The Lallantop

जानिए बेनज़ीर ने अपनी हत्या से ठीक पहले क्या कहा?

27 दिसम्बर की वो शाम.

post-main-image
बेनज़ीर की हत्या के अगले दिन का अखबार.

18 अक्टूबर 2007. कराची की सड़कों पर 2 लाख आदमी अपनी नेता का इंतजार कर रहे थे. तीन दिन पहले से लोग यहां जुटना शुरू हो गए थे. आठ साल के लंबे इंतजार के बाद बेनज़ीर भुट्टो अपने मुल्क पाकिस्तान वापस लौट रही थीं.

सुबह के 9 बज कर 50 मिनट पर दुबई से कराची आ रहे विमान ने हवाई अड्डे की जमीन को छुआ. करीब आधे घंटे बाद बेनज़ीर ने खुद को अराइवल हॉल में पाया. उस समय उन्हें बार-बार 1986 का साल याद रहा था. दिसम्बर 1985 में जरनल ज़िया उल हक़ ने मार्शल लॉ खत्म कर चुनाव करवाने की बात कही थी. उस समय भी बेनज़ीर चुनाव की तैयारियों के लिए मुल्क वापस आई थीं. उस समय लाहौर की गलियों में तीस लाख लोग उनके स्वागत के लिए खड़े थे. इकबाल चौक पर हुई वो रैली इतिहास में सबसे बड़ी राजनीतिक रैली के तौर पर दर्ज है.


10 अप्रैल 1986: बेनज़ीर की वतन वापसी
10 अप्रैल 1986: बेनज़ीर की वतन वापसी

इस बार की स्थितियां भी 1986 जैसी ही थीं. परवेज़ मुशर्रफ का सात साल लंबा मार्शल लॉ खत्म हुआ था. वो एक बार फिर से अपने मुल्क लौट रही थी ताकि प्रस्तावित चुनाव में अपने सियासी दल पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की बागडोर संभाल सकें. इस बार सड़क पर करीब दो लाख लोग थे. अराइवल हॉल से बाहर निकलने के बाद सबसे पहले उन्होंने कुरान को चूमा. उनके वतन लौटने की खबर के मीडिया में आने के बाद तालिबान के वजीरिस्तान के कमांडर हाजी उमर का बयान भी अखबारों और समाचार चैनलों की सुर्खी बना हुआ था. इस बयान में बेनज़ीर को कत्ल कर देने की धमकी दी गई थी क्योंकि उनके मुताबिक बेनजीर अमेरिका से प्रभावित थीं. बेनज़ीर ने कुरान को चूम कर अपने अंदाज में इन धमकियों का जवाब दिया था.


benazir_bhutto1
कराची हवाई अड्डे से घर लौटती बेनज़ीर

आठ साल बाद पकिस्तान की सरजमीं पर उनके मुंह से पहले बोल फूटे थे:

"घर आ कर अच्छा लग रहा है."

एक खूनी इस्तक़बाल

बाहर खड़ी भीड़ नारे लगा रही थी. "वजीर-ए-आज़म बेनज़ीर भुट्टो". "वेलकम बेनज़ीर, वेलकम बैक". कराची एयरपोर्ट से भुट्टो खानदान के पुश्तैनी घर की दूरी करीब 20 किलोमीटर है. शुरुआत के तीन घंटे में उनका काफिला महज 100 मीटर ही बढ़ पाया था. बेनज़ीर सफ़ेद रंग की बुलेट प्रूफ ट्रक में सवार थीं. उनके चारों तरफ सफ़ेद टी-शर्ट पहने पार्टी के नौजवान कारकून ह्यूमन चेन बना कर खड़े थे. बेनज़ीर की सुरक्षा के लिए पार्टी ने नौजवानों का अलग संगठन बनाया था. इस संगठन का नाम था: "बेनज़ीर जांबाज़".


karanchi
कराची के जलसे में हुआ धमाका (फोटो रायटर्स)

करीब 1 बजकर 45 मिनट पर बेनज़ीर का काफिला पकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के मकबरे पर पहुंचा. यहां से वो अपने घर 'बिलावल हाउस' की तरफ मुड़ीं, काफिला धीरे-धीरे अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने लगा.

रात के करीब 10 बजकर 30 मिनट हुए थे. बेनजीर को एयरपोर्ट से निकले 12 घंटे हो चुके थे. उनका घर अभी कुछ सौ मीटर दूर ही था. तभी अचानक एक के बाद एक दो बम धमाके हुए.

