
जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ़ ने जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गंभीर आरोप लगाए थे.
लेकिन अब जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया है. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और दूसरी पार्टियां जस्टिस दीपक मिश्रा को हटाने की तैयारी में हैं. इसके लिए विपक्ष महाभियोग प्रस्ताव लाने जा रहा है. दरअसल देश के मुख्य न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए भारतीय संविधान में एक ही प्रक्रिया है, जिसे महाभियोग कहा जाता है.
क्या होता है महाभियोग

लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति को मिलाकर भारतीय संसद बनती है.
भारतीय संसद तीन हिस्सों में बंटी हुई है. लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति. इन तीनों को मिलाकर ही संसद बनती है. ऐसे में चीफ जस्टिस को हटाने के लिए भारतीय संविधान में प्रस्ताव है कि अगर दोनों ही सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा के दोनों सदन अगर दो तिहाई बहुमत से चीफ जस्टिस को हटाने का प्रस्ताव पास कर देते हैं, तो फिर राष्ट्रपति उसे अपनी मंजूरी दे देता है. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद देश के चीफ जस्टिस को अपने पद से हटना पड़ता है. इस प्रक्रिया को महाभियोग कहा जाता है.
क्या होती है पूरी प्रक्रिया

भारतीय संविधान
भारतीय संविधान में एक धारा है धारा 124. इस धारा में भारत के जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया है. धारा 124 का भाग 4 कहता है कि अगर कोई शख्स देश का चीफ जस्टिस है, तो उसे सिर्फ संसद ही हटा सकती है. इसके लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है. अगर किसी चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लाना है, तो लोकसभा के कम से कम 100 सांसद और राज्यसभा के कम से कम 50 सांसद महाभियोग के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करते हैं. इसके बाद इस प्रस्ताव को लोकसभा या राज्यसभा में से किसी एक जगह पर पेश किया जाता है. लोकसभा में इस प्रस्ताव को मंजूरी लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा में राज्यसभा का सभापति मंजूरी देता है. लोकसभा अध्यक्ष या फिर राज्यसभा के सभापति के पास ये विशेषाधिकार है कि वो प्रस्ताव को खारिज कर दे या फिर उसे स्वीकार कर ले. अगर प्रस्ताव खारिज हो जाता है, तो प्रक्रिया फिर से शुरू करनी पड़ती है. लेकिन अगर लोकसभा या फिर राज्यसभा में प्रस्ताव स्वीकार हो जाता है, तो फिर जजेज (इन्क्वायरी) ऐक्ट) 1968 के तहत मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए एक कमेटी बनती है. इस कमेटी में तीन लोग होते हैं. इनमें से एक सुप्रीम कोर्ट का जज होता है, अलग-अलग राज्यों के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों में एक जज और एक कानून का जानकार (वकील, संविधान विशेषज्ञ या रिसर्च स्कॉलर) होता है. कमेटी अगर अपनी जांच में चीफ जस्टिस को दोषी पाती है, तो फिर जिस सदन में ये प्रस्ताव रखा गया होता है, कमेटी अपनी जांच रिपोर्ट उस सदन में रखती है. सदन उस प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे देती है तो फिर इसे दूसरे सदन में भेज दिया जाता है. अगर इस प्रस्ताव को दोनों सदन में दो तिहाई बहुमत मिल जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है. इसके बाद राष्ट्रपति चीफ जस्टिस को हटाने के लिए मंजूरी दे देते हैं और चीफ जस्टिस को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है.
अगर महाभियोग आता है तो क्या होगा?
महाभियोग लाने वाली मुख्य पार्टियां कांग्रेस, डीएमके, आरजेडी, एनसीपी, सपा, टीएमसी, बीएसपी और लेफ्ट हैं. महाभियोग लाने के लोकसभा के 100 सदस्यों का हस्ताक्षर और राज्यसभा के 50 सदस्यों का हस्ताक्षर चाहिए होगा. ऐसे में ये सारी पार्टियां मिलकर महाभियोग का प्रस्ताव तो ला सकती हैं, लेकिन जब प्रस्ताव को पास करने की बारी आएगी, तो विपक्ष के पास दो तिहाई का बहुमत का आंकड़ा छूना बेहद मुश्किल होगा.

