The Lallantop

युद्ध को खेल और खेल को युद्ध समझने वालों को नोलान की ये फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए

कौन गिरा है, कौन मरा है, किस माताम है, कौन कहे ?

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फोटो - thelallantop
ब्रिटिश नेवी का कमांडर समंदर के किनारे खड़ा था. ब्रिटिश सेना ने जो पेरिमीटर सेट किया हुआ था, वो घंटे की दर से कम हो रहा था. ब्रिटिश आर्मी और उनके साथी देशों की सेना समंदर किनारे वापसी के इंतज़ार में खड़ी थी. उन्हें उठा कर घर ले जाने के लिए एक वक़्त पर एक ही जहाज आ सकता था. ब्रिटिश नहीं चाहते थे कि उनके जहाज़ों को नुकसान पहुंचे. आसमान में दुश्मन की एयर-फ़ोर्स कौंधती थी, विस्फ़ोटक बरसाती थी और चली जाती थी. जहाज़ और उसमें मौजूद सैनिक, सभी खतरे में थे. जहाज़ में बैठना आख़िरी पड़ाव नहीं था. बीच समंदर में भी नावें और जहाज डूब रहे थे. ऐसे में ब्रिटिश नेवी कमांडर से ब्रिटिश आर्मी का अफ़सर सवाल करता है. वो पूछता है कि जहाज़ कब आएगा? टाइड पलट चुकी है. समय निकल रहा है. उसे जवाब मिलता है कि एक वक़्त पर एक ही जहाज़ आएगा. सेना अपने जहाज बचाना चाहती है. अगले युद्ध के लिए. वो इकट्ठे सब कुछ नहीं भेज सकती. बड़े जहाज भी नहीं. उनके आने से बड़े नुकसान का खतरा है. कमांडर इस वक़्त अपने क्रूरतम चेहरे को दिखा रहा था. वो भयानक ठण्ड में पत्थर जैसा कड़ा बना हुआ था. उसने एक अफ़सर को अभी-अभी बताया था कि उसे अपने सैनिकों को मरने के लिए खुले में छोड़ना पड़ेगा. जो बच जायेगा, पार हो जायेगा. ऐसे क्रूर बने रहना ही उसका काम था.   dunkirk 2   समय बीतता है. आसमान में अब ब्रिटिश स्पिटफ़ायर भी दिख रहे थे. दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान स्पिटफ़ायर अपने नाम के मुताबिक़ आसमान में आग उगलने वाला ब्रिटिश लड़ाकू जहाज था. जर्मन फाइटर प्लेन्स को वो नीचे गिरा रहे थे. रॉयल एयर फ़ोर्स का पायलट फ़ेरियर अपने दो साथियों को समंदर में गिरता हुआ देखता है. वो एक-एक जर्मन प्लेन को गिराता है. अब तक समंदर में छोटी-छोटी नावें दिखाई पड़ने लगती हैं. ये सिविलियंस की नावें हैं. वो ब्रिटिश सीमा से डन्कर्क आये हैं. तैर रहे सैनिकों को रास्ते से रेस्क्यू करने के लिए और डन्कर्क में फंसे सैनिकों को ले जाने के लिए. नेवी कमांडर उन्हें दूर से ही देख लेता है. दूरबीन में फिट उसकी आंखें चमक उठती हैं. आर्मी अफ़सर उससे पूछता है कि वो क्या देख रहा है. वो कहता है. "घर." और इस दौरान उसकी आंखों में उसके आगे तैर रहे समंदर से भी ज़्यादा नमकीन पानी उतर आता है. वो पत्थर से फिर इंसान बनता दिख रहा होता है.   dunkirk 3   फ़ेरियर के प्लेन का ईंधन ख़त्म हो जाता है. अब उसका जहाज बस हवा में तैर रहा है. उन नावों के ऊपर जो समंदर में तैर रही हैं और उनमें सैनिक वापस घर जाने के लिए लदे हुए हैं. तट खाली हो चुका है. बस 4-5 बड़े अफ़सर बचे हैं. एक प्राइवेट भी है. उसे अफसरों के साथ नाव में बिठाया जाता है. सभी अफ़सर नाव में बैठ चुके हैं. नेवी कमांडर रुक जाता है. कहता है कि वो तब तक नहीं जायेगा जब तक फ्रेंच सैनिक वहां से नहीं भेज दिए जाते. डन्कर्क की यही कहानी है. घर जाने की कहानी. घर को डन्कर्क तक ले आने की कहानी. वो घर जो वहां खड़े सैनिकों को आंखों पर जोर देने से दिख सकता था. उन्हें वहां पहुंचने में एक हफ़्ता लगता. और बीच में थी जर्मन एयर-फ़ोर्स. वो नेवी कमांडर जो राहत के लिए आती नावों को देखकर पत्थर से पानी हो जाता है, अंत में भी वहीं खड़ा रहता है. क्यूंकि उसे अपनी ड्यूटी याद थी. क्यूंकि उसे अपने ऊपर डाली गयी ज़िम्मेदारी अभी भी याद थी.

