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क्या शिया मुसलमान खाने में सचमुच थूक कर खिलाते हैं?

जान लो क्या है इस मान्यता के पीछे की कहानी, जो शियाओं के खाने की बचत कर रही है.

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''अरे वो. उसकी बात कर रहे हो. वो तो शिया है. पता है, वो खाने में थूक के खिलाते हैं. कोई उनके घर मेहमान आ जाए, तो खाने में पहले ही थूक देते हैं. हम तो कभी शिया के घर का नहीं खाते है.'' मैंने पूछा, क्या सच में वो थूक के खिलाते हैं. उसने बड़े ही दावे के साथ कहा, 'मियां क्या बात कर रहे हो, मौलवी साब बता रहे थे.'
अब मेरा सवाल था, क्या मौलवी साब सच बोल रहे थे. हो सकता है कि उन्होंने झूठ बोला हो. उसने आंखें तरेर के मेरी तरफ देखा और गुस्से वाले अंदाज में कहा, ''मियां 'ला हौल पढ़ो, भला मौलवी साब झूठ क्यों बोलेंगे. उनका काम तो लोगों को राह दिखाना है.'' मैंने पूछा, क्या शियाओं के मौलाना का काम थूक के खिलाना है. बस सामने वाला मुझ से चिढ़ गया, बोला - बड़ी शियाओं की तरफदारी कर रहे हो. लगता है तुम शिया हो. या होने वाले हो.
ऐसे आपको भी बहुत सारे लोग मिल जाएंगे, जो बताएंगे कि शिया थूक कर खिलाते हैं, लेकिन सॉलिड रीज़न उनके पास टाएं-टाएं फिस्स. कहेंगे कि दादा ने बताया. पापा ने बताया. या फलां साब ने बताया. बस सुना है. अगर पूछो कि तुमने किसी शिया को थूकते हुए देखा है, तो कहते, ''हां, फलां अंसारी भाई सिद्दीकी भाई या नकवी साब के घर गए थे. उनके घर पर चाय बनकर आई. अंसारी भाई ने खुद देखा कि उन्होंने चाय में थूका. भाई साब, वो तो उन्होंने बहाना ले दिया कि वो चाय नहीं पीते. अगर पीनी पड़ती तो पक्का उल्टी कर देते.'' तो आखिर क्या है इसका सच हम बताते हैं.

क्या कहानी है इस अफवाह की

कई मौलवी साहब से इस थूक के बारे में पूछा कि आखिर ये थूक किसके मुंह से निकला. जो लोगों के जहन में आज तक सड़ रहा है. कोई जवाब नहीं दे पाया. या फिर मैं उस मौलवी तक नहीं पहुंच पाया, जो इसकी हकीकत जानता है. शिया मौलवी से भी पूछा और सुन्नी मौलवी से भी. दोनों का सेम जवाब था. सुनते हैं. कहीं किसी किताब में तो नहीं पढ़ा. लो जी, मौलाना जी ने भी बस सुना है. तब इतना बखेड़ा है. अगर कहीं लिखा होता, तो पता नहीं क्या अंजाम होता. ये सुनना कितना खतरनाक है, खुद समझ लो. और तौबा कर लो कि अब अगर कुछ सुनोगे तो उसकी हकीकत तक जाओगे, किसी मौलवी की बातों में नहीं आओगे. क्योंकि ये मौलवी तो आपको किसी भी तरफ हांक लेंगे. इनके ही ऊपर डिपेंड न रहो. और हां, कुरान भी तो यही कहता है कि इल्म हासिल करो.

