ये ब्लास्ट क्यों हुआ? क्या इसके पीछे किसी की साज़िश है?
भूमध्यसागर के पूर्वी किनारे पर बसी है लेबनन की राजधानी बेरूत. इस शहर के उत्तर में है बेरूत बंदरगाह. 4 अगस्त को शाम के ठीक छह बजे यहां एक गोदाम में आग लगी. कैसे लगी, ये अभी नहीं मालूम. इस वेयरहाउस में पटाखे रखे थे. पटाखों ने आग पकड़ ली. भुट्टे के दाने भूनने पर जैसी चटखने की आवाज़ आती है, वैसी ही आवाज़ होने लगी. पटाखों में लगी आग के कारण गोदाम से धुएं का गुबार उठा.

बेरूत शहर के उत्तर में है बेरूत बंदरगाह, जहां धमाका हुआ. (गूगल मैप्स)
शहर के लोगों ने इस धुएं को देखा. मगर इससे पहले कि लोग कुछ समझ पाते कि उस धुएं वाली जगह के पास एक दूसरी इमारत में एकाएक बहुत ज़ोर का धमाका हुआ. इस धमाके की टाइमिंग थी शाम के छह बजकर आठ मिनट. धमाके के बिल्कुल साथ ही साथ ब्लास्ट वाली जगह से गुंबद जैसे आकार का एक बादल उठा आसमान में. वैसे ही मशरूम जैसी आकृति का बादल, जैसा न्यूक्लियर ब्लास्ट में निकलता है. इस बादल का रंग ख़ून की तरह गहरा लाल था. एक तरफ ये बादल ऊपर आसमान की ओर बढ़ा. दूसरी तरफ एक ज़ोरदार रेतीले तूफ़ान की तरह ब्लास्ट की लपटें अगल-बगल के इलाकों में फैल गईं.
कितना ज़बर्दस्त था ये धमाका?
इतना कि इसकी वजह से 3.5 तीव्रता जैसा भूकंप पैदा हुआ. धमाके की जगह पर ज़मीन गायब हो गई. इसके नज़दीक कई किलोमीटर का इलाका सपाट हो गया. इमारतें ढह गईं. कई मील दूर तक के घरों की खिड़कियां और दरवाज़े चौखट से निकलकर उड़ गए. पूरे बेरूत में ऐसा एक भी घर नहीं जिसकी खिड़की बची हो. सड़क पर खड़ी कारें हवा में उड़ गईं. मीलों दूर के इलाके धुएं से ढक गए. पूरा शहर मलबे में तब्दील हो गया है.

