाओं को ज़ोर दिया था. उन्होंने इमिग्रेशन पर अंकुश लगाने और औसत कामकाजी अमेरिकी क्लास के लिए स्थितियों को बेहतर बनाने का वादा किया. हालांकि, अब डॉनल्ड ट्रंप ने एलन मस्क का समर्थन किया है. ऐसे में वो अगले कार्यकाल में अपना रुख इस पर कैसा रखते हैं, ये देखने वाली बात होगी.

वीडियो: दुनियादारी: अमेरिका जाने के लिए भारतीयों का फ़ेवरेट H1B वीजा बंद होने वाला है?

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