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फेसबुक जयंती पर फेसबुक शायरी

गुलाम अली की गाई इस ग़ज़ल को हमने फेसबुक के रंग में ढाल लिया है. इब्ने इंशा माफ करेंगे.

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फोटो - thelallantop
सूरत ये तेरी प्यारी प्यारी, मेरी आंखों में बसती है. आज फेसबुक जयंती है. अपना बड्डे मना रहा है फेसबुक. सब कुछ फेसबुक सेंट्रिक हो गया है. इसलिए गुलाम अली की गाई इस ग़ज़ल को हमने फेसबुक के रंग में ढाल लिया है. इब्ने इंशा माफ करेंगे. सुनिएगा. मस्ती के साथ सुनिएगा.
कल वीकएंड की पहली रात थी छाया रहा स्टेटस तेरा कुछ ने कहा ओरिजिनल बड़ा, कुछ ने कहा चेपा हुआ हम भी तब ऑनलाइन थे, हम को भी सबने पिंग किया हम चुप रहे, स्माइल किए, मंजूर था भोकाल तेरा
क्राइसिस हो गया है:
फेसबुक पर किससे मिलें, हमसे तो छूटी महफिलें हर शख़्स तुझ को लाइक करे, हर शख़्स दीवाना तेरा
और ये शेर बतौर-ए-ख़ास उनके लिए, जिन्हें फेसबुक डिएक्टिवेट करने का कीड़ा जब-तब कुलबुलाया रहता है:
कूचे को तेरे छोड़कर जोगी ही बन जाएं 'ज़कर' फेसबुक तेरा, इंस्टा तेरा, whatsapp तेरा, सब कुछ तेरा
फेसबुक शायरों को समर्पित
बेदर्द सुननी हो तो चल, कहता है क्या टुच्ची ग़ज़ल आशिक तेरा, रुसवा तेरा, शायर तेरा, फ्रेंडवा तेरा

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