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'चढ़ता सूरज धीरे धीरे' गाने वाले अज़ीज़ नाज़ां को गाने के लिए घर में पीटा गया था

ये कव्वाली इंदु सरकार फिल्म में वापस आ चुकी है.

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फोटो - thelallantop
सरपंच अपने घर में ताली पीटते हुए कव्वाली सुन रहे थे, हमने पूछा आपकी नजर में टापमटाप कव्वाल कौन है? वो सारगर्भित सी मुस्कान का भारी डोज देते हुए उवाचे कि "देखो बालक, दुनिया में कव्वाल हुए हैं साढ़े तीन." हमने कच्चे धागे के जमाने से जिनको रट रखा था, उनका नाम दाग दिया धांय से. उचक के कहा नुसरत फतह अली खान. वो तपाक से बोले "आधे वही हैं." हमारा मुंह पके कद्दू की तरह लटक गया. उन्होंने नाम गिनाए. साबरी ब्रदर्स, अज़ीज़ मियां और मास्टर मुरली. सबको अलग अलग खोज के सुना तो माहौल आनंदमयी हो गया. लेकिन दुनिया की सबसे हिट कव्वाली इनमें से किसी ने नहीं गाई है. दमादम मस्त कलंदर और छाप तिलक सब छीनी से पहले कोई भी कव्वाली का शौकीन "चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा" की सीडी घिस डालता है. इतनी बुरी तरह से कि पेट्रोल से धोने पर भी खिच्च खिच्च की आवाज जाती नहीं, बढ़ती जाती है. ये भयानक मशहूर कव्वाली अज़ीज़ नाज़ां ने गई थी, 70s के किसी साल में. वो दिन है और आज का दिन है, ये कव्वाली रट्टा मार हो गई है. मेरा मतलब आप नुसरत, साबरी ब्रदर्स को सुन कर एंजॉय कर सकते हैं लेकिन उनके लिरिक्स रटने में बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ सकती है. लेकिन चढ़ता सूरज...के साथ ये है कि सुनते सुनते ही दिमाग के सुसुप्त खांचे में रिकॉर्ड होती जाती है.
अब ये न पूछ लेना कि एक कव्वाली के लिए हम इत्ती बकैती क्यों ठेल रहे हैं. आपको नोस्टेल्जियाने का इकलौता कारण नहीं है. दरअसल मधुर भंडारकर की फिल्म आने वाली है. इंदु सरकार. ट्रेलर देख ही चुके होगे. उसका एक गाना भी आ गया है, गाना नहीं वही कव्वाली है. चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा. जिसको संजय गांधी का रोल कर रहे नील नितिन मुकेश देख सुन रहे हैं और अंदर ही अंदर उबल रहे हैं.  पहले ये वाला गाना देख लो फिर आगे बात करते हैं.

