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कैंपस किस्साः IIT गुवाहाटी जिमखाना चुनाव के आगे कर्नाटक वाला भी फेल है

क्योंकि इसमें नेता नहीं, 'बॉन्ड' लड़ते हैं, 'फच्चे' वोट डालते हैं और 'मटके' सिर धुनते हैं.

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IIT के लड़के पढ़ते बस नहीं है. लपककर नेतागिरी भी करते हैं. चुनाव में. फोटोः गुलाल, 2009
कैंपस किस्सा हमारी लल्लनटॉप पेशकश है. कैंपस से आए बालक-बालिकाएं इस सीरीज़ में अपनी कॉलेज लाइफ के मज़ेदार किस्से सुनाते हैं. अगर आपके पास अपना कोई कैंपस किस्सा है, तो हमें lallantopmail@gmail.com पर मेल कड्डालें. धांसू हुआ तो हम उसे पब्लिश करेंगे. आपके नाम-फोटू के साथ. जब तक ये सब होता है, आप IIT गुवाहाटी से आया कैंपस किस्सा पढ़िए - 


मार्च का महीना था, साल 2016 का मार्च. कैंपस में आए एक साल पूरा होने वाला था. अब फच्चा कहलाए जाने का समय जाने वाला था. ‘फच्चा’ यानी फर्स्ट ईयर का बच्चा. JEE निकालने का घमंड भी ख़त्म होना शुरू हो गया था. ये भी लगभग पता चल चुका था कि IIT की टी-शर्ट पहन कर शहर में घूमने से लड़की नहीं पटने वाली. ये भी कि हम में से ज्यादातर लड़के डिग्री मिलने तक सिंगल ही रहेंगे.
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जब हमें फर्स्ट ईयर में रैंडमली हॉस्टल में डाल दिया जाता है, उस समय हॉस्टल के कुछ स्टड सीनियर्स हमारे अंदर हॉस्टलवाद की जड़ें मज़बूत करने में लग जाते हैं. दूसरे हॉस्टल के लड़के भले ही हमारे बहुत अच्छे दोस्त हों लेकिन जब हम अपने-अपने हॉस्टल की भीड़ के साथ होते हैं, तो एक दूसरे के हॉस्टल को गालियों से छलनी कर डालते हैं.
IIT का कोई भी सच्चा हॉस्टलवादी लड़का उस राष्ट्रवादी से कम नहीं जो देशभक्ति के नाम पर भारत-पाकिस्तान के मैच में पाकिस्तान को चिल्ला-चिल्लाकर गालियां देता है. यह हॉस्टलवाद अपने चरम पर मार्च के महीने में पहुंचता है. इसका एक कारण यह है कि अप्रैल शुरुआत में इंटर-हॉस्टल चैंपियनशिप्स की ट्रॉफियां मिलती है. दूसरा यह कि मार्च में होते हैं इलेक्शन- 'IIT गुवाहाटी स्टूडेंट्स जिमखाना काउंसिल के इलेक्शन.'
बाहर से देखने पर IIT गुवाहाटी से शांत कोई दूसरी जगह नहीं है. अंदर हॉस्टल में दूसरी कहानी है. फोटोः मॉन्टाज फोटो क्लब, IIT गुवाहाटी
बाहर से देखने पर IIT गुवाहाटी से शांत कोई दूसरी जगह नहीं है. अंदर हॉस्टल में दूसरी कहानी है. फोटोः मॉन्टाज फोटो क्लब, IIT गुवाहाटी