इस फोटो में ब्लास्ट से पहले और बाद की सैटेलाइट इमेज को देखकर हमले का असर का अंदाज़ा लगा सकते हैं. (फोटो: प्लानेट लैब्स)
प्रशासन के मुताबिक, तीन लाख से ज़्यादा लोग बेघर हो गए हैं. हालत इतनी ख़राब है कि बेरूत के गवर्नर मरवान अबाउद जब ब्लास्ट वाली जगह का मुआयना करने पहुंचे, तो तबाही देखकर बेज़ार रोने लगे. उन्होंने कहा कि बेरूत बर्बाद हो गया. गवर्नर के मुताबिक, इस हादसे के कारण बेरूत को 23 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का नुकसान हुआ है.
लेबनन में लंबे समय से हिंसा का माहौल है. इस देश ने 15 साल लंबा ख़ूनी गृह युद्ध देखा है. कार धमाका और रॉकेट लॉन्चर से अटैक जैसी घटनाएं यहां लोगों के जीवन का हिस्सा हैं. लेकिन तब भी 4 अगस्त को बेरूत शहर में जो हुआ, वैसा मंज़र पहले यहां कभी किसी ने नहीं देखा.
ब्लास्ट में बाकी इमारतों की तरह बेरूत के अस्पताल भी प्रभावित हुए थे. ऐसे में जब सैकड़ों घायल अस्पताल पहुंचने लगे, तो उनके इलाज की व्यवस्था ही नहीं थी. सड़कों पर इतना मलबा था कि ऐम्बुलेंस कैसे चलेंगी. ऐसे में दूर-दूर के इलाकों से लोग अपनी मोटरसाइकल लेकर प्रभावित इलाकों में पहुंचे. इन बाइक वालों से जितना संभव हो सका, उतने घायलों को अस्पताल पहुंचाया इन्होंने. जिनको कोई साधन नहीं मिला, वो ख़ुद ही खूनमखून अवस्था में जैसे-तैसे घिसटते हुए हॉस्पिटल पहुंचने की कोशिश करते दिखे. जो अस्पताल थोड़ी-बहुत बेहतर स्थिति में हैं, वहां मरीज़ों का अंबार है. जगह कम पड़ गई है. कइयों की तो सड़कों और गलियों में पट्टी की जा रही है. ख़ून की इतनी किल्लत है कि पड़ोसी शहरों से लोग रक्तदान के लिए बेरूत पहुंच रहे हैं.
कितने लोगों की जान गई इस ब्लास्ट में?
ये संख्या अभी ठीक-ठीक नहीं बताई जा सकती. इसलिए कि मृतकों की गिनती लगातार बढ़ रही है. 100 से ज़्यादा लोगों के मरने की पुष्टि हो चुकी है. दर्जनों लोग मलबे के नीचे दबे हुए हैं. जैसे-जैसे बचाव कार्य आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मृतकों की संख्या भी बढ़ रही है. घायलों की गिनती चार हज़ार पार चली गई है. कई लोग तो इतनी बुरी तरह जख़्मी हुए कि किसी की आंख फूट गई, किसी का पैर उड़ गया. मृतकों और घायलों के अलावा दर्जनों लोग ब्लास्ट के बाद से ही लापता हैं.
अब आते हैं ब्लास्ट की वजह पर. इस ब्लास्ट से ठीक पहले लोगों ने आसमान में कुछ हवाई जहाज़ देखे थे. उन्होंने सोचा, ज़रूर किसी दुश्मन देश ने हमला किया है. लोगों के दिमाग में सबसे पहले नाम आया इज़रायल का. क्यों? क्योंकि पिछले कुछ दिनों से इज़रायल और हेज़बुल्लाह में टेंशन बढ़ी हुई है. 22 जुलाई को सीरिया में इज़रायल ने एक हवाई हमला किया था. इसमें हेज़बुल्लाह के एक कमांडर की मौत हो गई. इसके बाद से ही लगातार लेबनन और सीरिया की इज़रायल से झड़प हो रही है. 4 अगस्त को इज़रायल ने सीरिया में कुछ जगहों पर बमबारी की थी. ऐसे में बेरूत के लोगों को लगा, हो न हो ये धमाका ज़रूर इज़रायल ने किया है.
लेकिन क्या सच में इस ब्लास्ट के पीछे इज़रायल का हाथ है?
जवाब है, नहीं. ख़ुद लेबनन सरकार ने इसके पीछे किसी हमले की आशंका को खारिज़ किया है. उनके मुताबिक, ब्लास्ट की वजह है आमोनियम नाइट्रेट नाम का एक ख़तरनाक केमिकल. अभी तक मालूम घटनाक्रम के मुताबिक, जिस वेयरहाउस में पहला धमाका हुआ, उसके नज़दीक ही एक और गोदाम था. इस गोदाम में तकरीबन 2,700 टन आमोनियम नाइट्रेट रखा था. आमोनियम नाइट्रेट के इसी विशाल भंडार को दूसरे ब्लास्ट की वजह बताया जा रहा है.
आमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल क्या होता है? इस केमिकल में बहुत सारा नाइट्रोजन होता है. नाइट्रोजन पौधों के लिए बहुत अच्छी खुराक होती है. इसी वजह से फर्टिलाइज़र बनाने में इस केमिकल का ख़ूब इस्तेमाल होता है. इसके अलावा आमोनियम नाइट्रेट में एक और ख़ास गुण होता है. आग लगने की स्थिति में ये बड़ी मात्रा में ऑक्सिजन को आग की तरफ खींचता है. ऐसी स्थिति में ये रसायन काफी ख़तरनाक विस्फ़ोटक का काम करता है. ऐसा ही शायद 4 अगस्त के ब्लास्ट में भी हुआ.

धमाके के बाद बेरूत पोर्ट की तस्वीर. (फोटो: एपी)
इस ख़तरनाक केमिकल की इतनी विशाल खेप एकसाथ उस गोदाम में क्यों रखी गई थी?
इस सवाल का कोई लॉजिकल जवाब नहीं मिला है अब तक. बस इतना बताया गया है कि केमिकल की ये खेप 2013 में एक जहाज़ के रास्ते बेरूत बंदरगाह पहुंची थी. तब से ही ये सैकड़ों टन केमिकल बेरूत पोर्ट के उस गोदाम में रखा हुआ था.
ये ब्लास्ट लेबनन के लिए डबल क्राइसिस जैसी स्थिति है. वहां इकॉनमी पूरी तरह फेल हो चुकी है. एक बड़ी आबादी को भरपेट खाना तक मयस्सर नहीं हो रहा. इसी वजह से लेबनन की जनता पिछले करीब 11 महीने से सड़कों पर उतरी हुई है. शहरों में आए दिन ही हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं. अब सोचिए, इस बदहाली में बेरूत का ये ब्लास्ट स्थानीय आबादी के लिए कितनी बड़ी विभीषिका है.
इस ब्लास्ट ने लेबनन से बची-खुची रोटियां भी कैसे छीन ली हैं?
इस तरह कि 4 अगस्त के ब्लास्ट का ग्राउंड ज़ीरो था बेरूत पोर्ट. धमाके में ये बंदरगाह तबाह हो गया. यहीं पर लेबनन का 85 फीसद अनाज भी स्टोर था. ऐसे में लेबनन को अंतरराष्ट्रीय मदद की सख़्त ज़रूरत है. न केवल बचाव कार्य के लिए. बल्कि लोगों का पेट भरने के लिए भी. लेबनन के प्रधानमंत्री हसन दिआब ने भी दुनिया से मदद मांगी है. रेड क्रॉस और डॉक्टर्स विदाउट बॉडर्स जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने यहां अपने ऐम्बुलेंस और डॉक्टर्स भेजे हैं. अरब देशों ने भी मदद भेजी है. इज़रायल, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों ने भी तत्काल सहायता की पेशकश की है.

