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अपने धर्म से बाहर शादी करने वालों पर कौन सा कानून लागू होता है?

मुस्लिम लड़की हिन्दू लड़के से शादी करेगी तो ये शादी वैलिड कब मानी जाएगी?

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(प्रतीकात्मक तस्वीर. )
ओडिशा के रहने वाले रमीज और दीपमाला बचपन के दोस्त थे. धीरे-धीरे ये दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों ने एक दिन शादी करने का फैसला किया. लेकिन दिक्क्त ये थी कि दोनों का धर्म अलग-अलग था. घरवाले भी शादी के लिए तैयार नहीं थे. अपनी नौकरी की वजह से दोनों दिल्ली में रहते थे. ऐसे में दोनों ने कोर्ट मैरिज करने का फैसला किया. दोनों एक वकील के पास गए. वकील ने उनसे कहा कि अगर आप लोगों को निकाह पढ़ाना है तो लड़की का धर्म बदलना होगा. इस तरह आप इस्लाम के रीति-रिवाज से शादी कर सकते हैं. अगर आप ऐसा नहीं करना चाहते तो दूसरा तरीके ये है कि आप लोग आर्य समाज में शादी कर लें, लेकिन इसके लिए लड़के को इस्लाम छोड़कर हिन्दू बनना पड़ेगा. अगर आप ऐसा करते हैं तो हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत शादी हो जाएगी.
प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

वकील द्वारा सुझाए दोनों ही तरीकों में दिक्कत ये थी कि किसी ना किसी को धर्म बदलना पड़ रहा था, लेकिन रमीज और दीपमाला दोनों ही नहीं चाहते थे कि शादी के लिए कोई अपना धर्म बदले. ऐसे में वकील ने उन्हें सलाह दी कि स्पेशल मैरिज एक्ट में आप दोनों बिना धर्म बदले शादी कर सकते हैं. दोनों ने तय किया कि वे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करेंगे.
आसान भाषा में हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि स्पेशल मैरिज एक्ट क्या है? ये कानून कब बना? किस पर लागू होता है? इस कानून को लाने का मकसद क्या था? कानून इस समय चर्चा में क्यों है? क्यों चर्चा में है कानून? इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक फैसले में कहा है कि स्पेशल मैरिज एक्ट यानी विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने वाले कपल को 30 दिन पहले नोटिस देने का नियम अनिवार्य नहीं है, इसे वैकल्पिक बनाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि इस तरह का नोटिस निजता का हनन है. यह जोड़े की इच्छा पर निर्भर होना चाहिए कि वह नोटिस देना चाहते हैं या नहीं. क्या है स्पेशल मैरिज एक्ट? भारत के हर व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है कि वह जिस धर्म और जाति में शादी करना चाहे, कर सकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए देश की आजादी के बाद 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय एक कानून बनाया गया. इस कानून को ही स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के नाम से जाना जाता है. इसे सिविल मैरिज एक्ट भी कहते हैं. स्पेशल मैरिज एक्ट को प्रोग्रेसिव एक्ट माना गया. इस कानून के तहत अलग-अलग धर्म और अलग-अलग जाति के दो एडल्ट यानी वयस्क शादी कर सकते हैं.
पंचायत ने 17 साल के लड़के और 13 साल की लड़की की शादी करा दी. प्रतीकात्मक फोटो

