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IAS की नौकरी छोड़ BJP में आए अरविंद शर्मा कौन हैं, जिन्हें UP का डिप्टी सीएम बनाने की चर्चा जोर पकड़ रही है

अरविंद शर्मा के लिए मोदी की बात पत्थर की लकीर है

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भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और यूपी के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा की मौजूदगी में भाजपा में शामिल होते अरविंद कुमार शर्मा
साल 2008. पश्चिम बंगाल का सिंगूर. कलकत्ता से कुछ 50 किलोमीटर दूर बसा ये क़स्बा देश की सबसे बहसतलब जगह बन चुका था. बंगाल में लेफ़्ट की सरकार थी. और सरकार ने टाटा कम्पनी को सिंगूर में लखटकिया बनाने के लिए जगह दे दी थी. लखटकिया यानी लाख टके की कार उर्फ़ टाटा नैनो. लेकिन रतन टाटा का भारत के मध्यम वर्ग को चार पहिए का मालिक बना देने का सपना धराशायी हो रहा था. तब की प्रमुख विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और कई सारे सामाजिक कार्यकर्ता टाटा को प्लांट के लिए सरकार द्वारा उपजाऊ भूमि देने के मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे थे. कुछ मज़दूर और खेतिहर किसान भी इसमें शामिल थे. लाठीचार्ज वग़ैरह हुआ. बहुत बहस हुई. टाटा के लिए ये विरोध भारी था. 
आख़िरकार टाटा ने अक्टूबर 2008 में ऐलान कर दिया कि वो इस प्लांट को बंगाल के सिंगूर में नहीं लगायेंगे. कहते हैं कि रतन टाटा के फ़ोन पर उस समय एक SMS आया. SMS नरेंद्र मोदी ने भेजा था. मैसेज में लिखा था ‘सुस्वागतम्’. रतन टाटा गुजरात चले गए. यहां पर साणंद में नया प्लांट खोलना था. लेकिन साणंद में ज़मीन का मिलना कठिन था. जिस ज़मीन पर टाटा की फ़ैक्टरी लगनी थी, वहां कुछ पेच फ़ंसा था. पेच सॉल्व करने का ज़िम्मा एक IAS अधिकारी को दिया गया. अधिकारी इस समय मुख्यमंत्री कार्यालय में सचिव के पद पर कार्यरत था. पेचीदा-से लगते इस ज़मीन के मामले को कुछ ही हफ़्तों के भीतर इस IAS अधिकारी ने सॉल्व कर दिया. टाटा की फ़ैक्ट्री जम गयी. 
Narendra Modi And Ratan Tata On Nano Unveil टाटा नैनो के लोकार्पण के मौक़े पर रतन टाटा और नरेंद्र मोदी

जिस IAS अधिकारी ने ये कारनामा कर दिखाया, उस अधिकारी ने 12 जनवरी 2021 को अपने रिटायरमेंट से दो साल पहले ही VRS ले लिया. यानी ऐच्छिक सेवानिवृत्ति. और 14 जनवरी को धूमधाम से लखनऊ में बीजेपी की सदस्यता ले ली. अधिकारी का नाम - अरविंद कुमार शर्मा. वही अरविंद जिन्हें यूपी में होने जा रहे विधान परिषद चुनावों के ठीक पहले बीजेपी में शामिल कराया गया. MLC बनाए जाने की पुरज़ोर संभावनाएं हैं. और लखनऊ में होने वाली चर्चा तो इतनी ज़्यादा है कि अरविंद शर्मा को शायद 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले वोट साधने के लिए प्रदेश का उपमुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है. क्यों? क्योंकि पत्रकार दावा करते हैं कि ये PM मोदी का मिशन यूपी है. सूत्रों के हवालों से आ रही ख़बरें दावा करती हैं कि नरेंद्र मोदी ने 8 जनवरी को ही योगी आदित्यनाथ को बता दिया था कि अरविंद शर्मा यूपी जायेंगे. तख़्तापलट के बाद नरेंद्र मोदी का सिपहसालार लेकिन अरविंद शर्मा की कहानी थोड़ी रोचक है. वो 1988 बैच के गुजरात काडर के IAS अधिकारी हैं, लेकिन ख़ुद रहने वाले हैं यूपी के मऊ के. यहां के मुहम्मदाबाद गोहना तहसील के रानीपुर विकास खंड के अंतर्गत आता है काझाखुर्द गांव. ख़बरों के मुताबिक़, यहीं अरविंद शर्मा का जन्म हुआ साल 1962 में. शिवमूर्ति राय और शांति देवी के तीन बेटों में अरविंद सबसे बड़े. गांव के स्कूल से प्राथमिक पढ़ाई करने के बाद डीएवी इंटर कॉलेज से इंटर पास किया. फिर चले गए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी. वहां से ग्रैजुएशन और पोस्ट-ग्रैजुएशन किया. पीएचडी भी की. फिर सिविल सेवा की तैयारी शुरू की. चुन लिए गए.
Arvind Kumar Sharma 1 अरविंद कुमार शर्मा, जिन्होंने यूपी के एक गांव से निकलकर नरेंद्र मोदी के क़रीब की कुर्सी हासिल की.

कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी ने अरविंद शर्मा को अपनी आंख के तारे की तरह रखा. जहां-जहां गए, अरविंद शर्मा को भी साथ ले गए. तो क्या है कहानी इतनी क़रीबी की? साल 2001 में चलिए. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल बहुत दिक्कतों से गुज़र रहे थे. 1998 में कांडला बंदरगाह पर तूफ़ान, साल 1999 और 2000 का कच्छ और सौराष्ट्र का सूखा और साथ ही 2001 का भुज का भूकंप. इनके साथ-साथ पंचायत और उपचुनावों में भी भाजपा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही थी. केशुभाई पटेल से शीर्ष नेतृत्व ख़ुश नहीं था. केशुभाई की सरकार की नाकामी के खिलाफ़ ख़बरें छापी जा रही थीं.
केशुभाई पटेल

चर्चा थी कि जिस आदमी ने भीतरखाने की ख़बर मीडिया को उपलब्ध करायी थी, उसे ही अगला मुख्यमंत्री बनाया जाना था. और बना भी दिया गया. 7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के 14वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. दी कारवां मैगजीन को दिए इंटरव्यू में आउटलुक पत्रिका के संपादक रह चुके विनोद मेहता ने बताया था,
“जब नरेंद्र मोदी दिल्ली में बीजेपी के लिए काम कर रहे थे, वो एक दिन मेरे से मिलने मेरे दफ्तर आए. उनके पास कुछ ऐसे दस्तावेज़ थे, जो गुजरात की केशुभाई की सरकार के खिलाफ जाते थे. इसके कुछ दिन बाद मैंने सुना कि उन्हें गुजरात का नया मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है.”
बहरहाल, इस तख़्तापलट के दौरान नरेंद्र मोदी की मुलाक़ात हर्षद ब्रह्मभट्ट से हुई. हर्षद एक IAS अधिकारी थे और जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट से जुड़े हुए थे. और गुजरात से जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि हर्षद का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी गहरा जुड़ाव था. नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात के बाद हर्षद ने नरेंद्र मोदी को अरविंद कुमार शर्मा का नाम सुझाया. इस समय अरविंद कुमार शर्मा इंडस्ट्रीज़ डिपार्टमेंट में एडिशनल कमिशनर के पद पर कार्यरत थे. इसके पहले वड़ोदरा में पुनर्वास विभाग में ज्वाइंट कमिश्नर, गांधीनगर के वित्त विभाग में डिप्टी सचिव, खेड़ा में कलेक्टर और खनन विभाग में ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर, मेहसाणा में डीएम और उसके पहले एसडीएम के पद पर रह चुके थे. अरविंद कुमार शर्मा को हर्षद ब्रह्मभट्ट की सिफ़ारिश पर तुरंत मुख्यमंत्री सचिवालय बुला लिया गया. नियुक्ति हुई सचिव के पद पर. और यहीं से अरविंद शर्मा और नरेंद्र मोदी के बीच एक अटूट संबंध की शुरुआत हुई. साल 2004 में अरविंद शर्मा ज्वाइंट सेक्रेटरी बना दिए गए. बाद में एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनाकर गांधीनगर के मुख्यमंत्री कार्यालय भेज दिए गए. जहां-जहां नरेंद्र मोदी रहे, वहां-वहां अरविंद कुमार शर्मा मौजूद रहे.
Arvind Kumar Sharma 2 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी ने अरविंद कुमार शर्मा को एक कॉल किया था. बस फिर अरविंद केंद्र में चले आए.