अब ये भी जान लो, लोगों ने कैसे किस्से गढ़ लिए हैं

एक जनाब मिले. कहने लगे, एक बादशाह था. उस बादशाह ने शियाओं को खाना बनाने पर लगा दिया. अब शिया पूरा दिन खाना बनाने में लगे रहते थे. उस बादशाह की इस सख्ती से बचने के लिए शिया नई-नई तरकीबें फिट करते थे. कभी बीमारी का बहाना लेकर, कभी कुछ. खाने में कभी मिर्च ज्यादा कर दी, तो कभी नमक. जब कुछ न हुआ तो उन्होंने खाना बनाते वक्त उसमें थूकना शुरू कर दिया. बादशाह को जब पता चला, तो उन्हें खाना बनाने से हटा दिया और कहा कि तुमसे ये काम नहीं होगा, तुम जमीनों की देखभाल करो. थूकने की बात यहीं से शुरू हो गई. अब सुन्नी तो उनकी थूकने की बात को पकड़ कर बैठ गए और शिया आगे बढ़ गए. तब से वो जमींदार भी बन गए. हम तो पता करने चले थे थूका किसने और पता चल गया कि शिया जमींदार कैसे बने.
अल्लाह जाने कौन सा ऐसा बादशाह था. जो इतने प्यार से मान गया और शियाओं को खाने में थूकने पर सजा न दी, बल्कि जमीनें सौंप दीं. मैंने तो काफी सर्च कर लिया. तुम्हें पता चले, तो मुझे भी बताना इस बादशाह का नाम. सच्ची पूछ रहा हूं.
दूसरे जनाब मिले. उन्होंने कहा, शियाओं ने मुहम्मद साहब के जमाने में एक दावत दी. जब सब उनके घर पहुंचे, तो उन्होंने मेहमानों को थूक कर खाना खिलाया. तभी से ये रस्म चली आ रही है शियाओं में. अब इस बात को जांचना था. जब सर्च किया तो पता चला शिया और सुन्नी तो मोहम्मद साहब के बाद बने. जब मोहम्मद साहब इस दुनिया से रुखसत कर गए, तब शिया और सुन्नी बने. तो फिर मोहम्मद साहब के टाइम शिया कहां से आए. यानी ये भी झूठ. तो मेरे प्यारे-प्यारे भाइयों, बात ऐसी है कि ये सिर्फ अफवाह है. और व्हाट्सएप की दुनिया में अफवाह पर ध्यान नहीं देना चाहिए. वो क्या है न कि जब एक झूठ को बार-बार बोले जाओ, तो सच सा लगने लगता है. सुना है, सुना है करके ये अफवाह चली आ रही है. इसी वजह से जब सुन्नी लोग शिया के घर जाते होंगे, तो उनके दिमाग में ये ही रहता होगा कि ये थूक के खिलाते हैं. अब शिया ने खाने या पीने की चीज परोसते हुए जरा सी भी चूक की, तो सुन्नी को लगेगा कि इन्होंने पक्का इसमें थूक दिया है.
ये बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मेरे गांव में मेरा एक दोस्त रिजवान बताता है कि उनके पड़ोसी एक शिया के घर गए. उन्होंने देखा किचन में चाय बन रही है. मेरे पड़ोसी उनके घर ऐसी जगह बैठे थे कि वो चाय बनाने वाली औरत को देख सकते थे. उन्होंने देखा कि औरत चाय के बर्तन पर मुंह झुकाए हुए थी. पक्का उसने चाय में थूका था. मैंने रिजवान से कहा, जब उसने आंखों से नहीं देखा कि औरत ने क्या किया तो ये कैसे मान लिया कि उसने थूका ही है. ये भी तो हो सकता है कि चाय में तेज उबाल आ रहा हो और वो फूंक मारकर चाय को बर्तन से बाहर निकलने से रोक रही हो. क्योंकि अक्सर मैं भी चाय बनाते वक्त ऐसा करता हूं.
ये अफवाह लंबे अरसे से चली आ रही है. आये दिन फतवे जारी होते रहते हैं, लेकिन ये नहीं सुनता कि शिया और सुन्नी को करीब लाने के लिए मौलवी लोग ऐसी अफवाहों के खिलाफ भी कुछ बोलते हों. मैं तो सुन-सुन के पक गया हूं. मैं तो खूब सबका हचक के खाता हूं. तुम ही इस फेर में पड़े रहो. जब दिमाग में लगा जाला साफ़ हो जाए, तो खाकर देख लेना. और हां, थूक के खाना नहीं खिलाया जाता है. थूक लगा के तो आज के दौर में रुपया दिया जाता है.

ये स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के लिए असगर ने की थी.


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