कर्नल रिंचेन चेवांग को लॉयन ऑफ लद्धाख के नाम से भी जाना जाता है. (फोटो- Indian Army)
21 अक्टूबर, 2019. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और सेनाध्यक्ष बिपिन रावत लद्दाख पहुंचे. वहां उन्होंने एक पुल का उद्घाटन किया. ये पुल श्योक नदी पर बना है. जो चीन की सीमा यानी 'लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी)' से 45 किलोमीटर की दूरी पर है. ये पुल चीनी सीमा से लगे दरबुक इलाके को दौलत बेग ओल्डी से जोड़ेगी. 4.5 मीटर चौड़ी ये पुल 70 टन तक के वाहनों का भार सहने में सक्षम है. इसे बनाया है बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन यानी BRO ने. 14,650 फीट की ऊंचाई पर बना ये पुल भारत के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. इसके बनने से श्योक नदी के आसपास के गांवों और बॉर्डर तक पहुंचने में आसानी होगी. इस पुल का नाम कर्नल चेवांग रिंचेन ब्रिज रखा गया है. अब आप सोच रहे होंगे कि कर्नल चेवांग रिंचेन कौन थे? चलिए हम बताते हैं.
लेह बचाने की चुनौती साल 1948. मई का महीना. पाकिस्तान के कबायली लड़ाकों ने कारगिल पर कब्जा कर लिया था. लेकिन लेह छोड़ दिया था. शायद उन्हें लगा कि यहां आसानी से कब्जा हो जाएगा. क्योंकि उस समय वहां इंडियन आर्मी की मौजूदगी का निशान नहीं था. हालांकि जम्मू-कश्मीर स्टेट फोर्स के 33 जवान वहां पहले से डटे हुए थे. इसके बाद वहां पहुंचे लेफ्टिनेंट कर्नल पृथी चंद, 20 वॉलंटियर्स की एक टीम के साथ. इन जवानों के सामने बौद्ध मठों और शांतिप्रिय लद्दाख को बचाने की चुनौती थी. 13 मई, 1948 के दिन कर्नल पृथी चंद ने लेह में तिरंगा फहरा दिया. उन्होंने पाकिस्तानी कबायली लड़ाकों का सामना करने के लिए स्थानीय लोगों से मदद मांगी. उनका साथ देने के लिए 17 साल का एक स्कूली लड़का सबसे पहले आया. उसके बाद 28 और लोग आए. इन सबको बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग दी गई. और इनकी टीम का नाम रखा गया नुब्रा गार्ड्स. नुब्रा गार्ड्स का नेतृत्व उस 17 साल के लड़के के ही हाथ में था. नुब्रा गार्ड्स ने 1947-48 की उस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. असंभव को संभव कर दिखाया. इन्होंने कबायली लड़ाकों को तबतक रोककर रखा जब तक सेना की तरफ से और अधिक सहायता नहीं आ गई.
हजारों फीट की ऊंचाई पर सैन्य शौर्य 17 साल के उस लड़के के साहस और नेतृत्व क्षमता को देखते हुए उसे इंडियन आर्मी में कमिशंड ऑफिसर बनाया गया. इस लड़के का नाम था चेवांग रिंचेन. उन्हें दूसरे सबसे सैन्य सम्मान महावीर चक्र से भी सम्मानित किया गया. चेवांग महावीर चक्र से सम्मानित होने वाले सबसे कम उम्र के अवॉर्डी हैं. चेवांग का जन्म नुब्रा घाटी के सुमुर गांव में 11 नवंबर, 1931 को हुआ था. वह इंडियन आर्मी में कमीशंड ऑफिसर बनने वाले नुब्रा घाटी के पहले व्यक्ति थे. सितंबर, 1948 में उनकी सहायता से इंडियन आर्मी ने 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित लामा हाउस पर कब्जा कर लिया. दिसंबर में बैगाडंगडो के पास ऊंची पहाड़ी पर भयंकर हमला कर उसे भी कब्जे में कर लिया. अंतिम लड़ाई 21 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित तुक्कर हिल पर थी. इस हिल की ऊंची-ऊंची पहाड़ियां बर्फ से ढंकी थीं और आधी पलटन की हालत भयंकर सर्दी के कारण खराब थी. लेकिन चेवांग के शानदार नेतृत्व में आर्मी इस पहाड़ी पर भी कब्जा करने में सफल रही.
1971 की लड़ाई में रिंचेन और लद्दाख स्काउट्स के उनके बैंड ने पाकिस्तान के कब्जे से 804 वर्ग किलोमीटर का एरिया आजाद करा लिया. इसमें तुर्तुक गांव भी शामिल था. जो कि सामरिक रूप से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. रिंचेन के नेतृत्व में बिना एक भी जान गंवाए ये ऑपरेशन सफल रहा. चेवांग की रणनीति और लड़ाई के तरीकों के बारे में फ्रेंच इतिहासकार क्लॉड अर्पी (
Claude Arpi) ने
काफी विस्तार से लिखा है. क्लॉड अर्पी के मुताबिक, 1971 की लड़ाई के दौरान उनकी ट्रूप जब तुर्तुक के एक गांव में पहुंची तो वहां भगदड़ मच गई.
गांव में भारतीय सेना को देख लोगों ने बच्चों और महिलाओं को गांव से थोड़ी दूर एक छोटी सी नदी के किनारे छिपा दिया. कर्नल रिंचेन ने सबको इकट्ठा किया. और उन्हें विश्वास दिलाया कि उनके साथ कुछ भी गलत नहीं होगा. कर्नल रिंचेन ने कहा,
23 सालों के बाद इंडिया में एक बार फिर से आपका स्वागत है. अपने बच्चों और महिलाओं को वापस ले आइए. वे हमारी मां और बहन के समान हैं. उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी है. अगर मेरे साथ आया एक भी जवान कोई दुर्व्यवहार करता है तो उसके खिलाफ मैं एक्शन लूंगा. मैं चाहता हूं कि आप सब भारत के स्वतंत्र नागरिक की तरह रहें. जहां अलग-अलग मजहब के लोग शांति और सद्भाव से एक साथ रहते हैं और काम करते हैं.
दूसरा महावीर चक्र 1971 में 1971 की लड़ाई में उनकी वीरता को देखते हुए उन्हें एक बार फिर महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. एक मिलिट्री कमांडर के रूप में कर्नल रिंचेन हमेशा दुश्मनों को चौंकाने में विश्वास करते थे. स्थानीय होने के कारण उन्हें पता होता था कि ऊंची पहाड़ियों पर कड़ाके की ठंड में किस तरह से ऑपरेशन को अंजाम देना है. वे हमेशा लड़ाई में स्थानीय लोगों की मदद लेते थे. वे मानते थे कि उनके जवानों की जिंदगी स्थानीय लोगों पर टिकी है. दो बार महावीर चक्र से सम्मानित होने वाले रिंचेन 1984 में सेना से रिटायर हुए. 1 जुलाई, 1997 को उनका निधन हो गया. इंडियन आर्मी ने हाल ही में कर्नल चेवांग रिंचेन के घर को हेरिटेज अबोड बनाया गया है. इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया गया है. इंडियन आर्मी के अनसुने हीरो कर्नल चेवांग को 'लॉयन ऑफ लद्दाख' भी कहा जाता है.
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