मुझे हमेशा लगता है कि कोई भी जब एक फ़िल्म बनाता है तो उसे बनाने के पीछे एक मकसद होता है. अक्सर एक ख़याल होता है. वो ख़याल एक पन्ने लम्बा भी हो सकता है, एक लाइन जितना छोटा भी. डन्कर्क फ़िल्म में डायरेक्टर क्रिस्टोफ़र नोलान के पास शायद एक लाइन थी - एक बूढ़ा आदमी, जिसका एक बेटा चल रहे विश्व युद्ध के दूसरे हफ़्ते में ही मारा जा चुका था, अपनी नाव को वापस ब्रिटेन की तरफ मोड़ने से इनकार कर देता है और डन्कर्क में सैनिकों को वापस लेने जाने के लिए आगे बढ़ रहा था. उससे जब कहा जाता है कि इस उम्र में वो क्या कर लेगा, तो वो पलटकर जवाब देता है - "मेरी उम्र के लोग युद्ध को कंट्रोल कर रहे हैं और हम अपने बच्चों को युद्ध में भेज रहे हैं." ये वो समय है जब फ़िल्म आपको एक तमाचा मारती है और आप एक गहरी नींद से जाग उठते हैं. इस एक लाइन के बाद आप बाकी की फ़िल्म देखते ज़रूर हैं लेकिन पूरे दौरान ये एक कथन आपके दिमाग में दौड़ रहा होता है. ये एक लाइन आपके साथ जाती है. आपके साथ रहती है.


