
भारत में चालू खाता घाटा का आंकड़ा जीडीपी से तुलना करके निकाला जाता है.
बड़े भारी भरकम से शब्द हैं करंट अकाउंट डेफिसिट और जीडीपी. चलिए इनको आसान भाषा में समझते हैं.
क्या होता है करंट अकाउंट डेफिसिट?

आयात और निर्यात के बीच का अंतर चालू खाता होता है. आयात अधिक होने की स्थिति में ये चालू खाते का घाटा कहा जाता है.
कोई भी देश अपनी सारी ज़रूरतें खुद से पूरी नहीं कर सकता है. इसके लिए उस देश को कुछ चीजें विदेश भेजनी होती हैं और कुछ चीजें विदेश से खरीदनी होती हैं. भारत के साथ भी ऐसा ही है. तो भारत जो भी विदेश के साथ व्यापार करता है उसे करंट अकाउंट यानी चालू खाता कहते हैं. अब अगर दूसरे देशों को बेचे जाने वाली चीजों से मिलने वाला पैसा दूसरे देशों से खरीदी जाने वाली चीजों के लिए लगाए गए पैसे से कम है, तो उसे करंट अकाउंट डेफिसिट कहेंगे. एक उदाहरण से समझते हैं. माल लीजिए कि भारत ने इराक से 100 रुपये का तेल खरीदा, लेकिन इराक ने भारत से 80 रुपये का गेहूं खरीदा. तो भारत को इराक को 20 रुपये देने होंगे. यही भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट कहलाएगा.
क्या-क्या शामिल होता है करंट अकाउंट में?

भारत विदेश में सामान भेजता है और विदेश से सामान मंगवाता भी है. अगर मंगवाए गए सामान की कीमत ज्यादा होती है, तो इसे ही चालू खाते का घाटा कहते हैं.
करंट अकाउंट में दो तरह का व्यापार शामिल होता है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष. अंग्रेजी में विजिबल और इनविजिबल. भारत अगर कोई सामान खरीदता है और बेचता है तो उसे प्रत्यक्ष व्यापार में शामिल किया जाता है. अप्रत्यक्ष व्यापार में बैंकिंग सुविधाएं, इंश्योरेंस और विदेशों में रह रहे लोगों की ओर से भारत में भेजा जाने वाला और भारत में रहने वाले विदेशियों की ओर से अपने देश में भेजा जाने वाला पैसा शामिल होता है. अब अगर भारत का कुल आयात यानी कि बाहर से हुई खरीद की कुल कीमत, भारत के कुल निर्यात यानी कि भारत से बाहर भेजी गई चीजों की कीमत से ज्यादा होती है तो जो रकम होती है उसे करंट अकाउंट डेफिसिट कहा जाता है. करंट अकाउंट डेफिसिट कितना कम या ज्यादा है, इसकी तुलना देश की जीडीपी से की जाती है. अभी फिलहाल भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट देश की कुल जीडीपी का 2.4 फीसदी है.
करंट अकाउंट डेफिसिट ज्यादा होने का क्या मतलब है?

करंट अकाउंट डेफिसिट जितना ज्यादा होगा, अर्थव्यवस्था के लिए उतना ही नुकसानदायक होगा.
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक करंट अकाउंट डेफिसिट देश की कुल जीडीपी का 2.5 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. करंट अकाउंट डेफिसिट जितना ज्यादा होगा, इसका मतलब है कि भारत को उतना ज्यादा पैसा विदेशों को चुकाना होगा. अब भारत विदेशों से व्यापार डॉलर में करता है, तो भारत को ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. चूंकि भारत के पास निर्यात से मिला पैसा आयात की तुलना में कम है, तो भारत को अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर खर्च करने पड़ेंगे और ये अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक है.
क्यों बढ़ रहा है भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट?

अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से भी भारत का चालू खाते का घाटा बढ़ता जा रहा है.
सरकार का अनुमान है कि 31 मार्च 2019 को जब वित्तीय वर्ष 2018-19 खत्म होगा तो भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट 2.5 फीसदी हो जाएगा. अब सवाल ये है कि ये बढ़ क्यों रहा है. तो ये बढ़ इसलिए रहा है, क्योंकि खाड़ी देशों में टेंशन चल रही है, अमेरिका ने इरान पर प्रतिबंध लगा रखे हैं. इसकी वजह से तेल का संकट पैदा हो गया है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बढ़ते जा रहे हैं.भारत पहले की तुलना में विदेशों से ज्यादा तेल खरीद रहा है. वहीं चीन और अमेरिका में बीच व्यापार को लेकर चल रही लड़ाई से भी भारत पर प्रभाव पड़ा है. इसकी वजह से भारत का निर्यात कम हो गया है.
करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ने से भारत को क्या नुकसान होगा?

भारत को खरीदारी डॉलर में करनी पड़ती है. अब डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो गया है.
2017-18 में भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट 1.9 फीसदी है. एक साल के अंदर इस करंट अकाउंट डेफिसिट में 0.6 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है. अगर आंकड़ों में समझें तो 7 सितंबर 2018 को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने आंकड़े जारी किए हैं. आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 की पहली तिमाही में भारत का कुल करंट अकाउंट डेफिसिट 11,45,421 करोड़ रुपये (15.8 बीलियन डॉलर) है. वहीं 2016-17 में पहली तिमाही में भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट 10,87,575 करोड़ रुपये (15 बीलियन डॉलर) था. इसका सीधा सा मतलब है कि एक साल में 57,846 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है. हालांकि हुआ ये है कि पिछले साल भी भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट 2.5 फीसदी ही था, जो घटकर 2.4 फीसदी हो गया है, लेकिन पैसे के आंकड़ों में इजाफा सिर्फ इसलिए हुआ है, क्योंकि पिछले साल की तुलना में इस साल जीडीपी का आंकड़ा बड़ा हो गया है. अब अगर करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ता है, तो भारत को और ज्यादा पैसे देने होंगे और ये पैसे भारत को अपने विदेशी मुद्रा भंडार से देने होंगे. चूंकि व्यापार डॉलर में होता है और रुपया लगातार गिरता जा रहा है, तो भारत को खासा नुकसान होने वाला है. इसके अलावा अगर भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट लगातार बढ़ता रहेगा, तो दूसरे देश भारत में पैसे लगाने से भी डरेंगे. और अगर ऐसा हुआ तो देश की अर्थव्यवस्था को और भी ज्यादा नुकसान हो जाएगा.
क्या कह रहा है अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष?

भारत के चालू खाते के घाटे को लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी अपना आंकलन दिया है.
विशेषज्ञों की मानें तो 2018-19 में भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट 2.5 से 2.9 के बीच रह सकता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट 2018-19 में 2.6 फीसदी तक पहुंच सकता है. इसके अलावा अलग-अलग कंपनियों ने भारत के करंट अकाउंट डेफिसिट के लिए अलग-अलग आंकड़े प्रोजेक्ट किए हैं, जो 2.5 फीसदी से लेकर 2.9 फीसदी के बीच हैं.
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