ये एक फीचर फिल्म है. नई नहीं है. 1979-80 में आई थी.आपने 'कलिगुला' देखी है?
रोम का शासक हुआ था कलिगुला सीज़र, उसी कलिकुला का आज जन्मदिन है. इस फिल्म में उसका खिलंदड़, आतंककारी और ट्रैजिक जीवन बताया गया है.
इसे डायरेक्ट किया था टिंटो ब्रास ने.
टिंटो ब्रास की फिल्में नहीं देखी हैं तो उनके लिए हैं जिनको इरॉटिका या सेमी-पॉर्न का चाव है. टिंटो का एस्थेटिक सेंस यानी सौंदर्य दुनिया की किसी और सेमी पॉर्न या पॉर्न फिल्म में नहीं मिलेगा.
'कलिगुला' को एक बहुत ही बड़ी हिस्टोरिकल फिल्म के रूप में शुरू किया गया था. एडल्ट मैगजीन पेंटहाउस के संस्थापक बॉब गुचियोनी इसके निर्माता थे. वे इसे ऑरसन वेल्स की ऑलटाइम क्लासिक 'सिटीज़न केन' जैसा बनाना चाहते थे. इसे डायरेक्ट करने के लिए टिंटो को लाया गया था. उन्होंने फिल्म शूट की लेकिन बताया जाता है कि उन्होंने इस फिल्म को राजनीतिक व्यंग्य की तरह रखा था लेकिन बाद में उनकी अनुमति के बगैर निर्माताओं ने अलग से पॉर्न सीन शूट किए और फिल्म को पूरे तरीके से एडिट कर दिया. टिंटो सहमत नहीं थे और फिल्म से अलग हो गए.
'कलिगुला' को मैंने बहुत पहले देखा था जब फिल्मों को कैसे देखा जाए और कैसे समझा जाए को सीखना जारी था. उस वक्त जैसे समाज में टैबू हैं और जैसी कुंठाएं न्यूटिडी को लेकर बनाई हुई हैं उनके तले कोई भी मानता कि ये एक पॉर्न फिल्म है जिसे देखना बुरा है. लेकिन जब फिल्म मैंने देखी तो रात भर अपने दिमाग से बाहर नहीं निकाल पाया. उठ बैठा और एक पन्ने पर लिखा कि मैं क्या सोच रहा हूं.
फिल्म में कलिगुला का रोल करने वाले ब्रिटिश अभिनेता मैलकम मैकडॉवेल सीज़र की सनक (स्क्रिप्ट मुताबिक) को अलग ही स्तर पर ले जाते हैं. ये वही एक्टर हैं जिन्होंने इससे पहले महान फिल्मकार स्टैनली कुबरिक की क्लासिक फिल्म 'अ क्लॉकवर्क ऑरेंज' (1971) में लीड रोल किया था. 'क्लॉकवर्क..' में उनका पात्र दर्शकों को मानसिक रूप से तबाह करने वाला था. एक सीन में जब उनका पात्र अपने क्रिमिनल दोस्तों के साथ एक दंपत्ति के घर में घुसता है और उन्हें पीटता है व उनका यौन उत्पीड़न करता है वो खौफनाक है. इस दृश्य में मैलकम के अभिनय की इंटेंसिटी जैसी है ठीक उसी के समानांतर 'कलिगुला' में है.

हैलन मिरेन जिन्हें ब्रिटेन ने डेम की ऊंची उपाधि मिली हुई है, जो 'द क्वीन' के लिए 2007 में बेस्ट एक्ट्रेस का ऑस्कर जीत चुकी हैं, जो ओम पुरी के साथ 'द हंड्रेड फुट जर्नी' में भी थीं, वो भी 'कलिगुला' में थीं. उनका एक लीड रोल था. जब वे सम्मानजनक लीग वाली फिल्मों में नहीं आई थीं जब उन्होंने ये की थी और इसमें उनके द्वारा न्यूडिटी भी थी.
लैंजेडरी एक्टर पीटर ओ टूल ने इसमें कलिगुला के चाचा सम्राट टाइबेरियस का रोल किया था जिसे कलिगुला मारकर जबरन सम्राट बनता है. पीटर बेस्ट एक्टर के ऑस्कर के लिए आठ बार नामांकित हो चुके हैं. उन्हें 1962 में आई 'लॉरेंस ऑफ अरेबिया' के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है जिसे विश्व की सर्वकालिक 100 महान फिल्मों में अकसर गिना जाता है.
'कलिगुला' में न्यूडिटी के अलावा भी जो कथानक चल रहा होता है वो जैसा ग्रिपिंग होता है वो किसी सेमी-पॉर्न या पॉर्न फिल्म में नहीं देखा जाता. जैसे कलिगुला एक बर्बर औऱ घृणित शासक बन जाता है. और सबसे त्रासद फिल्म का अंत होता है. फिल्म में दुनिया के सबसे आकर्षक स्तन और लिंग देखकर जिन्हें भी इरेक्शन हो गया होगा उनकी सब नसों का ख़ून इस क्लाइमैक्स में क्षण भर में ठंडा पड़ जाएगा.
जिस तरह अपनी पोलिटिकल-सोशल कमेंट्री के इतर 'जाने भी दो यारों' का सरल न होना, अटपटा होना उसे कल्ट कॉमेडी बना देता है, वैसे ही कलिगुला सीज़र अपने वर्जनाएं लांघते कंटेंट के इतर एक कल्ट क्लासिक होती है. इसलिए भी क्योंकि इसे लेकर लोगों के मत बहुत भिन्न हो सकते हैं. जैसे प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक रॉजर ईबर्ट आधी फिल्म देखकर ही उठ गए बताए जाते हैं. उन्होंने इस फिल्म को कचरा बताया था. ऐसे सब नेगेटिव रिव्यूज़ के उलट पहले भी और अब जब वक्त बदल गया है तो और अधिक, इसे अलग नजर से देखते हुए ये कचरा नहीं लगती.
गुजरे वक्त के साथ ये धरोहर सी हो गई है.
..एक फिल्म में बहुत-बहुत कुछ देखा और समझा जा सकता है. लेकिन उसमें से हमेशा बस उतना ही देखा या समझा जा सकेगा जितनी कि देखने वाली में अक्ल होगी.
https://www.youtube.com/watch?v=VuwEvy5Krxs
'कलिगुला' की मेकिंग की बेहद घुमावदार, दिलचस्प और लंबी कहानी फिर कभी.
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