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अमेरिका का F-35 फिर इमरजेंसी लैंडिंग पर मजबूर, जानिए 5 वजहें क्यों कई देश नहीं खरीदना चाहते

British F-35 emergency landing: यूके के F-35 Fighter Jet ने पहले भारत के केरल में और अब जापान में इमरजेंसी लैंडिंग की है. इन दोनों घटनाओं के बाद इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं. जानिए एफ-35 की 5 बड़ी कमियां और क्यों कई देश इसे खरीदने से हिचक रहे हैं.

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F-35 की हवा निकली? दो बार इमरजेंसी लैंडिंग (फोटो- रॉयटर्स)

दुनिया के सबसे अत्याधुनिक और महंगे लड़ाकू विमान के तौर पर पेश किया गया एफ-35 एक बार फिर सवालों के घेरे में है. पिछले दो महीनों में ब्रिटिश नौसेना के दो एफ-35B युद्धक विमानों को भारत और जापान में आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी. ऐसे में यह बहस तेज हो गई है कि क्या अमेरिका जिस F-35 को “गेम-चेंजर” बताता है, वह वास्तव में तकनीकी खामियों से भरा एक महंगा जोखिम है?

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दो देशों में ‘इमरजेंसी लैंडिंग ड्रामा’

यूके के एफ-35 पहले भारत में इमरजेंसी लैंडिंग करता है फिर जापान में. जाहिर सी बात है ये घटनाएं एफ-35 की प्रतिष्ठा के लिए अच्छी बात नहीं हैं.

केरल, भारत: 14 जून 2025 - HMS Prince of Wales एयरक्राफ्ट कैरियर से उड़ान भरने वाला एक ब्रिटिश F-35B, तकनीकी खराबी और ईंधन संकट के चलते तिरुवनंतपुरम हवाईअड्डे पर इमरजेंसी लैंडिंग करने को मजबूर हुआ. रनवे पर फुल-स्केल इमरजेंसी घोषित की गई और विमान पांच हफ्ते तक मरम्मत के इंतज़ार में खड़ा रहा.

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जापान: 10 अगस्त 2025 - कुछ ही हफ्तों बाद, एक और ब्रिटिश F-35B को तकनीकी दिक्कतों के चलते जापान के कागोशिमा एयरपोर्ट पर उतरना पड़ा. ‘द एविएशनिस्ट’ के मुताबिक इस वजह से स्थानीय उड़ानों में 20 मिनट तक देरी हुई. चीनी और रूसी मीडिया ने इन घटनाओं को लेकर पश्चिमी हथियारों की विश्वसनीयता पर तंज कसे.

तकनीकी चमत्कार या महंगा जाल?

एफ-35 लाइटनिंग II प्रोग्राम को अमेरिका ने “फिफ्थ-जेनरेशन मल्टी-रोल” विमान के रूप में पेश किया था, जो स्टेल्थ तकनीक, उन्नत सेंसर और नेटवर्क-सेंट्रिक युद्ध क्षमता से लैस है. लेकिन 20 साल पुराने इस प्रोजेक्ट का इतिहास तकनीकी खामियों, बजट ओवररन और डेडलाइन मिस करने से भरा पड़ा है.

रखरखाव का सिरदर्द - सेंटर फॉर आर्म्स कंट्रोल एंड नॉन प्रोफाइलरेशन के मुताबिक एफ-35 का लॉजिस्टिक्स सॉफ़्टवेयर ALIS (अब ODIN) लगातार समस्याग्रस्त रहा है. खराब रिपोर्टिंग और धीमी मरम्मत चक्र ने कई देशों की झुंझलाहट बढ़ाई है.

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आसमान छूती लागत - इस प्रोग्राम की जीवनचक्र लागत $1.5 ट्रिलियन से अधिक आंकी गई है, जो इतिहास के सबसे महंगे हथियार प्रोजेक्ट का रिकॉर्ड है.

डिज़ाइन दोष - एयरफ्रेम में क्रैक्स, हेलमेट डिस्प्ले में गड़बड़ी, ईंधन टैंक में बिजली गिरने के खतरे, और कैरियर वर्ज़न F-35C के अरेस्टर हुक की समस्याएं अब तक रिपोर्ट होती रही हैं.

मिशन-रेडीनेस की कमी - प्रोजेक्ट ऑन गर्वमेंट ओवरसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस की रिपोर्ट के अनुसार, एफ-35 की मिशन-कैपेबल दर लक्ष्य से लगातार नीचे रही है. कई स्क्वाड्रन में यह 60% से भी कम है.

आलोचना और विवाद- न्यूयॉर्क पोस्ट के मुताबिक अरबपति एलन मस्क ने इसे “महंगा और जटिल” बताते हुए कहा कि यह एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिसे सस्ते, बेहतर और सरल डिज़ाइन से रिप्लेस किया जाना चाहिए.

देश क्यों हिचक रहे हैं खरीदने से?

स्पेन ने 2025 में स्पष्ट किया कि वह एफ-35 नहीं खरीदेगा और इसके बजाय यूरोपीय फाइटर प्रोग्राम में निवेश करेगा. एक कारण - अमेरिकी सप्लाई चेन पर अत्यधिक निर्भरता और रखरखाव लागत.

उड़ता हुआ चमत्कार, मगर दाम और दिक्कत दोनों भारी

बिजनेस इनसाइडर के मुताबिक एफ-35 तकनीकी रूप से बेहद उन्नत है और आधुनिक युद्ध में इसका उपयोग कई देशों की एयर पावर को मजबूत करता है. लेकिन इमरजेंसी लैंडिंग जैसी घटनाएं, ऊंची लागत और तकनीकी खामियां यह दिखाती हैं कि “दुनिया का सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमान” शायद अभी परिपक्व नहीं हुआ है.

पायलटों और इंजीनियरों की मेहनत इसे बेहतर बना सकती है, लेकिन जब तक समस्याएं हल नहीं होतीं, एफ-35 एक “गेम-चेंजर” कम और “हाई-टेक जुआ” ज़्यादा लगता है.
 

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