- विनीत जो स्क्रिप्ट लिखकर लाया था, वो 'रॉकी' थी. वो लोग विनीत सिंह से तीन करोड़ में 'मुक्काबाज़' की स्क्रिप्ट खरीदना चाहते थे. ये भरोसे का टेस्ट था. - जोया से कई लोगों ने कहा कि सर्जरी करा लो. कई लोगों ने कहा कि फेवर कर दो. इस सारी बकवास के बावजूद वो टिकी रही. - मेरे सिवाय इंडस्ट्री में सबको पता होता है कि मुझे क्या करना चाहिए. जब लोग आपके बारे में बेहतर जानते है, तो क्रिएटिव मामले में डेंजरस हो जाता है. - जब रवि किशन को पता चला कि मैंने गैंग्स में उन्हें नहीं लिया, तो नाराज़ हुए. बोले, 'जो बोलोगे, करूंगा. बिना पूछे हिलूंगा भी नहीं. मुझे फिल्म करनी है बस.' - लोगों को लगता है कि जिमी शेरगिल पंजाबी हीरो हैं, जबकि उनकी पैदाइश गोरखपुर और पढ़ाई लखनऊ की है. मुझे यूपी वाले चाहिए थे. - मेरे साथ काम कर चुके एक्टर्स अब अपनी ही फिल्मों की आगे की स्क्रिप्ट लिखकर ला रहे हैं. उन्हें लगता है मुझे पसंद आएगा, पर वो तो हो चुका है.
अंगरेजी में टाइटल होता, अप क्लोज एंड पर्सनल विद अनुराग कश्यप
अर्थात अनुराग कश्यप के साथ अंतरंग बातचीत. सप्रेम- सौरभ द्विवेदी


अनुराग कश्यप 10 जनवरी 2018 की सुबह दिल्ली पहुंचे. हवाई जहाज से. मुंबई से. उसके पहले के कई दिनों से तगादा चल रहा था. उनकी फिल्म 'मुक्काबाज़' के इंटरव्यू के लिए. बाकी सबसे बात हो गई थी. वही रह गए थे. तो बोले, 'होटल ललित में प्रेस कॉन्फ्रेंस है. 11.30 बजे से. उसके पहले आ जाओ. हम बात कर लेंगे.'

होटल ललित में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान 'मुक्काबाज़' की टीम
हम पहुंच गए. और कमरे में बातचीत हुई. बीच-बीच में वह फल और मेवा रपेटते रहे. मैंने पूछा, 'नाश्ता नहीं किया क्या?'
बोले, 'फिर से एक्सरसाइज़ शुरू कर दी है, तो बहुत भूख लगती है.'
अनुराग झूठ नहीं बोल रहे थे. जब हम मार्च 2017 में उनसे बरेली में मिले थे, तब वह 'मुक्काबाज़' शूट कर रहे थे. उनकी तोंद और दाढ़ी दोनों बढ़ी थीं. अब दोनों घट गई हैं.
चूंकि अनुराग कश्यप के तब तक और अब तक तो और भी ज्यादा इंटरव्यू आ चुके थे, इसलिए रेगुलर सवाल-जवाब से बचा गया. जो हुआ, वो कुछ दोस्तनुमा बातचीत जैसा था. आप भी लुत्फ लें. इस बातचीत के बीच में बस एक बार ब्रेक आया. रूम की घंटी बजी. दरवाजे पर होटल वाले थे. फूल लेकर आए थे. अनुराग उन्हें देखकर खुश हो गया. हां, ले आइए. ट्यूलिप हैं न ये, अनुराग ने बोला.
नहीं सर, एंथुरियम हैं,
होटल बॉय ने कहा.
खूब सारे फूल थे. अलग-अलग गुलदस्तों में. अनुराग ने सब दरवाज़े पर ही ले लिए. चहकते हुए. कि मुझे दे दो. मैं अपने हिसाब से कमरे में सेट करूंगा. बाद में बताया कि होटल बॉय को भीतर नहीं आने दिया, वर्ना उसे पता चलता कि मैंने बाथरूम में सिगरेट पी है. ऐसा कहकर वो कमीनी हंसी हंस दिया. अनुराग की ये हंसी दोस्तों का हासिल है. मैं भी हंस दिया, क्योंकि उसने मुझे भीतर आने दिया. इस बातचीत के दौरान. अपने मन के.
