गजलें पढ़ने का शौक पहले से था. लेकिन गजल को कव्वाली की तरह सुनने का शौक इसे सुनने के बाद लगा. देखो उर्दू अरबी बहुत ज्यादा समझ नहीं आती. लेकिन जितनी पल्ले पड़ती है उतने में दिल हल्के हल्के बुलबुले छोड़ने लगता है. तो साहब ये वाली गजल पहली बार सुनी अजीज़ मियां के मुंह से. फिर पूरी कव्वाली सुनी. "नसीमे सुबह गुलशन में, गुलों से खेलती होगी. किसी की आखिरी हिचकी, किसी की दिल्लगी होगी." https://www.youtube.com/watch?v=zKcHylfAmJY फिल्मी गाने सुनता था मैं. 5-10 मिनट के. जितने सिंगर हैं सब मेरे फेवरेट. सबको सुनना अच्छा लगता है. लेकिन ये गाना था 30 मिनट का. मजा आ गया भाईसाहब. कई बार सुना फिर. रिपीट कर करके. फिर वो गाना एक और दोस्त को सुनाया. उसने कहा "ये का सुन रहा है बे? कुछ समझे में न आ रहा." मैंने उसको उसके हाल पर छोड़ा. और अजीज़ मियां की खोज में निकल पड़ा. हां. अब तुम दिमाग लगा लो अपना. खोज में मतलब उनके शब्दों, कव्वालियों और आवाज की खोज में. सस्ते से मोबाइल में जितने आ सके उतने गाने डाउनलोड किए. फिर ये सिलसिला कभी थमा नहीं. अजीज़ मियां ने हमको कव्वाली सुनने का ऐसा शौक लगाया. कि जैसे अध्यात्म सुख. वो होता है न एक सुकून टाइप का. जब आप बड़ी तकलीफ में हो. या बड़ी खुशी में लिपटे. लेकिन शेयर करने को आस पास कोई न हो. तो इनको सुनने से दिल दिमाग कंट्रोल में रहता है. https://www.youtube.com/watch?v=BVzIiA0Oz98 वो नौकरी थी एक कम पैसे ज्यादा काम वाली. लखनऊ की गलियों में सेल्स मैन बन के विचरते थे. एक दिन का हाल सुनाएं. एक चौराहे पर साजो सामान लिए कैनोपी लगाए बैठे थे. दोपहर की बेतहाशा गर्मी. अचानक बादल आ गए. बेमौसम की बारिश शुरू हो गई. हम बड़ा प्रयास किए, काफी जल्दी मचाए. लेकिन सामान समेटने में देर हो गई. बारिश में सब भीग गया. मैंने प्रयास करना भी बंद किया. घुस गया एक एटीएम वाले कमरे में. पूरा भीगा हुआ. पानी टपक रहा था. पन्नी में लिपटा मोबाइल निकाला. अब उसके इयरफोन में अजीज़ मियां की कव्वाली बज रही थी. "कभी लब पे आहो नाले, कभी दिल में गम के छाले. के बड़ा ही सख्त निकला, ये मकामें जिंदगानी." https://www.youtube.com/watch?v=bPD7tBHwor8 इस हादसे के बाद मेरी नौकरी चली गई. शहर में रहने का अब कोई चांस नहीं था. बोरिया बिस्तर लेकर वापस गांव आ गया. गांव हमेशा से अच्छा लगता है. वहां पहुंचा तो सारे पुराने टास्क रिज्यूम हुए. दोस्तों के साथ गप्प सड़ाका. गायों को सानी पानी. खेतों की देखभाल. फोन हमेशा जेब में और इयरफोन कान में होता था. उसमें चलती रहती थी अजीज़ मियां की कव्वाली. इसलिए कभी बोर नहीं होते थे. लगता था, कोई एकदम साथ चल रहा है. जब पहली बार दिल टूटा तब भी वो कनफुस्की झाड़ रहे थे. "मैंने पहले ही कहा था, के ये हर अदा है फ़ानी. दिले बजनसीब तूने, मेरी बात ही न मानी."एहतियातों के गर्म झोंको से सूख कर ख़ार हो गई होगी इश्क दहलाब लेके आया है, अक्ल बीमार हो गई होगी बदनसीबी का क्या इलाज करूं, फिर कोई बात हो गई होगी उनकी सूरत नजर नहीं आती, चांदनी रात हो गई होगी लौट कर फिर नहीं कलीम आया, कहीं तकरार हो गई होगी बात बढ़ कर हदे तनासुब से, गेसुए यार हो गई होगी एक शोला उठा था पहलू से, कोई उम्मीद जल गई होगी गम तो ये है कि दिल के जलने से, उनकी तस्वीर जल गई होगी
अजी़ज़ मियां जब गाते थे तो दिन और रात छोटे पड़ जाते थे
आज कव्वाल अजीज़ मियां का बड्डे है. हिस्ट्री की सबसे लंबी कव्वाली गाने का रिकॉर्ड है इनके नाम.

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