अगले दिन सुबह के अखबार बेनज़ीर के इस खूनी इस्तकबाल से रंगे हुए थे. कुल 139 लोग मारे गए थे. इसमें 50 से ज्यादा लोग 'बेनजीर जांबाज़' तंजीम के कारकून थे. पुलिस के 6 जवानों को भी इस धमाके के चलते जान गंवानी पड़ी थी. मरने वालों में बाकी लोग आम शहरी और पार्टी के समर्थक थे. आठ साल बाद अपने मुल्क लौट रही बेनज़ीर को इस किस्म के स्वागत की उम्मीद नहीं थीं. लेकिन ये धमकियां और धमाके बेनज़ीर को डरा नहीं सकते थे. उन्होंने जनरल ज़िया-उल-हक़ का काला दौर देखा था. उन्हें याद था 1978 का फौजी तख्तापलट, जब उनके पिता के भरोसेमंद जनरल जिया उल हक़ ने रातोंरात सत्ता पर अवैध तरीके से कब्ज़ा कर लिया था. 4 अप्रैल 1979 को जब ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को फांसी पर लटकाया गया था, तब 26 साल की बेनज़ीर के पास जार-जार रोने के अलावा कोई चारा नहीं था. बेनज़ीर उस काले दौर से फौलाद बनकर बाहर निकली थीं. कट्टरपंथियों की धमकियों के बावजूद वो पकिस्तान पहुंचने के अगले दिन से ही चुनाव की तैयारियों में जुट गई.

27 दिसम्बर की वो शाम 

8 जनवरी 2008 को पाकिस्तान में आम चुनाव होने जा रहे थे. बेनज़ीर को पाकिस्तान लौटे दो महीने हो गए थे. जान से मारने की घमकियों के बावजूद वो चुनाव प्रचार में धुआंधार तरीके से जुटी हुई थीं. 27 दिसम्बर को उनकी एक रैली रावलपिंडी के लियाकत अली मैदान में थी. इससे कुछ ही दूरी पर इस्लामाबाद एक्सप्रेस-वे पर स्थित क्रॉल चौक पर पकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की एक रैली चल रही थी. सेना का गढ़ रावलपिंडी, लोकतांत्रिक राजनीतिक जमातों का अखाड़ा बना हुआ था.

शाम के करीब साढ़े चार बजे क्रॉल चौक पर चल रही पीएमएल (नवाज़) की रैली पर गोलीबारी हो गई. चार लोगों के मरने की खबर आई. लियाकत अली मैदान की सुरक्षा में तैनात कई जवान क्रॉल चौक भेजे गए ताकि हालात पर काबू पाया जा सके.


bhutto2
बेनज़ीर के आखरी लम्हों की तस्वीर

शाम के करीब सवा पांच बजे थे. बेनज़ीर ने अपना भाषण खत्म किया. उन्हें यहां से इस्लामाबाद जाना था. जैसे ही उनका काफिला बढ़ने लगा लोगों ने उनकी सफ़ेद रंग की टोयोटा लैंडक्रूजर को घेर लिया. लोग "बेनज़ीर भुट्टो जिंदाबाद" के नारे लगा रहे थे. बेनज़ीर ने अपनी गाड़ी का सनरूफ खोला और सीट पर खड़ी हो गईं, ताकि बाहर उमड़े लोगों के हुजूम का हाथ हिला कर अभिवादन किया जा सके. उन्होंने चटख नीले रंग का कुरता और सफेद सलवार पहन रखी थी.

वो नारा लगाते कार्यकर्ताओं की तरफ हाथ हिला ही थी कि अचानक उनकी दाहिनी तरफ से एक के बाद एक के बाद एक तीन गोलियां चलीं. इसमें से एक गोली बेनज़ीर के गले में लगी. वो घायल होकर गाड़ी में गिर पड़ी. ड्राइवर कुछ समझ पाता, इससे पहले उसने पाया कि सलवार कमीज पहने एक शख्स गाड़ी के सामने खड़ा था. ड्राइवर ने उससे दूर हटने के लिए कहा. तभी अचानक वो शख्स फट पड़ा. धमाके ने पूरी कार को अपनी जद में ले लिया.


bhuttoblast
धमाके के बाद धटनास्थल

घायल बेनज़ीर को जल्द ही पास ही के रावलपिंडी जनरल हॉस्पिटल ले जाया गया. इस समय शाम के 5.30 हो रहे थे. यहां उन्हें बचाने के सभी प्रयास नाकाफी साबित हुए. शाम 6 बजकर 16 मिनट पर उनकी मौत की घोषणा कर दी गई. अभी कुछ ही समय पहले रैली में वो लोगों को कह रही थीं कि अपनी धरती की पुकार पर वो मुल्क लौटी हैं. अपने पिता की शहादत का जिक्र करते हुए उन्होंने अपने भाषण नारों के जरिए कुछ इस अंदाज में किया था-

"मांग रहा है हर इंसान रोटी, कपड़ा और मकान"

"जिंदा है भाई जिंदा है कल भी भुट्टो जिंदा था, आज भी भुट्टो जिंदा है."