लेबनन के प्रधानमंत्री हसन दिआब ने दुनिया के देशों से मदद मांगी है. (फोटो: एएफपी)
सहायता की इन अपीलों और पेशकशों से इतर अभी पूरी दुनिया एक ही सवाल कर रही है. सवाल ये कि इतना बड़ा हादसा हुआ कैसे? किसकी लापरवाही से हुआ? सैकड़ों टन विस्फ़ोटक एक जगह पर स्टोर करके क्यों रखा गया था? लोग पूछ रहे हैं कि इस हादसे से हुई बर्बादी की कीमत कौन चुकाएगा. सरकार पर पहले ही भरोसा ख़त्म हो चुका है जनता का. लोगों को आशंका है कि शायद सरकार अपनी लापरवाही को ढकने की कोशिश करे. कइयों को लग रहा है कि शायद उन्हें इस हादसे की असली वजह कभी बताई ही न जाए.
पता है, बेरूत से जुड़ी एक कहानी है. कहते हैं, अपने 10 हज़ार साल के अतीत में ये शहर सात बार राख हुआ और सातों बार अपनी ही राख से फिर उठ खड़ा हुआ. दूसरे लोग बेरूत की ये कहानी मंत्रमुग्ध होकर सुनते हैं. मगर बेरूत के लोग कहते हैं, उनका शहर शापित है. इसी वजह से यहां खुशहाली नहीं टिकती.कपरनीयम
इस ज़िक्र से मुझे एक फिल्म याद आ गई. इस फिल्म का नाम है- कपरनीयम. ये फिल्म बेरूत में रहने वाले एक 12 साल के बच्चे ज़ैन की कहानी है. ज़ैन की ज़िंदगी में कुछ अच्छा नहीं. न सही सा घर, न बचपन की बेफ़िक्री, न प्यार करने वाले मां-बाप. ऐसे में 12 साल का ज़ैन ख़ुद ही अपने ढेर सारे छोटे भाई-बहनों का ख़याल रखता है. बहन को पीरियड्स होते हैं, तो दुकान से उसके लिए सेनेटरी पैड चुराकर लाता है. जब मां-बाप उसकी 11 साल की बहन को एक अधेड़ आदमी के हाथों बेच देते हैं, तो ज़ैन रोता है. गुस्से में उस आदमी का खून करने निकल पड़ता है, मगर पहुंच जाता है एक ख़ौफनाक जेल.

कपरनीयम फ़िल्म को आप नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं.
ज़ैन की ज़िंदगी जहन्नुम है. मगर उसकी आंखों की चमक, बुरे-से-बुरे हालात में ज़िंदा रहने वाली उसकी इंसानियत आपको एक अलग सी ही उम्मीद देती है. उम्मीद ये कि पिछली पीढ़ियों ने कितनी भी बर्बादी मचाई हो, मगर ज़ैन जैसे बच्चे दुनिया को ख़ूबसूरत बनाने पर अड़े रहेंगे.
उम्मीद है कि बेरूत के सुन्न करने वाले मौजूदा हालात में वहां के लोगों को ऐसी ही कोई रोशनी मिले. फिलहाल उन्हें इस रोशनी की सख़्त ज़रूरत है. खिड़कियों में लगने वाले कांच से लेकर अनाज तक, सब बेरूत में इम्पोर्ट होकर आता है. उसी पोर्ट के रास्ते, जहां ये धमाका हुआ. लोगों की जेब में दवाई और खाने का पैसा नहीं. उनके घर की खिड़कियां और दरवाजे टूट चुके हैं. न जान सुरक्षित है, न दुकान और घर. लोग कैसे इस आपदा से उबरेंगे, इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं.
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