IIT गुवाहाटी में इलेक्शन भारत के आम-चुनावों जैसे ही होते हैं. बस यहां हिंदू-मुस्लिम नहीं बल्कि नॉर्थ इंडियन - साउथ इंडियन होता है. और पार्टियां नहीं होतीं, हॉस्टल होते हैं. इलेक्शन के समय हर हॉस्टल एक संगठन बन जाता है और हर फच्चा कार्यकर्ता. जैसे बूथ-प्रभारी होते हैं, वैसे ही फ़च्चों वाली हर लॉबी का एक इंचार्ज बना दिया जाता है. सबसे ऊंची पोस्ट जिसके लिए चुनाव होते हैं, वो होती है वीपी (वाईस-प्रेसिडेंट) की. अब आप पूछेंगे कि प्रेसिडेंट क्या आसमान से टपकते हैं? तो जवाब है कि जिमखाने का प्रेसिडेंट हमारे प्रोफेसर्स में से कोई एक होता है. स्टूडेंट लोकतंत्र इसकी एक पोस्ट नीचे से शुरू होता है. खैर, चुनाव की शुरुआत में हमारे हॉस्टल यानी कि ‘मानस हॉस्टल’ से किसी ने वीपी के लिए नॉमिनेशन फाइल नहीं किया था.
जब हॉस्टल के टीवी रूम में फ़च्चों की पहली इनफॉर्मल मीटिंग हुई थी और सीनियर्स हमें अपने हॉस्टल पर गर्व महसूस करने के कारण गिना रहे थे, तब हमें बताया गया था कि मानस हॉस्टल सबसे पुराना हॉस्टल है. ‘कामेंग हॉस्टल’ हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है. हमारे हॉस्टल में केवल 300 की स्ट्रेंथ होने के बावजूद हम 500 की स्ट्रेंथ वाले हॉस्टल के पसीने छुड़ा देते हैं. इस बार का वीपी भी हमारे हॉस्टल से है और पिछला वीपी भी अपने हॉस्टल से ही था.
IIT गुवाहाटी का मानस हॉस्टल. हल्के नीले वस्त्रों वाला बालक लेखक स्वयं है.
IIT गुवाहाटी का मानस हॉस्टल. हल्के नीले वस्त्रों वाला हंसमुख बालक लेखक स्वयं है.

हर हॉस्टल का एक बैटल-क्राई होता है. हमारा था ‘यो मानस’. हमें चैंपियनशिप ट्रॉफियां दिखाई जाती हैं और तीन बार ज़ोर से ‘यो मानस’ चिल्लाने को कहा जाता है. जब फुल गूज़बम्प्स वाला माहौल हो जाता है, हमें तसल्ली से गालियां दे देकर अपने अंदर हॉस्टल वाली फील लाने को कहा जाता है. हमारे अंदर से भी ऐसा भाव आने लगता है-
“या खुदा! क्या हॉस्टल मिला है.”
हम शुरुआत में निराश थे कि ऐसे महान हॉस्टल में एक भी ऐसा सीनियर नहीं, जो वीपी के लिए खड़ा हो सके. लेकिन हमारी निराशा का अंत हुआ. नॉमिनेशन फाइल करने की लास्ट डेट से एक दिन पहले हॉस्टल में हल्ला मच गया. उसी रात को 10 बजे टीवी रूम में फ़च्चों की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गयी. हम जाकर बैठे और कमरा कोलाहल से भर गया. किसी को नहीं पता था मीटिंग क्यों बुलाई गई है. फिर थोड़ी ही देर बाद सेकंड ईयर और थर्ड ईयर के 8-10 सीनियर अंदर आते हैं. उनमें से आगे आकर आतिक भैया हाथ उठा कर शांत रहने का इशारा करते हैं. कमरा एक बार में शांत हो जाता है. आतिक भैया हॉस्टल के वो लौंडे थे - जो कुछ भी नहीं थे, फिर भी सब कुछ थे. सीधे शब्दों में कहें तो हॉस्टल के डॉन. आतिक भैया आयुष कृष्णा भैया को आगे करते हैं और कंधे पे हाथ रख के बोलते हैं,
“अपने हॉस्टल से आयुष कृष्णा वीपी के लिए खड़ा हो रहा है.”
IIT गुआहाटी में बॉन्ड का मतलब जेम्स नहीं होता है. हॉस्टल में बॉन्ड होता है धांसू सीनियर. फोटोःगुलाल
IIT गुआहाटी में बॉन्ड का मतलब जेम्स नहीं होता है. हॉस्टल में बॉन्ड होता है धांसू सीनियर. (फोटोःगुलाल, 2009)

