
ये इफ्तार पार्टी 2015 में सोनिया गांधी की ओर से दी गई थी, जिसमें बीजेपी के अलग हुए नीतीश कुमार सोनिया गांधी के साथ बैठे दिखे थे.
लेकिन जब तारिक अनवर ने दिल्ली में ऐसी इफ्तार पार्टियों का चलन शुरू किया, तो कांग्रेस ने इसे परंपरा के तौर पर अपना लिया. पहले इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी के जमाने में इफ्तार पार्टियां चलती रहीं. पहले जिम्मेदारी तारिक अनवर की थी, जिसे बाद में गुलाम नबी आजाद निभाने लगे. इसी बीच जब शाहबानो मसले पर राजीव गांधी की सरकार ने अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया, तो कांग्रेस के विरोधी खेमे को मौका मिल गया. उसने ऐसी इफ्तार पार्टियों को सीधे-सीधे मुस्लिम तुष्टिकरण से जोड़ दिया. बाद में वीपी सिंह के जमाने में भी इफ्तार का आयोजन होता रहा, लेकिन इसपर थोड़ा सा ब्रेक लगा नरसिम्हा राव के जमाने में. लेकिन तब तक दूसरी पार्टियों के लोग ऐसी इफ्तार पार्टियों का आयोजन शुरू कर चुके थे. ऐसे लोगों में एक नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी था, जो दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी की इफ्तार पार्टी में शरीक होते थे. इसके अलावा बतौर प्रधानमंत्री वाजपेयी खुद भी इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते रहते थे.

राजधानी दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की ओर से जो इफ्तार पार्टियों का आयोजन होता है, उसकी शुरुआत तारिक अनवर ने ही की थी.
जब मनमोहन सिंह ने वाजपेयी की जगह प्रधानमंत्री का पद संभाला, तो उन्होंने भी इफ्तार पार्टियों का आयोजन जारी रखा. वहीं कांग्रेस की अब परंपरा बन चुकी इफ्तार पार्टियों को सोनिया गांधी भी आयोजित करती रहीं. राष्ट्रपति भवन में भी इफ्तार पार्टियों का आयोजन होता रहा है. बस एपीजे अब्दुल कलाम इकलौते ऐसे राष्ट्रपति रहे हैं, जिन्होंने जनता के पैसे का इस्तेमाल मजहबी जलसे में करने से इन्कार कर दिया था और राष्ट्रपति भवन में होने वाली इफ्तार पार्टियों को बंद कर दिया था. लेकिन प्रधानमंत्री या फिर कांग्रेस नेताओं की ओर से इफ्तार पार्टियां जारी रहीं.

अटल बिहारी वाजपेयी भी प्रधानमंत्री रहते हुए इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते रहते थे.
ऐसी इफ्तार पार्टियों पर ब्रेक लगा 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद. इस बार भी वजह वही थी, जो कभी राजीव गांधी के जमाने में सामने आई थी. जैसे राजीव गांधी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगा था, ठीक वही आरोप लोकसभा चुनाव में हारने के बाद मनमोहन सिंह और कांग्रेस पर लगने लगे. इसके बाद मनमोहन हों या सोनिया, सबने इफ्तार पार्टियां बंद कर दीं. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इफ्तार पार्टियों से दूर हो गए. दो साल तक कांग्रेस का इफ्तार बंद रहा, लेकिन 2017 में कांग्रेस ने फिर से इफ्तार पार्टियां शुरू कर दीं. यूपी में योगी आए तो उन्होंने इफ्तार से दूरी बना ली, जबकि उनसे पहले मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव अपनी इफ्तार पार्टियों के लिए खासे चर्चित रहे थे.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर लगातार हमलावर रहने वाले बीजेपी नेता विजेंद्र गुप्ता इफ्तार पार्टी के दौरान अरविंद केजरीवाल को अपने हाथ से खाना खिलाते हुए दिखे.
और अब नए बनते-बिगड़ते समीकरणों में एक बार फिर से इफ्तार पार्टियों की सियासत चर्चा में है. और इसकी सबसे बड़ी वजह है बिहार. लोकसभा चुनाव के बाद बिहार में सियासी समीकरण हर रोज बदल रहे हैं. बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े नीतीश कुमार और उनकी पार्टी केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुई. वहीं जब नीतीश कुमार ने बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो बीजेपी उसमें शामिल नहीं हुई. अभी इस मुद्दे पर कोई सियासी राय बनती, उससे पहले ही सभी पार्टियों ने अपने-अपने तईं इफ्तार का आयोजन किया, जिसमें कई सियासी समीकरण बनते-बिगड़ते हुए दिखे.

सुशील मोदी ने इफ्तार पार्टी का आयोजन किया, तो नीतीश कुमार उसमें शरीक नहीं हुए.
नीतीश कुमार और उनकी पार्टी ने इफ्तार का कार्यक्रम रखा तो बीजेपी और पार्टी के लोग उस कार्यक्रम में शरीक नहीं हुए. बीजेपी की ओर से इफ्तार पार्टी का आयोजन हुआ तो गठबंधन की सहयोगी जदयू उस इफ्तार पार्टी में शरीक नहीं हुई. और ये पार्टियां 2 जून को बिहार के मंत्रिमंडल विस्तार के ठीक बाद हुईं. महागठबंधन के घटक दल हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने इफ्तार पार्टी दी, तो उसमें एनडीए के घटक दल जदयू के नेता नीतीश कुमार शरीक हुए. राजद नेता और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इफ्तार का आयोजन किया, तो जीतन राम मांझी उसमें शरीक हुए, लेकिन उस पार्टी से खुद तेजस्वी यादव ही गायब रहे. एनडीए के घटक दल लोजपा के नेता राम विलास पासवान इफ्तार पार्टी दी तो उसमें बीजेपी और जदयू दोनों ही पार्टियों के नेता मौजूद रहे. और ऐसी परिस्थियों में राजद के बड़े नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने एक बड़ा बयान दे दिया. उन्होंने नीतीश कुमार को महागठबंधन में शामिल होने का न्यौता दे दिया और कहा कि सभी गैर बीजेपी दलों को एक साथ आना चाहिए.

जीतन राम मांझी ने इफ्तार पार्टी की तो नीतीश कुमार इस पार्टी में शामिल हुए थे.
अब इस साल की इफ्तार पार्टियां खत्म हो रही हैं, लेकिन नए सियासी समीकरण बनने शुरू हो गए हैं. नीतीश कुमार भले ही दावा करें कि बीजेपी के साथ सबकुछ ठीक है, लेकिन ऐसा दिखता नहीं है. राजद के नेताओं की बयानबाजी और नीतीश कुमार की चुप्पी ने ये संकेत देने शुरू कर दिए हैं कि बिहार में सियासत अब एक नई करवट ले रही है. नीतीश कुमार एनडीए के साथ बने रहेंगे या फिर वो महागठबंधन का रुख करेंगे, अभी साफ नहीं है. जो साफ है वो ये है कि फिलहाल नीतीश और बीजेपी के बीच की तल्खी लगातार बढ़ती जा रही है.
बीजेपी के वो दो नेता जिन्होंने लोकसभा में पार्टी का खाता खोला