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ये 8 टॉर्चर पाकिस्तान से रिहा हुए सैनिक चंदू बाबूलाल ने भी तो सहे होंगे!

लोग वॉर, बदला जैसे शब्द बहुत यूज़ करते हैं लेकिन इनके पीछे की गंदी, बर्बर सच्चाइयों को नहीं जानते.

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इंसान वो जीव है, जिसके पास मानसिक रूप से परिपक्व होने की बेपनाह क्षमता है. अपने जीवन को सुरक्षित बनाने की प्रक्रिया में वो हिंसा को भी पलने का पर्याप्त अवसर देता है. ताकतवर होने पर जब वो इसका इस्तेमाल करता है, तब वो इंसान होने से मीलों आगे निकल जाता है. अपने जैसे ही किसी और के साथ उसका सलूक अथाह डरावना और दर्दनाक होता है. गढ़ी हुई व्यवस्था सिर्फ इसे पेचीदा बनाने में सहयोग करती है.

इसी हिंसा के नए-नवेले शिकार हैं 21 जनवरी 2017 को पाकिस्तानी सेना की कैद से रिहा हुए भारतीय सैनिक चंदू बाबूलाल चौहान. भारतीय सेना ने 28 सितंबर 2016 को पाक अधिकृत कश्मीर में चर्चित सर्जिकल स्ट्राइक की थी. इसके कुछ घंटों बाद चंदू गलती से सीमा पार करके पाकिस्तान पहुंच गए. कैद कर लिए गए. फिर अगले तीन महीनों में उन्होंने इंसान का सबसे बदसूरत चेहरा देखा.

चंदू जब लौटा तो बोलने की स्थिति में नहीं था. बोला तो आपबीती सुनाई. उनके मुताबिक पाकिस्तानी सेना ने उन्हें:-


- दो-तीन दिन में सिर्फ एक बार खाना दिया

- अंधेरे कमरे में बंद रखा और रोशनी की किरण तक नहीं देखने दी

- रोज नशीली दवाओं के इंजेक्शन दिए जिससे हालत पागलों जैसी हो गई

- वहशियों की तरह मारा-पीटा

उनके घुटने में गहरा घाव था. हाथ की उंगलियां चोटिल थीं. पूरे शरीर पर चोट के निशान थे.

पाकिस्तानी कैद से बाहर आने के बाद चंदू
पाकिस्तान द्वारा छोड़े जाने के बाद चंदू.

चंदू भारतीय सिस्टम के वो किरदार हैं, जिन पर सबसे ज्यादा बहस होती है. थोथी बहस. खुद के प्रति क्रूरता की श्रेणी में आने वाले उनके पेशे को अगाध सम्मान मिलता है. एक बड़ा समूह इस 'किरदार' को हमेशा अजेय देखना चाहता है, जिसके लिए हर चंदू को कीमत चुकानी पड़ती है. तीन महीने के टॉर्चर ने उन्हें लगभग पागल कर दिया. वो अपने घरवालों के बीच जाने की स्थिति में नहीं हैं.

बहस इस बात पर होती है कि चंदू को उस पेशे में और 'दुश्मन' के सामने क्यों नहीं होना चाहिए? ये और बात है कि देशों की व्यवस्थाएं उस पेशे के बिना भी चलाई जा सकती हैं. विश्व में कई उदाहरण हैं जहां चंदू नहीं होते.

