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ये MDR क्या बला है, जिसके 0 होने से आपको फायदा और बड़ी कंपनियों का बड़ा नुकसान है

जानिए बजट में खत्म किए गए MDR टैक्स का पूरा विवाद क्या है.

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सांकेतिक तस्वीर.
क्या हो अगर किसी दिन आपका 'पेटीएम' या 'फोन पे' काम करना बंद कर दे? या फिर 'बुक मॉय शो' से आप टिकट न बुक कर पाएं. जी हां, आपमें से बहुत से लोग ऐसे होंगे, जो अब इन सबके आदी हो चुके होंगे. और हों भी क्यों नहीं. हमारी सरकार भी यही चाहती है. लेस कैश इकॉनमी. यानी नकदी से लेन-देन कम से कम हो. और कॉर्ड और इलेक्ट्रॉनिक मोड से पेमेंट ज्यादा से ज्यादा हों. मतलब ये कि डिजिटल भुगतान ज्यादा हों. मगर अब मोदी सरकार के ही एक नए प्रपोजल ने पेमेंट कंपनियों के सामने संकट खड़ा कर दिया है. क्या है ये संकट? तो ये भी जान लीजिए. संकट की इस चिड़िया का नाम है- जीरो MDR यानी शून्य मर्चेंट डिस्काउंट रेट. अब आप कहेंगे ये क्या बला है? तो तसल्ली रखिए. ये पूरी बला हम समझाएंगे आसान भाषा में. और ये भी बताएंगे कि इसका हमारी-आपकी जिंदगी पर क्या असर पड़ने वाला है. शुरुआत करते हैं सरकार के नए प्रस्ताव से. आखिर ये है क्या? सवाल-1 क्या है सरकार का ये नया प्रस्ताव? वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 जुलाई के दिन देश का बजट पेश किया. जानकार लोग अब इसी बजट का तिया-पांचा करने में जुटे हैं. अध्ययन करने पर पता चला कि सरकार ने MDR यानी मर्चेंट डिस्काउंट रेट चार्ज खत्म करने का फैसला किया है. वित्त मंत्री ने कहा है कि बैंक MDR चार्ज न तो ग्राहक से वसूल करेंगे और न ही दुकानदार से. बैंक इसकी भरपाई अपनी बचत से कर लेंगे. सवाल-2 ये मर्चेंट डिस्काउंट रेट क्या बला है? MDR यानी मर्चेंट डिस्काउंट रेट एक चार्ज है. कई बार जब हम आप कुछ खरीदने जाते हैं. और अपना क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड निकालते हैं तो दुकानदार कुछ एक्स्ट्रा चार्ज लगाने की बात कहता है. क्या कभी आपने कभी सोचा है कि दुकानदार ये एक्स्ट्रा चार्ज क्यों मांग रहा है? असल में जब आप कार्ड से पेमेंट करते हैं तो दुकानदार को एक तय फीस अपने बैंक को चुकानी पड़ती है. इसे मर्चेंट डिस्काउंट रेट यानी MDR कहते हैं. MDR चार्ज दुकानदार पर लगता है. और इसे वे ग्राहकों से वसूल करते हैं. दुकानदार इस फीस को आपके बिल के साथ आपसे वसूल जरूर करता है. मगर उसे मिलती अठन्नी भी नहीं है. याद कीजिए अक्सर छोटे दुकानदार इसी वजह से कार्ड से पेमेंट लेने में आनाकानी करते हैं. तो फिर MDR का पैसा किसकी झोल में जाता है? सवाल-3 किसे मिलता है MDR का पैसा? अभी MDR की रकम 3 हिस्सों में बांटी जाती है. 1- पहला और बड़ा हिस्सा मिलता है क्रेडिट या डेबिट कार्ड जारी करने वाले बैंक को. 2- दूसरा हिस्सा होता है, उस बैंक का, जिसकी प्वाइंट ऑफ सेल्स PoS मशीन दुकानदार के यहां लगी होती है. प्वाइंट ऑफ सेल्स मशीन उसे कहते हैं, जिस पर कार्ड स्वैप किया जाता है. 3- तीसरा हिस्सा मिलता है पेमेंट कंपनी को. और सारा बखेड़ा इन्हीं पेमेंट कंपनियों को मिलने वाले हिस्से को लेकर है. सवाल-4 कौन-कौन सी और कितनी पेमेंट कंपनियां हैं इस वक्त देश में? इस समय देश में पेटीएम, फोन-पे, ऐमजॉन पे, बुक मॉय शो, वीजा, मास्टर कार्ड और अमेरिकन एक्सप्रेस जैसी करीब 84 पेमेंट कंपनियां हैं. इन सबका काम इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भुगतान करना है. देश के लाखों लोगों ने इन कंपनियों के ऐप वगैरह डाउनलोड कर रखे हैं. और वे अपने बिजली के बिल से लेकर खरीदारी तक के काम इनके जरिए कर रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर महीने औसतन 27 से 29 करोड़ ट्रांजैक्शन स्वाइप मशीनों के जरिए हो रहे हैं. सवाल-5 अभी कितना MDR चार्ज वसूल किया जा रहा है? ऐसे दुकानदार जिनका साल का कारोबार 20 लाख रुपए तक है. वे डेबिट कार्ड के जरिए एक ट्रांजेक्शन पर 0.4 फीसदी या 200 रुपए से ज्यादा MDR चार्ज नहीं ले सकते. 