सौरभ- मुझे ये बताओ, विनीत पहला ड्राफ्ट लेकर आया ('मुक्काबाज़' फिल्म का पहला ड्राफ्ट इसके लीड एक्टर विनीत सिंह ने लिखा था.) तुमने कहा रिवर्क करो. ये पूरा प्रॉसेस क्या था?
अनुराग कश्यप- विनीत ने अपने लिए पिक्चर लिखी थी. विनीत ने मुझे पढ़ने के लिए दी थी कि ये बताओ सर कि कोई बनाना क्यों नहीं चाह रहा है इस स्क्रिप्ट पर फिल्म. मामला ये था कि कोई उसे हीरो लेकर नहीं बनाना चाह रहा था. कुछ को पसंद आ रही थी, मगर फिर भी अटक रहे थे.
एक डायरेक्टर को पसंद थी, पर वह भी न जाने क्यों अटक रहा था. मैंने पढ़ा तो समझा कि दो तरीके होते हैं फिल्म बनाने के. एक मेनस्ट्रीम, जिसमें अजीब सा होता है. गारंटी नहीं होती. एक होता है कि आप एक विश्वास किए जाने लायक फिल्म बना रहे हो. मैंने विनीत से कहा कि तुमने जो फिल्म लिखी है, वो 'रॉकी' है. तुमने स्टोरी सुनी कि सिल्वेस्टर स्टैलोन ने अपने लिए फिल्म लिखी 'रॉकी' और बन गया हीरो. उसी तरह तुमने ये अपने लिए लिखी है. लिटरली 'रॉकी' लिखी है.
इंडिया में ऐसा बॉक्सिंग सीन है ही नहीं. ऐसा बॉक्सिंग चैंपियन कहां खोजूं मैं. मुझे रेफरेंस चाहिए सचमुच के. मगर विनीत की कहानी में 10 पन्ने बहुत ईमानदार थे. ये थे कि एक आदमी ज़िंदगी बदलने के लिए बॉक्सिंग उठाता है. उसे लड़की से प्यार है, मगर नौकरी नहीं तो लड़की नहीं. तो एक ही रास्ता है, खेलो. खेलो तो रेलवे में नौकरी मिलेगी. वो जोन ईमानदार था. मुझे लगा कि इन्हीं 10 पन्नों में पूरी फिल्म है.
उसके बाद मैंने कहा कि मैं लिखता हूं फिल्म, इससे आगे की. तू जा और बॉक्सर बन. अगर तू बॉक्सर नहीं बनेगा, तो मैं फिल्म नहीं बनाऊंगा.

'मुक्काबाज़' विनीत सिंह. नीचे वीडियो में देखिए कितना खून-पसीना बनाकर वो असल में बॉक्सर बने.
सौरभ- सुनैना (फिल्म की लीड फीमेल कैरेक्टर) का किरदार कैसे आया दिमाग में? वो गूंगी है, मगर गुस्सैल है. मैं जानना चाहता हूं कि वो अनुराग की कोख में कैसे आई.
अनुराग कश्यप- मैं हमेशा किरदार ही सोचता हूं. जोया से जब मैं मिला. तीन और आधा (जोया की पहली और कई भाषाओं वाली फिल्म) से पहले. मैं उसे अवनी के जरिए जानता हूं. वो अवनी राय (रघु राय की बेटी और डॉक्युमेंट्री फिल्ममेकर) की दोस्त है. मैं अवनी की डॉक्युमेंट्री प्रॉड्यूस कर रहा था. तब ये साथ में आती थी. चुपचाप रहती थी. बोलती नहीं थी ज्यादा. अब तो बोलने लगी है. उसकी ओपिनियन हर चीज़ पर बहुत स्ट्रॉन्ग है. तो लिखते वक्त एक उसका कैरेक्टर भी कहीं ध्यान में था. लेकिन ये जो सुनैना है, वो अगर यूपी के माहौल में इतनी सारी चीज़ें कहेगी, तो ज़िंदा नहीं बचेगी. खासतौर पर सवर्ण समाज में. इसलिए ख्याल आया कि इसको चुप करा दो. गूंगा बना दो. तब इसका विरोध बर्दाश्त हो जाएगा लोगों को.
