
हैदर के एक दृश्य में शाहिद कपूर.
साहित्य का इस्तेमाल उनकी सबसे बड़ी पहचान और खासियत है. उनकी तीन फिल्में - मक़बूल (2003), ओमकारा (2006) और हैदर - शेक्सपीयर की कृतियों मेकबेथ-ओथैलो-हैमलेट पर आधारित हैं. तीनों के हिंदी-फिल्मी रूपांतरण ने काफी प्रशंसा पाई. इसी तरह द ब्लू अंब्रैला और सात ख़ून माफ रस्किन बॉन्ड के लिखे नॉवेल और कहानी पर आधारित थीं. विशाल संगीतकार और गायक भी हैं. वे अपनी फिल्मों में गाते हैं. वे सत्या और गॉडमदर जैसी फिल्मों का संगीत भी रच चुके हैं. फिल्म माचिस में गुलज़ार के लिखे गीतों पर उन्हीं का संगीत था.
विशाल भारद्वाज के सिनेमा को लेकर विस्तार से बात हो सकती है. इस पर भी कि कैसे सैफ, शाहिद, करीना जैसे चॉकलेटी स्टार्स को उन्होंने ज़मीन पर लाकर एक्टर्स में तब्दील कर दिया और उनकी पिछली छवियों को कुचल दिया. इसने उन सितारों को नया जीवन दिया. इसकी एक और मिसाल शाहिद कपूर हैं जो हैदर
के बाद मुंबई फिल्म उद्योग में बहुत गंभीरता से लिए जाने लगे हैं.
लेकिन फिलहाल विशाल के जन्मदिन पर हम लाए हैं उनके जीवन से जुड़े पांच ऐसे किस्से जो बेहद मजेदार लग सकते हैं. इनसे ये भी ज्ञात होगा कि एक इंसान के तौर पर उनके व्यक्तित्व के अन्य पहलू क्या हैं:
1. जब उन्हें अजय देवगन ने नशीली मिठाई खिला दी

ओमकारा के रोल में अजय देवगन.
अजय देवगन शूटिंग के दौरान औचक मज़ाक करने के लिए जाने जाते हैं. 2005 में विशाल भारद्वाज ने उन्हें, सैफ अली खान, कोंकणा सेन शर्मा, नसीरुद्दीन शाह, विवेक ओबेरॉय और करीना कपूर को लेकर फिल्म ओमकारा की शूटिंग शुरू की. शूटिंग के दौरान अजय ने मिठाई में भांग मिला दी और सबको खिलाने लगे. किसी-किसी को आहट हो गई उन्होंने नहीं खाई, लेकिन विशाल ने खा ली. वे नशीले पदार्थों के सेवन के खिलाफ हैं. उन्हें अजीब सा महसूस होने लगा. उनके दिल की धड़कन बढ़ गई और वे बेचैन हो गए. तब वे इतने गुस्सा हुए कि सेट से होटल चले गए. उन्हें ये मज़ाक ठीक नहीं लगा. उन्होंने अजय से कहा, "तुमने जो किया वो किया लेकिन अब मेरा काम करने का मन नहीं कर रहा है."
अजय ने पूरी यूनिट के सामने विशाल से माफी मांगी लेकिन विशाल ने शूटिंग करने से साफ मना कर दिया. निर्माता भी आए. मनाने की कोशिश की लेकिन विशाल अडिग थे. उन्होंने तीन दिन तक शूटिंग नहीं की. इस दौरान वे टेनिस खेलते रहे. वे जब किसी चीज़ पर नाराज होते हैं तो टेनिस खेलते हैं और शॉट्स में अपना गुस्सा निकालते हैं. वे तीन दिन होटल में बने टेनिस कोर्ट में खेलते रहे. निर्माता कुर्सी पर बैठकर इंतजार करता रहा.
2. मकड़ी के निर्देशन को निर्माताओं ने ख़राब बताया था

फिल्म का पोस्टर.
ये तब की बात है जब विशाल सिर्फ एक म्यूजिक डायरेक्टर हुआ करते थे. मुंबई के कमर्शियल फिल्म उद्योग में उनकी कोई हैसियत नहीं थी. बाल चित्र समिति (चिल्ड्रेन्स फिल्म सोसायटी ऑफ इंडिया) ने अपनी फिल्म मकड़ी का निर्देशन करने का काम उन्हें दिया. लेकिन आगे चलकर समिति ने कहा कि फिल्म का अब तक का निर्देशन बुरा है, उसकी शूटिंग ख़राब हुई है. विशाल ने गुलज़ार, दोस्त शिवम नायर और फिल्म में उनके असिस्टेंट रहे अभिषेक चौबे को ये फिल्म दिखाई और जानने की कोशिश की कि क्या वाकई फिल्म बुरी बनी है? लेकिन ऐसा नहीं था.
सबने कहा कि फिल्म अच्छी है और समिति की प्रतिक्रिया अतीव है. तब विशाल ने हिम्मत की और बाल चित्र समिति से बोला कि “अगर आपको ये फिल्म पसंद नहीं है तो इसे मैं आपसे खरीद लेता हूं”. फिर ऐसा हुआ भी. इस फिल्म के लिए उन्होंने 20-30 लाख रुपये अपनी जेब से दिए. उसके बाद फिल्म पूरी की गई. सन् 2002 में शबाना आज़मी, मकरंद देशपांडे, श्वेता प्रसाद और विजय राज जैसों के अभिनय से सजी इस फिल्म का प्रदर्शन किया गया. दर्शकों ने इसे बहुत पसंद किया.
इसे कायरो में बच्चों के फिल्म महोत्सव में पुरस्कार मिला. इतना ही नहीं इसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला. श्वेता प्रसाद को ‘बेस्ट चाइल्ड एक्टर’ का नेशनल अवॉर्ड 2003 में दिया गया. फ्रांस के केन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल-2003 में मशहूर ‘क्रिटिक्स वीक सेक्शन’ में इसे दिखाया गया. बाल चित्र समिति ने विशाल को जो पत्र भेजा था वो उन्होंने मढ़वाकर आज भी अपनी कुर्सी के ठीक सामने दीवार पर टांग रखा है.
3. हिंदू कॉलेज में रात भर की इम्तियाज अली की यादगार रैगिंग

