जिस काम पर पूरी दुनिया के दिग्गज सालों से पसीना बहा रहे थे, अब वही काम भारत ने जमीन से उठाकर आसमान तक पहुंचा दिया है. बात हो रही है मॉर्फिंग विंग टेक्नोलॉजी की, जिस पर भारत की अपनी देसी ताकत, यानी DRDO ने कामयाब ट्रायल कर दिखाया है.
AMCA के लिए DRDO ने जो 'मॉर्फिन विंग' तकनीक खोजी है, वो चीन- पाकिस्तान की हवा टाइट कर देगी
Morphing Wing Technology India: भारत ने DRDO के नेतृत्व में मॉर्फिंग विंग टेक्नोलॉजी का सफल ट्रायल किया है, जिसमें फाइटर जेट उड़ान के दौरान अपने पंखों का आकार रियल टाइम में बदल सकते हैं. जिससे बेहतर लिफ्ट, कम ड्रैग, ज्यादा फ्यूल एफिशिएंसी और कम रडार सिग्नेचर मिलता है. NASA, Airbus और DARPA के बाद अब भारत इस एडवांस एयरोनॉटिक्स क्लब में शामिल हो गया है.


इस पूरी कहानी को कुछ इस तरह से समझते हैं.
पहले क्या था…फाइटर जेट के पंख एक तय डिजाइन में बनते थे. टेकऑफ हो, क्रूज हो या एयर कॉम्बैट - पंख वही, मजबूरी वही, समझौता वही.
मॉर्फिंग विंग का मतलब ये कि पंख अब “लोहे का ढांचा” नहीं, बल्कि जिंदा सिस्टम जैसा हो गया है. उड़ान के दौरान ही पंख अपनी शेप बदल पाएगा, बिना टूटे, बिना गैप छोड़े, बिना फ्लैप के झंझट के.

इस पूरे प्रोजेक्ट में DRDO ने CSIR-NAL के साथ मिलकर रियल टाइम में हवा के अंदर विंग की ज्योमेट्री बदल कर दिखा दी. यह सिर्फ लैब का एक्सपेरिमेंट नहीं था, बल्कि फ्लाइट के लायक हार्डवेयर पर किया गया ट्रायल था.
और हां, ये कोई भारत ने अकेले सपना देख लिया हो ऐसा नहीं है. पहले इस टेक्नोलॉजी पर NASA, Airbus और DARPA जैसे दिग्गज भी हाथ आजमा चुके हैं. अब भारत उसी क्लब में एंट्री मार चुका है.
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अंदर से पंख कैसे “जादू” करते हैंइस टेक्नोलॉजी में कोई जादू नहीं, लेकिन साइंस फुल ऑन है. कुछ बातें तो बेहद दिलचस्प हैं. मिसाल के तौरपर-
- विंग के अंदर लगाए जाते हैं Shape Memory Alloy यानी SMA
- ये खास धातुएं गरम होने पर सिकुड़ती हैं
- जैसे ही हल्की-सी इलेक्ट्रिक करंट जाती है, ये अलॉय तुरंत एक्टिव हो जाते हैं
- पंख की सतह बिना किसी जोड़ के स्मूद तरीके से मुड़ जाती है
- करंट बंद होते ही पंख वापस अपनी पुरानी शेप में वापस
सबसे मजेदार बात ये है कि ऊपर बताए गए सारे बदलाव एक सेकंड के हजारवें हिस्से में हो जाता है. यानी दुश्मन पलक झपकाए उससे पहले विंग करेक्शन कर चुका.
फाइटर जेट में इसका मतलब क्याये फाइटर जेट के लिए पंख बदल जाने से बहुत कुछ बदल जाता है. मॉर्फिंग विंग से तो पूरी कहानी ही बदल जाएगी.
- अब जेट टेकऑफ पर ज्यादा लिफ्ट ले पाएगा
- क्रूजिंग में कम ड्रैग होगा
- डॉगफाइट में ज्यादा टाइट टर्न ले सकेगा
- फ्यूल की बचत होगी
सबसे बड़ी बात रडार से पकड़ में आने का खतरा घटेगा क्योंकि विंग पर गैप और जॉइंट लगभग नहीं होंगे
भारत में अभी स्टेटस क्या हैसीधी बात, ये टेक्नोलॉजी अभी शुरूआती से मिड लेवल पर है. अभी छोटे और मिड साइज प्लेटफॉर्म पर सफल ट्रायल हो चुका है. हां, बड़े फाइटर जेट लेवल पर ले जाने का काम चल रहा है.
रियलिस्टिक टाइमलाइनअगर डेवलपमेंट इसी स्पीड से चलता रहा तो 2030 से 2035 के बीच भारत के एडवांस ड्रोन और नेक्स्ट जेनरेशन फाइटर जेट्स में इसका ऑपरेशनल इस्तेमाल शुरू हो सकता है.
क्यों ये दुश्मन के लिए टेंशन वाली बात हैइस पूरी कहानी का सबसे दिलचस्प सवाल यही है और इसका जवाब भी उतना ही दिलचस्प है. भारत अगर ये तकनीक हासिल कर लेता है तो देश के दुश्मनों के लिए परेशानी बढ़ जाएगी. उसकी एक नहीं कई वजहें हैं.
- क्योंकि सामने वाला अनुमान ही नहीं लगा पाएगा कि अगली मूव क्या है.
- आम जेट जैसे उड़ते हैं - वो स्टाइल फिक्स होती है.
- मॉर्फिंग विंग जेट जैसे उड़ेंगे - उनकी उड़ान का स्टाइल ही बदलता रहेगा.
- IAF के लिए सबसे जरूरी बात
पहले पंख लोहे के थे, अब दिमाग वाले हो गए हैं. और जब पंख दिमाग वाले हो जाएं, तो आसमान भी छोटा पड़ने लगता है. भारत ने यही खेल शुरू कर दिया है.
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