The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

कैसे रिहा हुए बिलकिस बानो का सामूहिक बलात्कार करने वाले 11 लोग?

गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो का गैंगरेप हुआ और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में 11 को दोषियों को उम्रकैद की सजा मिली थी.

post-main-image
गुजरात सरकार ने माफी नीति के तहत रिहाई की अनुमति दी गई (फोटो: आजतक)

इसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा कि जिस दिन लाल किले की प्राचीर से महिलाओं के सम्मान की बात कही गई, ठीक उसी दिन गुजरात दंगों के दौरान एक महिला का गैंगरेप करके उसके परिवार की हत्या करने वाले 11 दोषी गोधरा की एक जेल से बाहर आ गए. गुजरात दंगों के सबसे चर्चित मामलों में से एक बिलकिस बानो मामला दो दशक बाद इसी तरह चर्चा में आया. आज बात करेंगे कि ये मामला क्या था और दोषियों को किस आधार पर छोड़ा गया है.

हम जैसे समाज में रहते हैं, वहां बलात्कार पीड़िताओं के लिए आगे बढ़ना, एक आम ज़िंदगी जीना इतना मुश्किल होता है, कि उसके लिए थोड़ी छूट लेकर असंभव शब्द का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. कितनी ही महिलाएं हैं जो इसीलिए कभी आपबीती की शिकायत नहीं करतीं. संभवतः इसीलिए संपादकीय नीति और देश का कानून दोनों ये कहते हैं कि बलात्कार पीड़िता की पहचान ज़ाहिर नहीं की जा सकती. ऐसा करने पर सज़ा का प्रावधान भी है. ऐसे में अगर सामूहिक बलात्कार और एक पूरे परिवार की हत्या का एक मामला पीड़िता के नाम से ही पहचाना जाने लगे, तो आपको समझ जाना चाहिए कि बात अपराध की जघन्यता तक सीमित नहीं रही होगी. और भी बहुत कुछ हुआ होगा.

हम बात कर रहे हैं 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए बिलकिस बानो गैंगरेप और सामूहिक हत्याकांड की. जब जब बिलकिस बानो के नाम के साथ ''मामला'', या ''कांड'' लगता है, तो उन्हें होने वाली तकलीफ का अंदाज़ा आप नहीं लगा सकते. 15 अगस्त को जब महिलाओं के सम्मान की सीख चर्चा में थी, उस दिन एक बार फिर बिलकिस बानो का नाम खबरों में तैरने लगा. क्योंकि उनका बलात्कार करने वाले और 3 साल की बच्ची समेत 14 लोगों की जान लेने वाले 11 दोषी गोधरा की एक जेल से बाहर आ गए थे. चोरी छिपे नहीं, दिन दहाड़े. वहां इनके माथे पर तिलक लगाया गया, इन्हें मिठाई खिलाई गई. जैसे ये कोई जंग जीतकर आए हों. इनके नाम हैं,

जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, शैलेश भट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहनिया, प्रदीप मोरढ़िया, बाकाभाई वोहनिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट, रामेश चांदना.

इनमें से राधेश्याम शाह ने सज़ा में रियायत की गुहार लगाई थी. जब इनकी रिहाई पर गुजरात सरकार से सवाल किया गया, तो गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राज कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि छूट देते वक्त, सज़ा के 14 साल पूरे होने, उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार जैसे कारकों पर विचार किया गया था.

इस जवाब में एक शब्द पर ठहरकर विचार करने की आवश्यकता है, अपराध की प्रकृति. आइए जानते हैं इन 11 दोषियों द्वारा किए गए अपराध की प्रकृति कैसी थी. कहानी शुरू होती है 27 फरवरी 2002 से. इस रोज़ गुजरात के गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बों में एक भीड़ ने आग लगा दी. इसका नतीजा ये रहा कि कारसेवकों से भरी ट्रेन में सवार 59 लोगों की मौत हो गई. इसके नतीजे में गुजरात में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए. जगह-जगह मुस्लिम प्रतिष्ठानों और लोगों को निशाने पर लिया जाने लगा. बिलकिस का परिवार तब दाहोद ज़िले के राधिकापुर गांव में रहता था. बिलकिस की कोख में तब 5 महीने का गर्भ था. हिंसा की आशंका से बिलकिस का परिवार कुछ और लोगों के साथ गांव से निकल गया.

3 मार्च तक ये लोग किसी तरह दंगाइयों से बचे रहे. लेकिन उस रोज़ चप्परवड़ गांव के एक खेत में दंगाइयों ने इन्हें घेर लिया. दंगाइयों में वो 11 लोग भी थे, जिनके नाम हमने थोड़ी देर पहले आपको बताए. इन लोगों के पास तलवारें, लाठियां, हसिए और दूसरे हथियार थे. इन लोगों ने उस दिन पांच महिलाओं का सामूहिक बलात्कार किया. जिनमें गर्भवती बिलकिस और उनकी मां भी थीं. उस खेत में हो रहा पागलपन जब थमा, तब तक 14 लोगों की जान जा चुकी थी. इनमें बिलकिस की साढ़े तीन साल की बच्ची सालेहा भी थी.

