1990 का दौर भारत के ट्रैक-फील्ड पर पीटी उषा का ज़माना था. उस ज़माने में एक खिलाड़ी ने 2 बार पीटी उषा को हराया था – नाम था अश्विनी नचप्पा. आज अश्विनी नचप्पा अपना 49वां जन्मदिन मना रही हैं. अश्विनी इस दौरान फिल्मों में भी गईं और वापिस आकर फिर से नेशनल मेडल भी जीते. उस दौर में पीटी उषा, अश्विनी नचप्पा और शाइनी विल्सन इन तीन धाविकाओं को देखने के लिए भीड़ टूट पड़ती थी.
पीटी उषा को 2 बार हराने वाली एथलीट, जो हीरोइन भी थी
अश्विनी नचप्पा. आज बड्डे है.

लेकिन अश्विनी को भारत में पहली बार पहचान मिली 1991 के ओपन नेशनल गेम्स में 400 मीटर दौड़ में पीटी उषा से आगे निकलकर दिखाने के बाद. इस जीत को अश्विनी का तुक्का माना गया, लेकिन इसके कोई 2 हफ्तों बाद नई दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में अश्विनी एक बार फिर पीटी उषा से आगे रहीं. दिल्ली में हुई इस दौड़ में अश्विनी नंबर 2 और पीटी उषा नंबर 3 रहीं. पहला स्थान एक रूसी खिलाड़ी के नाम रहा.
अश्विनी का खेलों में कैसे आना हुआ, इसकी भी दिलचस्प कहानी है. अश्विनी ने अपना बचपन कोलकाता में बिताया था, जहां पिताजी बिड़ला रेयॉन में नौकरी करते थे. कुछ दिनों बाद अश्विनी, इनकी बहन पुष्पा और मां बेंगलुरु आ गए. बेंगलुरु में श्री कांतीरावा स्टेडियम के ठीक सामने आवास हुआ. उन दिनों भारत के ट्रिपल जंप के खिलाड़ी और एशियन गेम्स के गोल्ड मेडलिस्ट मोहिंदर सिंह गिल वहीं थे. गिल साहब मैदान का एक चक्कर लगाने बच्चे को एक मिठाई देते थे. मिठाइयों के लिए अश्विनी और पुष्पा चक्कर लगाती-लगाती एथलीट बन गईं और टॉफियों की जगह ट्रॉफियों ने ले ली. बेंगलुरु में ट्रायल के बाद 21 साल की उम्र में 1988 सिओल ओलंपिक के लिए चयन हो गया.
बकौल अश्विनी - 1988 के सिओल ओलंपिक ट्रायल में रिले टीम के 4 खिलाड़ियों के चयन के लिए कुल 6 खिलाड़ियों में चुनाव होना था. मुकाबले से ठीक पहले दिन आखिरी ट्रायल होना था. ट्रायल के वक्त पीटी उषा और उनके कोच नहीं आए और अधिकारियों ने तय किया कि शाम को फिर ट्रायल लेंगे. शाम के वक्त अश्विनी के साथ 2 और खिलाड़ी हॉकी टीम का मैच देखने चली गईं. वापिस आने पर अश्विनी को पता चला कि अश्विनी को रिजर्व में कर दिया गया. पीटी उषा को शामिल कर लिया गया था. 4x400 मी रिले दौड़ में भारत की टीम पहले ही दौर में बाहर हो गई. 1992 ओलंपिक खेलों में एक चोट की वजह से ट्रायल नहीं दे पाईं और रिटायरमेंट ले लिया. इसी बीच अश्विनी को 1990 में अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
अपने फिल्मी करियर में अश्विनी ने सिर्फ गिनी-चुनी तेलुगू फिल्में कीं. इनमें इंस्पेक्टर अश्विनी अच्छी-खासी हिट रही. इस फिल्म के लिए अश्विनी को आंध्र सरकार से बेस्ट न्यूकमर एक्टर का पुरस्कार भी मिला. धोनी की तरह अश्विनी ने अपनी अनटोल्ड स्टोरी पर फिल्म बनाई थी. बस अंतर ये था कि इसमें खुद अश्विनी ने एक्टिंग की थी. 1991 में आई आत्मकथात्मक फिल्म का नाम भी अश्विनी ही था. फिल्मों में आने के बाद लगा कि खेल खत्म हो गया है. लेकिन अश्विनी ने 1992 के कोलकाता नेशनल्स में चार गोल्ड मेडल जीते – 100 मीटर, 200 मीटर, 400 मीटर और 4x400 मीटर.
हालांकि अश्विनी की इच्छा एयर-हॉस्टेस जैसे करियर आजमाने की भी थी पर स्पोर्ट्स कोटे से विजया बैंक में नौकरी मिल गई. नौकरी छोड़ने के बाद अश्विनी नचप्पा ने साल 2004 में अपने पति के नाम पर खुद की खेल अकैडमी शुरू कर दी – केएएलएस अकेडमी. अश्विनी का मानना है कि खेल भी ज़रूरी हैं और पढ़ाई भी. 'खेल छोड़ने के बाद मेरा करियर इसलिए कामयाब रहा कि मैं पढ़ाई कर पाई. मेरे साथ खेलने वाले कुछ खिलाड़ी इतने खुशकिस्मत नहीं थे. इसलिए मैंने स्पोर्ट्स और स्कूल दोनों एक ही में शुरू किए.'
अश्विनी के स्कूल से निकले सबसे अच्छे खिलाड़ियों के लिए प्रतिष्ठित कॉलेजों में दाखिले की भी व्यवस्था है और ये स्कूल हॉकी के गढ़ कर्नाटक के कूर्ग में है. पता नहीं किस शायर ने कहां से सीख के कह दिया - एक ज़िंदगी काफ़ी नहीं. खिलााड़ी, एक्टर, कोच, अध्यापक, बैंककर्मी बनने के बाद अश्विनी स्पोर्ट्स एक्टिविस्ट भी बन गई हैं. अश्विनी ने क्लिन स्पोर्ट्स इंडिया नाम से एक संस्था बनाई है. इसमें साथ और कभी-कभी एक-दूसरे के खिलाफ खेलने वालीं कुछ औऱ खिलाड़ी भी आई हैं. अश्विनी का मानना है कि खेलों में राजनीति से ज्यादा राजनीति है. अश्विनी के पति दत्ता कारोम्बियाह भारत की जूनियर हॉकी टीम के खिलाड़ी रहे हैं. अश्विनी की दो बेटियां हैं और दोनों बैटमिंटन खेलती हैं. इसको कहते हैं स्पोर्ट्स फैमिली!