जिस वक़्त ये फ़िल्म इंडिया में आई है, यहां भयानक माहौल बना हुआ है. चीन और पाकिस्तान से लड़ाई की तैयारी चल रही है. और ये तैयारी उतनी तो सेना नहीं कर रही है, जितनी सोशल मीडिया पर चल रही है. एक बड़ा तबका है जो लड़ाई के पक्ष में है. एक तबका है जो 'चीनी' को पानी में घोल के पी जाने की तैयारी में जुटा हुआ है. लेकिन जब आप डन्कर्क के पानी को देखते हैं और उसमें डूबते जहाज में खुद को पाते हैं तो आपके पैर का अंगूठा खुद-ब-खुद बगल वाली उंगली पर चढ़ जाता है. एक बड़े रेस्क्यू शिप में जब सवा सौ सैनिक सवार हों और उस पर बम गिरा दिया जाए तो एक युद्ध की असलियत सामने आती है. जब वो जहाज टेढ़ा होता हुआ डूब रहा होता है, उसमें लगातार पानी भर रहा होता है, उसमें मौजूद सैनिक उस पानी में डूब रहे होते हैं और बाहर निकलने वाला एकमात्र दरवाज़ा बंद होता है तो आप वहां मौजूद रहना चाहते हैं - उस दरवाज़े को खोल सकने के लिए. dunkirk 5 जब आपके सामने वो सभी उस पानी में डूब रहे होते हैं, आप सांस लेने के लिए मुंह खोल देते हैं. ये न केवल एक फ़िल्म बनाने वाले की सफ़लता है बल्कि आपके लिए एक रियेलिटी चेक है कि जब युद्ध होगा तो असल में ऐसा ही होगा. सैकड़ों, हजारों लोगों के साथ. और उन सभी का दोष आपके सर मढ़ा जाएगा. क्यूंकि आप युद्ध के पक्षधर थे. फ़िल्म के लिए क्रिस्टोफ़र नोलान ने खासी तैयारी की थी. असल जगहों पर फ़िल्म को शूट किया गया और साथ ही कैमरा का ऐसा इस्तेमाल किया गया मानो अाप खुद ही सब कुछ अपनी आंखों से देख रहे हों. ये सब कुछ मिलकर आपको बीच लड़ाई में खड़ा कर देता है. जब एक सैनिक जर्मन गोलियों से बचने के लिए एक लकड़ी के गेट को फांद रहा होता है, आप चाहते हैं कि उसके कूल्हों को सहारा देकर उस पार धकेल दें वरना वो मारा जाएगा. और आप ऐसा ही एक युद्ध चाह रहे थे. अगर उसे मरते देखने में आपको मज़ा आता है तो यकीन मानिए आप भी अन्दर से मरे हुए हैं. और चूंकि ये युद्ध है, इसलिए मारे दोनों ही तरफ के लोग जायेंगे. जब हमारा देश किसी पाकिस्तान या चीन से लड़ेगा तो हमारे सैनिकों की ही मार्फ़त वहां वाले भी गोलियों का शिकार होंगे. और इस बात का यकीन करिए कि वो भी हमारे देश के सैनिकों जैसे अपनी-अपनी मांओं के पेट में पले होंगे. उनकी मांएं भी उन्हें उतना ही प्यार करती होंगी जितनी इस देश की मांएं करती हैं. पानी में ये भी डूबेंगे, वो भी. न इनके फेफड़े मछली जैसे हैं, न उनके. और आप कहते हैं कि युद्ध हो. ये बात उनके मुंह पर कहिए, जिनके परिचित रायफ़ल पकड़े, बर्फ़ में पैर घुसाए खड़े हैं. फ़िल्म में एक 18 साल का लड़का दिखता है. लड़का असल ज़िन्दगी में भी 18 साल का ही है. क्रिस्टोफ़र नोलान बताते हैं कि इससे पहले उस लड़के ने फिल्मों में कुछ भी नहीं किया है. उसे लिए जाने की एक ही वजह थी - वो 18 साल का था. नोलान कहते हैं कि उन्हें फिल्मों में बड़ी उम्र के ऐक्टर्स को 18-20 साल का लड़का दिखा देने का कॉन्सेप्ट कभी समझ में नहीं आया. वो लड़का डरा हुआ है. उसे घर जाना है. वो छल-कपट सब कुछ ट्राई कर लेता है, लेकिन उसके वापसी करने वाले जहाज में बैठने का नम्बर ही नहीं आता. उसकी हरकतों को गौर से देखिये, उसके ब्लैंक चेहरे को एक बार पढ़ने की कोशिश कीजिये, आपको युद्ध की एक एक बुरी तस्वीर उसमें दिख जाएगी. घर. घर जाने की चाह. लोगों को उनके घर वापस लाने का कड़ा इरादा. इसी की कहानी है डन्कर्क. वो सभी जो किसी देश से लड़ जाना चाहते हैं, उसे पानी में घोल के पी लेना चाहते हैं, वो इस सपने को जितनी जल्दी हो सके, त्याग दें तो बेहतर होगा. सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान अमेरिका के जनरल डगलस मैकआर्थर ने कहा था, "सबसे ज़्यादा सैनिक शान्ति की प्रार्थना करते हैं. क्यूंकि एक सैनिक ही एक युद्ध में सबसे ज़्यादा भुगतता है और उसे ही एक युद्ध में सबसे गहरे घाव मिलते हैं.'' जिन सोशल मीडिया वॉरियर्स को युद्ध का शौक चर्राया है, वो इस फ़िल्म को देखें.

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