सुनैना के पास कहने को बहुत कुछ है. उसे पता है कि लाइफ में करना क्या है. बस बोल नहीं सकती. और इसे वो अपाहिज होना नहीं मानती. उसकी शिकायत ये है कि कोई समझता क्यों नहीं, मां के अलावा. वो हीरो से ज्यादा महात्वाकांक्षी है. असली मुक्काबाज तो वो है.

'मुक्काबाज़' की लीड एक्ट्रेस जोया हुसैन, जिन्होंने गूंगी लड़की का किरदार निभाया.
सौरभ- और जोया इससे राजी थीं? हीरोइन का पहला रोल और वह भी गूंगा.
अनुराग कश्यप- उसके पास काम कहां था. वो तो स्ट्रगल कर रही थी. मगर अपनी शर्तों पर फिर भी अड़ी थी. किसी कास्टिंग डायरेक्टर ने उससे कहा, ये सर्जरी करा लो, किसी ने कहा, फेवर कर दो. तो ये सब बकवास के बावजूद वो टिकी थी कि अपने हिसाब से काम करना है.
मैंने उसे पढ़ने के लिए स्क्रिप्ट भेजी. मगर वह वो पढ़ नहीं रही थी. फिर उसे अवनी ने डाला. और मैंने भी. तब उसे समझ आया कि ये रोल उसके लिए है. उसके बाद वह संगीता गाला के पास गई साइन लैंग्वेज सीखने. मेरे पास एक लॉजिक था जोया के फेवर में कि वो खाली थी. मुझे खाली एक्टर पसंद हैं. मुझे चाहिए कि समय दें. अपने रोल की तैयारी में टाइम दें. आधा मैजिक तो वहीं हो जाता है, तैयारी में.
सौरभ- ये आपकी यूपी पर पहली फिल्म है? अनुराग कश्यप- नहीं, 'युवा' का लल्लन (अभिषेक बच्चन का किरदार) मुगलसराय का था.
सौरभ- 'मुक्काबाज़' के बाद 'मनमर्जियां' डायरेक्ट कर रहे हैं... अनुराग कश्यप- ये कनिका ढिल्लन ने लिखी है. 'केदारनाथ' भी उसी ने लिखी है. (केदारनाथ से अमृता सिंह और सैफ अली खान की बेटी सारा डेब्यू कर रही हैं.) 'मनमर्जियां' पूरी तरह पंजाब बेस्ड है.
सौरभ- स्टारकास्ट फाइनल हुई? अनुराग कश्यप- मीडिया में आ तो रहे हैं नाम. मैं अभी ऑफीशियली कुछ नहीं कह सकता. जब अनाउंस होगी तब पता चल जाएगा. (बकौल मीडिया, व्हाटएवर दैट मींस, तापसी पन्नू, अभिषेक बच्चन और विकी कौशल).
सौरभ- मुंबई में एक कहानी सुनाई गई पिछले बरस कि अनुराग के साथ कोई फिल्म बनाने को राज़ी नहीं था. आनंद राय ('तनु वेड्स मनु' फेम) चाहते थे कि अनुराग उनके लिए मनर्जियां डायरेक्ट कर दे. अनुराग ने शर्त रखी कि 'मुक्काबाज़' प्रॉड्यूस करो, तो कर दूंगा. क्या है सच्चाई?
अनुराग कश्यप- मेरे सिवाय इंडस्ट्री में सबको पता होता है कि मुझे क्या करना चाहिए. बोलते हैं कि यार तू डायरेक्टर अच्छा है, पर ऐसी फिल्में क्यों बनाता है. अब उनसे कोई पूछे कि उन्हें ऐसी फिल्मों के चलते ही तो पता चला कि मैं कैसा डायरेक्टर हूं. यहां, सब चाहते हैं मेरे लिए चुनना. पर मुझे ऐसे नहीं करना. मुझे वही करना है, जो मुझे करना है. जब लोगों को आपके बारे में बेहतर पता होता है, तो वो डेंजरस हो जाता है. क्रिएटिव मामले में.

