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रोड टैक्स देने के बाद भी एक्सप्रेस वे या हाईवे पर इतना टोल क्यों लगता है?

दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे पर 6 दिसंबर, 2021 से टोल टैक्स लग सकता है.

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टोल टैक्स सरकार द्वारा लगाए जाने वाले कई इनडायरेक्ट टैक्स में से एक है. (प्रतीकात्मक फ़ोटो- आजतक)
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे पर 6 दिसंबर, 2021 से टोल टैक्स (Toll Tax) लगना शुरू हो सकता है. सड़क परिवहन मंत्रालय  (MoRTH) ने NHAI यानी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को टोल टैक्स वसूलने की मंजूरी दे दी थी. इसके बाद कितना टोल टैक्स लेना है, इसे तय करने की प्रक्रिया NHAI ने शुरू कर दी है. टोल टैक्स को लेकर अक्सर लोगों के कई सवाल होते हैं. मसलन टोल टैक्स क्यों लिया जाता है? किसी एक्सप्रेसवे या हाईवे पर कितना टोल टैक्स लगेगा ये कैसे तय होता है? जब सरकार रोड टैक्स लेती है फिर टोल टैक्स की क्या ज़रूरत है? इन तमाम सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं.
Toll 11 टोल टैक्स. (सांकेतिक फोटो- PTI)

पहले बात दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे की. इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर NHAI के अधिकारी अरविंद कुमार ने गुरुवार, 2 दिसंबर को टोल टैक्स वसूले जाने की जानकारी दी. अरविंद कुमार ने बताया की कितना टैक्स वसूला जाएगा ये 2-3 दिनों में तय हो जाएगा. दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे की कुल लंबाई 59.77 किलोमीटर है. NHAI द्वारा प्रस्तावित दरों के मुताबिक़, इस एक्सप्रेसवे पर पूरी दूरी तय करने वाली गाड़ियों को 140 रुपए टोल टैक्स देना होगा. यानी हर एक किलोमीटर का लगभग 2.33 रुपए पे करना होगा. टोल टैक्स होता क्या है? टोल टैक्स सरकार द्वारा लगाए जाने वाले कई इनडायरेक्ट टैक्स में से एक है. ये टैक्स किसी विशेष सेवा लेने के लिए देना पड़ता है. टोल टैक्स या टोल वो फ़ीस है जो गाड़ी चलाने वालों को अंतरराज्यीय एक्सप्रेसवे, टनल, पुलों और राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर चलने के लिए चुकाना पड़ता है. इन सड़कों को टोल रोड कहा जाता है. नेशनल हाईवे या नेशनल एक्सप्रेसवे  NHAI के नियंत्रण में होते हैं.
सिर्फ दो पहिया और सरकारी वाहनों को है टोल टैक्स से छूट. सिर्फ दो पहिया और सरकारी वाहनों को है टोल टैक्स से छूट.