बॉन्ड, जेम्स मचाउ बॉन्ड
रूम में फिर से खुसर-फुसर होने लगी. फिर से भैया ने हाथ उठाया और फिर से सब शांत हो गए. फिर हमें बताया गया कि नॉमिनेशन फाइल करने में हम लेट हो गए हैं. पांच दिन बाद इलेक्शन हैं और इसीलिए हमें दोगुनी रफ़्तार से काम करना होगा. हमें बताया गया कि आयुष भैया कितने बॉण्ड भैया हैं. बॉण्ड शब्द जेम्स बॉण्ड के नाम से उठाया गया है और IIT में आलराउंडर टाइप के लड़कों को बॉण्ड की उपाधि प्राप्त होती है.
एक और शब्द है ‘मचाऊ’. यानी 'मचा देने वाला' और मचा देना मतलब एकदम अव्वल दर्जे का एक्स्ट्राऑर्डिनरी काम कर देना. आयुष भैया के बखान में मचाऊ शब्द का भी बार-बार उपयोग हुआ. सारे थर्ड ईयर वाले सीनियर्स ने बारी-बारी से बोला. आयुष भैया ने भी बोला लेकिन विनम्रता के भाव से. सेकंड ईयर वाले सीनियर्स को बोलने नहीं मिला.
हमें पहले ही बताया गया था कि सारे साउथ इंडियन स्टूडेंट्स बहुत यूनिटी से रहते हैं. वे केवल साउथ इंडियन कैंडिडेट को ही वोट डालते हैं. इस बार हमारे यानी नॉर्थ इंडियन के जीतने के चांसेस ज्यादा हैं क्योंकि वीपी के लिए दो साउथ इंडियन कैंडिडेट्स खड़े हो रहे हैं. तो साउथ वालों का वोट बंट जाएगा.
चुनाव से पहले अलग-अलग हॉस्टल के डॉन आपस में डील करते हैं. फोटोःगुलाल
चुनाव से पहले अलग-अलग हॉस्टल के डॉन आपस में डील करते हैं. (फोटोःगुलाल, 2009)

इसके बाद हर लॉबी के दो-तीन इंचार्ज बना दिए गए. अपनी लॉबी का एक इंचार्ज मैं भी था क्योंकि मैं हॉस्टल की गतिविधियों में एक्टिव रहता था. करीब एक घंटे मीटिंग चली और लॉबी इंचार्जों को छोड़कर सबको जाने के लिए कहा गया. हमें थर्ड फ्लोर पर A-3 लॉबी में ले जाया गया. A-3 आयुष भैया की लॉबी थी. वहां हमें एक फोर्थ ईयर के भैया ने खूब मोटिवेशन दिया और सारे दिशा-निर्देश दिए गए. लॉबी इंचार्ज की ज़िम्मेदारी थी सारी लॉबी को एक साथ ले जाकर अपने कैंडिडेट को वोट कराए और अनश्योर वोटर्स को अपने पक्ष में खीचें. आयुष भैया के थर्ड ईयर वाले दोस्तों की इलेक्शन के लिए एक कोर टीम बनी हुई थी. उस कोर टीम में करीब 10 लड़के रहे होंगे. कुछ मानस हॉस्टल के और कुछ दूसरे हॉस्टल के लड़के भी थे, जो आयुष भैया के होमटाउन मुज़फ्फरपुर के थे. उनके स्कूल में साथ पढ़े थे.
फच्चा वोट बैंक, जिसपे डॉन का काबू होता है
इलेक्शन से पहले के चार-पांच दिनों में अंदर ही अंदर खूब जम के खींचा-तानी चलती है. हॉस्टल की हॉस्टल से डील होती है. ये डील हॉस्टल के कुछ डॉन सीनियर्स ही आपस में कर लेते हैं कि तुम हमारे हॉस्टल के इस कैंडिडेट को वोट करवाओ, हम तुम्हारे कैंडिडेट को वोट डलवाएंगे. हर हॉस्टल के फच्चे एक वोटबैंक के रूप में तैयार हो जाते है. ये लड़के डॉन सीनियर्स के निर्देशानुसार वोट डालते हैं. सीनियर ईयर के लड़के कुछ बागी किस्म के होते हैं. ये अपनी मर्ज़ी से चलते हैं. गर्ल्स हॉस्टल भी समीकरण में आते हैं और जो लड़के, लड़कियों के बीच स्टड होते हैं, उन्हें इसका ज़िम्मा सौंपा जाता है. आयुष भैया के जो बाकी हॉस्टल के दोस्त थे उनमें से ज्यादातर ‘सियांग हॉस्टल’ और ‘बराक हॉस्टल’ के थे. इन दोनों हॉस्टल की डील दूसरे कैंडिडेट्स के साथ थी, लेकिन आयुष भैया के दल ने अंदर ही अंदर इन हॉस्टलों के आधे वोट काट लिए. हर एक थर्ड ईयर वाले दोस्त को दो-तीन फच्चे सौंप दिए गए. मुझे आयुष राजा भैया के अंडर रखा गया.
गुलाल में दिखाए फच्चों के पास फेसबुक नहीं था, इसलिए वो तख्ती लेकर दौड़ते फिरते थे. आईआईटी गुवाहाटी में दौड़-धूप फेसबुक पर होती है. फोटोः गुलाल, 2009
गुलाल में दिखाए फच्चों के पास फेसबुक नहीं था, इसलिए वो तख्ती लेकर दौड़ते फिरते थे. आईआईटी गुवाहाटी में दौड़-धूप फेसबुक पर होती है. (फोटोः गुलाल, 2009)