'तनु वेड्स मनु' फेम आनंद एल रॉय (दाएं) और अनुराग कश्यप
सौरभ- हम 'मुक्काबाज़' के बारे में बात कर रहे थे.
अनुराग कश्यप- हां तो देखो, मेरे पास कुल 18 स्क्रिप्ट हैं. उसमें से मुझे अभी 'मुक्काबाज़' बनानी थी. तो सवाल आया कि विनीत के साथ क्यों. मैंने कहा कि विनीत ने तो फिल्म लिखी है. उसे कैसे हटा सकते हैं. तो एक स्टूडियो वाले बोले, हम खरीद लेते हैं. मैंने कहा, विनीत नहीं बेचेगा. वो बोले, हमें बात करने दो. बोले कि एक करोड़ देंगे, तो दे देगा स्क्रिप्ट. मैंने कहा ऐसा नहीं होता. बोले तीन करोड़ दे देंगे. तीन कहानियों की डील कर लेंगे. वो खुश हो जाएगा.
मेरे लिए ये सब बहुत सिंपल था. एक टेस्ट था. अगर विनीत ने स्टूडियो को स्क्रिप्ट बेच दी, तो मैं फिल्म नहीं बनाऊंगा. विनीत से भी भरोसा उठ जाता. पर विनीत टिका रहा. फिर दूसरे स्टूडियो में जाने से पहले फोन आ गया आनंद का.
(अब अनुराग कश्यप और आनंद एल. राय के बीच जो बातचीत हुई, उसे जब मैंने संज्ञा, सर्वनाम के सब खर्चों के साथ लिखा, तो अजीब लगा. इसलिए उसे भी संवाद शैली में ही लिख दिया है- सौरभ)
आनंद- एक स्क्रिप्ट पढ़ानी है. (वो थी 'मनमर्जियां'.) (कुछ समय के बाद) अनुराग- पढ़ ली. आनंद- कैसी है? अनुराग- ये तो कमाल है. नया तरीका है इश्क को देखने का. आनंद- बनाओगे? अनुराग- बनाऊंगा. आनंद- कब बना सकते हो? अनुराग- अभी तो ये बनाना चाहता हूं. आनंद- ये क्या है? अनुराग- ये 'मुक्काबाज' है.
(अब आनंद ने स्क्रिप्ट पढ़ी.)
आनंद- क्या कास्ट है? अनुराग- पांच के आसपास. (पांच करोड़) आनंद- ठीक है बनाओ. अनुराग- नए लोग हैं. आनंद- वो सब अब तुम जानो. जैसे बनानी है बनाओ.
मितरों, अब वापस ललित होटल के कमरे लौटते हैं. अनुराग इस संवाद के बाद भी बोल रहे हैं. उन्होंने कहा, 'मुझे 25 साल में पहली बार ऐसा आदमी मिला, जिसने कुछ भी नहीं पूछा. हमने कास्टिंग फाइनल कर ली. शूट के लिए मुंबई से निकलने वाले थे. पुरानी खुचड़ों का अनुभव. थोड़ा कॉन्शस हो गया. तो फिर आनंद के पास गया. बोला, सर एक बार मिल तो लो आप.' बकौल अनुराग, 'मुझे लगा कि ऐसा न हो कि बाद में कहें कि ऐसा कर लेते, वैसा कर लेते.'
आनंद ने कहा, 'ठीक है, सबको घर ले आओ. लंच करते हैं.'
लंच वाले दिन जब विनीत पहुंचा, तो आनंद का पहला डायलॉग था, 'अबे इसको तो मैं जानता हूं. अच्छा एक्टर है.'
फिर जोया आई. वो जोया को नहीं जानते थे. उसका काम नहीं देखा था. उसे देखा. उस वक्त. और बोले, 'अच्छी लड़की है'. फिर पूछा, 'सिंसियर है?' मैंने (अनुराग ने) कहा, 'हां'. तो आनंद बोले, 'इसे अपनी दूसरी फिल्म के लिए भी टेस्ट करते हैं'.