इम्तियाज अली.
इम्तियाज अली.
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में विशाल भारद्वाज पढ़े थे. इम्तियाज अली उनके जूनियर थे. वे कॉलेज से ग्रेजुएशन करके निकल चुके थे लेकिन अकसर रात में दोस्तों के साथ हॉस्टल चले जाते थे. वहां जूनियर्स के साथ बातें करते थे. एक रात वे, आशीष विद्यार्थी और मनोज बाजपेयी हिंदू कॉलेज के हॉस्टल पहुंचे. उन्होंने पूछा कि कॉलेज में थियेटर कौन-कौन करता है? तो इम्तियाज का नाम उभरा. वे वहां बैठे अंग्रेजी साहित्य पढ़ रहे थे कि उन तीनों ने वहां प्रवेश किया. विशाल ने उनसे पूछा, सुना है तुम थियेटर कर रहे हो?
आशीष, विशाल, मनोज भी हिंदू कॉलेज की ड्रामेटिक सोसायटी का हिस्सा रह चुके थे. इम्तियाज ने विजय तेंडूलकर के नाटक “जात ही पूछो साधू की” में अभिनय किया था और वे लोग उनसे इस बारे में पूछ रहे थे. उन्होंने इम्तियाज से कहा कि वे अभिनय करके दिखाएं. वैसे वे उनकी रैगिंग लेने आए थे लेकिन अंत में जब बात समाप्त हुई तब तक चारों के लिए वो एक यादगार रात बन चुकी थी.
4. ऐसे शुरू हुई थी विशाल और रेखा भारद्वाज की लव स्टोरी

रेखा और विशाल.
रेखा और विशाल भारद्वाज हिंदू कॉलेज में साथ पढ़ते थे. रेखा उनसे एक साल सीनियर थीं. वो साल 1984 था जब दोनों पहली बार मिले. रेखा म्यूजिक में ऑनर्स कर रही थी. इंदौर घराने से संगीत की शिक्षा लेकर आई थीं. और विशाल आर्ट्स की पढ़ाई कर रहे थे. रेखा तब कॉलेज में काफी चर्चित थीं क्योंकि वे सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेती रहती थीं. इन दोनों की पहली मुलाकात कॉलेज के वार्षिक कार्यक्रम में हुई. वहां रेखा गायन प्रस्तुति देने वाली थीं और स्टेज के किनारे विशाल भी अपने गानों की रिहर्सल कर रहे थे. वे पंकज उधास और जगजीत सिंह के गीत गाने वाले थे. उसी दौरान दोनों मिले और आकर्षण हो गया. उसके बाद मिलने का सिलसिला चल पड़ा. दोनों अकारण ही खूब हंसते थे. खूब समय साथ बिताते. बाद में दोनों ने शादी की.
5. द ब्लू अंब्रैला की स्क्रिप्ट जब आगे नहीं बढ़ रही थी

पंकज कपूर द ब्लू अंब्रैला में.
आमतौर पर फिल्म निर्देशक और लेखक अपनी स्क्रिप्ट किसी से बांटते नहीं हैं क्योंकि आइडिया चोरी हो जाने और सस्पेंस खुल जाने की आशंका रहती है. लेकिन विशाल स्क्रिप्ट लिखते हैं तो कइयों को पढ़ने के लिए देते हैं. वे मानते हैं कि फीडबैक के तौर पर कहीं से भी कोई अच्छा आइडिया आ सकता है.
एक बार ऐसा ही हुआ. वे रस्किन बॉन्ड के नॉवेल ‘द ब्लू अंब्रैला’ पर फिल्म बनाने वाले थे. स्क्रिप्ट लिख ली थी लेकिन यह सिर्फ 60-70 मिनट तक की ही हो रही थी. तब विशाल ने इसे लोगों को पढ़ने देने का फैसला लिया. इसी दौरान मिंटी तेजपाल ने इसे पढ़ा जो फिल्म पत्रकार थे और फिल्में लिखने की कोशिशों में थे. उन्होंने विशाल को उनकी स्क्रिप्ट में एक बदलाव सुझाया. मूल कहानी में छाते की चोरी की कोशिश होती है और नाकाम हो जाती है. मिंटी ने कहा कि छाते को चोरी होने दिया जाए. ऐसा ही किया गया और विशाल को रास्ता मिल गया. कहानी खुल गई और मुकम्मल हुई. पंकज कपूर अभिनीत ‘द ब्लू अंब्रैला’ 2005 में लगी.
(2016 में विशाल भारद्वाज के 50वें जन्मदिन पर ये लेख गजेंद्र ने लिखा था.)