अपने गुजरात के कार्यकाल के दौरान अरविंद शर्मा ने दो चार गेम चेंजर क़िस्म के काम किए. एक तो टाटा के नैनो प्लांट के लिए रास्ता साफ़ करना तो हमने बता ही दिया. दूसरा काम है साल 2001 में भुज में आए भूकंप में राहत कार्य. ये घटना केशुभाई की सरकार में ताबूत के आख़िरी कील की तरह थी, लिहाज़ा नरेंद्र मोदी को राहत कार्यों को समय पर पूरा करना था. लोग बताते हैं कि काम समय में राहत कार्य और पुनर्वास को अंजाम देने में अरविंद शर्मा ने नरेंद्र मोदी की मदद की. फिर आया साल और तीसरा गेम चेंजर काम. वाइब्रेंट गुजरात. साल 2003 में शुरू हुआ ये गुजरात सरकार का ऐसा जलसा है, जिसकी मदद से गुजरात सरकार निवेशकों को लुभाती है. हर दो साल पर इस जलसे का आयोजन किया जाता है. ख़बरें और लोग बताते हैं कि नरेंद्र मोदी के क़रीब आने के बाद अरविंद शर्मा ने वाइब्रेंट गुजरात के आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाई. अरविंद शर्मा वाइब्रेंट गुजरात के प्रमुख योजनाकार रहे.
2002 में हुए गुजरात दंगों की वजह से नरेंद्र मोदी और अमरीका के संबंध बहुत दिन तक खटाई में थे. मोदी बहुत समय तक अमरीका नहीं जा सके थे. वीज़ा पर रोक थी. लेकिन जानकार बताते हैं कि अरविंद शर्मा ही वो व्यक्ति थे, जो साल 2014 में अमरीकी ऐम्बैसडर नैन्सी पावल गांधीनगर लेकर आए थे. और धीरे-धीरे नरेंद्र मोदी और अमरीका के रिश्तों के बीच जमी बर्फ़ पिघलने लगी. लोग बताते हैं अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान नरेंद्र मोदी देश विदेश के जितने भी दौरों पर गए, अरविंद शर्मा उनके साथ ज़रूर मौजूद रहे. ये भी कहा जाता है नरेंद्र मोदी जिन भी कानूनी पचड़ों में फ़ंसे, वहां उनकी मदद अरविंद शर्मा ने की. भले ही वो मुद्दे 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े क्यों न हों? एक फोन कॉल और अरविंद शर्मा केंद्र में गुजरात से जुड़े हुए एक वरिष्ठ केंद्रीय अधिकारी जानकारी देते हैं कि साल 2006 का 11 महीनों का समय छोड़ दें तो पिछले 20 सालों में नरेंद्र मोदी और अरविंद कुमार शर्मा का साथ कभी नहीं छूटा है. इन 11 महीनों में अरविंद शर्मा फ़ॉरेन ट्रेनिंग के लिए ऑस्ट्रेलिया गए हुए थे. हमसे बातचीत में वो वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं,
“16 मई 2014 को तय हुआ कि नरेंद्र मोदी ही अगले प्रधानमंत्री बनेंगे. 17 मई को नरेंद्र मोदी ने अरविंद कुमार शर्मा को फ़ोन किया कि आपको मेरे साथ दिल्ली चलना है.”
अरविंद शर्मा रेडी हो गए. 26 मई को नरेंद्र मोदी ने कार्यभार सम्हाला और 30 मई को अरविंद शर्मा को नियुक्ति पत्र मिल गया. प्रधानमंत्री कार्यालय में अरविंद शर्मा ने 3 जून को ज्वाइंट सेक्रेटरी का कार्यभार सम्हाला. फिर 22 जुलाई 2017 को एडिशनल सचिव बना दिए गए. 30 अप्रैल 2020 को अरविंद कुमार शर्मा को माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज़ (MSME) मंत्रालय में सचिव बना दिया गया. और आख़िर में अब है ऐच्छिक सेवानिवृत्ति. 
Arvind Kumar Sharma 3 अरविंद कुमार शर्मा

