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लोना चमारिन, जिसने आपके बाप-दादा का भला चाहा, कौन हैं?

सोचता हूं कि लोना अगर चमार जाति से न होती, तो शायद लोग उसे देवी के अवतार की तरह मान लेते.

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अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी

डॉ. अमरेंद्र नाथ त्रिपाठी. शिक्षक और अध्येता. लोक में खास दिलचस्पी, जो आपको यहां दिखेगी. अमरेंद्र हर हफ्ते हमसे रू-ब-रू होते हैं. 'देहातनामा' के जरिए. पेश है इसकी दसवीं किस्त:



आम, महुआ, जामुन और पीपल जैसे पेड़ों की घनी आबादी वाली एक बगिया है. बच्चों के लिए बिगवा वाली बगिया. डराऊ-धमकाऊ.. इसी बगिया को चीरता हुआ एक रास्ता है, जो गांव में घुसता है. लेकिन, वैसे नहीं, जैसे गुंगुई जहाज आसमान में घुस जाती है, खो जाती हुई. बल्कि रास्ता पहले बरगद के पेड़ के नीचे सुस्ताता है. बांस की कोठ से छनकर आती बयार से अपनी छाती जुड़वाता है. बगल के इनारे में झांकता है. सरकारी बंबे का पानी पीता है. फिर गांव के पहले घर को सलाम ठोंकता है.

इसी बरगद के पेड़ के नीचे एक खटिया पड़ी होती. खटिया पर एक पंडिताइन बैठी मिलतीं. ये उन्हीं का मोहारा है. पंडिताइन हैं तो अहिरिन, लेकिन गांवभर उन्हें पंडिताइन कहता है. ऐसा क्यों? ये एक अलग कहानी है, जिसे फिर कभी छेड़ेंगे. पंडिताइन चर्चित इस रूप में भी हैं कि उनका मंतर बहुत फुराता है. इतवार और मंगलवार को उनके यहां टोना झरवाने वालों की भीड़ लग जाती. पंडिताइन बुदबुदाते हुए टोना झारतीं, जम्हुवातीं और अंसुवातीं. इस तरह टोना कट रहा होता. मैं वहां यूं ही पहुंचा होता, तो कभी-कभार उनकी बुदबुदाहट के बीच से कुछ निकले शब्द कान में पड़ भी जाते थे. उन्हीं शब्दों में एक नाम सुनाई पड़ता, 'लोना चमारिन'.

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लोना चमारिन कौन हैं? इसे ठीक से कोई न बताता. पंडिताइन ने ऐंठ कर एक बार इतना ही बताया था, 'अरे चपरहू, लोना चमारिन तोहार औ तोहरे बाप-दादा सब क भला चाहै वाली होयं!' पंडिताइन के अंदर लोना के प्रति आदर भाव था. जैसे देवी-भवानी के लिए होता है. बहुत समय बाद मुझे टोना झारने का एक मंत्र दिख गया. उसमें मुझे ये पंक्तियां दिखीं, 'तैंतीस करोड़ देवता की दुहाई, दुहाई लोना चमारिन की!' अब मैंने तय कर लिया कि लोना चमारिन बड़ी प्रभावशाली स्त्री रही होंगी. नहीं तो कहां दुहाई के लिए एक तरफ तैंतीस करोड़ देवताओं का झुंड और कहां दूसरी तरफ अकेली लोना चमारिन!

लोना चमारिन के बहाने इसी तरह के और मंत्रों को देखने लगा. एक बार एक वशीकरण मंत्र भी आंखों के सामने आया. इसमें लिखा था:-


कामरु देस कमाख्या देवी, जहां बसैं इसमाइल जोगी। इसमाइल जोगी की लगी फुलवारी, फूल चुनैं लोना चमारिन। जो लेई यहु फूल की बास, वहिकी जान हमारे पास। घर छोड़ै, घर-आंगन छोड़ै, छोड़ै कुटुम्ब की मोह लाज। दुहाई लोना चमारिन की।

इसे पढ़ने के बाद जिज्ञासा में एक नया नाम जुड़ गया, इसमाइल जोगी का. इनका क्या रिश्ता है लोना चमारिन से? 'पापुलर रिलिजन एंड फोकलोर ऑफ नार्दन इंडिया' (दो भाग) किताब लिखने वाले विलियम क्रुक ने लिखा है कि इसमाइल जोगी लोना के गुरु थे, जिनसे उसने मंत्रों को सीखा था. इसमाइल जोगी असम में कैसे? तो अब कई कुरेदने वाली बातें भीतर कुलबुलाने लगीं. समझने के लिए बहुत से ख्याल कौंधने लगे.