इलेक्शन के समय पर पब्लिक में प्रचार करने के लिए फेसबुक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया किया जाता है. हर समर्थक की प्रत्याशी के साथ DSLR से फोटो खींची जाती है और हर समर्थक उसे अपनी डीपी बना लेता है. अगले दिन सभी ने डीपी चेंज कर ली और फेसबुक पर आयुष कृष्णा के समर्थकों ने हल्ला मचा दिया. गौर करने लायक बात यह है कि दूसरे कैंडिडेट्स ने डीपी चेंज करने वाला तूफ़ान पहले ही मचा दिया था. हमने लेट शुरू किया था और हम वाकई में पीछे थे. इस ब्रांडिंग की रेस में आगे होने के लिए आयुष कृष्णा दल ने अगली चाल चली.
आयुष भैया के करीबी दोस्तों में से एक थे श्यान शुक्ला. वो मूवी क्लब के सेक्रेटरी थे. उन्हें डायरेक्शन और एडिटिंग दोनों में महारथ हासिल थी. श्यान ने अपना इक्का फेंक दिया. इलेक्शन के एक दिन पहले फेसबुक पर एक जागरुकता भरी विडियो ज़ारी करवाई गई. जिसमें आयुष भैया कैंपस की जनता से वोट देने आने के लिए आग्रह कर रहे थे. उस साल के इलेक्शन का किसी भी कैंडिडेट का वह इकलौता वीडियो था. इस वीडियो ने जनता पर अच्छा प्रभाव डाला और विरोधियों को चौंका दिया. चूंकि यह वीडियो इलेक्शन के एक दिन पहले ही आया था, विरोधियों को कोई और चाल चलने का मौका ही नहीं मिल पाया.
सूने दिख रहे ये रास्ते चुनाव के समय भीड़ से पटे होते हैं. फच्चे यहीं खड़े होकर गलाफाड़ प्रचार करते हैं.
सूने दिख रहे ये रास्ते चुनाव के समय भीड़ से पटे होते हैं. फच्चे यहीं खड़े होकर गलाफाड़ प्रचार करते हैं.(फोटोः मॉन्टाज फोटो क्लब, IIT गुवाहाटी)

मटकों  के लिए अलग स्ट्रैटेजी होती है
इलेक्शन के दिन हम सब सुबह 9 बजे अकैडमिक एरिया के पास पहुंच गए. वोटिंग सीसी (Computer Center) में होनी थी. और जब बच्चे लेक्चर और लैब करके अपने हॉस्टल लौटते हैं, तो सीसी रास्ते में पड़ता है. अकैडमिक एरिया से सीसी आने वाले दोनों रास्तो पे और सीसी से हॉस्टल एरिया दोनों रास्तों पे लड़कों को तैनात कर दिया गया. कुल मिला कर हम 40 लोग रहे होंगे जो इलेक्शन के दिन आयुष कृष्णा का प्रचार कर रहे थे. मतलब हर रास्ते पर करीब दस लड़के. सीसी के 100 मीटर के रडार में आने पर हमें इलेक्शन कमीशन वाले धक्के मार कर भगा दे रहे थे. हम रास्तों पर आने-जाने वाले हर आदमी को पकड़ पकड़ कर कानों में बोल रहे थे -
“वोट फॉर आयुष कृष्णा.”
दोपहर 12 बजे और शाम 5 बजे लेक्चर और लैब छूटते थे, उस समय हम फच्चे पूरा दम लगा कर चिल्लाते थे. क्योंकि दूसरे कैंडिडेट्स के फच्चे भी वहां खड़े होकर अपने भैया लोगों का नाम चिल्ला रहे होते थे. उस समय हम कैसे भी करके ज्यादातर लोगों के दिमाग में अपने प्रत्याशियों के नाम रजिस्टर करा रहे थे क्योंकि इनमे से ज्यादातर ‘मटके’ होते थे. मटके यानी M.Tech वाले लड़के जो पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं. मटके बैचलर कोर्स वाले लड़कों से अलग ही रहते हैं. उनका हॉस्टल भी अक्सर अलग ही होता है.
कैप्शन दिस.
कैप्शन दिस.