जो लोग सियाचिन के मार देने वाले माइनस तापमान में सैनिकों की तैनाती की वस्तुस्थिति का उपयोग सिर्फ राष्ट्रवाद के अपने तर्कों को नुकीला करने के लिए करते हैं, वे इन सैनिकों और इनके परिवार वालों की पीड़ा को ग्लोरिफाई करते हैं, और कुछ नहीं. अपनी पर्सनल लाइफ में ये तमाम बहसबाज़ सुकून से होते हैं. कहीं भी खड़े होकर बोल देते हैं, हम लोगों ने सीमा पर जाकर पेशाब कर दिया न, तो पाकिस्तान बह जाएगा. लेकिन यहां चंदू जैसे सैनिक उन लोगों के लिए सिर्फ वस्तु हैं. जिसका सीक्वेंस वर्दी, युद्ध, ताबूत, ध्वज यूं होता है. शहादत के तीजे दिन के बाद उन्हें वो सैनिक कभी याद नहीं आता. शहीद न हो जो वो सैनिक नोटबंदी की लाइन से किसी पुलिसवाले से थप्पड़ें खाता है.

बात ये है कि युद्ध के उन्माद के रंगीन चादर नहीं सुखाने चाहिए. जो पहली पंक्ति पर होते हैं वो गोलियां खाते हैं, खून बहाते हैं, पकड़े जाते हैं और एेसा टॉर्चर उनके साथ होता है जो सुनने मात्र से रूह कंपा देता है. बात इसी टॉर्चर की है. चंदू को मिले टॉर्चर की जिसे कोई भी महसूस नहीं करना चाहता.

परिभाषा में जाएं तो व्यवस्था की स्वीकृति में होने वाली हिंसा 'टॉर्चर' कही जाती है. भारत-पाकिस्तान सरीखे मुल्कों के पास 'टॉर्चर' शब्द है, लेकिन अमेरिका जैसे अति-लोकतांत्रिक और अति-स्वतंत्रतावादी देशों का शब्दकोश बड़ा है, इसलिए वो इसे Enhanced Interrogation Techniques और Rendition, Detention and Interrogation Program कहते हैं. इन प्रोग्राम में जो होता है, उसे देखना भर आपको बीमार बना सकता है.


अपनी उंगली भी दरवाजे के बीच आ जाए तो एेसे लगता है किसी ने जहरीला डंक मार दिया है. ये एक सेकेंड के भी सौंवे हिस्से जितनी देर का दर्द होता है. चंदू का शरीर तीन महीने उस दरवाजे के बीच कूटा जाता रहा होगा. वो चीखा होगा, गले की नसें फट गई होंगी लेकिन क्या यहां के ध्वजवाहकों को ये सुनाई दिया था? युद्ध के दौरान पकड़े गए सैनिकों को, चाहे वो किसी भी मुल्क में हों, बहुत सोच समझकर ईजाद की गई टॉर्चर विधियों का शिकार होना पड़ता है. नाखून लोहे से पकड़कर खींच लिए जाते हैं. बंदी को अपनी ही मल और पेशाब में नंगे पड़े रहना पड़ता है.

ये कोरी कल्पना नहीं, हल्का का इशारा है.


नेल टॉर्चर टेक्नीक.
नेल टॉर्चर टेक्नीक.

जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 16 अप्रैल, 2009 को पिछले राष्ट्रपति जॉर्ज बुश का टॉर्चर मेमो रिलीज किया, तो कितने ही देशों की रूह कांप गई थी. ओबामा प्रशासन द्वारा रिलीज किए गए मेमो और इंटरनेशनल कमिटी ऑफ रेड क्रॉस की रिपोर्ट्स में बताया गया कि अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसी सीआईए अपने हाई-वैल्यू टारगेट्स को कैसी-कैसी यातनाएं देती थी? इन रिपोर्ट्स में टॉर्चर के अति-ज़ालिम तरीके सामने आए.


1. Rectal Feeding : रेक्टल फीडिंग में बंदी को उल्टा लटकाकर उसकी एनस (गुदा) से खाना शरीर में डाला जाता है. इसलिए ताकि इंसान को लंबे समय तक भूखा रखा जा सके और जिंदा रखा जा सके. बहुत बार तो गुदा से पास्ता तक दिया गया. एनस के जरिए एक पाइप इंसान के पेट तक खाना पहुंचा देता है, जिससे उसका शरीर चलता रहता है, लेकिन चूंकि भूख मानसिक अवस्था है तो शरीर में खाना घुसने के बाद भी वो दिमागी रूप से बहुत भूखा ही रहता है. कई दिनों तक ये होता है और आदमी पागल हो जाता है.