सौरभ- तो अनुराग भी दूसरी फिल्म में मौका देंगे क्या जोया को? मैं उससे बात कर रहा था कुछ रोज पहले. जोया से. कह रही थी कि मैं तो अनुराग को अपनी शॉर्ट फिल्म में डायरेक्ट करना चाहती थी. फिर ये भी बता रही थी चहककर कि अभी अनुराग के साथ और फिल्म भी करूंगी. मैंने समझाया, 'बालिके, अनुराग रिपीट नहीं करते जल्दी-पल्दी'.
अनुराग कश्यप- नहीं, नहीं. उसे रिपीट करूंगा. प्रॉमिस किया है. इस फिल्म में उसके लिए डायलॉग नहीं था न. तो एक आवाज़ वाली फिल्म भी करूंगा.
सौरभ- रिपीट से याद आया, आपने विनीत को भी बोल दिया था. 'अग्ली' के दौरान कि ये लास्ट फिल्म है. अनुराग कश्यप- हां, मैं मैक्सिमम तीन फिल्म के बाद रखता नहीं हूं. वरना खुद रिपीट मोड में आ जाता हूं. मैं खुद के लिए करता हूं. एक्टर्स के लिए भी यही अच्छा है.
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ये लाइन इसलिए खींच दी है, क्योंकि इंटरव्यू में यहां पर जंप सा आता है. अचानक से, बिल्कुल अलहदा किस्म का सवाल.
सौरभ- फिल्म एडिट किसने की है. आरती ने? (आरती बजाज, बॉलीवुड की सबसे धाकड़ एडिटर्स में से एक. अनुराग की कॉलेज की दोस्त. पहली पत्नी. दोनों की एक बेटी है- आलिया)
अनुराग कश्यप- मैं कुछ भी बनाऊं, आरती के थ्रू जाता ज़रूर है. 'मुक्काबाज' भी आरती ने एडिट की है. वो ISI मार्क है मेरे लिए. हालांकि, इस बार उसके पास समय कम था. वो बड़ी फिल्मों में फंसी थी. तो हम शूट करके छोटे-छोटे चंक उसे भेजते थे. वो उन्हें ठीक करती थी. ये ज़रूरी था उसका समय बचाने के लिए.

आरती बजाज
सौरभ- कैसा होता है आरती के साथ काम करना. पर्सनल केमिस्ट्री, प्रफेशनल केमिस्ट्री.
अनुराग कश्यप- बेस्ट है वो. मेरी वो सबसे अच्छी कोलैबरोटर (सबसे नज़दीकी अनुवाद- संगतकार) है आज तक की. मेरा सबसे ज्यादा ट्रस्ट है. सबसे ज्यादा जानती वो है. मेरा फुटेज देख उसे समझ आ जाता है कि मैं क्या कहना और करना चाह रहा हूं.
मेरे लिए आरती लिटरली बेस्ट फ्रेंड है. वो मेरा माइंड जानती है. मेरी दुनिया जानती है. मेरी फिल्म को जिस तरह से हैंडल करती है. दूसरों की नहीं करती. दूसरों में क्लीनिकल एडिटर की तरह काम करती है. यहां उसे मालूम है कि मैं क्या नहीं ढूंढ रहा हूं. दूसरों की फिल्म की एडिटिंग पर बैठती है, तो टेक्निकल रहती है. यहां फास्ट करो, यहां ऐसा करो टाइप. उसे मालूम है कि लोगों को हिट फिल्म चाहिए. जबकि अनुराग को करेक्ट फिल्म चाहिए. करेक्ट में हिट भी हो सकती है और फ्लॉप भी.
सौरभ- कभी ऐसा भी हुआ कि शूट करके आरती को भेजा फिल्म का कोई हिस्सा. फिर उसका फीडबैक आया तो दोबारा शूट किया. अनुराग कश्यप- बहुत बार हुआ. बल्कि हमेशा हुआ. हर फिल्म में हुआ.
सौरभ- बाकी फिल्ममेकर्स भी ऐसा करते हैं क्या? अनुराग कश्यप- नहीं पता. ज्यादातर लोग पूरी शूटिंग के बाद एडिटिंग शुरू करते हैं. मैं तो शूट के दूसरे दिन से ही एडिटिंग चालू कर देता हूं.