असम, कामाख्या प्रदेश, तंत्र विद्या के लिए जाना जाता है. तंत्र साधना में मुस्लिमों ने भी काफी दिलचस्पी ली. तंत्र के बड़े साधक बने. गुरु बने. सूफियों के अलावा मुस्लिमों की बड़ी संख्या इस देश की तंत्र साधना की ओर भी आकर्षित हुई थी और उसने इस धारा में असरदार ढंग से हिस्सा लिया था, ये मजेदार तथ्य है. जब हम मध्यकाल में दो धर्म-संस्कृतियों का विवाद ही देख रहे हों, तब ऐसे तथ्य ये भी कहते हैं कि इन्हीं विवादों के बीच लोग साधनात्मक (भले तंत्र साधना हो) और वैचारिक संवाद भी करते रहे.

तंत्र-विद्या में विश्वास रखने वाले साबर मंत्रों की कामयाबी के कायल होते हैं. ये साबर मंत्र क्या हैं? ये इन्हीं दो धर्म-संस्कृतियों के लोकसुलभ मेल से बने हुए मंत्र हैं. ऐसे मंत्र, जिनमें अरबी, फारसी और आम बोलचाल के शब्द मिल जाएंगे. ये वैदिक और संस्कृत के मंत्रों से अलग हैं. लोक में इन मंत्रों की बड़ी धाक है. वे मंत्र जिनमें भाषा और व्याकरण मध्य देश का होता है, वे इतनी भारी मात्रा में पूर्वोत्तर में क्यों रचे गये होंगे? संभव है देश के मध्य भाग में सूफियों और भक्ति आंदोलन की दूसरी धाराओं का दबदबा अधिक रहा हो, जिससे तंत्र साधना वालों ने पूर्वोत्तर का एकांत चुना हो. लेकिन इनकी लोकप्रियता और प्रभाव मध्यक्षेत्र में कम नहीं रहा.

डायन शब्द से आप लोग खूब परिचित होंगे. डायनें सम्मान के साथ नहीं देखी जातीं. किसी महिला को डायन कहना उसे गाली देना है. जिगरखोर और आदमखोर जैसे बंटवारे डायनों के लिए किए गए हैं. डायनें जो सीधे आदमी का खून चूस डालें, आंतें खा जाएं, वे जिगरखोर हैं. और आदमखोर वे हैं, जो धीरे-धीरे आदमी को मारें. इन सब बातों के लिए पूरा 'डायन शास्त्र' ही देखा जा सकता है. लोना चमारिन के बारे में 'भारतीय लोक विश्वास' पुस्तक के लेखक डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय कहते हैं, 'डायनों की सिरताज, अपनी कला में अलौकिक प्रवीणता तथा सिद्धि को प्राप्त लोना चमारिन नामक सुप्रसिद्ध डायन'. इस मान्यता से चलें, तो लोना चमारिन पंडिताइन वाले देवी-भवानी के सम्मान की अधिकारी साबित नहीं होतीं. विरोधाभास क्यों?

योगी की ही तरह तंत्र साधना के क्षेत्र में योगिनी की उपस्थिति है, लेकिन लोना चमारिन योगिनी नहीं मानी जातीं. यद्यपि प्रभाव की लोक-स्वीकृति में वो योगिनियों से पीछे नहीं ठहरतीं. फिर ऐसा क्यों कि वो योगिनी नहीं, बल्कि डायन के रूप में जानी जाती हैं. कारण उसका चमार जाति में उत्पन्न होना हो सकता है, जिसे आज भी समाज में अत्यंत नीची निगाह से देखा जाता है. ये समाज चमारिन की दुवाएं भले चाहे, लेकिन उसे योगिनी का ओहदा देने को तैयार नहीं हुआ होगा.