दिल्ली की तीस हज़ारी कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एडवोकेट अभिषेक असवाल का कहना है कि शादी को लेकर अलग-अलग धर्मों के अपने अलग-अलग एक्ट हैं, जो सिर्फ उन धर्मों को मानने वालों पर लागू होते हैं. उन्हें उस एक्ट्स के हिसाब से शादी रजिस्टर करानी होती है. लेकिन स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत किसी को अपना धर्म बदलने की ज़रूरत नहीं होती. यह एक्ट भारत के सभी नागरिकों पर लागू होता है. यदि वो विदेश में रह रहे हों, तो भी. लेकिन भारत का नागरिक होना ज़रूरी है. इस एक्ट के तहत शादी के लिए क्या करना होगा? वापस ऊपर वाले उदाहरण पर लौटते हैं... दीपमाला और रमीज शादी करना चाहते हैं. वकील ने उन्हें ये तो बता दिया कि वे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी कर सकते हैं, लेकिन उसके लिए उन्हें कुछ बातों का ध्यान रखना होगा.
# लड़का और लड़की दोनों बालिग हों. यानी लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल होनी चाहिए. #दोनों पक्षों को ये बताना होगा कि वे पहले से शादीशुदा नहीं हैं. यदि पहले शादी हुई है तो पति या पत्नी से तलाक हो चुका है. #या पहली शादी से पति या पत्नी जीवित नहीं हैं. #शादी के लिए दोनों पक्षों की सहमति जरूरी है. सहमति बिना किसी दवाब के होनी चाहिए. #यदि दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष को पागलपन के दौरे आते हैं या कोई एक पक्ष मानसिक रूप से बीमार है तो ऐसे हालात में शादी नहीं हो सकती. #दोनों पक्ष में से कोई भी पक्ष SAPINDA RELATIONSHIP (पारिवारिक रिश्ते) में ना हो. #अगर दोनों पक्ष इन शर्तों को पूरा करते हैं तो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी हो सकती है.
ऊपर दी गईं शर्तें पूरा करने वाले कपल शादी कर सकते हैं. दोनों को एक फॉर्म भरना होगा. फॉर्म ऑनलाइन मिल जाएगा, मैरिज ऑफिस से भी ले सकते हैं. फॉर्म भरने के लिए एड्रेस प्रूफ देना होगा.  जिसके लिए आधार कार्ड, पासपोर्ट या इसी तरह के जरूरी डॉक्यूमेंट की आवश्यकता होगी. फॉर्म भरने के बाद इसे मैरिज रजिस्ट्रार के पास जमा कराना होगा.
इस कानून की खास बात ये भी है कि एक ही धर्म या जाति के लोग भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी कर सकते हैं. अगर वे ऊपर बताई गई शर्तों को पूरा करते हैं तो. 30 दिन के नोटिस का मामला क्या है? एक ही धर्म में होने वाली ज्यादातर शादियों में परिवार शामिल होता. उस धर्म के रीति-रिवाज से शादी होती है. समाज को पता चलता है कि हां ये दो लोग शादी कर रहे हैं, लेकिन स्पेशल मैरिज एक्ट में लोग खुद से मैरिज ऑफिसर के पास जाते हैं, इसलिए ये प्रावधान रखा गया कि उन्हें 30 दिन का नोटिस देना होगा. उस नोटिस को सार्वजनिक जगह पर डिस्प्ले करना होता है, इसमें ये बताना होता है कि ये दो व्यक्ति शादी करना चाहते हैं. अगर किसी को आपत्ति है तो वो अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं.
Allahabad Hc इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने फैसला दिया है कि अब स्पेशल मैरिज एक्ट में शादी करने वालों को 30 दिन पहले नोटिस देने की कोई जरूरत नहीं है. (फाइल फोटो)

अब इसी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि 30 दिन के नोटिस पीरियड को अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार से नोटिस को अनिवार्य बनाना स्वतंत्रता और निजता के मौलिक अधिकारों पर हमला होगा. स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के अधिनियम की धारा 5 के तहत नोटिस देते समय, शादी करने वालों के लिए यह विकल्प होगा कि चाहें तो वे विवाह अधिकारी को लिखित रूप में अनुरोध करें कि वह धारा 6 के तहत नोटिस प्रकाशित करें या प्रकाशित न करें.
30 दिन के नोटिस को हटाने के मामले में ये भी तर्क दिया जाता है कि जब शादी के जुड़े अन्य कानून में इस तरह का प्रावधान नहीं है तो इसे भी असंवैधानिक बनाया जाना चाहिए.
वहीं इसके समर्थकों का कहना है कि सेफगार्ड रखना जरूरी है. 30 दिन का नोटिस इसी तरह का सेफगार्ड है. क्योंकि इस तरह की शादियों में झूठ-फरेब चलता है, इसलिए जरूरी है कि सेफगार्ड हो. अगर किसी ने शिकायत की तब क्या होगा? शिकायत के बाद मैरिज रजिस्ट्रार सिर्फ उन बातों पर गौर करेगा जो इस कानून की शर्ते हैं, जो हमने ऊपर आपको बताई है. और किसी तरह की शिकायत के आधार पर दो लोगों को इस कानून के तहत शादी करने से नहीं रोका जाएगा.
एक और बात है. बाकी शादियों की तरह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भी रीति-रिवाज से शादी हो सकती है. लेकिन इस शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर कराना होगा. जब शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत हो रही है तो तलाक भी इसी एक्ट के तहत होगा. इस एक्ट के तहत शादी करने वाले दो अलग अलग धर्म के लोग इसी कानून के तहत तलाक भी ले सकते हैं.

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