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बिहार में वोटर्स लिस्ट रिवीजन में आयोग को आधार, मनरेगा या राशन कार्ड क्यों नहीं चाहिए?

बिहार में वोटर लिस्ट के इंटेंस रिवीजन के दौरान चुनाव आयोग ने आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड लेने से मना कर दिया है. इसके पीछे क्या वजह है?

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बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन में दस्तावेजों को लेकर बवाल मचा है (India Today)

बिहार में इन दिनों चारों तरफ हलचल मची है. यहां विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट का इंटेंस रिवीजन (Special Intense Revision) चल रहा है. इस रिवीजन में लोगों के सामने अपनी नागरिकता साबित करने की चुनौती है. दरअसल, संविधान के आर्टिकल 326 के मुताबिक, वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए व्यक्ति का भारतीय नागरिक होना जरूरी है. ऐसे में चुनाव आयोग का दायित्व है कि केवल भारतीय नागरिकों के ही नाम वोटर लिस्ट में शामिल हों. 

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इसके लिए ही बिहार में वोटर लिस्ट का गहन रिवीजन किया जा रहा है. इस रिवीजन में बिहार के सभी नागरिकों को शामिल होना है यानी अगर किसी का नाम पहले से वोटर लिस्ट में है, उसे भी वोटर लिस्ट में जुड़ने के लिए फिर से आवेदन करना होगा. जिनका नाम नहीं है या जुड़ने वाला है, वह तो इसके लिए चुनाव आयोग में अप्लाई करेंगे ही. इसमें पेच ये है कि जिनका नाम 2003 के वोटर लिस्ट में है, उन्हें सिर्फ एक फॉर्म (गणना प्रपत्र) भरकर देना है. कोई दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं है लेकिन जिनका नाम नहीं है, उन्हें फॉर्म भरने के साथ अपनी नागरिकता भी साबित करनी होगी. कुछ जरूरी दस्तावेज देने होंगे. तभी उन्हें वोटर लिस्ट में जगह मिल पाएगी.

ऐसे लोग आयोग की ओर से निर्धारित 11 दस्तावेजों में से एक देकर अपना नाम लिस्ट में जुड़वा सकते हैं. जिन दस्तावेजों को आयोग स्वीकार कर रहा है, उनमें पेंशन का कागज, सरकार द्वारा जारी किया गया कोई पहचान पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, निवास प्रमाण पत्र, वन अधिकार प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, एनआरसी, परिवार रजिस्टर का कागज या जमीन के कागज शामिल हैं.

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ये दस्तावेज नहीं ले रहा आयोग 

 आधार कार्ड, वोटर कार्ड, मनरेगा कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और राशन कार्ड जैसे पहचान पत्र लोगों के पास आसानी से उपलब्ध हैं लेकिन चुनाव आयोग ने उसे लेने से मना कर दिया है. आयोग का कहना है कि ये दस्तावेज पहचान का प्रमाण तो हैं लेकिन ये आपकी नागरिकता साबित नहीं करते. 

किन लोगों को साबित करनी है नागरिकता

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2003 के वोटर लिस्ट में जिनका नाम है, उन्हें कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है लेकिन जो इस लिस्ट में नहीं हैं, उन्हें नागरिकता साबित करनी होगी. ऐसे लोगों को तीन वर्गों में रखा गया है- 

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एक, जो 1987 से पहले जन्मे हैं. ऐसे लोगों को सिर्फ ये साबित करना है कि वो भारत में पैदा हुए हैं.

दूसरे जो 1987 के बाद और 2004 से पहले जन्मे हैं. ऐसे लोगों को भारत में जन्म का सबूत देने के साथ ये भी साबित करना होगा कि उनके माता या पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक है. 

तीसरे, जो 2004 के बाद पैदा हुए हैं. उन्हें खुद के भारत में जन्म के सबूत के साथ माता-पिता दोनों के भारतीय नागरिक होने का सबूत देना होगा.   