20 लाख रुपए से ज्यादा का कारोबार करने वाले दुकानदार ज्यादा से ज्यादा 0.9 फीसदी या 1,000 रुपए वसूल सकते हैं. क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करने पर एमडीआर 0 से 2 फीसदी तक वसूल किया जाता है. पेट्रोल और डीजल खरीदने पर ऑयल कंपनियां एमडीआर का बोझ ग्राहकों पर डालती हैं. 2000 रुपए तक के लेन-देन पर अभी किसी तरह का एमडीआर नहीं देना पड़ता है. सवाल-6 अब किस बात को लेकर बखेड़ा है? वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में इस एमडीआर को पूरी तरह खत्म करने का प्रस्ताव रखा है. बजट में सभी लेन-देन पर MDR जीरो यानी खत्म करने को कहा गया है. नए नियम 1 नवंबर, 2019 से लागू होंगे. सरकार का मानना है कि इससे देश में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा मिलेगा. लोग नकदी का इस्तेमाल कम से कम करेंगे. और कार्ड के जरिए लेन-देन को बढ़ावा देंगे. मगर सरकार के इस प्रस्ताव ने पेमेंट कंपनियों के सामने संकट खड़ा कर दिया है. उन्हें लग रहा है कि जब उनको कुछ मिलना ही नहीं है तो वे ये धंधा क्यों करेंगी. एक ऐसे ही पेमेंट बैंक हिटाची पेमेंट्स के वाइस चेयरमैन लोनी एंटोनी ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार से बात करते हुए कहा कि गैर बैंकिंग पेमेंट सेवा देनी वाली कंपनियां अब पूरे सिस्टम का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. उनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं होगा, तो उनके सामने कारोबार समेटने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा. बैंक, दुकानदारों से कई माध्यमों से पैसा कमा सकते हैं. मगर पेमेंट कंपनियों के पास MDR के अलावा कमाई का कोई दूसरा जरिया नहीं है. पेमेंट कंपनियां इस वक्त लाखों लोगों को रोजगार दे रही हैं. उनकी कमाई नहीं होगी, तो उनके लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा. ये इंडस्ट्री पूरी तरह धड़ाम हो जाएगी. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सरकार के इस फैसले से पेमेंट कमीशन ऑफ इंडिया भी सकते में है. पेमेंट कमीशन ऑफ इडिया के मुताबिक सरकार के इस ऐलान से इस उदुयोग की हवा निकल जाएगी. अगर MDR ग्राहक से या दुकानदार से नहीं वसूल किया जाएगा, तो इसकी भरपाई सरकार को करनी चाहिए. पेमेंट कमीशन के चेयरमैन विश्वास पटेल के मुताबिक दूसरे देशों के मुकाबले भारत में MDR की दरें सबसे कम हैं. भारत में असल समस्या एमडीआर नहीं है. यहां दुकानदारों को डिजिटल पेमेंट स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है. बहरहाल. सरकार के इस कदम से पेमेंट कंपनियों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है. और आपका क्या? आपकी तो चांदी है. 1 नवंबर, 2019 के बाद से खरीदारी करने पर आपको कोई अतिरिक्त चार्ज नहीं देना होगा. मगर ऐसा तब होगा, जब पेमेंट कंपनियों का कारोबार चलता रहे. इसी वजह से ये सवाल उठ रहा है कि जब उनको कुछ मिलना ही नहीं है तो वे कारोबार ही क्यों करेंगी.
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