सौरभ- अनुराग के पास 18 रेडी स्क्रिप्ट हैं. फिर भी मुंबई का हर दूसरा राइटर अनुराग को अपनी कहानी सुनाना चाहता है. अनुराग कश्यप- हां, वो प्रॉब्लम हो गई है. लेकिन अब एक दूसरी प्रॉब्लम हो गई है. मेरी ज्यादातर कहानियों में एक्टर भी इनवॉल्व होते हैं. 'देव डी' में अभय था. 'येलो बूट्स' में कल्कि. 'गैंग्स...' में जीशान. और अब विनीत. तो हो क्या रहा है कि बहुत सारे एक्टर अपनी लिखी स्क्रिप्ट लेकर आ रहे हैं.

'दैट गर्ल इन येलो बूट्स' में कल्कि कोचलिन
लेकिन हकीकत ये है कि इंडस्ट्री में अच्छे राइटर हैं ही नहीं ज्यादा. सब पांच पन्ने लिखकर आ जाते हैं कि सर हमने सोचा है, ऐसा आइडिया है. सब लोग पहले से तय कर लेते हैं कि अनुराग को क्या पसंद आएगा. वासेपुर देख एक और वासेपुर टाइप लिख लाते हैं. वो तो हो गया न. तो मुझे पसंद कराने के लिए कुछ मत लाइए.
पसंद आने का एक प्रॉसेस होता है. 'मुक्काबाज़' किसी एंगल से मैं सोच नहीं सकता था. इसलिए जब विनीत ने पढ़वाई, तो पसंद आई. स्पोर्ट्स का ये जोन मैंने लाइफ में नहीं देखा था.
सौरभ- आपने संजय कुमार के रोल के लिए रवि किशन का ऑडिशन क्यों करवाया?
अनुराग कश्यप- मुझे रवि पर भरोसा नहीं था. रवि में हमेशा पोटेंशियल देखा. 'वासेपुर' के दौरान रवि के बारे में सोचा भी. सुल्तान और दानिश के रोल के लिए. फिर रिजेक्ट किया. रवि बहुत फैला हुआ लगा मुझे. हर जगह टांग फंसा रखी है. भोजपुरी सिनेमा भी, पॉलिटिक्स भी. इधर-उधर. पचास जगह. मुझे ऐसा एक्टर चाहिए, जिसके पास समय हो और जो कॉन्सनट्रेट करे. उसका खुद पर कंट्रोल नहीं है, खाने-पीने पर.
रवि को ये बात पता नहीं थी कि उसे वासेपुर के लिए कंसीडर किया फिर नहीं लिया. अभी 'मुक्काबाज़' के शूट के दौरान पता चला, तो अपसेट हो गया. मैंने उससे कहा, सोचो 'वासेपुर' में आप होते तो विनीत नहीं होता. तो अभी 'मुक्काबाज़' नहीं बन रही होती. तो फिर यहां संजय कुमार का रोल नहीं मिलता. हर चीज की अपनी जर्नी होती है.

'मुक्काबाज़' में रवि किशन
सही बात तो ये है कि उनसे वासेपुर होता भी नहीं. दानिश के रोल के लिए विनीत से 10 किलो लूज करने को कहा था मैंने. उसने एक महीने में लूज किया. रविकिशन नहीं कर पाते.
(यहां विनीत का सुनाया एक किस्सा याद आ गया. अनुराग 'वासेपुर' के शूट पर जाने से पहले खूब वर्कशॉप करते थे आरामनगर वाले ऑफिस में. वहां एक दिन उन्होंने फिल्म के तीन-चार एक्टरों को बुलाया. 'तार बिजली से पतले' गाना सुनवाया. फिर पूछा, 'कैसा लगा?'. विनीत ने कहा, 'बहुत अच्छा'. तो अनुराग बोले, 'अब हिरण हो जाओ और तार बिजली होकर आना'. ये उनका तरीका था वेट लूज के लिए कहने का. वो एक्टर थे, जीशान और विनीत. बाकी नवाज़ तो पहले से ही सूखा छुआरा थे.)
