बुरहान जैसा ही टेक-सैवी है उसका उत्तराधिकारी
सबसे बड़ी लड़ाइयां इन दिनों सोशल मीडिया पर ही लड़ी जा रही हैं. आज़ादी के दिन के अगले ही दिन यानी 16 अगस्त को जाकिर का एक वीडियो आया. जिसमें उसने आर्मी जैसे कपड़े पहने हुए थे. पास में AK 47 और कई तरह ही राइफल रखी हुई थीं.
जाकिर राशिद भट
ये वीडियो शूट होने के बाद एक लोकल मीडिया हाउस तक पहुंचा दिया गया था. उसके बाद ये वायरल हो गया. और व्हाट्सऐप से पूरे देश में फ़ैल गया. 8 मिनट का वीडियो है. इस वीडिओ में जाकिर ने कश्मीर के युवाओं से बातें की हैं. कहा है, 'हम अपने तीनों भाइयों की शहादत को जाया नहीं होने देंगे. आज़ादी की ये जंग चलती ही रहेगी. चलती ही रहनी चाहिए. कोई भी अगर रोकने की कोशिश करेगा, उसको खामियाजा भुगतना पड़ेगा.'
जिस घर में बुरहान का एनकाउंटर हुआ था. कश्मीरियों ने वो घर जला दिया था. जाकिर ने लोगों से दरख्वास्त की है, 'इस तरह का कोई भी नुकसान ना करें. बड़ा सोचें. आगे की सोचें. आग लगा देने से या तोड़-फोड़ कर देने से लोग डर जाएंगे. फिर मुजाहिदीनों को रहने के लिए अपने घर नहीं देंगे. इसलिए सोच-समझ कर कोई भी कदम उठाएं. क्योंकि हम अल्लाह के बंदे हैं.'
जाकिर ने लोगों से कहा कि स्पेशल पुलिस ऑफिसर्स की भर्ती में ना जाएं. क्योंकि हिंदुस्तान की सरकार दूसरा इख्वान बनाना चाहती है. इख्वान भारत सरकार की बनाई हुई फ़ोर्स थी. उसमें कश्मीर के ही लोग शामिल थे. इख्वान का सबसे बड़ा काम था कश्मीरी आतंकियों को सरेंडर करवाना. जाकिर का कहना था कि पुलिस अन्दर के लोगों का इस्तेमाल करके हिजबुल-मुजाहिदीन को ख़त्म करना चाहती है. इसलिए हमें एकजुट होकर सेना और सरकार से लड़ना होगा.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते-करते हिजबुल का नया पोस्टर बॉय बन गया
जाकिर राशिद चंडीगढ़ के किसी कॉलेज से इंजीनियरिंग कर रहा था. उसके पापा स्टेट गवर्नमेंट में इंजिनियर हैं. बड़े भाई डॉक्टर हैं, बहन जम्मू-कश्मीर बैंक में काम करती हैं. जाकिर भी पढ़ने में अच्छा था. साल था 2013. किसी छुट्टी में अपने एक दोस्त के साथ अपने गांव नूरपुरा आया था. नूरपुरा गांव पुलवामा डिस्ट्रिक्ट में आता है. छुट्टियों में उसको एक पुराना कश्मीरी दोस्त मिला. वो जाकिर और उसके कॉलेज फ्रेंड को घुमाने के लिए गुलमर्ग और पहलगाम लेकर गया. कुछ दिनों बाद जाकिर का कॉलेज फ्रेंड वापस चंडीगढ़ चला गया. लेकिन जाकिर उसके बाद से वापस कभी नहीं आया. वो शायद ना आने के लिए ही गया था. जाते वक़्त उसने अपने पापा के नाम एक चिट्ठी लिखी थी. उस चिट्ठी में उसने कहा था कि कश्मीरी स्टूडेंट बहुत परेशान हैं. सिर्फ कश्मीर में ही नहीं. देशभर में उनकी हालत बहुत ख़राब है. इसका एक ही इलाज है. जिहाद. वो जिहाद के लिए जा रहा है.उसके पापा समझ गए थे कि अब वो कभी वापस नहीं आएगा. आएगी तो किसी दिन खबर आएगी. उसकी मौत की. फिर 2015 में जाकिर के दादाजी की मौत हुई. पूरा परिवार दादाजी के घर इकठ्ठा हुआ था. जाकिर आया. करीब 2 साल बाद उसके परिवार ने उसको देखा था. उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी. कॉम्बैट यूनिफार्म पहने हुए था. बैठा. थोड़ी देर रोया. फिर चला गया. उसके बाद से वो अपने परिवार से कभी नहीं मिला.
बाइक, कैरम और चॉकलेट का दीवाना मुजाहिदीन
जाकिर के पापा ने बताया था. उसको पैसे खर्च करने का बहुत शौक था. अमीरों की तरह ज़िन्दगी जीना चाहता था. हर रोज़ आइसक्रीम और चॉकलेट खाने के लिए दो-चार सौ रुपए लेकर जाता था. बाइक बहत तेज़ चलाता था. मोबाइल और इंटरनेट के बिना वो रह ही नहीं पता था. कुल मिलाकर 21 साल का कोई भी लड़का जैसा होता है. जाकिर भी वैसा ही था. कैरम का चैंपियन था. दो बार नेशनल लेवल जूनियर कैरम चैंपियनशिप में हिस्सा भी लिया था. हिजबुल मुजाहिदीन जॉइन करने से पहले वो एक घरेलू किस्म का पढ़ने-लिखने और खेलने वाला लड़का था.आर्मी का अगला निशाना अब जाकिर ही है. जाकिर की फ़ोटोज़ भी फेसबुक और व्हाट्सऐप पर वायरल होने लगी हैं.