हां तो बात हो रही थी अज़ीज़ नाज़ां की. पहले इनका संक्षिप्त जीवन परिचय जान लिया जाए ताकि बात करते हुए ये न लगे कि हम आपको बिना हेडलाइट वाली मोटरसाइकल पर बिठाए अंधेरे में सरपट दौड़ा रहे हैं. इनका पूरा नाम था अब्दुल अज़ीज़ कुंजी मरकार. 7 मई 1938 को मुंबई में पैदा हुए, फैमिली मालाबार से उखड़कर वहां गई थी. उनके घर में सब सच्चे मुसलमान थे, यानी म्यूजिक के लिहाज से वो घर बिल्कुल सिक्योर नहीं था, हराम होता है न. लेकिन लड़का बड़ा शौकीन था तो चुपके चुपके इस लाइन में घुस गया. लेकिन होता वही है जो ऐन टाइम पर होना चाहिए, घरवालों ने इनको चुप्पे से गाते धर लिया और कायदे की धुनाई कर दी.
लड़का कड़े जिउ
वाला था, नहीं माना. 9 साल की उम्र थी तो वालिद गुजर गए. बाप का साया तो गया लेकिन एक संकट कम हुआ. अब खुल के ऑर्केस्ट्रा जॉइन कर लिया और लता, मुकेश वगैरह के गाने गाने लगे. अचानक इनकी मुलाकात इस्माइल आज़ाद से हुई. वही "हमें तो लूट लिया मिल के हुश्न वालों ने" वाले आज़ाद. इनको अपनी पार्टी में कोरस गाने के लिए भर्ती कर लिया. 1962 में पहली कव्वाली "जिया नहीं माना" गाई और चमक गए.
अब बात इनकी पहली हिट कव्वाली की. इस पर दरुच्चों का कब्जा है. कोई नया नया शराबी बनता है तो ये उसका प्रात: स्मरणीय भजन होता है.
झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम काली घटा है.. मस्त फिज़ा है काली घटा है मस्त फिज़ा है जाम उठाकर घूम घूम घूम
इसको हाथ में बोतल लेकर जब चार दोस्त कोरस में गाते हैं तो मजा कई गुना बढ़ जाता है, ऐसा वैज्ञानिकों का मानना है.
अब सुनो इन्होंने म्यूजिक कहां से सीखा. इस लाइन के सबसे बड़े उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब इनकी ही लोकेशन यानी भिंडी बाजार में रहते थे. उनके घर ये आते जाते रहते थे. वहां दुनिया भर के संगीतज्ञों का जमावड़ा लगा रहता था. सीखते गए, मंझते गए. तमाम फेमस होने के बाद इन्होंने म्यूजिक डायरेक्टर गुलाम मोहम्मद के छोटे भाई मोहम्मद इब्राहीम खान साहब और मदन मोहन से कायदे से सीखना शुरू कर दिया. गाते गाते शायरी पर भी पकड़ बनाते गए और आगे चलकर अपने कलाम के दम पर 'बागी कव्वाल' की पदवी हासिल की. लिखने के साथ ये पढ़ने के भी शौकीन थे. इनका घर तमाम शायरों की किताबों से भरा हुआ था जिनसे ये पढ़ते और सीखते रहते थे.
नौशाद के साथ अज़ीज़ नाज़ां
नौशाद के साथ अज़ीज़ नाज़ां
अज़ीज़ नाज़ां खुद कभी दारू शराब या इस किस्म के किसी दुनियावी ऐब के फेर में नहीं पड़े. बस उनको एक चीज का नशा था. खाने का. अच्छे खाने के तगड़े शौकीन थे. उनको डायबिटीज था और जैसे कि हर डॉक्टर अपने मरीज के खाने पर पाबंदी लगा देता है. मरीज को लगता है कि ये दुश्मन सेना का जनरल है जो उस पर निजी हमले कर रहा है. वो बराबर खाते रहे और सन 1992 में बहुत बीमार पड़ गए. 8 अक्टूबर को इस फ़ानी संसार से रुख्सती हो गई.
हम फिर से "चढ़ता सूरज धीरे धीरे" पर लौटते हैं. अपन नोस्टेल्जिया के चक्कर में ज्यादा ही इमोशनल हो गए थे. तो उस कव्वाली का ओरिजनल तो सिर्फ ऑडियो ही मिल पाएगा लेकिन लाइव परफारमेंस यहां पेश कर रहे हैं..मुलाहिजा फरमाइए.
https://www.youtube.com/watch?v=OQw-Sctb5wQ
एक और वर्जन है इसी कव्वाली का, कोक स्टूडियो वाला. जो केके और साबरी ब्रदर्स ने गाया है. साबरी ब्रदर्स से कनफ्यूज मत होना, अब वो क्लासिक कव्वाल साबरी ब्रदर्स नहीं रहे, जन्नतनशीं हो चुके हैं. उनकी ब्रांचेज़ बटी हुई हैं. और केके को भारत का हर दिल तोड़वा चुका आशिक बाई फेस या बाई नाम भले न जानता हो "तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही" गाने से जरूर जानता होगा. इनका वर्जन भी सुन लो.
https://www.youtube.com/watch?v=gdOV5pYaTyU
पूर्व सिंगर अभिजीत के नए दोस्स सोनू निगम ने भी चढ़ता सूरज गाया है. इसमें मामला सब ब्लैक एंड व्हाइट दिखाई दे रहा है. पता नहीं ये कितने सौ साल पीछे का वीडियो है, इसका नया संस्करण हमें प्राप्त नहीं हुआ है इसलिए माफी चाहेंगे. अभी इसी से काम चलाइए.
https://www.youtube.com/watch?v=bXcH-_IWPq4
अब एक अल्टीमेट वर्जन डायरेक्ट रेल के डिब्बे से. हिडेन टैलेंट के नाम से आपको ऐसे पचास हजार और वीडियोज मिल जाएंगे लेकिन ये वाला थोड़ा खास है. इसमें इनके गाने से ज्यादा बजाने में मजा आता है. इनकी ऑडिएंस की बकैती पर ध्यान दिए बिना सुनना तो आनंद आएगा.
https://www.youtube.com/watch?v=EcAcd2f8PJs&t=158s
अब थोड़ी सी बात 'इंदु सरकार' की. मधुर भंडारकर की ये फिल्म 28 जुलाई को रिलीज होगी. फिल्म में कीर्ति कुल्हाड़ी, तोता राय चौधरी, नील नितिन मुकेश और अनुपम खेर दिखेंगे. नील संजय गांधी बनेंगे और सुप्रिया विनोद इंदिरा गांधी के रोल में होंगी. ये फिल्म 1975 में लगी इमरजेंसी के इर्द गिर्द बुनी गई है. इसलिए मानकर चलो कि दिमाग की पॉलिटिकल खुराक पूरी होने के काफी चांसेज बन रहे हैं. तो इंतजार करो चढ़ता सूरज..और इंदु सरकार का.
इंदु सरकार में सुप्रिया और नील नितिन मुकेश इंदिरा और संजय के रोल में, तस्वीर ट्विटर से
इंदु सरकार में सुप्रिया और नील नितिन मुकेश इंदिरा और संजय के रोल में, तस्वीर ट्विटर से



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