एनएसडी से ही स्नातक नवाजुद्दीन ने भारंगम के इंटरफेस कार्यक्रम में छात्रों, प्रशंसकों, कलाकारों और पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए.
साधारण से चेहरे-मोहरे और संकोची स्वभाव के नवाज ने एनएसडी में की गई मेहनत और थिएटर से सीखे अभिनय को अपने आत्मविश्वास का स्रोत बताया .
रंग में लौट चुके भारंगम के पांचवें रोज़ हिंदी, मराठी और दारी भाषा में चार नाटकों का मंचन हुआ.
सुरेश भारद्वाज का ‘वेलकम जिंदगी’, सचिन शिंदे ‘हंडाभर चांदण्या’, वामन केंद्रे का ‘मोहे पिया’ और अफगानिस्तान के मुहम्मद जहीर संगेर के ‘स्टेचूज’ के मंचन खासे सराहे गए.
रविवार के दिन ही आयोजित 'कथा कार्यशाला' में 'गोंड पेंटिंग' का प्रदर्शन भी किया गया. इसमें इंदिरा मुखर्जी, आनंद सिंह श्याम, कला बाई श्याम, दुर्गा बाई व्याम की पेंटिंग्स का प्रदर्शन किया गया. गोंड आदिवासी जनजाति है, जो मूलत: मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बसी हुई है. गोंड की चित्रकारी में मूलत: देवी-देवताओं, मिथकों को कथा के रूप में पेंट किया जाता है.
बात करें आज की सबसे कामयाब प्रस्तुति की तो वह थी – ‘मोहे पिया’.
वामन केंद्रे के निर्देशन में कमानी ऑडीटोरियम में खेला गया यह नाटक महाकवि भास के संस्कृत नाटक ‘मध्यमव्यायोगम्’ से प्रेरित है.

नाटक मोहे पिया का एक और दृश्य
बकौल वामन केंद्रे : ‘‘मैंने महाकवि भास की शास्त्रीय रचना ‘मध्यमव्यायोगम्’ को समसामयिक दर्शक के लिए पुनर्जीवित करने का निश्चय किया. इस नाटक में हिडिम्बा को मैंने एक मननशील सोच और भावनात्मक आत्मा वाली आजाद महिला के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया है. तीनों मुख्य पात्रों की चरित्र-रूपरेखाएं तरंगित और जीवंत हैं और उनके बीच के कार्य-व्यवहार को रोचक और साथ ही साथ विचारोत्तेजक रूप से प्रासंगिक बनाती हैं.
‘मोहे पिया’ अपने पूरे हास्यबोध के साथ बढ़ते हुए अचानक एक राजनीतिक दुखांत में बदल जाता है. इस टर्न के लिए निर्देशकीय कौशल बहुत काबिले-गौर और प्रशंसा-योग्य है.
पांचवें रोज़ के अन्य नाटकों में सुरेश भारद्वाज का ‘वेलकम जिंदगी’ गुजरात के युवा नाटककार सौम्य जोशी का लिखा नाटक है. यह मुंबई के एक परिवार में आपसी रिश्तों की पड़ताल करता है जिसमें पिता, पुत्र और मां हैं.

नाटक वेलकम जिंदगी का एक दृश्य
श्रीराम सेंटर के ऑडीटोरियम में मंचित सचिन शिंदे का मराठी नाटक 'हंडाभर चांदण्या’ पानी की समस्या पर फोकस है. इस नाटक में एक ऐसा गांव है जहां पानी दिखना लगभग नामुकिन है. गांववालों ने इस समस्या के साथ समझौता कर लिया है. लेकिन ऐसे में संभा नाम का एक युवक गांववालों के इस रवैए से उकता कर एक ऐसा क़दम उठाता है जो उसे सही लगता है. वह एक कलेक्टर को अगवा करके गांव में ले आता है.

नाटक हंडाभर चांदण्या का एक दृश्य
जब तक पानी का टैंकर गांव में नहीं आता तब तक कलेक्टर साहिबा को न छोड़ने की संभा कसम खाता है. उसके बाद शुरू होता है टैंकर की राह देखने का अजीब और हैरतअंगेज किस्सा. गांववाले पानी न होने के दुख को इतना सहज रूप से लेने लगे हैं कि उनके लिए अब किसी चीज की राह देखना भी एक ‘उत्सव’ हो चुका है. ‘हंडाभर चांदण्या’ इसी उत्सव का एक नाट्यरूप है.
पांचवें रोज़ की आखिरी प्रस्तुति रही ‘अभिमंच’ में प्रस्तुत अफगानिस्तान से आया नाटक ‘स्टैचूज’.

नाटक स्टैचूज का एक दृश्य
‘स्टैचूज’ चार जिंदा हो उठीं मूर्तियों की कहानी है जो जिंदा होकर एक दूसरे का मजाक उड़ा रही हैं. इनमें से हर मूर्ति चाहती है कि वह एक इंसान बन जाए. जैसे -जैसे नाटक आगे बढ़ता है उन्हें एहसास होता है कि आदमी कितना हृदयहीन हो चुका है और फिर वे फैसला करती हैं कि मूर्ति बने रहना ही बेहतर है. सबटाइटल की व्यवस्था न होने की वजह से इस नाटक को समझने में थोड़ी दिक्कत आती है.
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