किसे पता था कि कुछ घंटों बाद वो उनके पिता की तरह वो भी सियासी नफरत का शिकार हो जाएंगी. किसे पता था कि उनकी पार्टी के अगले जलसे में यह नारा उनके पिता की जगह उनकी याद में लगाया जाएगा. इस हमले में बेनज़ीर के अलावा दो दर्जन लोगों की जान गई थी.


शिमला समझौते के दौरान: इंदिरा गांधी के साथ जुल्फिकार अली और बेनज़ीर भुट्टो
शिमला समझौते के दौरान: इंदिरा गांधी के साथ जुल्फिकार अली और बेनज़ीर भुट्टो

एक पत्रकार से टकराया हमलवार 
बीबीसी उर्दू के पत्रकार शहज़ाद मलिक बेनज़ीर की रैली को कवर कर रहे थे. इस दौरान उन्हें पीएमएल (नवाज़)की रैली में गोलीबारी की सूचना मिली. बेनज़ीर की रैली रैली को छोड़ कर क्रॉल चौक की तरफ बढ़ने लगे. इस दौरान उन्हें लियाकत बाग़ से राजा बाज़ार जाने वाली सड़क पर रोक लिया गया. पुलिस ने उन्हें बताया कि यहां से बेनज़ीर का काफिला गुजर रहा है, चुनांचे वो आगे नहीं जा सकते. पांच मिनट बाद काफिला वहां पहुंचा. उन्होंने अपनी आंखों के सामने धमाका होते हुए देखा. धमाके के बाद घटना स्थल की जो स्थिति थी उसके बारे में शहज़ाद मलिक लिखते है-
"वहां घायल लोगों और लाशों के अलावा हर तरफ़ ख़ून बिखरा हुआ था, उनके जिस्म के टुकड़े थे.मैं घटनास्थल से मरी रोड की ओर जाने के लिए एक साइड से होकर गुजरने लगा तो मेरा पैर जमीन पर पड़े हुए इंसानी जिस्म के किसी हिस्से से टकराया. इसी दौरान एक पुलिसकर्मी वहाँ आया और उसने मुझे धक्का दिया और साथ ही कहा कि हटो यहां से.
मैंने ध्यान से देखा तो एक युवक का सिर पड़ा था और अगले दिन पुलिस ने बिलाल नामक जिस कथित आत्मघाती हमलावर का स्केच जारी किया, वो सड़क पर पड़े हुए चेहरे से मिलता था."

किसने मारा था बेनजीर को? क्या वाकई में मुशर्रफ ही थे इसके पीछे?

बेनज़ीर की हत्या के करीब दस साल बाद इस मामले में 31 अगस्त 2017 को फैसला आया था. मामले की सुनवाई कर रही आठ जजों की बेंच वाली आतंक निरोधी अदालत (ATC) ने मामले में पाकिस्तान के दो पुलिस अधिकारियों को आपराधिक लापरवाही बरतने का दोषी पाया. पूर्व पुलिस अधिकारी सऊद अज़ीज़ और खुर्रम शहज़ाद को 17 साल की कैद और 5 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई.

benazeerandparvez

इस मामले में गिरफ्तार किए 5 संदिग्ध ऐतजाज़ शाह, शेर ज़मां, हसनैन गुल, अब्दुल राशिद और रफ़ाक़त हुसैन को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया. वहीं सुरक्षा में लापरवाही बरतने के मामले में पूर्व तानाशाह परवेज़ मुशर्रफ भी इस मामले में अभियुक्त थे. मुशर्रफ फिलहाल राजनीतिक निर्वासन के चलते विदेश में रह रहे हैं. पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और मिलिट्री शासक परवेज़ मुशर्रफ़. 17 दिसंबर 2019 को इस्लामाबाद की एक स्पेशल कोर्ट ने इन्हें सज़ा-ए-मौत सुनाई है. मुशर्रफ़ को देशद्रोह के मामले में दोषी पाया गया है. लंबे समय से अदालत में पेश ना होने की वजह से अदालत ने भगोड़ा घोषित करके संपत्ति  जब्त करने का आदेश दे दिया है.

कुल मिलाकर अगर कहा जाए तो अदालत का फैसला खबरनवीसों को 'परवेज मुशर्रफ को भगोड़ा घोषित किया" जैसी सनसनीखेज हेडलाइन देने के अलावा कुछ भी नहीं देता. फैसले का कुल जमा हासिल अगर एक लाइन में बयान करें तो यह "नो वन किल्ड शहजादी" से आगे नहीं जाता.




वीडियो- क्या मुशर्रफ को फांसी चढ़ाएंगे इमरान खान?