आगे बढ़ने से पहले एक और बात का ज़िक्र ज़रूरी है. NHAI के अलावा राज्य सरकारें भी एक्सप्रेसवे या हाईवे बना रही हैं. अपने खर्चे पर. जैसे यूपी में बना पूर्वांचल एक्सप्रेसवे. इसका उद्घाटन पीएम मोदी ने हाल ही में किया था. इस एक्सप्रेसवे को UPEIDA यानी उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी ने बनाया है. इस एक्सप्रेसवे पर जो टोल टैक्स लिया जाएगा वो राज्य सरकार के खाते में जाएगा. ठीक इसी तरह किसी स्टेट हाईवे पर टोल लगता है तो वो टोल राज्य विशेष की हाईवे अथॉरिटी या राज्य सरकार के तहत आने वाली किसी संस्था के खाते में जाएगा. टोल टैक्स क्यों वसूला जाता है? हाईवे या एक्सप्रेसवे को बनाने की लागत लंबी-चौड़ी होती है. इन सड़कों की लागत और मेंटिनेंस निकालने के लिए सरकार मदद लेती है जनता से. टोल टैक्स के ज़रिये. टोल टैक्स को ऐसे भी समझ सकते हैं कि टोल सड़कों से गुजरने वाली गाड़ियों से मेंटेनेंस फ़ीस यानी रखरखाव फ़ीस वसूलने जैसा है. टोल टैक्स का इस्तेमाल सड़क निर्माण और रखरखाव के लिए किया जाता है. टोल टैक्स से जो फ़ायदा होता है उसे NHAI कई प्राइवेट कंपनियों और ठेकेदारों के साथ साझा करता है. ये प्राइवेट कंपनियां और ठेकेदार सड़कों को बनाने और उसके रखरखाव के लिए ज़िम्मेदार होते हैं. राज्यों के एक्सप्रेसवे के लिए ये बात राज्य की एजेंसियों पर लागू होता है.
कहा जा रहा है कि टोल रोड पर इतने लम्बे लम्बे जाम से मिल सकती है मुक्ति. सांकेतिक फोटो.
कितनी दूरी पर टोल होने चाहिए दो टोल बूथ आम तौर पर एक दूसरे से 60 किलोमीटर की दूरी पर होते हैं. लंबे टोल रोड खंडों में बटे हुए होते हैं. पहले टोल बूथ से 60 किलोमीटर की दूरी के बाद जब दूसरा टोल बूथ आता है तब टोल रोड का खंड बदलता है. एक टोल रोड की लंबाई 60 किलोमीटर या उससे कम होती है. आम तौर पर टोल टैक्स 60 किलोमीटर की दूरी के लिए तय किया जाता है. अगर रोड की लंबाई 60 किलोमीटर से कम होती है, तो टोल टैक्स कितना वसूला जाएगा वो रोड की सटीक दूरी पर निर्भर करता है. कितना टोल वसूलना है ये कैसे तय होता है? टोल कितना वसूलना है ये इस बात पर निर्भर करता है कि सड़क के निर्माण में कितने रुपए खर्च हुए. सड़क की लंबाई कितनी हैं. इसके अलावा भी कुछ ज़रूरी बातों पर टोल टैक्स निर्भर करता है.
  • अलग-अलग गाड़ियों के लिए अलग-अलग टोल टैक्स होता है. ये गाड़ी के आकार और वजन के मुताबिक़ तय होता है.  मतलब बस/ट्रक का टोल टैक्स कार के टोल टैक्स से ज़्यादा होता है.
  • टोल इस पर भी निर्भर करता है कि गाड़ी किस काम के लिए इस्तेमाल होती है. यानी गाड़ी प्राइवेट है या कमर्शियल. उदाहरण के लिए एक ही गाड़ी पर लगने वाला टोल  प्राइवेट या कमर्शियल के आधार पर अलग-अलग हो सकता है. आम तौर पर कमर्शियल गाड़ी का टोल टैक्स प्राइवेट गाड़ी से ज्यादा होता है.
  • टोल टैक्स कितना होगा ये भारी वाहनों से सड़क को हुए नुकसान को ध्यान में रख कर भी लगाया जाता है. इस वजह से पैदल यात्री, दुपहिया वाहनों जैसे की बाइक, स्कूटर को टोल टैक्स से छूट दी जाती है. हालांकि कुछ स्टेट एक्सप्रेसवे पर दोपहिया वालों से भी टोल लिया जाता है.
  • टोल टैक्स समय के साथ घटता जाता है. मतलब जब रोड नया-नया बनता है तब टोल टैक्स से उस सड़क को बनाने की लागत वसूली जाती है. जब लागत पूरी तरह से वसूल कर ली जाती है, तब टैक्स को 40 प्रतिशत घटा दिया जाता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बाक़ी का टैक्स सड़कों के रखरखाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
टोल टैक्स से अतिरिक्त सुविधा मिलती है? टोल टैक्स देने से उस रोड पर कुछ ज़रूरी सुविधाएं भी मिलती हैं जैसे
#टोल रोड पर पुलिस पेट्रोलिंग सुनिश्चित की जाती है. हर निश्चित दूरी पर अलग-अलग टीम गश्त के लिए मौजूद रहती है ताकि अगर कहीं भी कुछ हादसा हो, तो पुलिस जल्द से जल्द पहुंच सके.
#इसी तरह टोल रोड पर एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड, टो-अवे क्रेन की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाती है.
#कायदा ये भी कहता है कि जिन रोड्स पर टोल टैक्स वसूला जा रहा है, उन पर पब्लिक टॉयलेट्स, बस के रुकने की जगह, पीने के पानी की व्यवस्था.. ये सब थोड़ी-थोड़ी दूरी पर मौजूद हों. साथ ही टोल प्लाज़ा पर पुलिस, एंबुलेंस, टो-अवे क्रेन वगैरह की डिटेल्स चस्पा हों.
#कई सड़कों पर टोल रोड्स पर मैकेनिक की सुविधा भी मुहैया कराई जाती है. रोड टैक्स और टोल टैक्स का फ़र्क़ एक सवाल अक्सर लोग पूछते हैं कि जब सरकार रोड टैक्स लेती है फिर अलग से टोल टैक्स क्यों वसूला जाता है? जैसा कि हमने पहले ही बताया टोल टैक्स कुछ खास सड़कों पर ही लगता है जब आप इसपर सफर करते हैं. वहीं रोड टैक्स राज्य सरकारें वसूलती हैं. रोड टैक्स सभी गाड़ियों को भरना पड़ता है. चाहे दुपहिया वाहन हो या चार पहिया. ये एक बार लिया जाने वाला टैक्स है जो वाहन ख़रीदते वक्त आपके ज़िले/टाउन का नज़दीकी RTO आपसे वसूल करता है. वहीं टोल टैक्स तब भरना पड़ता है जब आप टोल रोड पर सफ़र करते हैं. दूसरी ओर, रोड टैक्स हर वाहन मालिक पर लागू होता है, चाहे आप सड़कों पर अपनी गाड़ी चलाएं या न चलाएं. रोड टैक्स वाहन की कीमत का एक हिस्सा होता है.वहीं टोल टैक्स टोल रोड की लंबाई पर निर्भर करता है.
सांकेतिक फोटो सांकेतिक फोटो

DND यानी कि दिल्ली नोएडा दिल्ली फ़्लाइवे, 9.2 किलोमीटर लंबा फ़्लाइवे है. इसकी शुरुआत के वक्त इस पर टोल लगता था. कुछ सालों के बाद एक इस टोल के ख़िलाफ़ एक PIL दायर की गई थी. PIL पर सुनवाई करते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट ने माना था कि DND बनाने की लागत वसूली जा चुकी है और कोर्ट ने इस रोड को टोल फ़्री घोषित कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फ़ैसले पर मुहर लगा दी थी. इसके अलावा कोर्ट ने इस फ़्लाइवे को बनाने वाली कंपनी को इस बात के लिए भी फटकार लगाई थी कि ये कंपनी इनकम टैक्स नहीं भर रही है.