लेकिन समस्या ये है कि भारत में ऐसा कोई एक दस्तावेज नहीं है जो नागरिकता का सीधा प्रमाण देता हो. केवल ऐसे विदेशी नागरिक जो भारत की नागरिकता लेते हैं, उन्हें बाकायदा नागरिकता का सर्टिफिकेट दिया जाता है. बाकी, देश में पैदा हुए लोग आधार, वोटर कार्ड, पैन कार्ड या संपत्ति के कागज को ही नागरिकता का प्रमाण मानते रहे हैं. 

फिर क्या दिक्कत है

दिक्कत ये है कि ऐसा सिर्फ लोग ही मानते रहे हैं. न तो चुनाव आयोग और न ही देश की अदालतें इन्हें कभी नागरिकता का सबूत मानती हैं. सुप्रीम कोर्ट समेत देश की कई अदालतों ने अपने फैसलों में कहा है कि आधार कार्ड, पैन कार्ड, राशन कार्ड आपकी पहचान के सबूत हैं लेकिन नागरिकता के सबूत नहीं हैं. जैसे- आधार कार्ड ये तो बताता है कि इसमें जो भी डिटेल्स हैं, मसलन, नाम-पता या फिर बायोमीट्रिक डेटा, ये आपके ही हैं लेकिन ये नहीं बताता कि ये जो ‘आप हैं’ वो भारत के ही नागरिक हैं. 

UIDAI की वेबसाइट पर भी लिखा है कि आधार संख्या सिर्फ पहचान का प्रमाण है. धारक के संबंध में यह नागरिकता या निवास का कोई अधिकार प्रदान नहीं करता है. 

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी साल अप्रैल में दिल्ली पुलिस ने केंद्र सरकार के एक फैसले के हवाले से कहा था कि नागरिकता के सबूत के तौर पर आधार कार्ड, पैन कार्ड और राशन कार्ड स्वीकार नहीं किए जाएंगे. दिल्ली पुलिस ने इसके पीछे तर्क दिया था कि सत्यापन के दौरान कई विदेशी नागरिकों खासतौर पर रोहिंग्या शरणार्थियों के पास पैन कार्ड, राशन कार्ड और आधार कार्ड पाए गए थे. ऐसे में अब इन्हें भारत के नागरिक होने का सबूत नहीं माना जाएगा.

वोटर कार्ड पर असमंजस!

 वहीं वोटर कार्ड को लेकर थोड़ा सा असमंजस बना हुआ है. चुनाव आयोग ने नागरिकता के सबूत के तौर पर वोटर कार्ड की वैधता को खारिज किया है लेकिन बीते सालों में दो राज्यों के हाई कोर्ट के फैसले ने ECI के इस दावे पर सवाल खड़े किए हैं. 

साल 2020 में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने मोहम्मद बाबुल इस्लाम बनाम असम राज्य मामले की सुनवाई के दौरान फैसला दिया था कि वोटर कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता. वहीं, 21 फरवरी 2020 को मुंबई की एक अदालत ने बांग्लादेशी होने का आरोप झेल रहे एक शख्स को यह कहकर बरी कर दिया कि उसके पास वोटर आईडी कार्ड है और यह उसकी भारतीय नागरिकता प्रमाणित करता है. 

कोर्ट ने ये स्पष्ट भी किया कि आधार कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस या राशन कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं कहा जा सकता, लेकिन वैध मतदाता पहचान पत्र भारतीय नागरिकता साबित कर सकता है.

लेकिन चुनाव आयोग अलग ही राह पर चल रहा है. उसने बिहार वोटर लिस्ट के इंटेंस रिवीजन में वोटर कार्ड को नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेजों से बाहर कर दिया है. इससे प्रदेश में दूसरे दस्तावेजों मसलन- जाति और निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जमकर अफरा-तफरी मची है.

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