शपथ लेने वालों की लिस्ट में सबसे चौंकाने वाला नाम, या शायद ज़रा भी न चौंकाने वाला नाम, एनसीपी से कभी बागी हुए पूर्व डिप्टी सीएम अजित पवार का है. अजित पवार को एक बार फिर से डिप्टी सीएम बनाया गया है. अजित पवार नवंबर में तीन दिनों के लिए डिप्टी सीएम के पद पर रह चुके हैं. जब रातोंरात उन्होंने भाजपा को सपोर्ट कर दिया था. देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ले ली थी. लेकिन दोनों को जल्दी ही इस्तीफा देना पड़ा. जब उन्हें लगा कि वो सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे.

3 दिन की सरकार में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार.
महाराष्ट्र के नए कैबिनेट में कुछेक दिलचस्प चीज़ें नज़र आ रही हैं. पिता-पुत्र की जोड़ी से लेकर श्राप की कहानियों तक. आइए देखते हैं.
# पहले सीएम, अब मंत्री
महाराष्ट्र के नए कैबिनेट में एक नाम ऐसा भी है, जो राज्य की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठ चुका है. अशोक चव्हाण. अशोक चव्हाण कभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. दिसंबर 2008 से लेकर नवंबर 2010 तक तकरीबन दो साल वो महाराष्ट्र के सीएम रहे. 26/11 के मुंबई हमलों के बाद महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने इस्तीफा दे दिया था. तब अशोक चव्हाण को सीएम बनाया गया था. 2009 में फिर से चुनाव हुए और इस बार भी अशोक चव्हाण ही सीएम बने. हालांकि महज़ साल भर तक ही रह पाएं. आदर्श सोसायटी स्कैंडल के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया था. अब यहीं अशोक चव्हाण उद्धव ठाकरे की सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं.ये पहली बार नहीं है जब कोई सीएम रह चुका व्यक्ति उसी राज्य में मिनिस्टर की कुर्सी संभालने को राज़ी हुआ हो. कुछेक नाम याद आते हैं.
* बाबूलाल गौर - बाबूलाल गौर भी तकरीबन साल भर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. 2004 में उमा भारती के खिलाफ हुबली दंगे के केस में अरेस्ट वॉरंट निकला था. उसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. मुख्यमंत्री बने बाबूलाल गौर. जो अगस्त 2004 से नवंबर 2005 तक मुख्यमंत्री रहे. उनके बाद शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने. बाबूलाल गौर शिवराज सिंह सरकार में मंत्री पद पा गए.

शिवराज सिंह चौहान जब मुख्यमंत्री बने, तो बाबूलाल गौर उस सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे.
* पनीरसेल्वम - इनका केस बड़ा दिलचस्प है. ये सीएम की कुर्सी पर चढ़ते-उतरते रहे. और मंत्री की कुर्सी पर भी आराम फरमाते रहे. सबसे पहले पनीरसेल्वम सीएम बने सितंबर 2001 में. जब जयललिता को सुप्रीम कोर्ट ने सीएम पद छोड़ने के लिए कहा था. उस वक्त वो तकरीबन छह महीने तक सीएम रहें. जयललिता लौटीं और उन्होंने अपनी सीट संभाल ली. पनीरसेल्वम ने मंत्रालय संभाला. दूसरी बार भी ऐसा ही कुछ हुआ. जयललिता को आय से ज़्यादा संपत्ति के मामले में सज़ा हुई. उनकी गैरमौजूदगी में फिर से पनीरसेल्वम सीएम बने. इस बार भी महीना सितंबर का ही था. तारीख थी 29 सितंबर 2014. मई 2015 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने जयललिता को बरी कर दिया. पनीरसेल्वम को फिर से गद्दी खाली करनी पड़ी. साल भर बाद उन्होंने जयललिता कैबिनेट में फिर से मंत्रीपद सुशोभित किया. तीसरी बार वो तब सीएम बने जब जयललिता की दिसंबर 2016 में जयललिता की मौत हो गई.
* सुरेश मेहता - सुरेश मेहता गुजरात के सीएम रहे थे. 1995 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने अपने साथी शंकरसिंह वाघेला की बग़ावत के बाद इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद सुरेश मेहता को मुख्यमंत्री बनाया गया. अक्टूबर 1995 से सितंबर 1996 तक वो गुजरात के सीएम रहें. 1998 में जब बीजेपी फिर से सत्ता में लौटी और केशुभाई पटेल फिर से सीएम बने, सुरेश मेहता को फिर से कैबिनेट मिनिस्टरी मिल गई.
# पिता मुख्यमंत्री, बेटा मिनिस्टर
महाराष्ट्र कैबिनेट की एक और दिलचस्प बात ये कि मुख्यमंत्री का बेटा भी कैबिनेट का हिस्सा है. 30 दिसंबर को आदित्य ठाकरे ने कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली. उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा था. उनका नाम कुछ अरसे के लिए मुख्यमंत्री पद की रेस में भी था. वैसे ये इस तरह की पहली पिता-पुत्र जोड़ी नहीं है. पहले भी ऐसे उदाहरण रहे हैं.* पंजाब के बादल्स
प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल. ये जोड़ी इस मामले में और भी आगे है क्योंकि इसमें पिता-पुत्र की जोड़ी चीफ और डिप्टी थी. सुखबीर सिंह बादल पहली बार जनवरी 2009 में पंजाब के डिप्टी सीएम बने थे. मुख्यमंत्री उनके पिता थे. तकरीबन छह महीने बाद उन्होंने रिजाइन किया. फिर अगस्त 2009 में जलालाबाद बाई-इलेक्शन जीतने के बाद उन्होंने फिर से डिप्टी सीएम पद की शपथ ली. मार्च 2012 में बादल सरकार की टर्म ख़त्म हुई. दोबारा जीतकर आने के बाद फिर से बादल बाप-बेटे ने अपनी-अपनी पोस्ट संभाल ली.

