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Women's Day Special: आइंस्टाइन भी वो कमाल ना कर पाए जो इस महिला वैज्ञानिक ने कर दिखाया

Marie Curie को अपने जीवन में दो नोबल पुरस्कार मिले. वो भी दो अलग-अलग विषयों में. एक बार फिजिक्स और एक बार केमिस्ट्री में. ऐसा करने वाली वो पहली शख्स बनीं. मेरी ने ऐसी नोटबुक लिखी जिसे बिना सावधानी पढ़ लिया तो जान भी जा सकती है.

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1927 की पांचवीं सॉल्वे कॉन्फ्रेंस की तस्वीर (Image: doi.org/10.3932/ethz-a-000046848)

ऊपर आपने जो तस्वीर देखी वो 1927 की पांचवीं सॉल्वे कॉन्फ्रेंस (Solvay conference) की है. ये इतिहास की सबसे मेधावी तस्वीर कही जाती है (The most intelligent photo ever taken). ऐसा कहने की वजह भी है. इस तस्वीर में नील्स बोर, श्रोडिंगर, हाइजनबर्ग, मैक्स प्लांक, पाउली और आइंस्टाइन जैसे साइंटिस्ट्स शामिल है. ये वो नाम हैं जो अक्सर हम विज्ञान की किताबों में पढ़ते आए हैं. इन सभी को विज्ञान का सबसे सम्मानित माना जाने वाला नोबल पुरस्कार भी मिला है. इन सब पुरुषों के बीच में एक अकेली महिला जो दिखाई दे रही हैं. वो हैं मारिया स्कलोद्वस्का या मेरी क्युरी (Marie Curie).

साइंस की किताबों के रेडियोएक्टिविटी वाले चैप्टर में आपने इनका नाम सुना होगा. हालांकि वो इस तस्वीर में इसलिए नहीं हैं, क्योंकि उस दौर में साइंस की फील्ड में महिलाओं का जाना इतना आसान नहीं था. या फिर इसलिए कि आज भी उनकी लैब नोटबुक पढ़ने के लिए आपको सुरक्षा सूट वगैरह पहनना पड़ेगा. वो इस तस्वीर में हैं तो साइंस में अपनी उपलब्धियों के दमपर. आइए आज जानते हैं क्या है मेरी क्युरी की कहानी.

अपनी लैब में मेरी क्युरी (Source: Wikimedia commons)
जब आइंस्टाइन के साथ पहली बार नजर आईं मेरी क्युरी

साल था 1911… विज्ञान की एक कॉन्फ्रेंस हो रही थी. कॉन्फ्रेंस क्लासिक न्यूटन की फिजिक्स और नई-नई आई क्वांटम फिजिक्स के बीच चल रही डिबेट सुलझाने के लिए थी. इसी कॉन्फ्रेंस में मेरी क्युरी और अल्बर्ट आइंस्टाइन भी मिले. मुलाकात ऐसी की इसके बारे में अमेरिकी लेखक जेफरी ओरेंस लिखते हैं, "मुलाकात जिसने विज्ञान का रास्ता ही बदल दिया (the Meeting That Changed the Course of Science).

 ये थी बेल्जियम के ब्रूसेल्स की पहली सॉल्वे कॉन्फ्रेंस. लेकिन कॉन्फ्रेंस के बाद कोई ठोस हल नहीं निकला या अल्बर्ट आइंस्टाइन के शब्दों कहें तो,

कॉन्फ्रेंस का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला (Nothing positive has come out of it).

कॉन्फ्रेंस के बाद चर्चा मेरी क्युरी के अफेयर की

कॉन्फ्रेंस के बाद भले साइंस में आगे का कोई ठोस रास्ता न निकला हो. लेकिन फ्रांस की प्रेस ने क्युरी का नाम फिजिसिस्ट पॉल लैंग्विन के साथ जोड़ना शुरू कर दिया. पॉल क्युरी के दिवंगत पति पेरी के असिस्टेंट थे. खबरें ऐसी चलीं कि बात क्युरी के दूसरे नोबल पुरस्कार तक आ गई. Washington post की खबर के मुताबिक, क्युरी अगर पुरुष होतीं तो शायद उनके अफेयर की चर्चा से उनके साइंटिफिक करियर पर फर्क नहीं पड़ता.

1911 की सॉल्वे कॉन्फ्रेंस में मेरी क्युरी के पीछे खड़े अल्बर्ट आइंस्टाइन (Credit: getty images)
मेरी को मिले नोबल पुरस्कार क्यों खास हैं

खैर बात क्युरी के दूसरे नोबल की चली है, तो उनके नोबल पुरस्कारों की बात भी कर लेते हैं. जहां एक तरफ किसी की पूरी उम्र निकल जाती है. एक नोबल पुरस्कर मिलने में. जॉन गूडेनोव को 2019 में 97 साल की उम्र में नोबल पुरस्कार मिला था. वहीं मेरी को अपने जीवन में दो नोबल पुरस्कार मिले. वो भी दो अलग-अलग विषयों में, एक बार फिजिक्स और एक बार केमिस्ट्री. ऐसा करने वाली वो पहली महिला ही नहीं, पहली शख्स बनीं. 

1903 में उनको पहला नोबल पुरस्कार मिला. जो उनके पति पेरी क्युरी के साथ साझा था. ये पुरस्कार उन्हें रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए मिला. दूसरी बार उन्हें 1911 में कैमिस्ट्री में नोबल पुरस्कार मिला. रेडियम और पोलोनियम तत्वों की खोज के लिए. बता दें, ये वो दौर था जब अमेरिका जैसे देश तक में महिलाओं को वोट करने का अधिकार नहीं था. उस दौर में मेरी ने साइंस का सबसे प्रतिष्ठत पुरस्कार जीता वो भी दो बार और अलग-अलग विषयों में.

मेरी की नोटबुक जानलेवा हो सकती है 

क्युरी ने रेडियोएक्टिविटी पर काम किया. जिसके लिए वो जानलेवा रेडियोएक्टिव तत्वों के बीच रहीं. रेडिएशन या रेडियोएक्टिव तत्वों से निकलने वाले खतरनाक विकिरण जानलेवा हो सकते हैं. सालों-साल चीजों में जमा हो सकते हैं. दरअसल रेडियोएक्टिव तत्व ऐसे तत्व हैं, जो समय के साथ खुद-ब-खुद टूटते रहते हैं. टूटने के साथ वो अल्फा-गामा जैसे पार्टिकल्स भी छोड़ते हैं. जो हमारी कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. 

मेरी क्युरी की नोटबुक की तस्वीर (Image: Wikimedia commans)

मेरी क्युरी की लैब में रेडियोएक्टिविटी का आलम ऐसा था कि आज भी उनकी नोटबुक रेडियोएक्टिव है. उनके कपड़े और बाकी पर्सनल चीजें भी. यहां तक की उनके को भी लेड से कवर किया गया था ताकि रेडिएशन न फैले. 

वही रेडिएशन जिसने शायद क्युरी की जान ले ली. 4, जुलाई 1934 को फ्रांस के सेवॉय (Savoy, France) में एप्लास्टिक एनीमिया ने उनकी जान ले ली, जिसकी वजह रेडिएशन मानी जाती है. मेरी क्युरी जिन्होंने अपनी शिक्षा के लिए संघर्ष किए, खतरनाक रेडिएशन में काम किया और विज्ञान में ऊंचाइयां हासिल की. विज्ञान में आने वाली पीढ़ियों के लिए नए रास्ते खोले, दुनिया से जा चुकीं थीं.