2. Rehydration : लंबे समय तक पानी न मिलने की वजह से जब इंसान डीहाइड्रेट हो जाता है, तो उसके शरीर में पाइप के जरिए ही पानी पहुंचा दिया जाता है. इससे रीहाइड्रेशन हो जाता है लेकिन गला सूखता रहता है, प्यार का तड़पा देने वाला भाव रहता है. आंखों के सामने अंधेरा छाता है. लार बननी बंद हो जाती है. इंसान प्यासा ही रहता है.


फिल्म 'न्यू यॉर्क' का एक दृश्य
फिल्म 'न्यू यॉर्क' का एक दृश्य

3. Confinement in a Box : इसमें इंसान को उसके आकार से बहुत ही छोटे बॉक्स में कैद कर दिया जाता है, जिसमें सांस लेना भी मुश्किल होता है. एक बार बॉक्स में जाने के बाद उसे 18-18 घंटों तक एक ही अवस्था में पड़े रहना पड़ता है. बॉक्स में कोई भी हरकत नामुमकिन होती है. उसकी हड्डियां जुड़ जाती हैं, खून का प्रवाह रुक जाता है. बेचैनी भयंकर हो जाती है. इसी टॉर्चर के अगले स्तर में इंसान को नंगा करके बॉक्स में डाला जाता है और साथ में कीड़े-मकोड़े भी छोड़ दिए जाते हैं. लोग इसी दौरान मर जाते हैं.

4. Use of Cold Water : ठंडा पानी टॉर्चर के पसंदीदा हथियारों में से है. पूछताछ के दौरान लोगों को ठंडे पानी में लिटा दिया जाता है. कई बार उन्हें प्लास्टिक में लपेटकर घंटों तक ठंडे पानी में छोड़ दिया जाता है. नंगा करके पानी में खड़ा कर दिया जाता है. ठंडे पानी से भरी फर्श पर नंगा लिटा दिया जाता है. घंटों तक ठंडा पानी उड़ेला जाता है.


एक कैदी के साथ Waterboarding
एक कैदी के साथ वॉटरबोर्डिंग.

5. Waterboarding : ये वो तरीका है, जिसमें इंसान को उल्टा लटकाकर या नीचे गिराकर उसके चेहरे पर मोटा कपड़ा डाल दिया जाता है और फिर 30 से 40 सेकेंड तक लगातार पानी गिराया जाता है. नाक और मुंह ढके होने की वजह से इंसान सांस नहीं ले पाता और वैसे ही छटपटाता है जैसे पानी में डूबने पर. इस प्रोसेस का सामना बड़े-बड़े ठोस आदमी नहीं कर पाते लेकिन बंदियों को दर्जनों बार इस यातना को झेलना पड़ता है. कई बार पानी की जगह पेशाब उड़ेली जाती है और कपड़े को मुंह पर पड़ा रहने दिया जाता है.

6. Stress Positions : इसमें इंसान को उस पोजीशन में रखा जाता है जिसमें वो नहीं रह सकता या जिसकी वजह से वो मर सकता है. जैसे कई दिनों तक दीवारों से चिपका कर खड़े रखना. कई मामलों में कैदियों को छोटा सा ब्रेक दे-देकर तीन दिन से लेकर तीन महीने तक उल्टा लटकाए रखा गया है. इस दौरान उनका मल और पेशाब उन्हीं पर गिरता और जमा होता रहता है.


Stress Position में खड़ा एक कैदी
स्ट्रेस पोज़ीशन में खड़ा एक ईराकी क़ैदी.