फिर भी, ये लोना चमारिन की कामयाबी ही है कि चमार जाति को गालियां देने वाली जीभें भी उससे दुआ मांगती हैं. सलामती की गुहार लगाती हैं. ऐसा नहीं कि लोना टोना झारने वाले या दूसरे साबर मंत्रों में ही दिखे. आपको ताज्जुब होगा अगर कहूंगा कि ये वही लोना चमारिन है, जिसका जिक्र श्रेष्ठ भारतीय 'क्लासिक', महकाव्य 'पद्मावत' में तीन बार (जहां तक मुझे दिखा) हुआ है. रचनाकार हैं, मलिक मुहम्मद जायसी.

महाकाव्य की कथा में चित्तौड़ के राजा रतनसेन को उनकी सभा के दूसरे ब्राह्मण समझाते हैं कि हे राजन् जिस राघवचेतन ब्राह्मण ने तंत्रविद्या से अमावस पर द्वितीया का चांद बनाकर दिखा दिया, वो एक दिन चांद के लिए राहु-फांस भी ला सकता है. (अर्थात बहुत बड़ी समस्या पैदा कर सकता है.) राघवचेतन की गुरु कामरू की लोना चमारिन है, जिसने इसे टोना और तंत्र की शिक्षा दी है:-


एहिकर गुरू चमारिन लोना। सिखा कामरू पाढ़ित टोना॥ दूजि अमावस महं जो देखावै। एक दिन राहु चांद कहं लावै॥

एक अन्य जगह जोग-टटका करने वाली एक ब्राह्मणी है, जो अपनी कामयाबी और श्रेष्ठता को बताने के लिए लोना चमारिन का उदाहरण देती है कि जैसे कामरूप की लोना चमारी के छल से, तंत्र-मंत्र से, कौन नहीं छला गया, वैसे ही मुझे समझा जाय:-


जस कामरू चमारी लोना। कोउ न छरा पाढ़ित औ टोना॥

अर्थात् ये लोकप्रियता लोना चमारिन की उस समय भी थी कि ब्राह्मण उसे गुरु बनाते थे. उससे तंत्रविद्या सीखते थे. ब्राह्मण जो तमाम विद्याओं में अपने सामने किसी दूसरे को गिनना नहीं चाहते, वे भी लोना के सामने विवश थे. वो अपनी विद्या में, प्रयोगों में अचूक थी. ये उसकी सिद्धि और प्रसिद्धि थी. किसी को अपनी सिद्धि, अपनी काबिलियत, दिखानी होती थी, तो वो लोना से तुलना करके खुद को स्थापित करने की कोशिश करता. और इन सब बातों को उस समय का महाकवि अपनी सर्वोत्तम रचना में दर्ज करता है.

मेरा अनुमान है कि लोना अपने समय में बहुत सुन्दर भी रही होगी. लोना नाम उसकी सुंदरता के कारण ही पड़ा होगा. 'लावण्य़' के बराबर अर्थ में. लोना यानी सुंदरता. इसी अर्थ में 'लोना' शब्द जायसी के यहां भी आया है. अलाउद्दीन, पद्मिनी का भेद कह रहे राघव चेतन से कहता है कि तुम्हें मेरी एक दासी की सुंदरता के सामने रानी पद्मावती की सुंदरता (लोन) वैसे ही नष्ट-सी दिखेगी जैसे पानी में नमक घुल जाता है:- 'जौ उन्ह महं देखेसि एक दासी। / देखि लोन होइ लोन बेरासी॥' लोना की प्रसिद्धि में उसकी सुंदरता भी एक वजह रही होगी.

सोचता हूं कि लोना अगर चमार जाति से न होती, तो शायद लोग उसे देवी के अवतार की तरह मान लेते. शायद लोना माई की दुहाई, ऐसा कहा जाता. आज लोना की सिद्धि-प्रसिद्धि हमारे सामने है, लेकिन लोना के जीवन के बारे में अनुमान का सहारा लेना पड़ता है. अपने समाज की बुनावट और लोना की मौजूदगी के बीच सीधा-सरल संबंध नहीं दिखता. तथाकथित इतनी नीची जाति की कोई स्त्री कैसे इतने आला मुकाम तक पहुंची होगी, उसकी क्या जीवन-कथा रही होगी, उसने कैसे शताब्दियों तक को अपने असर में समेटा होगा, ये ताकत उसने कैसे पायी होगी, ये सब बातें लोना चमारिन को अनूठा और रहस्य की तरह पेश करती हैं. लोना होना आसान नहीं.




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