मटके पढ़ाई के अलावा बाकी की एक्टिविटीज में बहुत कम हिस्सा लेते हैं. ज्यादातर मटके ‘घिस्सू’ होते हैं. घिस्सू यानी जो खूब घिस कर पढाई-लिखाई करते हैं. ज़्यादातर मटके वीपी के कैंडिडेट्स की ज़रा भी जानकारी नहीं रखते. उन्हें इलेक्शन में कहीं भी खींचो, वे खिंचे चले आते हैं. ऐसा नहीं है कि वो वोट करने नहीं जाते. वे वोट करने भी जाते हैं क्योंकि सिनेटर्स में से कुछ सीटें पीजी सिनेटर्स के लिए रिजर्व्ड होती हैं.
मटके अपने पीजी वाले दोस्तों को वोट डालने आते हैं. ऐसे में उन्हें अपने वीपी के कैंडिडेट को वोट डालने के लिए खींचना कोई मुश्किल काम नहीं है. हमने जी जान लगा दी, केवल लंच करने हॉस्टल गए और गए तो वहां से लॉबी वालों को खींच कर लाए वोट डलवाने. बाकी समय अकैडमिक एरिया में ही रहे और पूरे दिन अनजान लोगों के कान में “वोट फॉर आयुष कृष्णा” चिल्लाते रहे. रात में थक के जाकर सो गए अपने अपने कमरों में. उस थकान में किसी भी हॉस्टल का कोई भी बिस्तर मिल जाता, तो सो गए होते. बाद में जब इलेक्शन के नतीजे आए तो आयुष कृष्णा भैया जीत गए. बहुत कम मार्जिन से जीते लेकिन जीत गए.
जब अपना बॉन्ड चुनाव जीत जाता है तो फच्चे कपड़ा-फाड़ खुशी मनाते हैं. फोटोः गुलाल, 2009
जब अपना बॉन्ड चुनाव जीत जाता है तो फच्चे कपड़ा-फाड़ खुशी मनाते हैं. (फोटोः गुलाल, 2009)

आज अपना फ़चपन याद आता है, तो यह इलेक्शन वाला किस्सा सबसे पहले याद आता है. याद आता है कि कैसे हमें घोड़ा बनाकर हम पर एक लगाम कस दी गई थी. याद आता है कि कैसे हमें जिधर को भी मोड़ा जाता था, हम उधर को मुड़ जाते थे. ये भी सोचता हूं कि कहीं आज किसी फच्चे को घोड़ा बनाकर हम सीनियर्स उसकी सवारी तो नहीं कर रहे. उस इलेक्शन के बाद से आयुष भैया मेरे बहुत करीब हो गए. आज वो बेंगलुरु में जॉब कर रहे हैं. समय निकालकर कभी-कभी मुझसे बात करते हैं. ज़मानेभर की बातें करते हैं.


IIT गुआहाटी से हमारे यहां इंटर्नशिप करने आए आयुष के बारे में तीन चीज़ें अच्छी हैं: एक - वो IIT से हैं, दूसरी - वो दफ्तर में किसी को प्यासा नहीं मरने देते, और तीसरी - वो किस्से कायदे के सुनाते हैं. प्रस्तुत लेख उनकी तीसरी खूबी का एक छोटू सा नमूना है. 


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