तो मैंने (अनुराग ने) बोला मुकेश (छाबड़ा- कास्टिंग डायरेक्टर) को कि यार मुझे भरोसा नहीं है कि रवि, संजय कुमार का रोल कर पाएंगे. ये बीच में उठकर निकल जाएंगे. तो फिर रवि किशन ने एक वीडियो पर रेकॉर्ड कर भेजा. उसमें वह बोले कि जो बोलोगे, मैं करूंगा. बिना पूछे हिलूंगा भी नहीं. मुझे ये फिल्म करनी है. बस.

कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा
सौरभ- और जिमी शेरगिल की कास्टिंग?
अनुराग कश्यप- भगवान दास मिश्रा के रोल (जिसे 'मुक्काबाज़' में जिमी शेरगिल ने किया) के लिए हमने बहुत ढूंढा. समझ नहीं आ रहा था कि कैसे और क्या करें. कभी लगता कि मनोज भइया (मनोज वाजपेयी) के पास जाएं. ऐसा आदमी चाहिए था जो जोन में लगे. पहली चीज तो ये थी कि एंटी हीरो को हीरो से ज्यादा सुंदर दिखना चाहिए. फैमिली मैच करनी पड़ती है. साधना जी (साधना सिंह, 'नदिया के पार' में जो गुंजा बनी थीं) को कास्ट किया. उस किरदार की दबंग फैमिली है. गौरांग हो, सुंदर हो, ऐसा उसका स्केच था. प्रभावशाली दिखाना था.
जिमी को यूपी का डिक्शन पकड़ने में भी दिक्कत नहीं आती. जो उन्हें नहीं जानते, वो सोचते हैं कि पंजाबी फिल्मों का हीरो है. जबकि उसकी पैदाइश गोरखपुर की है. पढ़ाई लखनऊ में हुई. मुझे था कि सब यूपी वाले चाहिए, ताकि उन्हें संदर्भ समझ आए. फिल्म का. उसकी पॉलिटिक्स का.
सौरभ- जोया को क्यों चुना. (जोया हुसैन- फिल्म की लीड फीमेल कैरेक्टर)
अनुराग कश्यप- स्क्रीन प्रेजेंस. तुम उसे पर्दे पर देख लो. फिर बोलो. मैकेनिज्म समझ आ जाएगी. नवाज़ को क्यों चूज किया था. कैमरा लगा दो. सिर्फ आंखें होती हैं. सारा खेल सिर्फ आंख में है. और कहीं नहीं. नवाज़ का मैजिक उसकी आंख में है. वो कैमरा को पकड़ लेता है. ऐसे (अनुराग हवा में हाथ से कुछ दबोचते हैं, फिर ठहर जाते हैं.) स्थिर. जो ऐसा कर सकता है, वो ऑडियंस को भी स्थिर पकड़ सकता है. अजय देवगन का क्या है. आंख है. बाकी लोगों को बॉडी लैंग्वेज यूज करनी पड़ती है. शाहरुख खान का क्लोज अप लगाओ. क्या है. आंख है.
सौरभ- अनुराग के पास 18 स्क्रिप्ट हैं. कैसे तय होता है कि अगली फिल्म कौन सी होगी.
अनुराग कश्यप- बनेगी सब. मार्केट में जिसके लिए पैसा रेडी होगा, उसके हिसाब से चुनी जाएगी. जब मेरी फिल्म चल जाती है, तो अगला प्रोजेक्ट मैं वो उठाता हूं, जो सबसे मुश्किल है. क्योंकि तब मार्केट आप पर दांव लगाने को तैयार होता है. जब फिल्म फ्लॉप होती है, तब मार्केट के ट्रेंड के हिसाब से कहानी उठाता हूं. 'देव डी' के बाद चीजें आसान हुईं तो 'दैट गर्ल इन येलो बूट्स' बनाई. 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के बाद 'अग्ली' बनाई.
अब वो दौर नहीं रहा कि मैं एक स्क्रिप्ट पर अटक जाऊं. अब मैं फिल्म को लेकर जंग नहीं लड़ने जा रहा. सारी फिल्म शिद्दत से बनानी हैं. जिसकी फंडिंग हुई, कास्ट रेडी हुई, उसे बना दिया.
