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ऑपरेशन महादेव में मारे गए आतंकी के पास से बरामद हुई अमेरिकन मेड M4 कार्बाइन, आतंकियों के पास कहां से आई?

2017 और 2021 के एनकाउंटर में मारे गए आतंकी Masood Azhar के भांजे और भतीजे के पास से भी Security Forces ने M4 Carbine बरामद की थी. Operation Mahadev में भी AK-47 के साथ M4 Carbine बरामद हुई है.

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M4 कार्बाइन के साथ आतंकवादी (Photo- India Today, X)

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम (Pahalgam Attack Mastermind) हमले के मास्टरमाइंड सुलेमान ऊर्फ मूसा को सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन महादेव (Operation Mahadev) एनकाउंटर में मार गिराया है. मूसा न ही इस हमले की ऑन-ग्राउंड प्लानिंग की थी. सुरक्षाबलों को मारे गए आतंकियों के पास से कई तरह के हथियार मिले हैं. इनमें AK-47, M4-Carbine और 40mm के ग्रेनेड राउंड्स बरामद हुए हैं. इससे पहले भी आतंकियों के एनकाउंटर्स में एके-47 और ग्रेनेड तो बरामद होते थे. लेकिन M4- कार्बाइन का मिलना चिंता का विषय है. वजह ये कि ये एक उन्नत राइफल है जिसका इस्तेमाल अमेरिकन आर्मी किया करती है. 

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लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब भारत के खिलाफ ये हथियार इस्तेमाल किया गया हो. कठुआ एनकाउंटर, मसूद अजहर के भतीजे तल्हा राशिद के पास से भी yhi बंदूक बरामद हुई थी. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि क्या खासियत है इस गन की जो आतंकी धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं? और इन आतंकी संगठनों के पास इस तरह के हथियार कहां से आ रहे हैं?

American M4 rifle
नवंबर 2024 में आतंकियों से AK-47 के साथ रिकवर की गई M4 कार्बाइन (PHOTO-PTI)
M4 कार्बाइन- हल्की और सटीक

M4 कार्बाइन एक अमेरिकन असॉल्ट राइफल है. इसे हथियारों की कंपनी कोल्ट ने मैन्युफैक्चर किया है. वही कोल्ट जिसके फाउंडर सैमुअल कोल्ट ने फेमस ‘कोल्ट रिवॉल्वर’ बनाई थी. ये एक हल्के वजन की राइफल है. अगर इसमें 30 गोलियों की मैगज़ीन लगा दें तो भी इसका वजन 3.4 किलोग्राम से अधिक नहीं जाता. ऐसे में इसे दौड़ते हुए फायर करना भी आसान है. साथ ही हल्का होने की वजह से स्थिरता मिलती है जिससे निशाना चूकने की गुंजाइश कम रहती है. 

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मार्च 2025 में बरामद की गई M4 कार्बाइन की मैगजीन (PHOTO-X)

निशाना लगाने के लिए इस गन में पहले से लोहे की साइट दी गई है जिसे आयरन साइट कहते हैं. लेकिन इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसमें जरूरत के हिसाब से और भी कई तरह के स्कोप लगाए जा सकते हैं. इस गन में ग्रेनेड लॉन्चर भी लगाया जा सकता है जो इसे एक मल्टीपरपज हथियार बनाता है. M4 कार्बाइन पहले से मौजूद M16A2 राइफल का छोटा वर्जन है. इसकी बैरल माने नली पिछले वर्जन के मुकाबले छोटी है. 14.5 इंच का बैरल सैनिकों को मैनुवर (आसानी से मूवमेंट) करने की क्षमता प्रदान करता है. 

ये गन 750-950 राउंड प्रति मिनट फायर कर सकती है. इसकी गोली की रफ़्तार 910 मीटर प्रति सेकेंड है. रेंज 500-600 मीटर है. इसमें 5.56x45mm की गोली का इस्तेमाल होता है. जरूरत के हिसाब से इस गन में सिंगल शॉट और बर्स्ट फायर मोड है. इसका M4A1 वर्जन फुली ऑटोमेटिक है. माने इसमें ट्रिगर दबाते ही पूरी मैगजीन खाली हो जाती है.

रक्षा मामलों पर नजर रखने वाली वेबसाइट military.com के मुताबिक क्लोज रेंज से लेकर अधिक दूरी तक मार करने के मामले में M4 कार्बाइन बेहतर है. हाल के दिनों में इस बंदूक में बेहतर ऑपटिक्स, साइलेंसर और ऐसे अटैचमेंट्स लगाए गए हैं जो इसे इस्तेमाल के लिए और बेहतर बनाते हैं. इस बंदूक का हल्का वजन और इसपर कई और चीजों को माउंट करने की क्षमता इसे दूसरी असॉल्ट राइफल्स के मुकाबले बेहतर बनाती है. अमेरिका में ये आर्मी को इशू की जाने वाली स्टैण्डर्ड राइफल है. इस गन ने कोलंबिया संघर्ष, कोसोवो की जंग, सीरियन गृहयुद्ध, इराकी गृहयुद्ध, यमन के गृहयुद्ध और 9/11 के अफ़ग़ानिस्तान में 'वॉर ऑन टेरर' में अपना लोहा मनवाया है.

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masood azhar nephew
2021 के एनकाउंटर में मारा गया इस्माइल उर्फ लंबू (सबसे बाएं) (PHOTO-India Today)
भारत में कैसे आई M4?

ये पहली बार नहीं है जब आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर में M4 कार्बाइन का इस्तेमाल किया हो. सबसे पहले 2017 में जम्मू-कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मौलाना मसूद अज़हर के भांजे तल्हा राशिद के एनकाउंटर के बाद M4 कार्बाइन बरामद की गई थी. जब धारा 370 हटाई गई, उसके बाद घुसपैठ की घटनाओं में कुछ कमी देखने को मिली. लेकिन साल 2021 से आतंकियों ने फिर से जम्मू-कश्मीर में सिर उठाना शुरू किया. आम लोगों पर Lonewolf Attack जैसे हमलों का एक नया पैटर्न सामने आया. इसी साल अवंतीपुरा, कश्मीर में एक एनकाउंटर में मारे गए आतंकी मोहम्मद इस्माइल उर्फ लंबू के पास से भी सुरक्षाबलों ने यही कार्बाइन बरामद की थी. 

इस्माइल उर्फ लंबू कोई आम टेररिस्ट नहीं आतंकी संगठन बल्कि मौलाना मसूद अज़हर का भतीजा था. कई रिपोर्ट्स में कहा गया कि आतंकियों के पास से M4 कार्बाइन बरामद की गई है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट कहती हैं कि अमेरिका जब अफगानिस्तान से रूखसती ले रहा था, तब उसने ये बंदूकें वहीं छोड़ दीं. ये सारी खेप तालिबान के हाथ लग गई. इन्हीं में से कुछ बंदूकें पाकिस्तान के जरिए भारत-विरोधी आतंकी संगठनों के पास आ गईं.

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