कांग्रेस, डीएमके, आरजेडी, एनसीपी, सपा, टीएमसी, बीएसपी और लेफ्ट पार्टियां महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में हैं.
फिलहाल लोकसभा में कांग्रेस के पास 48, डीएमके के पास , तृणमूल कांग्रेस के पास 37, बीजू जनता दल के पास 20, शिव सेना के पास 18, टीडीपी के पास 16, सीपीएम के पास 9, सपा के पास 7, एनसीपी के पास 6, आम आदमी पार्टी के पास 4 और राजद के पास 4 सदस्य हैं. इसके अलावा राज्यसभा में कांग्रेस के पास 54, डीएमके के पास 4, तृणमूल कांग्रेस के पास 12, बीजू जनता दल के पास 8, शिवसेना के पास 3, टीडीपी के पास 5, सीपीएम के पास 6, सपा के पास 18, एनसीपी के पास 5, आम आदमी पार्टी के पास 3 और राजद के पास 3 सदस्य हैं. लोकसभा में दो तिहाई बहुमत का मतलब 363 सदस्य और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत का मतलब 163 सदस्य हो रहे हैं. ऐसे में दलों की स्थिति देखें तो विपक्ष राज्यसभा में तो पूरी कोशिश करके दो तिहाई के आंकड़े को छू सकता है, लेकिन लोकसभा में दो तिहाई के आंकड़े को छूना विपक्ष के लिए मुश्किल है. ऐसे में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ राज्यसभा में तो महाभियोग का प्रस्ताव पास हो सकता है, लेकिन लोकसभा में जाने के साथ ही ये प्रस्ताव गिर जाएगा.
किसके-किसके खिलाफ आ चुका है महाभियोग
अगर विपक्ष चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाता है, तो ये पहला मौका होगा, जब देश के चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा. जिस तरह से देश के चीफ जस्टिस को हटाने की प्रक्रिया है, ठीक वही प्रक्रिया हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी हटाने की है. ऐसे में देश के कई चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा चुका है.
जस्टिस पीडी दिनाकरण

जस्टिसी पीडी दिनाकरण.
जस्टिस पीडी दिनाकरण सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं. 2009 में राज्यसभा के 75 सांसदों ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को एक पत्र लिखकर जस्टिन दिनाकरण को हटाने की सिफारिश की गई थी. उनके खिलाफ सांसदों ने कुल 12 आरोप लगाए थे. हामिद अंसारी ने जस्टिस दिनाकरण के खिलाफ 2010 में जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति भी बना दी थी. जब तक समिति की रिपोर्ट आती, जस्टिस दिनाकरण ने खुद ही इस्तीफा दे दिया था.
जस्टिस सौमित्र सेन

जस्टिस सौमित्र सेन.
जस्टिस सौमित्र सेन कोलकाता हाई कोर्ट के जस्टिस रहे हैं. 2011 में जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ 24 लाख रुपये की वित्तीय गड़बड़ी का आरोप लगा था. इसके बाद राज्यसभा में जस्टिस सेन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया. राज्यसभा से प्रस्ताव पास हो गया तो जस्टिस सौमित्र सेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि जब लोकसभा की प्रक्रिया शुरू हुई, तो उस वक्त लोकसभा में महाभियोग का प्रस्ताव खारिज हो गया.
जस्टिस जेबी पर्दीवाला

जस्टिस जेबी पर्दीवाला.
जस्टिस जेबी पर्दीवाला गुजरात हाई कोर्ट में जस्टिस थे. 2015 में आरक्षण के मुद्दे पर उन्होंने टिप्पणी की थी. ये टिप्पणी पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के एक मामले में की गई थी. इसके बाद राज्यसभा के 58 सांसदों ने महाभियोग का नोटिस भेजा था. जब तक उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी इस मुद्दे पर कोई फैसला करते, जस्टिस पर्दीवाला ने अपनी टिप्पणी वापस ले ली. इसके बाद महाभियोग का नोटिस भी वापस ले लिया गया.
जस्टिस नागार्जुन रेड्डी

जस्टिस नागार्जुन रेड्डी
जस्टिस नागार्जुन रेड्डी आंध्रप्रदेश और तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिटस थे. 2016 में उनके खिलाफ महाभियोग लाने के लिए याचिका दाखिल की गई थी. आरोप था कि जस्टिस रेड्डी ने एक जस्टिस को इसलिए प्रताड़ित किया था, क्योंकि वो दलित थे. इसके बाद राज्सभा के 61 सदस्यों ने महाभियोग चलाने के लिए हस्ताक्षर किया था. प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही राज्यसभा के 9 सदस्यों ने अपने हस्ताक्षर वापस ले लिए, जिसके बाद महाभियोग की प्रक्रिया रोक दी गई.
जस्टिस वी रामास्वामी

जस्टिस वी रामास्वामी.
जस्टिस वी रामास्वामी पंजाब और हरियाणा के चीफ जस्टिस थे. 1991 में उनपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. इसके अलावा उनकी नियुक्ति में भी गड़बड़ी की बात सामने आई थी. इसके बाद 1993 में उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा में लाया गया. जब प्रस्ताव को पास करवाने की बारी आई, तो कांग्रेस ने वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लिया. इसकी वजह से महाभियोग के पक्ष में बहुमत साबित नहीं हो पाया. हालांकि बाद में जस्टिस वी रामास्वामी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
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