सौरभ- ऐसा नहीं हो सकता है क्या कि रामू (राम गोपाल वर्मा) की तरह फैक्ट्री बने. अनुराग अपने प्रोजेक्ट दूसरों को असाइन करें और खुद मॉनीटर करें. अनुराग कश्यप- मैं ऐसे नहीं कर सकता. हर आदमी की अपनी जर्नी है. मैं एग्जिक्यूटिव नहीं बनना चाहता. मैं दूसरों के थ्रू अपनी फिल्म नहीं बनाना चाहता. जिस डायरेक्टर के अंदर से कॉल नहीं आती, उसकी फिल्म मैं प्रॉड्यूस भी नहीं करता.

राम गोपाल वर्मा के साथ अनुराग कश्यप
सौरभ- तो कहानी रखे-रखे पुरानी नहीं पड़ जाती? अनुराग कश्यप- चीजें अपग्रेड करनी पड़ती हैं. 'अग्ली' 2006 में लिखी थी. कब बनी 2013-14 में. आनन-फानन में रिलीज करनी पड़ी. 'पीके' के एक हफ्ते बाद. थिएटर भी नहीं मिल रहे थे. क्यों करनी पड़ी? क्योंकि उसकी पाइरेटेड कॉपी आ गई थी मार्केट में.
सौरभ- सुना है कि 'अग्ली' के लिए अनुराग कश्यप ने अपना पैसा लगाया, ताकि किसी तरह वो रिलीज हो. कई लोगों का करियर शुरू हो. अनुराग कश्यप- हां, उसकी रिलीज के लिए कोई तैयार ही नहीं था. हमने कॉल ली और दो हफ्ते में रिलीज कर थी. हार्डली कोई प्रमोशन हुआ. मुझे पैसा किराये पर लेना पड़ा. इंटरेस्ट पर लिया. पर घाटे में नहीं गए. कॉस्ट ज्यादा नहीं थी. पाइरेट कॉपी नहीं आती, तो प्रॉफिट होता. 7 करोड़ कमा लिए. लागत निकल आई.
सौरभ- आखिरी सवाल. या कहें कि बात. तुम्हें ध्यान है, हम 2007 में मिले थे. तब 'देव डी' का शूट चल रहा था. दिल्ली में. उसके पहले चंडीगढ़ का शूट निपटा था. तुम कितने एक्साइटेड थे 'तेरा इमोसनल अत्याचार' गाने को लेकर. वो सही साबित हुआ. गाना सुपरहिट हुआ. उस गाने में दो सिंगर नज़र आते हैं. बैंडबाजे वालों की पोशाक में. पहला था नवाजुद्दीन सिद्दीकी. तुम्हारा एक एडी, जो अब 'मुक्काबाज़' में फिर दिखा...
अनुराग कश्यप- हां, हमने 9 साल बाद बैंड बाजा वाला गाना शॉट रिक्रिएट किया. मज़ा आया बहुत. आप इस बीच नवाज की जर्नी देखें, तो उस लिहाज़ से ज्यादा सेलिब्रेट कर पाएंगे दोनों मोमेंट.

फिल्म 'देव डी' के गाने 'तेरा इमोशनल अत्याचार' में नवाजुद्दीन सिद्दीकी और नितिन चैनपुरी.
सौरभ- और उस गाने में दूसरा सिंगर था एक और एडी. बल्कि वो तो तुम्हारा फर्स्ट एडी था 'देव डी' में. क्या नाम था- नितिन. अनुराग कश्यप- नितिन चैनपुरी. कोई खबर नहीं उसकी. बोलकर गया था कि फिल्म बनाने जा रहा हूं. वो उस तरह का है कि जो बोला, वो नहीं कर पाया, तो शकल नहीं दिखाऊंगा टाइप. अब वो बिहार में रहता है. इंडस्ट्री में नहीं है. और लोगों से बात करता है. मुझे फोन नहीं करता.
अगर आपको लगता है कि आप भी 'मुक्काबाज़' हैं, तो आइए. मुक्का भांजिए इन पर: क्या अनुराग कश्यप खुद श्रवण सिंह उर्फ़ मुक्काबाज़ हैं?
जिस 'मुक्काबाज़' को अनुराग की वापसी वाली फिल्म बताया गया, उसने कितना कमाया
अनुराग कश्यप का 'पैंतरा' : इससे ताकतवर गाना आपने कभी भी नहीं सुना होगा