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वर्ल्ड बैंक की गरीबी रेखा में बदलाव, नए मानक के हिसाब से भारत में कितने लोग 'अत्यंत गरीब'?

विश्व बैंक ने गरीबी रेखा के अपने बेंचमार्क को बदला है. नए बेंचमार्क के मुताबिक, 3 डॉलर यानी 257 रुपये से कम रोजाना खर्च करने वाले लोग अत्यंत गरीबी रेखा के नीचे आएंगे.

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वर्ल्ड बैंक ने गरीबी की रेखा का बेंचमार्क बदला है (India Today)

विश्व बैंक (World Bank) ने गरीबी रेखा के अपने मानक बदल दिए हैं. नए बेंचमार्क के मुताबिक, 3 डॉलर यानी 257 रुपये से कम रोजाना खर्च करने वाले लोग अत्यंत गरीबी (extreme poverty) रेखा के नीचे आते हैं. इसे भारत के नजरिए से देखें तो यहां साल 2011-12 के मुकाबले 2022-23 में बड़ी संख्या में लोग ‘अत्यंत गरीबी रेखा’ से बाहर आए हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ल्ड बैंक के नए मानकों के हिसाब से देखें तो 2022-23 भारत में अत्यधिक गरीब लोगों की संख्या कुल आबादी का महज 2.3 फीसदी रह गई, जो 2011-12 में 27 फीसदी से ज्यादा थी. यानी, जहां पहले 34.4 करोड़ भारतीय बहुत गरीब थे, वहीं अब उनकी संख्या घटकर 7.5 करोड़ रह गई है.

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वर्ल्ड बैंक के आकलन के अनुसार, पुरानी गरीबी रेखा (यानी 2.15 डॉलर प्रतिदिन खर्च) के हिसाब से देखें तो भारत में 2011-12 में 16.2% लोग अत्यधिक गरीब थे. इसी दर पर साल 2022 में उनकी संख्या घटकर महज 2.3% हो गई. मतलब, 2.15 डॉलर रोजाना खर्च करने वाले एक्स्ट्रीम गरीबों की संख्या 20.6 करोड़ (2011-12) से घटकर अब सिर्फ 3.4 करोड़ रह गई है. 

लोअर मिडिल क्लास के मानक भी बदले

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अत्यधिक गरीबी की सीमा के अलावा विश्व बैंक ने निम्न-मध्यम आय (LMIC) की रेखा को भी रिवाइज किया है. इसे 3.65 डॉलर से बढ़ाकर 4.20 डॉलर हर रोज कर दिया गया है. इसके हिसाब से इस रेखा के नीचे आने वाले लोगों की दर 2011-12 में 57.7 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 23.9 प्रतिशत हो गई. यानी, 73.2 करोड़ से अब सिर्फ 34.2 करोड़ लोग इस रेखा के नीचे हैं.

अगर 3.65 डॉलर प्रतिदिन की LMIC के हिसाब से देखें तो भारत में ग्रामीण गरीबी 2011-12 में 69 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 32.5 प्रतिशत हो गई. जबकि शहरी गरीबी 43.5 प्रतिशत से घटकर 17.2 प्रतिशत हो गई. साल 2022-23 में बिना स्कूली शिक्षा वाले 16 साल से अधिक उम्र के 35.1% लोग गरीबी रेखा के नीचे थे, जबकि कॉलेज की पढ़ाई करने वालों में यह संख्या सिर्फ 14.9% थी.

MPI में भी सुधार

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विश्व बैंक के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index) के अनुसार, भारत में ऐसी गरीबी 2005-06 में 53.8% से घटकर 2022-23 में 15.5% हो गई. ये गरीबी सिर्फ पैसों के आधार पर नहीं मापी जाती बल्कि इसमें इनकम के साथ-साथ शिक्षा, पानी, बिजली, स्वच्छता आदि को भी शामिल किया जाता है. नीति आयोग का कहना है कि भारत में इस तरह की गरीबी 2013-14 में 29.17% थी, जो 2022-23 में घटकर 11.28% हो गई.

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