पंजाब सीएम प्रकाश सिंह बादल.
* के टी आर/ के सी सार
जून 2014 में नया राज्य बना तेलंगाना. और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव यानी के सी आर. उनकी कैबिनेट में उनके बेटे के टी आर कैबिनेट मंत्री रहे हैं. केटी रामा राव मौजूदा वक्त में इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, नगर प्रशासन और शहरी विकास, कपड़ा और एनआरआई मामलों के लिए राज्य के कैबिनेट मंत्री हैं.
जो शपथ दिलवा रहे थे, वो भी सीएम थे
जब मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों का ज़िक्र चल रहा है, तो एक और दिलचस्प बात भी बताते चलें. जो साहब इन मंत्रियों को शपथ दिला रहे हैं वो खुद भी एक राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. भगत सिंह कोश्यारी इस वक्त महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. उन्होंने कभी उत्तराखंड राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रखी है. वो उत्तराखंड के दूसरे मुख्यमंत्री रहे हैं. हालांकि सिर्फ चार महीने के लिए. दूसरी बार जब उनकी पार्टी में सत्ता में लौटी तो उनकी जगह बी सी खंडूरी सीएम बनाए गए थे.
# डिप्टी सीएमगिरी का श्राप
महाराष्ट्र कैबिनेट की बात हो और अजित पवार का ज़िक्र न हो ऐसा कैसे हो सकता है? अजित पवार चौथी बार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री बने हैं. ये बात अलग है कि उनकी तीसरी टर्म महज़ तीन दिन चली थी. देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर रातोरात सरकार बना लेने का उनका दांव उल्टा पड़ गया था. शरद पवार जमे रहें और भाजपा की सरकार गिराकर ही माने. आशंका थी कि अजित पवार की ये मूव उन्हें भारी पड़ जाएगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. वो ठाकरे सरकार में भी उपमुख्यमंत्री बन गए. इससे पहले भी वो दो बार उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं. पृथ्वीराज चव्हाण के मुख्यमंत्री काल में. बीच में एक महीने के लिए उन्हें सीट छोड़नी भी पड़ी थी.बहरहाल, महाराष्ट्र की राजनीति में एक मान्यता भी चलती है कि जो डिप्टी सीएम बनता है वो कभी सीएम नहीं बन पाता. इस संदर्भ में गोपीनाथ मुंडे से लेकर छगन भुजबल जैसे नेताओं के नाम लिए जाते हैं. देखा जाए तो अब तक ये बात सही भी साबित होती आई है. अब तक महाराष्ट्र में आठ डिप्टी सीएम बने हैं और कोई भी मुख्यमंत्री पद तक नहीं पहुंच पाया. निकट भविष्य में इस मान्यता को तोड़ने का रीयलिस्टिक मौक़ा अजित पवार के पास ही दिखाई देता है.

गोपीनाथ मुंडे, मनोहर जोशी और नारायण राणे के कार्यकाल में उपमुख्यमंत्री रहे थे.
इसके अलावा अमित देशमुख ने भी शपथ ली है. वो महाराष्ट्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के बड़े बेटे हैं. इस बार के विधानसभा चुनावों में उन्होंने अपने प्रतिस्पर्धी को तगड़े मार्जिन से हराया था.
महाराष्ट्र के नए मंत्रिमंडल की शक्ल कुछ ऐसी है:
26 कैबिनेट मंत्री
शिवसेना: संजय राठौड़, गुलाबराव पाटिल, दादा भुसे, संदीपन भुमरे, अनिल परब, उदय सामंत, आदित्य ठाकरे एनसीपी: अजित पवार, दिलीप वलसे पाटिल, धनंजय मुंडे, अनिल देशमुख, हसन मुश्रीफ, राजेंद्र शिंगणे, नवाब मलिक, राजेश टोपे, जितेंद्र आव्हाड, बालासाहेब पाटिल कांग्रेस: अशोक चव्हाण, विजय वडेट्टीवार, वर्षा गायकवाड़, सुनील केदार, अमित विलासराव देशमुख, यशोमती ठाकुर, केसी पाडवी, असलम शेख निर्दलीय: शंकर राव गड़ाख
10 राज्य मंत्री
शिवसेना: अब्दुल सत्तार, शंभुराजे देसाई कांग्रेस: सतेज ऊर्फ बंटी पाटिल, विश्वजीत कदम राकांपा : दत्तात्रेय भरणे, अदिती तटकरे, संजय बनसोडे, प्राजक्त तनपुरे अन्य: बच्चू कडू, राजेंद्र पाटिल
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