लेकिन केंद्र में आने के बाद भी अरविंद कुमार शर्मा का कार्यकाल बहुत चर्चा में रहा. उन्हें सीधे उन प्रोजेक्ट्स से जोड़ा जाता, जिनमें प्रधानमंत्री मोदी की ख़ास रुचि होती थी. 2019 में केंद्र सरकार के 100 करोड़ इंफ़्रास्ट्रक्चर में निवेश में प्लान को डिज़ाइन करने में अरविंद शर्मा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. साथ ही इससे जुड़े मंत्रालयों में अरविंद शर्मा की सीधी दख़ल होती थी. चर्चा तो ये अभी है कि अरविंद कुमार शर्मा का मेयार इतना बुलंद था कि वो काम निकालने के लिए सीधे केंद्रीय मंत्रियों को फ़ोन लगा देते थे. उनकी कार्यशैली को देखते हुए ही नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन में अरविंद शर्मा को MSME मंत्रालय में सचिव बना दिया. इसके बाद ही MSME को ज़िंदा करने के लिए लोन देने की परियोजना और आत्मनिर्भर भारत की नींव रखी गयी.
इस पूरी बहस को क़रीब से जानने वाले एक अधिकारी बताते हैं,
“अरविंद कुमार शर्मा के अंदर कुछ ख़ास ख़ूबियां हैं. एक, वो बहुत कम शब्दों के व्यक्ति हैं. बहुत कम बोलते हैं. दो, बहुत कर्मठ हैं. कुछ काम ठान लिया तो उसे अंजाम पर ज़रूर पहुंचाते हैं. और तीसरी सबसे ख़ास ख़ूबी, नरेंद्र मोदी अगर कुछ बोल दें तो अरविंद शर्मा उससे एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे. वो बात पत्थर की लकीर है. यही बात उन्हें नरेंद्र मोदी का ख़ास बनाती हैं.”
Arvind Sharma Signing Joining Papers पार्टी के दस्तावेज़ साइन करते अरविंद कुमार शर्मा, साथ में मौजूद हैं स्वतंत्र देव सिंह

बहरहाल अरविंद शर्मा अब यूपी आ चुके हैं. कहा तो जा रहा है कि MLC की 12 सीटों में से 10 पर बीजेपी की सीट तय है. और एक सीट पर अरविंद शर्मा भेजे जायेंगे. MLC बनकर वो बीजेपी के लिए क्या करते हैं, ये एक राजनीतिक परिदृश्य का सवाल है. इसका जवाब अगले एकाध सालों में मिलेगा. लेकिन ये बताते हुए कि एक रात पहले ही उन्हें बीजेपी की सदस्यता लेने के लिए कहा गया, अरविंद शर्मा ने कहा,
“अचानक किसी ऐसे आदमी को पार्टी में शामिल कर लेना, जिसके पास कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि या कोई राजनीतिक विरासत नहीं है, ऐसा सिर्फ़ भाजपा और नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं."
ये तो नहीं पता कि यूपी में एक तीसरा डिप्टी CM आएगा, या दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्या में से किसी एक की छुट्टी होगी. लेकिन ये चर्चा बुलंद है कि अरविंद शर्मा को यूपी भेजकर नरेंद्र मोदी ने लखनऊ में अपनी इंद्रियां बुलंद की हैं. नरेंद्र मोदी की आंख और कान अरविंद शर्मा बनेंगे, ऐसा कहा जा रहा है. और कहा तो ये भी जा रहा है कि यूपी की ताक़तवर नौकरशाह लॉबी में नरेंद्र मोदी अपना सिक्का बुलंद करेंगे ताकि यूपी में चल रही पीएमओ की परियोजनाओं पर अरविंद शर्मा नज़र बनाए रखें.