जब बिलकिस को होश आया, तो उन्होंने एक महिला से कपड़े उधार लिए. किसी तरह वो लिमखेड़ा पुलिस थाने पर पहुंची तो वहां मौजूद हेड कॉन्स्टेबल सोमाभाई गोरी ने ढंग से तहरीर ही नहीं लिखी. बाद में खुद सीबीआई ने कहा कि गोरी ने तथ्य छिपाए और घटना का पूरा विवरण दर्ज नहीं किया. जब बिलकिस गोधरा के रिलीफ कैंप पहुंचीं, तब जाकर उनका मेडिकल करवाया गया. पोस्टमॉर्टम तक ऐसे किया गया कि आरोपियों को बचाया जा सके.

दंगे में कुछ भी ऐसा नहीं होता, जिसे जघन्य न कहा जा सके, इसीलिए बिलकिस के साथ जो हुआ, उसे क्या कहा जाए, उसके लिए अलग से शब्द खोजना मुश्किल है. बावजूद इसके, पुलिस ने सबूतों के अभाव का बहाना बताते हुए मामला खारिज कर दिया. इसके बाद हंगामा हुआ तो मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट तक गया, जहां से क्लोज़र रिपोर्ट खारिज हुई और सीबीआई जांच के आदेश हुए. लेकिन बिलकिस को जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं. तो सर्वोच्च न्यायालय ने मामला गुजरात से बाहर, महाराष्ट्र भेज दिया.

यहां एक विशेष अदालत ने 11 लोगों को रेप और हत्या का दोषी पाते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई. सज़ा सुनाते हुए इस बात को भी दर्ज किया गया कि बिलकिस ने सुनवाई के दौरान अभियुक्तों को पहचान लिया था. पुलिस कॉन्स्टेबल को तीन साल की सज़ा हुई. 2017 में बंबई उच्च न्यायालय ने इस सज़ा को सही पाया. 2017 में ही बंबई उच्च न्यायालय ने 5 पुलिस वालों और 2 डॉक्टर्स को इस मामले में ड्यूटी पूरी न करने का दोषी पाया, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगाई थी.

राज्य सरकार ने बिलकिस को 5 लाख का मुआवज़ा देने की बात कही थी. लेकिन बिलकिस ने इसे बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. यहां से उन्हें 50 लाख मुआवज़ा देने का आदेश हुआ. साथ में एक घर और नौकरी. इसमें से क्या-क्या मिल गया, इस सवाल पर थोड़ी देर बाद आएंगे.

अब फास्ट फॉर्वर्ड करके आ जाते हैं साल 2019 पर. गुजरात हाईकोर्ट में राधेश्याम भगवानदास शाह उर्फ लाला वकील की एक याचिका खारिज हुई. शाह चाहता था कि उसे छोड़ दिया जाए क्योंकि वो 14 साल सज़ा भुगत चुका है. शाह ने रिमिशन की मांग की थी. इसके तहत सज़ा का चरित्र नहीं बदलता. बस सज़ा की अवधि कम हो जाती है. गुजरात हाईकोर्ट ने जून 2019 में कहा कि सज़ा बंबई उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में हुई थी. इसीलिए अपील भी वहीं की जाए. लाला वकील इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया, जहां से मई 2022 में आदेश हुआ कि गुजरात सरकार सज़ा की अवधि कम करने पर विचार कर सकती है.

इसके बाद पंचमहल ज़िले में कलेक्टर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई, जिसने सज़ा कम करने पर विचार किया. इसने अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को दी. जहां से 14 अगस्त को दोषियों को छोड़ने का आदेश आया.

ये बात सामने आने के बाद से बिलकिस का परिवार डरा हुआ है. बिलकिस के पति ने कहा कि पहले भी डर था, लेकिन अब 11 दोषियों की रिहाई के बाद डर और बढ़ गया है. हम अपनी जगह बदलते रहते हैं और सार्वजनिक जीवन से छिपते रहते हैं. हमारे पास कोई सुरक्षा नहीं है. हमें अभी भी घर और नौकरी नहीं मिली है. हमारे पास अभी के लिए कोई कानूनी टीम नहीं है और भविष्य के कानूनी विकल्प के बारे में नहीं पता है. मानवाधिकार वकील शमशाद पठान ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा कि सज़ा कम होती तो है, लेकिन ऐसे जघन्य मामलों में ऐसा होना सामान्य नहीं है. इस मामले से कम जघन्य अपराधों के दोषी अब भी जेल में सड़ रहे हैं.

वीडियो: गोधरा दंगों में बिलकिस बानो का गैंगरेप करने वाले 11 दोषी बाहर कैसे आए?