7. Sleep Deprivation : इंसान बिना सोए 11 दिनों से ज्यादा जिंदा नहीं रह सकता. लेकिन, इन 11 दिनों तक न सोने पर वो भयंकर पीड़ा से गुजरता है. टॉर्चर का एक तरीका ये भी है कि बंदी को सोने नहीं दिया जाता. सोते ही उस पर ठंडा पानी फेंक दिया जाता है, दो-दो दिनों तक तेज आवाज में म्यूजिक बजाया जाता है या उन्हें नंगा करके कमरा इतना ठंडा कर दिया जाता है कि वो सो न सकें. ऐसा 180 घंटों तक चल सकता है. लोग बीमार और फिर पागल होते जाते हैं.

8. Beatings and Threats : इंसानों को लातों-घूसों-डंडों और न जाने किन-किन चीजों से पीटा जाता है. मानसिक पीड़ा के लिए थप्पड़ मारे जाते हैं. दीवारों और खंभों से सिर भिड़ाया जाता है. हड्डियां तोड़ दी जाती हैं. घाव कर दिए जाते हैं. करंट लगाया जाता है. नंगा करके रखा जाता है. उनके घरवालों का उनके सामने रेप करने का डर दिखाया जाता है. इससे बंदी मानसिक रूप से टूटकर बिखर जाता है. वो पागल हो जाता है.


फिल्म 'न्यू यॉर्क' के एक दृश्य में जॉन अब्राहम पर पेशाब करते पुलिस अधिकारी
फिल्म 'न्यू यॉर्क' के एक दृश्य में जॉन अब्राहम के पात्र पर पेशाब करता एक पुलिसवाला.

इतना झेलकर कोई सैनिक या बंदी जिंदा रह भी जाएं तो कभी भी सामान्य जिंदगी में नहीं लौट पाते. दुनिया के कई देशों में सैनिकों, जांच अधिकारियों और पुलिस को टॉर्चर के ये तरीके इस्तेमाल करने का अधिकार है. 'सीमाओं की सुरक्षा', 'कूटनीतिक विजय' और 'आंतरिक रक्षा' जैसे भारी-भरकम शब्दों के वजन से इसे सहमति मिल जाती है.


कैप्टन सौरभ कालिया
कैप्टन सौरभ कालिया

भारतीय सेना के कैप्टन सौरभ कालिया की लाश मिलने पर पता चला था कि पाकिस्तानी सेना ने उन्हें सिगरेट से दागा था, गर्म रॉड से कान छेद दिए थे, आंखें फोड़कर निकाल ली थीं, दांत और हड्डियां तोड़ दी थीं, नाखून उखाड़ लिए गए थे, होंठ और प्राइवेट पार्ट काट दिए गए थे. अमेरिकी रिपोर्ट्स में अब्द-अल-रहीम-अल-नशीरी, माजिद खान, खालिद शेख मोहम्मद, अबु जुबैदा, गुल रहमान, अबु हाजिम, अब्द अल-करीम जैसे न जाने कितने नाम दर्ज हैं, जिनके साथ यही सब हुआ. भारत भी इस सिस्टम से अलग नहीं है.

अमेरिका का नया राष्ट्रपति बना है और फिर से एेसी क्रूर पूछताछ टेक्नीक्स के शुरू होने की चर्चा शुरू हो गई हैं. हालांकि ट्रंप ने शुरुआती सवालों में कन्नी काट ली है लेकिन माना जा रहा है कि अमेरिकी पूछताछ में फिर से वही सब घृणित कीर्तिमान बनाए जाएंगे तो गुआंतानामो बे में बनाए गए थे, जो पहले लीक हुई तस्वीरों में देखकर दुनिया भर के लोगों में गुस्सा फैल गया था.

लेकिन ये गुस्सा सिर्फ तभी क्यों फैले जब कोई फोटो या कोई बॉडी सामने आए? हमें वॉर और टॉर्चर शब्दों से सार्वजनिक रूप से घृणा क्यों नहीं होती?




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